कहानियाँ
पंचतंत्र की कहानी
धूर्त बिल्ली का न्याय
बहुत पुरानी बात है, एक जंगल में एक बहुत बड़े पेड़ के तने में एक खोल था. उस खोल में कपिंजल नाम का एक तीतर रहा करता था. हर रोज वह खाना ढूंढने खेतों में जाया करता था और शाम तक लौट आता था.
एक दिन खाना ढूंढते-ढूंढते कपिंजल अपने दोस्तों के साथ दूर किसी खेत में निकल गया और शाम को नहीं लौटा. जब कई दिनों तक तीतर वापस नहीं आया, तो उसके खोल को एक खरगोश ने अपना घर बना लिया और वहीं रहने लगा.
लगभग दो से तीन हफ्तों बाद तीतर वापस आया. खा-खाकर वह बहुत मोटा हो गया था और लंबे सफर के कारण बहुत थक भी गया था. लौट कर उसने देखा कि उसके घर में खरगोश रह रहा है. यह देख कर उसे बहुत गुस्सा आ गया और उसने झल्लाकर खरगोश से कहा, 'ये मेरा घर है. निकलो यहां से.'
तीतर को इस तरह चिल्लाते हुए देख खरगोश को भी गुस्सा आ गया और उसने कहा, 'कैसा घर? कौन सा घर? जंगल का नियम है कि जो जहां रह रहा है, वही उसका घर है. तुम यहां रहते थे, लेकिन अब यहां मैं रहता हूं और इसलिए यह मेरा घर है.'
इस तरह दोनों के बीच बहस शुरू हो गई. तीतर बार-बार खरगोश को घर से निकलने के लिए कह रहा था और खरगोश अपनी जगह से टस से मस नहीं हो रहा था. तब तीतर ने कहा कि इस बात का फैसला हम किसी तीसरे को करने देते हैं.
उन दोनों की इस लड़ाई को दूर से एक बिल्ली देख रही थी. उसने सोचा कि अगर फैसले के लिए ये दोनों मेरे पास आ जाएं, तो मुझे इन्हें खाने का एक अच्छा अवसर मिल जाएगा.
यह सोच कर वह पेड़ के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठ गई और जोर-जोर से ज्ञान की बातें करने लगी. उसकी बातों को सुनकर तीतर और खरगोश ने बोला कि यह कोई ज्ञानी लगती है और हमें फैसले के लिए इसके ही पास जाना चाहिए.
उन दोनों ने दूर से बिल्ली से कहा, 'बिल्ली मौसी, तुम समझदार लगती हो. हमारी मदद करो और जो भी दोषी होगा, उसे तुम खा लेना.'
उनकी बात सुनकर बिल्ली ने कहा, 'अब मैंने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है, लेकिन मैं तुम्हारी मदद जरूर करूंगी. समस्या यह है कि मैं अब बूढ़ी हो गई हूं और इतने दूर से मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है. क्या तुम दोनों मेरे पास आ सकते हो?'
उन दोनों ने बिल्ली की बात पर भरोसा कर लिया और उसके पास चले गए. जैसे ही वो उसके पास गए, बिल्ली ने तुरंत पंजा मारा और एक ही झपट्टे में दोनों को मार डाला.
कहानी से सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें झगड़ा नहीं करना चाहिए और अगर झगड़ा हो भी जाए, तो किसी तीसरे को बीच में आने नहीं देना चाहिए.
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हाथी की दावत
रचनाकार- श्रीमती श्वेता तिवारी, बिलासपुर
हाथी सुबह से बहुत खुश था.आज उसका जन्मदिन है. उसकी मां ने उसे नहला धुला कर खूब अच्छे कपड़े पहनाए है और वह जंगल में अपने सभी मित्रों को बुलाने निकल पड़ा. सबसे पहले वह जंगल के राजा शेर के पास गया जाकर कहता है शेर दादा आज मेरा जन्मदिन है आप शाम को आइएगा. चूहा के पास गया, भालू के पास, खरगोश, गिलहरी, मोर ,बंदर सब के पास हाथी ने जाकर अपने जन्मदिन के लिए न्योता दिया. सभी जानवर बहुत खुश थे कि आज शाम को तो हमें हाथी के जन्मदिन में जाना है हाथी बहुत खुशी से झूम उठा था. वह शाम को अपनी मां के साथ बाजार से केक लेकर आया टॉफी और सभी जानवर के लिए गिफ्ट लेकर आया शाम होते ही सारे लोग जंगल में जन्मदिन मनाने के लिए पहुंच गए पर हिरण दूर पेड़ के नीचे बैठ कर रो रहा थी क्योंकि उसे हाथी ने अपने जन्मदिन पर नहीं बुलाया था. सारे जानवर हंसी खुशी से जंगल में मंगल कर रहे थे तब खरगोश ने देखा कि हिरण बैठे बैठे रो रहा है. उसने जाकर पूछा हिरण तुम क्यों रो रहे हो तब हिरण ने खरगोश से कहा कि मुझे हाथी ने अपने जन्मदिन पर नहीं बुलाया है. यह सुनकर खरगोश बहुत दुखी हुआ. शेर को पता चला तो वह सभी जानवरों के साथ हिरण को लेने गए. हिरण सभी जानवर को अपने पास आते देखकर बहुत खुश हुआ और शेर ने कहा चलो हम सब मिलकर हाथी का जन्मदिन मनाएंगे तुम रो नहीं और फिर हाथी ने आकर उसे बहुत ही सुंदर प्यारा गिफ्ट दिया हिरण बहुत खुश हो गया कि आज हाथी का जन्मदिन है गिफ्ट मै देता पर मुझे ही गिफ्ट मिल रहा है. हिरण जल्दी से हाथ मुंह धो कर तैयार हो गया और वह भी जानवरों की टोली में जाकर जंगल में मंगल करने लगा. सब ने खूब मजा किया. हाथी की मां ने खूब बड़ा केक मंगाया था. सभी ने केक खाया टॉफी खाई और फिर मोर ने खूब अच्छा नृत्य किया. कोयल ने गाना सुनाइए और सब हंसी खुशी से अपन अपने घर को लौट आए.
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सबक
रचनाकार- खेमराज साहू 'राजन', दुर्ग
वनांचल क्षेत्र के एक गाँव में कुमार और सूरज दो लड़के रहते थे. दोनो अच्छे मित्र थे. वह बहुत ही शरारती थे. शरारत के साथ ही साथ नशा पान करना शुरु कर दिया था.स्कूल मे आ कर छुप कर बीड़ी,सिकरेट, गाँजा आदि का सेवन करते थे. पहले पहले बिगड़े हुए दोस्तों के द्वारा नशा के लिये सहयोग करते थे बाद मे सहयोग देने से मना कर दिया. अब तक नशा की लत पड़ गयी थी. अब घर मे माता पिता को स्कूल जाने के बहाने रुपिये माँगना शुरु कर दिया.घर वाले भी स्कूल भेजने के लिए रुपिये दे देता था. उसके माता पिता रोजी मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते थे,रोज रोज पैसे की मांग करने पर परेशान हो गये और अन्त मे रुपिये पैसे देने से मना कर दिये. अब नशा करने के लिए अब पैसा घर से चोरी करना प्रारम्भ कर दिया. घर वालों को पता चल गया कि घर मे राशन के लिये रखा रुपिये गायब है. घर वालों को आखिर में पता चल गया कि कुमार ही चोरी किया है गाँव के बड़े बुजुर्ग को बुलाकर इन दोनो बच्चो को समझाने के लिए कहा. गाँव के मुख्या द्वारा खूब समझया गया तब उन दोनो ने चोरी नही करने की वचन दिये. कुछ दिन लगातर स्कूल जाने लगा. एक दिन पता चला कि थाने से सिपाहियों ने कुमार और सूरज को खोजते खोजते घर तक पहुच गये. गाँव के बड़े दुकान मे पैसा चोरी करते देखा गया है दुकान मालिक लाला जी द्वारा पकड़ने की प्रयास करने पर पास रखे लाठी से हमलाकर लहू-लुहान कर दिया. पुलिस द्वारा स्कूल मे पता करने पर जानकारी हुई कि कभी समय से स्कूल नहीं जाते थे. दोनों हमेशा खेलते और घूमते रहते थे. स्कूल में भी वे दोनों पूरे समय नहीं रहते थे. प्राय: वह स्कूल से किसी न किसी बहाने निकल जाया करते थे और दिनभर इधर-उधर घूमते रहते. उनसे स्कूल के बड़े गुरुजी भी परेशान रहते थे. उन्होंने कई बार उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन उन पर इसका कोई असर नहीं हुआ. स्कूल में शिक्षकों ने भी उन्हें कई बार समझाया लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आये.
वह दोनों पुलिस से बचने जंगल की ओर भाग गये. वहाँ वह जंगली जानवरों के बच्चों के साथ छेड़छाड़ करने लगे. उसी समय अचानक उन बच्चों के माता-पिता आ पहुँचे. उन्हें आया देखकर नशा मे मस्त होने के कारण उन दोनों पर कोई असर नहीं हुआ. तभी वे जानवर उन दोनों पर झपटे. उन्हें अपनी ओर झपटता देखकर दोनों डरकर भागे. जानवरों ने उन दोनों का पीछा किया. भालुओं के हमला करने से कुमार के पैर को फाड़ दिये एवं सूरज के आँख को गंभीर चोटे आयी जिससे दोनो बेहोश हो कर गिर गये. भालुओं के द्वारा मरा समझ कर छोड़ दिये.बाद मे वन विभाग के कर्मचारियों के द्वारा अस्पताल मे भर्ती कराया गया.
उन लोगो की हालत देखकर एवं बचपन की गलती समझ कर दुकान मलिक लाला जी द्वारा पुलिस रिपोर्ट वापस ले लिया.
इस घटना का उन दोनों पर ऐसा असर हुआ और समय पर स्कूल जाकर पढ़ाई करने लगे.तथा नशा को पुर्ण रुप से छोड़ चुके थे सभी को उन दोनों में हुए अनायास परिवर्तन पर बहुत ही आश्चर्य हुआ.
कहानी से सीख- बच्चों! कभी भी अपने कर्त्तव्य के प्रति लापरवाह नहीं होना चाहिए अन्यथा परिणाम बुरा होता है.
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गुमशुदा रोहित और उसकी टोपी
रचनाकार- उपासना बेहार, भोपाल
रोहित के घर के ठीक पीछे घने जंगल की तरफ जाने का रास्ता था, पहले पास के गाँव के लोग उस रास्ते से जंगल जाकर लकड़ियाँ लाते थे. लेकिन जंगल में बाघ, भालू, जंगली सूअर जैसे खतरनाक जानवर भी थे. कई बार लोगों का सामना इन जानवरों से हुआ. कुछ लोग जानवरों के आक्रमण से घायल भी हुये.इस कारण वनविभाग ने वहाँ गेट लगवा कर ताला लगा दिया.कभी जरुरत पड़ने पर वन के कर्मचारियों द्वारा इस रास्ते का उपयोग किया जाता था.
रोहित का परिवार इस मकान में कुछ महीने पहले ही रहने आये थे.रोहित का मन हमेशा हरे भरे जंगल में जाने का करता रहता था. कई बार उसने माँ से वहाँ जाने की इच्छा जताई,पर मां ने कहा -'जंगल में खतरनाक जंगली जानवर रहते हैं और वो लोगों को मार कर खा जाते हैं.तुम कभी भी उधर जाने की मत सोचना.' रोहित सोचता कि इतने महीनों से वो यहाँ रह रहा है परन्तु इतने दिनों में उसने कभी भी किसी भी जानवर की आवाज नहीं सुनी.उसके मन में जंगल को देखने की बड़ी ललक थी पर गेट पर ताला होने के कारण जा नहीं पाता था.
एक दिन रोहित पास के पार्क में खेलने के लिए घर से निकला तभी उसने जंगल का गेट खुला हुआ देखा, उसने सोचा-'यही मौका है चलो आज जंगल चलते हैं, ज्यादा दूर नहीं जाऊँगा और बस कुछ ही मिनिट में वापस आ जाऊँगा,किसी को पता भी नहीं चलेगा.' यह सोचते हुये वो गेट के अंदर घुस गया.जंगल में चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी.बड़े-बड़े पेड़ थे.उसने इतने बड़े और मोटे तने वाले पेड़ कभी नहीं देखे थे.तरह-तरह के पक्षियों की आवाजें आ रही थी.एक पतली सी पगडंडी बनी हुयी थी. रोहित उसी के सहारे आगे बढ़ने लगा. थोड़ी दूर में जा कर पगडंडी ख़त्म हो गयी.आगे जमीन पर कई तरह के लम्बे लम्बे घास उगे थे.रोहित ने सोचा 'इससे आगे जाना ठीक नहीं होगा. अब मुझे वापस जाना चाहिए.'
वो अभी वापस जाने की सोच ही रहा था कि अचानक कहीं से बहुत सारे बंदर आ गए. रोहित उन्हें देख कर घबरा गया और तेजी से भागने लगा. उसकी टोपी भी जमीन पर गिर गयी. वो एक मोटे घने पेड़ पर चढ़ कर छुप गया.थोड़ी देर तक वह पेड़ पर ही रहा.जब बंदरों की आवाज सुनाई देनी बंद हो गयी तब जाकर पेड़ से नीचे उतरा पर उसे समझ नहीं आया कि वो कहाँ हैं और उसके घर जाने का रास्ता कहाँ हैं?रोहित समझ गया कि वो जंगल में भटक गया हैं. वो रोने लगा. तभी उसे एक झोपड़ी नजर आई.वह उसी तरफ तेजी से बढ़ चला,लेकिन झोपड़ी में कोई नहीं था. झोपड़ी की मिटटी की बनी दीवालें टूट गयी थी, केवल छत ही बची थी, रोहित झोपड़ी में बैठ गया. तभी उसे याद आया कि उसके पास मोबाइल हैं,घबराहट में ये भूल ही गया था.उसने अपनी पेंट की जेब से मोबाइल निकाला लेकिन जंगल में नेटवर्क नहीं था, धीरे-धीरे अँधेरा घिरता जा रहा था.उसने मोबाइल का टार्च जला लिया.उसके दोस्तों ने इस जंगल के खतरे के बारे में उसे पहले ही बताया था, वो सब बातें याद आ रही थी.अगर अभी कोई जंगली जानवर यहाँ आ गया तो वो अपनी जान कैसे बचाएगा. उसे बहुत डर लग रहा था.वो लगातार रोये जा रहा था.
उधर रोहित की मां सोच रही थी कि रोहित अपने दोस्तों के साथ खेल रहा है.जब शाम हो गयी और वो घर नहीं पहुँचा तो मां को चिंता होने लगी.उन्होंने उसके मोबाइल पर फ़ोन लगाया लेकिन मोबाइल नेटवर्क क्षेत्र से बाहर है ये बता रहा था.मां ने रोहित के पापा को फ़ोन पर सारी बात बताई, वो भी तुरंत घर पहुँच गए. दोनों ने रोहित के दोस्तों को फ़ोन लगाया पर दोस्तों ने बताया कि आज तो वो पार्क खेलने आया ही नहीं. आसपड़ोस के लोग भी रोहित के घर आ गए.सब सोच रहे थे कि रोहित कहाँ चला गया.
तभी मां को जंगल का गेट खुला हुआ दिखा.उन्होंने कहा,'रोहित जरुर से जंगल गया होगा.वो मुझसे कई बार वहाँ जाने का कह चुका है.' बिना देरी किये सभी लोग हाथ में मशाल लिए जंगल की तरफ चल पड़े और रोहित को आवाज देने लगे.जंगल में थोड़ी दूर जाने पर उन्हें रोहित की टोपी मिली, सब उसी दिशा में बढ़ने लगे. तभी उन्हें दूर से हल्की रौशनी दिखाई दी जो रोहित के मोबाइल के टार्च की थी.मां रौशनी की तरफ दौड़ पड़ी. रोहित ने भी देखा कि दूर में कुछ रौशनी दिख रही है, वो मदद के लिए जोर-जोर से चिल्लाने लगा.झोपड़ी में पहुँच कर माँ ने रोहित को गले से लगा लिया.रोहित ने सबसे माफ़ी मांगी और आगे से जंगल में न आने का वादा किया.सभी लोग घर की ओर चल पड़े.
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शिक्षा का महत्व
रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
कक्षा में मास्टर साहब के आते ही सभी बच्चे अपनी अपनी सीट पर जा कर बैठ गए.
तभी मास्टर साहब ने मोनू का नाम ले कर बोले
मोनू कल जो हमवकॅ घर से पुरा कर के लाने को कहा था वह हमें दिखाओ.
इतना सुनते ही मोनू डर के मारे थर थर कांपने लगा
आज भी उसने होम वकॅ पुरा कर के नहीं लाया था.
बताओ मोनु तुम होम वकॅ पुरा कर के लाए हो या नहीं? '
सर मेरा होमवकॅ नहीं पुरा हुआ है. आज हमें माफ कर दीजिए कल होमवकॅ पुरा कर के दिखाऊंगा.
तभी मास्टर साहब अपनी आंखें लाल लाल कर के बोले आज तो तुमको फिर मुर्गा बना कर ही छोडूंगा.
इतना कह कर मास्टर साहब बोले चलो मुर्गा बन कर दिखाओ नही तो मार भी पड़ेगी और मुर्गा भी बनना पड़ेगा.
मैनू को रोज मानों मुर्गा बनने की आदद ही पड़ गई थी. उसे मास्टर साहब समझा कर हार चुके थे.
वह खेलने टीवी मोबाइल देखने के आगे शिक्षा का कोई महत्व नहीं समझ रहा था.
मोनू के दोस्त ओम यीशु रुद्राक्ष समझा कर थक चुके थे. उसपर किसी के बात का कोई असर नहीं पड़ रहा था.
उस दिन मोनू स्कूल में तीन घंटा तक मुर्गा बना कान पकड़े झुका रहा. मुर्गा बनने में उसे बहुत ददॅ हो रहा था.आज उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह टी वी मोबाइल नहीं देखेगा बल्की शिक्षा के महत्व पर ध्यान देगा और मन लगा कर पढ़ेगा. अपना रोज का होमवकॅ पुरा कर के स्कूल जाएगा ताकी बार बार उसे मुर्गा बनने से छुटकारा मिल जाए.
शाम को स्कूल के हेडमास्टर साहब कक्षा में आए और मोनू से बोले 'मोनू तुम कल से स्कूल मत आना हमने तुम्हारा नाम स्कूल से काट दिया है.
तुम पढ़ने लिखने में जीरो हो तुम्हारे कारण हमारे स्कूल की बहुत बदनामी हो रही है.
हेडमास्टर साहब की बात सुनकर मोनू हेडमास्टर साहब के पैर पकड़ कर बोला सर हमें माफ कर दीजिए अब मैं कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा.
मोनू को रोते देख कर उसके दोस्त ओम यीशु और रुद्राक्ष हेडमास्टर साहब से बोले सर इस बार मोनू को
माफ कर दीजिए आइंदा इसने फिर होमवकॅ पुरा कर के घर से नहीं लाया तो इसे स्कूल से निकाल दीजिएगा फिर हम कोई सिफारिश नहीं करेंगे.
उस दिन हेडमास्टर साहब मोनू के दोस्तों की बात मान कर मोनू को जीवन दान दे दी.
अगले दिन से मोनू शिक्षा का महत्व समझ कर पढ़ने लिखने में पुरा ध्यान लगाने लगा. उस दिन के बाद मोनू कभी मुर्गा नहीं बना.
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शादी का विज्ञापन
रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
हरी वन में हर तरह के जानवर और पक्षी रहते थे. उन्हीं में डब्बू बंदर अपनी पत्नी लीली और बेटे चंपू के साथ रहता था.
चंपू जवान हो गया था, मगर उसकी शादी नहीं हो पायी थी.
डब्बू बंदर बेटे चंपू की शादी को लेकर बहुत परेशान था और उसकी पत्नी लीली भी बहुत परेशान थी.
एक रोज डब्बू बंदर का दोस्त कालू भालू डब्बू को परेशान देख कर डब्बू बंदर से पूछ पड़ा, डब्बू मैं तुमको कई महीने से बहुत परेशान देख रहा हूं. क्या मैं तुम्हारी परेशानी का कारण जान सकता हूं?
डब्बू बोला कालू भाई मेरा बेटा चंपू जवान हो गया है मगर अभी तक उसके शादी के लिए कोई रिश्ता नहीं आया. मैं चंपू की शादी की बात को लेकर कर बहुत चिन्तित हूं. क्या तुम हमारी कोई मदद कर सकते हो? 'डब्बू बंदर कालू भालू से पूछ पड़ा!'हां क्यों नही. आज तो घर बैठे शादी का रिश्ता मिल जा रहा है . वो भी बस अखबार में शादी का विज्ञापन दे कर. मेरी मानों तो तुम दैनिक चंपक अखबार में अपने बेटे चंपू की शादी का विज्ञापन दे दो. फिर देखना विज्ञापन छपते ही शादी के रिश्ते आने लगेगें.
कालू भालू की बात सुनकर डब्बू बंदर उसी दिन दैनिक चंपक अखबार में जा कर शादी का विज्ञापन दे आया.विज्ञापन छपने के एक सप्ताह के अन्दर शादी के रिश्ते आने शुरु हो गए. डब्बू की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा.
एक दिन पड़ोसी वन चंपक वन से छोटू बंदर अपनी पत्नी के साथ डब्बू के घर आया और बोला, मैं अपनी बेटी सुन्दरी की शादी आप के बेटे के साथ करना चाहता हूं. मैं अपनी बेटी की फोटो भी साथ लाया हूं. यह फोटो देख लीजिए और लड़की पसंद है तो शादी की बात पक्की कर लीजिए.
सुन्दरी की फोटो डब्बू बंदर, उसकी पत्नी लीली और बेटे चंपू को पसंद आ गई.शादी की सारी बात पक्की हो गई और शादी का दिन भी अगले महीने पड़ गया .
चंपू की शादी होते ही डब्बू की सारी चिन्ता दूर हो गई और सभी मिल कर सुख से रहने लगे.
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पापा
रचनाकार- प्रियांशिका महंत, कक्षा – 7, सेजेस तारबहर बिलासपुर
मैं मेरे पापा की आंखो का तारा थी. मेरे पापा मेरे जीवन के सहारा थे. हर रोज मुझे स्कूल छोडने जाते थे जब मैं थक जाती तो मुझे झट से गोद मे उठा लेते. हर रोज यह निगाँहे ताकती रहती की कब आएँगे पापा और जब फिर पापा घर आते तो ढेर सारा प्यार बरसाते मुझपे और अपनी सारी थकान भूलकर सीने से लगाते मुझको. जब मुझे थोडी सी भी छीक आती तो सारा घर सर पर उठा लेते थे पापा मेरे हर दु:ख को पापा हँसकर सह लेते थे. जब-जब मै रात को रोती थी तो गोद मे उठा के घुमाया मुझको लोरी गाकर सुलाया मुझको जब से आप मिले मुझको तो जीवन की हर खुशी मिल गई मुझको. पापा! इस छोटे से शब्द मे पूरा संसार बसा है. खुद धूप मे जलकर अपने बच्चों को छांव देते है, पापा आप न होते तो मार डालती ये दुनिया, लेकिन आपके प्यार मे असर बहुत है. बिना पिता के जिन्दगी अधुरी होती है. ये उनसे पुछो जिनके पिता नही होते. बहुत सोच समझकर परमेश्वर ने पापा को बनाया है. उस परमेश्वर की जीवित प्रतिमा को हम पापा कहते है. मैने देखा है एक फरिश्ता पापा के रूप मे. आप मुझे इतना प्यार करते थे पापा फिर आप मुझे छोडकर क्यो चले गए. आज भी ये निगाँहे दरवाजे पर लगी रहती है कि कब आओगे और मुझे सीने से लगाओगे पापा.
लौट आओ पापा!
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सील अऊ लोढ़ा
रचनाकार- शांति लाल कश्यप, कोरबा
तईहा के बात आय. जंगल भीतर एक ठन गाँव राहय घिवरा. गाँव म एक झन कुदन नाव के मनखे राहय. ओहर निचट सिधवा राहय. ओहर सबे के सुख-दुःख म काम आवय. अपन पराया के भेद नी करय. ओखर घर के अंगना म दू ठन पखना राहय. ओमन बड़ उदास राहय.
एक बिहनिया ओकर उदासी ल देख के कुदन हर पथरा मन ले पूछथे. तुमन कईसे उदास दिखत हावा. काय बात ए. महुँ ल बतावव. पथरा मन कहिथे- तंय हर सबे के काम आथस अऊ हमन खचवा- डिपरा पथरा कभू काकरो काम नी आ सकबो का. ओखर बात ल सुनके कुदन हर दूनों पथरा ल अपन घर भीतरी लाथे अऊ ओखर खचवा- डिपरा ल छिनी हठौरी म छिन के बरोबर करथे. अपन सुघ्घर रुप ल देख के दूनों पथरा मन खुश हो जाथें. कुदन हर बड़े पथरा के नाव धरथे 'सील' अऊ छोटे पथरा के नाव धरथे 'लोढ़ा'. कुदन हर कथे आज ले तुमन दूनों संगे म रईहा अऊ जेहर तुमन करा आही ओला मिलाए के काम करिहा. 'सील अऊ लोढ़ा' तियार हो जाथे. फेर ओमन ला समझ नी आवत राहय कि हमन कईसे कहूँ ल मिलाबो. त कुदन हर अपन बारी ले पताल,मिच्चा अऊ घर ले नमक ल लान के सील के ऊपर म मढ़ा के लोढ़ा ले पीसथे. ओहर पताल के चटनी बन जाते. 'सील अऊ लोढ़ा' खुश हो जाथें. बस ओही बेरा ले 'सील अऊ लोढ़ा' पीसे के काम आथे.
ए कहानी ले हमन ल ए शिक्षा मिलथे कि हमन ल हमेशा दूसर के हित म काम करते रहना चाही.
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चिरईजाम के रूख
रचनाकार- श्रीमती योगेश्वरी साहू, बलौदा बाजार
एक ठन जंगल रिहिस. उहा के राजा बघवा अउ भलवा दुनो मितान बदे राहय. दुनो जन संघरा किंजरे बर जाय. एक दिन दूनो झन अपने जंगल म किंजरे बर गिस.भलवा ह सब्बो रूख मन ल निटोर- निटोर के देखत रहिस त बघवा ह पूछथे-- ते का देखत हस मितान .
भलवा ह कइथे--हमर जंगल म किसम-किसम के रूख राई हे फेर एको ठन चिरईजाम के रूख नइये.इहां एको ठन रुख चिरईजाम के रहितीच त हमू मन पोठ्ठ चिरईजाम खातेन.
बघवा ह कइथे -- सिरतोन केहेच मितान, अतका दिन ले नइ रिहिस ! फेर अब हमन दुनो मिलके चिरईजाम के बीजा बोंबो.मे ह अबड़ अकन बीजा सकेल के राखे हव जेला अषाढ़ म लगातेव.फेर कोनो बात नइये अब हमन कालीचें तरिया के तीरे तीर बीजा ल बोंबो. दूसरे दिन होत बिहनिया बघवा अउ भलवा चल दिस तरिया तीर.भलवा ह कुदारी ल धरके ८_१० गड्डा कोड़िस अउ बघवा ह बीजा मन ल बोवत गिस. तहां दुनो झन मिलके ओमन म पानी डारिन.
अब रोजे संझा बघवा अउ भलवा ओमा पानी डालें बर जाय. १२-१४ दिन के गे ले ओमन ल ओ जगा नान नान कोवर पाना दिखिस. दुनो झन बिकट खुश होगे. बघवा अउ भलवा दुनो झन चिरईजाम के अड़बड़ सेवा करिन.१बछर के बाद चिरईजाम म फूल मातिस अउ झोत्था -झोत्था चिरईजाम फरिस. बघवा अउ भलवा दुनो झन छकत ले चिरईजाम खईन.
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बेंदरा पिला
रचनाकार- गुलज़ार बरेठ, जांजगीर चाम्पा
एक घ का होइस, एक ठन बेंदरा पिला ह आमा रुख के तरी म बईठ के रोवत रथे.
ओकर रोअइ ल सुन के भलूआ ह आथे,अउ कथे - का होगे रे बेंदरा, तै काबर रोअत हस ग. बेंदरा पिला ह अऊ किल्ला किल्ला के रोय लागथे.
ओकर रोवइ-गवइ ल सुनके हिरन आथे, अउ पूछथे- का जात बर रोत हस ग बेंदरा?
ओला भुलवारे बर हिरन ह कथे, चुप हो जा रे बेंदरा.तोर दाई ह तोर बर केरा लानत होही.
बेंदरा पिला ह रोत रोत,आमा कोती अंगठी बताके कथे- मोला केरा नई, मोला ओ पक्का आमा चाही.
तहा के भलूआ ह पक्का आमा ल टोरे बर कूदथे, फेर ओ ह नई अमरावय. काबर के ओ पक्का आमा ह अत्ति ऊपर म फरे रथे. तहा के हिरन ह कूदथे फेर उहूँ ह नई अमरावय.
ओकर रोअइ ल सुनके लोमड़ी अइस, उहूँ कूद देखथे,फेर उहूँ नई पइस. एति बेंदरा पिला ह चुपे नई होत रहय.ओकर रोअइ ल सुनके बघवा ह घलो आ जाथे. बेंदरा ल चुप कराय बर उहूँ कुद देखथे, फेर उहुँच ह नई हबराय. तहा के हाथी आथे, उहूँ अमर देखथे फेर उहूँ ह नई पाय.
ओ करा के हल्ला गुल्ला ल सुनके उल्लू ह लेंगडावत आथे. भलूआ ह उल्लू ल जम्मे बात ल बताथे. अब तै ह एकर उपाय बता ग सियनहा बबा. का करिन हमन?
उल्लू बबा ह थोर कन सोंचथे तहा के कथे- एक काम करा. हाथी ह पहिली खड़ा हो जाय. ओकर ऊपर म भलूआ ह,ओकर ऊपर म बघवा ह,अउ ओकर ऊपर म लोमड़ी ह, तहा के हिरन ह खड़ा होके छ्लांग लगाही त ओ आमा ल हबरा जाही.
सबे झन उसनेच करथे. पहिली हाथी ल खड़ा करिन, ओकर उपर म भलूआ ल,भलूआ के उपर बघवा ल, बघवा के उपर लोमड़ी ल.. तहा के लोमड़ी के उपर हिरन ह खड़े हो जाथे अउ आमा ल टोरे बर जोर से छलांग लगाके कुद देथे. हिरन ह आमा ल हबरा जाथे और टोर डारथे. फेर ए का ! हिरन ह छलांग लगाथे त लोमड़ी ह एति डबरा के चिखला म मुड़भर्रा गिर जाथे अउ चिखला म फेदफेदा जाथे. ओला चिखला म फेदफेदाय देख के बेंदरा पिला ह जोर से हास डारथे. बेंदरा पिला ल हासत देखके कोन्हो अपन हासी ल रोके नई पावय अउ सबे झन ख़लख़ला-खलखला के हाँसे लागथे.
तहा के हिरन ह बेंदरा पिला ल आमा ल दे देथे, अउ बेंदरा पिला ह आमा ल चूहक चूहक के मजा ले ले के खाथे.
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मेहनत की कमाई
रचनाकार- संगीता पाठक, धमतरी
सिविल कोर्ट के बाहरी अहाते में बहुत सारे दस्तावेज लेखक टेबल में टाइपराइटर रख कर बैठे थे. वे सभी किसी ना किसी दस्तावेज को टाइप करने में व्यस्त थे.
बंशीलाल जी की जमीन के कुछ भाग पर किसी व्यक्ति ने अवैध निर्माण कर लिया था. अपनी अपील टाइप करवाने के लिए किसी दस्तावेज़ लेखक की तलाश करने लगे. तभी एक 65 वर्षीय बूढ़ी महिला हाथ हिला कर उन्हें अपने पास बुलाने लगी. वह बहुत स्पीड के साथ उनके दस्तावेज टाइप करती जा रही थी.
बंशीलाल ने कहा-' अम्मा !मुझे आपको देखकर ऐसा लगा कि यह दस्तावेज आप नहीं लिख पाओगी लेकिन आपकी स्पीड देख कर मैं बहुत आश्चर्य चकित हूँ.'
अम्मा -'सभी ऐसा ही समझते हैं और मुझसे टाइप कराने में संकोच करते हैं.'वह मुस्कराते हुये बोली.
बंशीलाल-' आपकी उम्र घर में रहकर आराम करने की है. आप इस जगह पर कैसे काम कर रही हैं?'
अम्मा-'कभी कभी वक्त की मार बड़ी जबरदस्त होती है.जब इकलौते बेटे ने अपने साथ रखने से मना कर दिया, तब मैंने एक टाइपराइटर बचत के पैसे से खरीद लिया और यहाँ आकर बैठने लगी.कुछ लोगों ने यहाँ बैठने पर विरोध भी किया किंतु बाद में मेरी मजबूरी जानकर शांत हो गये.मैं अपने समय की मैट्रिक पास हूँ.टाइप राइटिंग भी सीखी थी बस वही हुनर काम आ गया. यहाँ बैठने से इतनी आय हो जाती है कि बूढ़ा- बूढ़ी का खर्चा आराम से चल जाता है.'
उसने अपनी जीवन व्यथा सुनाकर एक ठंडी आह भरी.
बंशीलाल ने उसकी तरफ 500 रुपये का नोट बढ़ा दिया.
अम्मा ने बाकि चार सौ रुपये लौटा दिये.
बंशीलाल- 'इसे रखो अम्मा!'
अम्मा- 'नहीं बेटा! तुम भगवान स्वरूप सुबह सुबह मुझसे टाइप करवाने आये.यही मेरे लिये बहुत बड़ा उपहार है.जब तक शरीर में जान है ,मैं मेहनत की कमाई खाती रहूँगी.'
बूढ़ी माँ ने हँसते हुये जवाब दिया.
बंशीलाल ने देखा उसके चेहरे पर स्वाभिमान की अद्भुत कांति थी.
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गुडहरिया अउ सांप
रचनाकार- श्रीमती नंदिनी राजपूत
एक ठन झोपड़ी मा एक ठन खोंदरा रहीस जी. ओमा दु ठन गुडहरिया चिरई अउ ओखर चार ठन पिला मन रहत रईस. उ मन अब्बड़ खुशी खुशी-खुशी रहत रहिन जी.
एक दिन के बात आए जी चिरई के पीला ल भूख लगिस,तो ओखर बर दाना लए बर ओखर ददा ह बाहेर तिर चल दिस.
जब दाना लेके वापस आइस त देखिश कि पिला के दाई ह झोपड़ी के चारों तिर तिलमिलात उड़त हे. ओला तिलमिलात उड़त देख के पिला के ददा ह कहिथे - तै काबर तिलमिलात बाहेर तिर उड़त हस. त पिला के दाई ह कहिथे - एक ठन सांप ह हमर पिला ल खा ले हे अउ अब खोंदरा म पलथियाए हे.
पिला के ददा ह रोअत कहिथे - तै हर काबर कुछू नई करे.
पिला के दाई ह कहिथे - मैं हर सांप ल अब्बड़ चेताए रहे हव.पर ओ हर कह दिस,,मैं हर कोखरो से नई डरव.
पिला के ददा ह कहिथे - अब तै कुच्छू चिंता झन कर, मैं हर कुछु करत हव.
कुछ बछर बाद पिला के ददा ह झोपड़ी के गोसैया ला दिया जलात देखिस ओ हर तुरंते उड़िस अउ दिया ला छिन के खोंदरा मा डाल दिस. खोंदरा मा आग लग गईस. सांप हर खोंदरा ले निकले के अब्बड़ कोशिश करिस पर नई निकल सकिस. अपन झोपड़ी ला जलत देखके कुरिया के गोसैया ह खोंदरा ला नीचे तिर दिस अउ सांप ला देखते ही लाठी मा पिट पिटके मार डालिस.
ये किस्सा से हमन ला यही सीख मिलथे कि हमेशा बुद्धि से काम लेना चाही.
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