छत्‍तीसगढ़ी बालगीत

मोर गांव

लेखक – रघुवंश मिश्रा

अब्बड़ सुग्घर संगवारी, मोर सईदा गांव हे।
तरिया के पार भर, रूख-राई के छांव हे।।

जम्मो लइका मन इस्कूल जाके, पढ़े-लिखे म मन लगाथे।
अपन जीवन ल संवार के, दाई-ददा के मान बढ़ाथे।।

झगरा-लराई ले दूर रहिके, जुर-मिल सब्बो करथे काम।
संझा-बिहनिया हरि भजन कर, लेथे सब्बो प्रभु के नाम।।

जाति-धरम अउ ऊंच-नीच के, नई हावे इहां भेद-भाव।
एक-दूजे से अब्बड़ मया हे, छल-कपट के है अभाव।।

इहां के माटी में, ममता के छांव हे।
अब्बड़ सुग्घर संगवारी, मोर सईदा गांव हे।।

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