छत्तीसगढ़ी हाना

संकलनकर्ता – रघुवंश मिश्रा

  1. बेंदरा के कूदे ले डारा नई टूटै – सही व्यक्ति के काम करने से काम नही बिगड़ता
  2. पड़हे मनखे पड़हे बर सीखै, मुंशी बन घसीटा लीखै – अपने काम पर इतराना
  3. रोनहा लइका के मुंह चिन्हाउल – चेहरा देखकर आदत जान लेना
  4. तोर-मोर यारी, नई लगे चिन्हारी – समान काम करने वालों के बीच लेन-देन नहीं होता
  5. दूहे के जब पारी आइस जब गाय के सुरता आइस – काम निकलवाने के लिए किसी को याद करना
  6. जब-जब आफत में जकड़े तब-तब बहुरिया के कान पकड़े – अपनी गलती के लिए दूसरे को दोष देना
  7. दीनबंधु जय दीनानाथ कहे म नई होवथ सनाथ – कहने भर से काम पूरा नहीं होता
  8. बाहिर फेंके ले परही मार मुड़ के कचरा घर में डार – घर की समस्या घर मे ही सुलझा लेना चाहिये
  9. बेअक्कल उजड्ड औलाद गदहा कस बोझा लाद – व्यर्थ बात पर चिंता करना

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