छत्तीसगढ़ी बालगीत

सिक्छा के हक

लेखक - रामफल यादव (धनरास)

सिक्छा के हक ल जानव जी,
अँजोरी नवा लानव ।

एला सुख के मन्तर मानव जी,
अँजोरी नवा लानव।

लक्ठा इस्कूल फोकट म पढ़ाई,
मनभर करलव जम्मों भाई ।

घर बरोबर इस्कूल अब लागे,
जम्मों लइका के भाग अब जागे।

गुरू ल मितान जस जानव जी,
अँजोरी नवा लानव।

भेद मिटागे बड़े छोट के,
बेरा लहुटगे मीठ गोठ के।

उमर जस,तस कक्छा हे,
लउहा भरती करावव जी।

पिंजरा के सुआ

लेखक – रघुवंश मिश्रा

मय हरियर सुआ मोर लाली-लाली चोंच
रुखवा के फर न खावौं नोच-नोच

रुखवा ले पकर के मोला ले आईस
घर म मोर बर पिंजरा बनाईस
पिंजरा म बइठ के रोवों सोंच-सोंच
मय हरियर सुआ मोर लाली-लाली चोंच

का सोचत होहें मोर दाई-ददा
कौन पाप के मोला मिलिस सजा
असक जान मोला लिहिस दबोच
मय हरियर सुआ मोर लाली-लाली चोंच

आनी-बानी के खाय बर लावै
खाए कोती बर मन नई जावै
खाए बिना करै पेट पोंच-पोंच
मय हरियर सुआ मोर लाली-लाली चोंच

पाके मउका पिंजरा ल तोड़व
खुल्लाउ बादर म फिर से उडव
सब कोती उड़ेव बिना संकोच
मय हरियर सुआ मोर लाली-लाली चोंच

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