छत्तीसगढ़ी बालगीत

जाड़ के दिन

लेखक – रघुवंश मिश्रा

अकड़गे लइका, अकड़गे सियान,
आगे जाड़, होईस मरे बिहान।
बड़े बिहन्ना, ले, सूरूज ला ताके,
राजू, चुक्की , निक्कीख अऊ बांके,
एक दूसर ले कहै, आज नई नहान।।

बड़ बेरा ने रवानिया तापिन,
होईस बेरा तौ घर जाए मा कापिन,
मन म सोच के दाई के परही पिटान।।

बोरे बासी पताल के झोर,
खाके निकलिन मदरसा की ओर,
पढ़े लिखे म नई लागिस धियान।।

अपने जइसे दाई- बबा ल पाके,
कान म कहै गोदी म पवाके,
चल बद लेवन मितानिन-मितान।।

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