बालगीत
हाथी
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ
हाथी जी भारी-भरकम.
चलते हैं ये धम्मक-धम्म.
मोटे खंभे जैसे पाँव.
बैठे बड़े पेड़ की छाँव.
लंबी सूंड़ है, रूप निराला.
गठ्ठर भर गन्ना खा डाला.
सर्कस में ही खेल दिखाते.
हौदे पर हैं मुझे बिठाते.
*****
मेरा डॉगी
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
भों-भों सुर में गीत सुनाता,
मेरा डॉगी सबको भाता.
सुबह-शाम जब करे वो सैर,
दूजे कुत्तों पे गुर्राता.
बॉल-बॉल वो खूब खेलता,
झट से बॉल उठा के लाता.
घर की करे सुरक्षा यारो,
चोरों को वो तनिक न भाता.
मै जब भी बाहर से आता,
मेरा डॉगी ख़ुशी मनाता.
*****
फिर गर्मी आ गई
रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
जाड़ा गया पहाड़ पर
गर्मी फिर आई.
धूप की उजली चादर
धरती पर बिछ गई भाई.
गर्मी से देखो फिर
आने लगा पसीना.
तेज धूप से सबका
मुश्किल हो गया जीना.
गर्म हवा बहने लगी
बदन लगा खुजलाने.
गर्मी का मौसम देखो
लगा है दिल दुखाने.
देख कर गर्मी का दिन
मन लगा अकुलाने.
पंखा कूलर एसी का
हवा लगा है खाने
*****
धूम मचाते आम
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
हरे,गुलाबी,पीले,आम,
पर होते शरमीले आम.
हर महफिल में रंग जमाते,
दें खुशियां महकीले आम.
मेंगो शेक बुझाते प्यास,
लगते हैं अलबेले आम.
हाट- बाजार में धूम मचाते,
बिकते भर-भर ठेले आम.
होते सदा सीधे मन के,
करते नहीं झमेले आम.
*****
बंदर गया बाल कटाने
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर 'लाल'', बालोद
बंदर गया पास के सेलून,
अपने बाल कटाने.
कैची-छूरा देख लिया,
फिर खूब लगा घबराने.
कुर्सी पर शीशे के आगे,
जब नाई ने उसे बिठाया.
अपने आगे एक बंदर,
नजर उसे फिर आया.
खो-खो करके बड़े क्रोध से,
बन्दर फिर चिल्लाया.
और लगा मारने शीशे पर,
हाथ में जो भी आया.
तोड़-फोड़ मचाकर बंदर,
भागा सेलून के बाहर.
रोने लगा बेचारा नाई,
आज अपने किस्मत पर.
*****
तोता
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ
चाचा जी ने पाला तोता,
वह पिंजड़े में रहता बंद.
रटकर बातेँ दोहराता है
मुझको यह सब नहीं पसंद.
भूखा-प्यासा भले न रहता
लेकिन वह आजाद नहीं.
वह भी खुलकर उड़े दूर तक
क्या घर आता याद नहीं.
*****
दादा जी
रचनाकार- सावित्री शर्मा 'सवि', उत्तराखंड
दादा जी जब घर हैं आते
नई नई बात सिखलाते
सुबह सबेरे सैर कराकर
सूरज को प्रणाम कराते
आँख मिचौली संग संग खेले
जाते साथ साथ हम मेले
स्कूल से जब घर हम लौटें
मिलकर होमवर्क कर लेते
लूडो कैरम खूब खिलाते
योग प्राणायाम सिखाते
मोबाइल की याद ना आती
नई कहानी चुटकुले सुनाते
दादी मेरी बड़ी सयानी
सुनाती परियों की कहानी
रगुल्ला रबड़ी खूब मिलता
मीठी बानी खूब सुनाती
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चिड़िया प्यारी
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
छोटी छोटी चिड़िया प्यारी,
डोल रही है क्यारी क्यारी.
अपनी चीं चीं वाले सुर से,
गीत सुनाना रखती जारी.
जीत की सदा बिगुल बजाती,
कभी किसी से कभी न हारी.
काँटों से बच बच के चलती,
फूलों से है उसकी यारी.
बन ठन के वो सबको भाती,
ख़ुशी लुटाती चिड़िया प्यारी.
*****
काकभगोड़ा
रचनाकार- श्रीमती सुचित्रा सामंत सिंह, जगदलपुर
खेतों में चहचहाती पंछी,
फसलों पर मडराती है,
इस डाली से उस डाली पर,
झूला झूले जाती हैं.
कभी बैठे पक्के अमरूद पर,
कभी रसालों पर मडराती,
कभी चोच लगाए फलों पर,
कभी फुदक-फुदक धरा पर चलती.
जैसे ही पंछी ने देखा,
नीले काले कपड़ो वाला,
मटके जैसे मुख वाला,
बिहंग जरा घबराती है.
कौन है लम्बे हाथ फैलाए,
ना ये दौड़े ना ये भागे
ना कुछ बोले ना कुछ सुनता
ना दिन-रात की परवाह करता
ना दिन की गर्मी सताती
ना बारिश मे छाता लेता
एक जगह निश्चिंत खड़ा है
मानो यह मुझे घूर रहा है.
यह है एक काकभगोड़ा,
खेतों का पहरा देनेवाला,
लम्बा चौड़ा भोला भाला,
कानो में रुई, मुँह में ताला.
देख इसे चिड़िया घबराई,
अपने पंखों को सहलाई,
छोड़ पके बालियाँ धान की,
चिड़िया फुर से उड़ जाती हैं.
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जीवन चक्र
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', गरियाबंद
जीवन एक गणित है प्यारे, सीखो तुम इसमें जीना.
गुणा-भाग कर आगे आओ, और रखो ताने सीना.
छोटी-छोटी सी खुशियों को, आहिस्ता से तुम जोड़ो.
बढ़े एकता भाईचारा,
इनसे कभी न मुँह मोड़ो.
आड़े-तिरछे, रिश्ते-नाते,
अमर बेल कहलाते हैं.
विषम समय चलता मानव का, चुपके से घट जाते हैं.
अलग रीत है इस दुनिया की, समझ नहीं हम पाते हैं.
घूम रहे हैं एक वक्र में,
आकर फिर मिल जाते हैं.
नहीं समांतर कोई होते,
ना कोई सीधी रेखा.
शेष बचे वे रोते रहते,
एक दर्द मैंने देखा.
मुँह में राम बगल में छूरी,
वाणी को तरसाते हैं.
कैसी-कैसी रीत जगत की, समझ नहीं हम पाते हैं.
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पैदा क्यों होते नहीं, भगत सिंह से लाल
रचनाकार- डॉ. सत्यवान सौरभ, हरियाणा
भगत सिंह, सुखदेव क्यों, खो बैठे पहचान.
पूछ रही माँ भारती, तुम से हिंदुस्तान.
भगत सिंह, आजाद ने, फूंका था शंखनाद.
आज़ादी जिनसे मिले, रखो हमेशा याद.
बोलो सौरभ क्यों नहीं, हो भारत लाचार.
भगत सिंह कोई नहीं, बनने को तैयार.
भगत सिंह, आज़ाद से, हो जन्मे जब वीर.
रक्षा करते देश की, डिगे न उनका धीर.
मरते दम तक हम करे, एक यही फरियाद.
भगत सिंह भूले नहीं, याद रहे आज़ाद.
मिट गया जो देश पर, करी जवानी वार.
देशभक्त उस भगत को, नमन करे संसार.
भारत माता के हुआ, मन में आज मलाल.
पैदा क्यों होते नहीं, भगत सिंह से लाल.
तड़प उठे धरती, गगन, रोए सारे देव.
जब फांसी पर थे चढ़े, भगत सिंह, सुखदेव.
भगत सिंह, आजाद हो, या हो वीर अनाम.
करें समर्पित हम उन्हें, सौरभ प्रथम प्रणाम.
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है वादा
रचनाकार- डॉ. माधवी बोरसे, राजस्थान
पढ़ो पर लिखो ज्यादा,
बोलो पर सोचो ज्यादा,
खेलो पर पढ़ो ज्यादा,
आप सफल होंगे है वादा.
खाओ पर चबाओ ज्यादा,
रोइए कम हंसिये ज्यादा,
सोओ पर जगो ज्यादा,
आप स्वस्थ रहोगे है वादा.
मांगो कम से कम दो ज्यादा,
रूठो कम मनाओ ज्यादा,
आराम करो पर मेहनत ज्यादा,
स्वाभिमान बना रहेगा है वादा.
नफरत ना करे प्रेम हो ज़्यादा,
आज्ञा दो पर मानो ज्यादा,
गुस्सा कम पर समझो ज्यादा,
जीवन सुकून से गुजरेगा है वादा.
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लकड़ी उड़ चली
रचनाकार- श्रीमती रजनी शर्मा बस्तरिया रायपुर
सुनो सुनो हुआ एक अजूबा,
सबको हो गया बड़ा अचंभा.
लकड़ी उड़ी बाबा रे बाबा,
कागज भी संग था सादा-सादा.
पहले लड़ते थे दोनो खूब ज्यादा,
नहीं निभाते थे वे अपना वादा.
समझाया किसी ने बन कर दादा,
साथ रहने में है सबका फायदा.
कागज जो था सादा-सादा,
लकड़ी कमची बन हुई आधा.
हवा ने भी डोर का साथ निभाया
बनी जब पतंग सबके मन भाया.
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शब्द बाण
रचनाकार- अशोक कुमार यादव मुंगेली
शब्द ही तो बाण है जो कर दे किसी को घायल,
सुन किसी के शब्द को कोई हो जाता है कायल.
कह दे कोई ढाई अक्षर का शब्द हो जाता है प्यार,
शब्द ना मिले ना ही मन मिले तो होता है इंकार.
मधुर शब्दों से बन जाता है किसी का बिगड़े काम,
एक शब्द से ही जग में हो जाता है किसी का नाम.
शब्द जाल फैला कवि करता है कविता की रचना,
कल्पनाओं की उड़ान भर दिन में देखता है सपना.
शब्दों से ही शांति, धन, यश और मिलता है सम्मान,
शब्दों से ही द्वेष,युद्ध,सर्वनाश और होता है अपमान.
प्रकृति की आकर्षक शब्द ध्वनि मुग्ध करती भरपूर,
वृक्षों की कलियाँ खिल जाती है बीज होते हैं अंकुर.
शब्दों से ही नाटक,कहानी,गीत,संगीत और धुन बने,
शब्द ही काट खाता है शरीर को जब शब्द घुन लगे.
गूँज रही ओम शब्द ध्वनियाँ देव की सत्ता ब्रह्मांड में,
जन्म लेकर मर रहे मानव जले शब्द अग्निकांड में.
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भटके मानव
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', राजिम
कैसा जमाना आ गया, करते नहीं सम्मान हैं.
नीचा दिखाने में तुले, लेने लगे अब जान हैं.
छोटे बड़े ना देखते, दुश्मन बने बैठे यहाँ.
ईश्वर स्वयं कहने लगे, मानव कि क्या पहचान है.
पापी बढ़े जग में यहाँ, सत राह को सब छोड़ते.
उपदेश देना जानते, वे ग्रंथ से मुँह मोड़ते.
ईर्ष्या भरे मन में जहाँ, गलती नहीं स्वीकारते.
भटके मनुज हर राह से, नाता सभी से तोड़ते.
हम एक माटी के बने, इक दूसरे से प्रीत है.
मधुरस भरे वाणी रहें, हर कदम में संगीत है.
है जन्म मानव का लिए, खेलें धरा की गोद में.
गर द्वेष मन से त्याग दें, प्रतिदिन हमारी जीत है.
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मैं रंग बिरंगी फुलवारी हूँ
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु ', शिवरीनारायण
मैं रंग-बिरंगी पुष्पों की फुलवारी हूँ
मै वसुधा को बनाती सुंदर प्यारी हूँ.
मैं नीत–नीत नूतन बहार लाती हूँ
मैं प्रकृति को पुष्पों से सजाती हूँ.
मैं हवा को सुरभित कर जाती हूँ
मैं सब के तन-मन को महकाती हूँ.
मैं तरुओं को हरा–भरा बनाती हूँ
मैं पुष्प–कली में रंग भर जाती हूँ.
मैं भ्रमर, तितलियों को लुभाती हूँ
मैं पंछी,कोयल को कुक लगवाती हूँ.
मैं मोर,पपीहरा को मोहित करती हूँ
मैं झूम-झुम, मस्त-मगन हो जाती हूँ.
मैं भोर में रवि का स्वागत करती हूँ
मैं सुरभित पुष्प का अर्पण करती हूँ.
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ऐ मौसम,क्यों डराते हो
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'लाल'', बालोद
सुन ऐ काले काले बादल,
बिन मौसम क्यों आते हो.
छाते,रैन शूट सब अंदर हैं,
सहसा आके हमें भिगाते हो.
बेमौसम ये पानी कीचड़,
बिल्कुल नहीं सुहाता है.
नाक कान बहने लगता है,
तबियत बिगड़ जाता है.
हल्की सर्दी और खांसी से,
दिल अपना डर जाता है.
कोविड को सोचकर के,
तन मन सिहर जाता है.
मुश्किल से उबरे हैं उससे,
तुम क्यों और डराते हो.
बिन मौसम क्यों आते हो.
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दुनिया माने
रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा, भोपाल
मोटू भैया बड़े सयाने,
आते हरदम ख़ुशी लुटाने.
गरम समोसा,लड्डू,पेड़ा,
खाने के हैं वो दीवाने.
मोटू और मुटल्ला कहके,
सब देते हैं उनको ताने.
कभी नहीं वो दौड़ लगाते,
जब बोलो तो करें बहाने.
दस बच्चे एक साथ उठाते,
उनकी ताकत दुनिया माने.
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बस यही तो खूबसूरत खेल है
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी, महाराष्ट्र
दुख भी शरमा जाएगें
यह कैसा माहौल है
जियो अगर दुखों को खुशी से
जिंदगी में यह सबसे यह अनमोल है
कभी ढेरों खुशियां आती है
कभी गम आते बेमिसाल है
घबरा जाए तो चुनौतियां से
वह भी क्या इंसान है
जीना सिखा दे बुरे वक्त में
वही असल इम्तिहान है
इम्तिहानो से भरी जिंदगी यही
खूबसूरत मिसाल है
सिर्फ सुख या सिर्फ दुख ही
जीवन में यह सरासर बेमेल है
जिंदगी में उतार-चढ़ाव होते रहें
बस यही तो खूबसूरत खेल है
जिंदगी सुखों और दुखों का
बहुत ही ख़ूबसूरत मेल है
जिंदगी में उतार-चढ़ाव
बस एक ख़ूबसूरत खेल है
जिस प्रकार दो पहियों से
पटरी पर दौड़ती रेल है
बस उतार-चढ़ाव जिंदगी के
खूबसूरत खेल है
*****
प्रकृति
रचनाकार- आशा उमेश पांडेय
मखमली हरियाली.
लगे मन आली आली.
शैल गिरी की शोभा को.
सब ही निहारे है.
बादलों की ये छटाएं.
काली काली है घटाएं.
मन को लुभाती यह.
प्रकृति नजारे है.
हरा भरा ये नजारा.
लगता है अति प्यारा.
प्रकृति की गोद में तो.
खेलती बहारें है.
हृदय उमंग भरे.
जैसे बागों फूल झरे.
जीव-जगत सब ही.
प्रभु के सहारे है.
*****
गरमी
रचनाकार- कलेश्वर साहू , बिल्हा बिलासपुर
तातेतात गरमी लेके,
सुरुज भईया आथे.
कभू लकलक ले घाम,
त कभू झाँझ चलाथे.
तावा बरोबर भुइयाँ जरथे,
रुख-राई घलो सुखाथे.
थरथर थरथर पछीना बोहाय,
गरमी जउँहर जनाय.
ठंडा जिनिस जम्मो ल भाय,
गुल्फी, पेप्सी मन ल ललचाय.
रुख-राई के छाँव सुख देथे,
गरमी ले जम्मो ल बचाय.
पंखा, कुलर गरमी ले,
राहत कुछू देवाथे.
भनभन करथे मच्छर,
पीरा अड़बड़ पहुँचाथे.
तातेतात गरमी लेके,
सुरुज भईया आथे.
कभू लकलक ले घाम,
त कभू झाँझ चलाथे.
*****
वृक्ष
रचनाकार- नंदिनी राजपूत, कोरबा
वृक्ष हमें देते प्राणवायु, जिससे बढ़ती जीवन आयु,
पथिको को आराम दिलाती, छाया इसकी खूब लुभाती.
शीतल हवा जब मंद- मंद चलती, मतवाला मन खुशी से है उमड़ती.
रंग बिरंगी फूल जब खिलती, लोगों को आकर्षित करती,
रस इसका चूसने को, मन भौंरा खुशी से झूमती.
मीठे फल जब मुँह में घुलती, बुद्धि, बल तन को मिलती.
वनौषधि ने ऐसी जादू चलाई, त्रेता युग में लक्ष्मण की जान बचाई.
प्रदूषण जिससे हारी है, शुद्ध वायु लाभकारी है.
इसे ना काटो तुम,ये बहुत परोपकारी है.
*****
भारत अब फिर बनेगा,सोने की खान
रचनाकार- किशन सनमुखदास भावनानी, महाराष्ट्र
भारत देश है बुद्धिजीवीयों प्रबुद्ध नागरिकों की खान
कोरोना वैक्सीन बना कर,दी नई पहचान
कोरोनावारियर्स बनकर उभरे भारत की शान
अब फिर बनेगा,भारत सोने की खान
भारत देश महान, मेरी आन बान शान
धर्मनिरपेक्षता हैं, भारत की पहचान
हर धर्म त्यौहार संस्कृति का, भारत में सम्मान
अनेकता में एकता, हैं भारत विश्व में बलवान
आत्मनिर्भर भारत, बनेगा हर क्षेत्र की जान
हर नागरिक को डालना होगा, इस सोच में जान
सोच में ही छुपा है, कुछ कर गुजरने का ज्ञान
भारत देश महान, मेरी आन बान शान-3
*****
पेड़
रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ
मानव से भी है बड़ा पेड़.
कबसे धरती पर खड़ा पेड़.
अपना अस्तित्व बचाने को
तूफानों से भी लड़ा पेड़.
मोहिनी प्रकृति के अंचल पर
चित्र के सदृश है जड़ा पेड़.
मुल्ला - पंडित सब भूल गए
पर आदिधर्म पर अड़ा पेड़.
सह कड़ी धूप, दी सुख - छाया
आई पतझड़ ऋतु, झड़ा पेड़.
देने को प्राणवायु निर्मल
पी रहा प्रदूषण, सड़ा पेड़.
मेघों से जल बरसाने को
बन गया प्रेम का धड़ा पेड़.
चिड़ियाँ, गिलहरियाँ शंकित थीं
जब लकड़हारे ने तड़ा पेड़.
*****
रंग
रचनाकार- श्रीमती सुचित्रा सामंत सिंह, सेजेस जगदलपुर
रंगों से खेलना बहुत हो सुहावना लगता है
रंगों के मिश्रण से जीवन चमन सा लगता है,
शायद विधाता ने यही सोच, धरा को रंगो से रंगा है.
आसमानी रंगों से आसमान को रंगा.
ऊँचे पर्वतों को स्वेत हिम खण्डों से ढका.
नीचे धरा हरे रंगो से रंगा
चहुओर हरियाली है, जीवन में खुशहाली हम अपनी खुशहाली बनाए रखे
इस हरे रंग को ह्रदय में बसाए रखे
चमचमाती चाँदी की परत से निर बह रही हैं.
शांत सरल सादगी भरी, जीवन की राह दिखा रही है चलो शांत भाव से जीवन व्यतित करें.
इस स्वेत रंग को हृदय में बसाए रखे.
नीले, पीले, हरे, गुलाबी रंगों से सजे वन उपवन.
धरा के हर कोनों को विधाता ने निखारा, सजाया है.
रंगों में निहित हैं खुशियों का भण्डार,
चलो समेटे सारे रंगों को, बिखेरे खुशियाँ अपार.
*****
कभी न छोड़े काम अधूरे
रचनाकार- बलदाऊ राम साहू, दुर्ग
उत्तम साँचे में ही ढलना
सच्ची राह पकड़कर चलना.
आपस में हो नहीं लड़ाई
परहित श्रेष्ठ धर्म है भाई.
मन लगाकर काम जो करता
वही निरंतर आगे बढ़ता.
करना सबकी सदा भलाई
लेकिन कभी न करें बुराई.
कभी न छोड़े काम अधूरे
करना अपना सपने पूरे.
द्वेष न रखना मन में अपने
वरना खंडित होंगै सपने.
लालच में जो फँस जाता है
जीवन भर वह पछताता है.
*****
घर
रचनाकार- बलदाऊ राम साहू, दुर्ग
छोटा-सा प्यारा मेरा घर
रोप रखें हैं पौधे छत पर.
जिस पर भौरें आते हैं
गुनगुन-गुन गीत सुनाते हैं.
सुबह-सुबह तितली आती है
फूलों के सँग बतियाती है.
है वहाँ एक छोटा आँगन
प्यारा है लगता मनभावन.
दादा - दादी जहाँ बैठकर
प्यार लुटाते हैं हम सब पर.
मम्मी-पापा भी आते है
हँसते हैं, सब मुस्काते हैं.
*****
पानी का मूल्य और मानव को समझना है
रचनाकार- किशन सनमुखदास भावनानी, महाराष्ट्र
पानी बचाने की ज़वाबदेही निभाना है
पानी का मूल्य हर मानव को समझाना है
पानी को अहम दुर्लभ मानकर
अपव्यय करने से बचाना है
पानी के स्त्रोतों की सुरक्षा स्वच्छता अपनाने
के लिए जी जान से ध्यान लगाना है
पानी बचाओ जीवन बचाओ
यह फॉर्मूला मूल मंत्र के रूप में अपनाना है
पानी बचाने की ज़वाबदेही निभाना है
हर मानव को ज़ल संरक्षण संचयन अपनाकर
पानी बचाकर जनजागृति लाना है
अगली पीढ़ियों के प्रति ज़वाबदारी निभाना है
बिना पानी ज़िन्दगी का दर्द क्या होता है
पानी अपव्यय वालों तक पहुंचाना है
पानी का उपयोग अब हमें
प्रसाद की तरह करना है.
*****
गौरेया
रचनाकार- अनिता चन्द्राकर, दुर्ग
नन्ही गौरेया कहाँ चली.
उड़ती फिरती हो गली गली.
मेरे आँगन में आओ ना.
इधर उधर मत जाओ ना.
भूख लगी तो मुझे बताओ.
पीयो पानी दाना खाओ.
चिड़िया रानी आओ ना.
चीं चीं चीं चीं गाओ ना.
*****
पतंग
रचनाकार- धारणी, पहंडोर
भर दे जो मन में खुशियां
करे बच्चो से प्यार
प्यारी सी चीज है वो
गगन में पतंगों की बहार
जिन्हे देख के मन में
उठ जाए ये विचार
काश उनके जैसे
लेले रंगो का आकार
कितने प्यारे लगते
जब उड़ते ये आकाश में
तरह तरह के मुंह ये बनाते
कितने रंगो के साथ में
न जाने क्यों बच्चो के ये
मन को है भा जाते
रंग बिरंगे रंगो से
बच्चो संग उड़ जाते
सारे गलियों में जा करके
खुब उधम है मचाते हम
सब संग हम तो पेंच लड़कर
दिखा देते न किसी से कम
*****
बिटिया रानी जिज्ञासा
रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'
कोहिनूर और रूपलता को, प्राणों से भी प्यारी है.
जिज्ञासा बिटिया ही अपने,घर की राज दुलारी है.
घर में बड़े सयानों जैसे, गहरी बातें करती हो.
अपनी तुतली प्रिय बोली से,हम सबका मन हरती हो.
इस बिटिया के ही कारण तो,सुख का परम विधान है.
रोज चहकना बुलबुल-सी, जिज्ञासा की पहचान है.
पुण्य तुम्हारा जन्मदिवस यह, खुशियाँ लेकर आई है.
सदा सुखी रहना बिटिया तुम, तुमको बहुत बधाई है.
बिटिया का जीवन खुशियों के धन से मालामाल रहे.
सुख से बीते जन्म तुम्हारा, उम्र हजारों साल रहे.
जिनके घर बिटिया होती है, जग में वही महान है.
रोज चहकना बुलबुल-सी, जिज्ञासा की पहचान है.
परियों सी सुंदर मुखड़े पर, मधुरिम-सी मुस्कान है.
रोज चहकना बुलबुल-सी, जिज्ञासा की पहचान है.
*****
स्कूली यादें
रचनाकार- सागर कुशवाहा, स्वामी आत्मानंद तारबहार
माला से सजी मोतियों की तरह,
सज गई है यादें सभी कि,
बस गई है यादें सभी की,
संगीत के स्वरों की तरह,
शुर फिरौती हैं यादें सभी की,
कक्षा की वह मीठी सी यादें,
मस्ती में घूली सी है यादें,
दोस्तों के साथ बिताए हुए पल,
खट्टी मीठी सी बातें,
एक दूसरों की नोकझोंक की यादें,
दोस्ती और दुश्मनी की यादें,
फूलों की गुंजन सी सजी,
सुंदर से फूल जैसी यादें,
पलकों के सितारों में सजा कर
ले जाएंगे सभी की यादें,
बढ़ेंगे जिंदगी में आगे,
करेंगे स्कूल की ही बातें,
मिलना बिछड़ना लगा रहेगा,
फिर भी मुस्कुराएंगे यारों,
बंद करके खुशियों का पिटारा,
रख लेंगे यादें सभी की,
गुनगुनाती है जैसे हवाएं,
गुनगुन आएंगे दोस्तों यादें तुम्हारी.
*****
माँ
रचनाकार- गरिमा बरेठ, सातवीं, स्वामी आत्मानंद तारबहार
एक माँ ही ऐसा शब्द है,
जो पूरी दुनिया में अजेय है.
सारे दुखों को, हर लेती है माँ,
मेरी संसार है माँ.
मेरी शक्ति है माँ,
मेरी भगवान है माँ.
सारे दुखों को सहती है माँ,
पर भी कुछ ना कहती है माँ.
बच्चों की देख-रेख करती है माँ,
पर खुद को भूल जाती है माँ.
माँ शब्द सत्य हैं ,माँ शब्द अनंत है.
माँ अनादि है, माँ ही भगवंत है.
माँ ही ममता माई , माँ ही भगवान है.
मैं कहती माँ जब होगा सर पर तेरा साया,
दुख भी सुख सा ही बीतेगा.
माँ से बड़ा ना कोई इस दुनिया में,
माँ देख नहीं सकती बच्चों की दुख इस दुनिया में.
*****
बंदर करने चला शादी
रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
बंदर करने चला शादी
धूमधाम से भाई.
एक बंदरिया से उसको
प्रेम हो गया भाई.
बन कर दुल्हा बंदर देखो
बग्गी पर बैठ कर आया.
जंगल के सभी जानवरों को
अपने बारात में लाया.
बन ठन कर बंदरिया
बंदर के सामने आई.
बंदर राजा को उसने
जयमाला देखो पहनाई.
पंडित बन कर भालू ने
बंदर का शादी करवाया.
बंदर और बंदरिया से
सात फेरे लगवाया.
बन कर दुल्हन बंदरिया
बंदर के घर आई.
बंदर और बंदरिया को
सबने दी खूब बधाई.
*****
हमको बस पढ़ना है
रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
जीवन में कुछ बनना है तो
हमको बस पढ़ना है.
अपने लक्ष्य की ओर
आगे बस बढ़ना है.
शिक्षा का जीवन में
महत्व हमें समझना है.
कुछ भी हो जाए
हमको बस पढ़ना है.
पढ़ लिख कर हमको
जीवन में कुछ करना है.
बन कर बड़ा अधिकारी
अपना नाम करना है.
शिक्षा से जीवन की
हर अभिलाषा पुरी करना है.
पढ़ लिख कर हमको भी
अपना नाम रौशन करना है.
*****
जीत-जीत सोच
रचनाकार- अशोक कुमार यादव, मुंगेली
जीत-जीत सोच तू जीत जायेगा.
हार से कभी न फिर घबरायेगा.
अकेला चल राह में कदमों को बढ़ा,
एक दिन तेरा ये मेहनत रंग लायेगा.
कुरुक्षेत्र के मैदान में जंग है जारी.
जी जान लगा अपनी कर तैयारी.
धनुर्धारी अर्जुन बन संशय में न घिर,
कृष्ण की तरह दिखा विराट अवतारी.
मंजिल की आंखों में पहले आंखें तो मिला.
लक्ष्य पाने मनबाग में कुसुम तो खिला.
नित कर्म ही तेरा भाग्य है वीर मनुज,
रुकना नहीं चाहिए अभ्यास का सिलसिला.
आयेंगी चुनौतियां तेरी लेने परीक्षा.
दृढ़ पर्वत के समान खड़ा कर प्रतीक्षा.
साहस भरके मन में सामना तो कर,
मिलेगी सफलता पूरी होगी हर इच्छा.
*****
सब विषयों में मेरिट पाई
रचनाकार- राजेंद्र श्रीवास्तव, विदिशा
लेकर कलम और कम्पास
मन में उमंग और विश्वास.
नहीं परीक्षा का कोई भय
रुचिता पहुँची विद्यालय.
पढ़ने में है उसे लगन
करती वह नियमित अध्ययन.
प्रश्नपत्र लगे उसे सरल
किया सभी प्रश्नों को हल.
पेपर सभी बनाये ठीक
उत्तर लिखे सही-सटीक.
लेखन भी उसका सुंदर
मोती जैसे चमकें अक्षर.
मिला परीक्षा का परिणाम
सबसे आगे उसका नाम.
सब बिषयों में मेरिट पाई
देते उसको सभी बधाई
*****
पर्यावरण
रचनाकार- श्रेया गुप्ता, रायपुर
पर्यावरण एक साझी संपदा है
अब पूरे विश्व ने ठाना है.
हमारी इस पृथ्वी में
अनेकों प्रकार के
वन वायु जल
रंग-बिरंगे पशु पक्षी
लेकिन अपने
स्वार्थ के लिए
इन पेड़ों को
करते जा रहे हैं नष्ट.
इसे रोकना हर मनुष्य की
जिम्मेदारी है
नहीं तो पीढ़ी दर पीढ़ी की
होनी निश्चित बर्बादी है.
यदि आप करते हो पेड़ों पर नष्ट
तो सांस लेने में होगा आपको कष्ट.
हरा भरा वातावरण हर व्यक्ति को बनाना है,
चलो फिर नियमित रूप से इसे आकार देने के लिए थोड़ा सा कष्ट उठाना है.
*****
पोखर सा रहना सीखें
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', राजिम
मनमोहक है ताल तलैया,
नाचे मेंढक ताता थैया.
साँप केचुआ मछली रानी,
साथ सभी रहते हैं पानी.
बीच ताल में कमल विराजे,
पंखुड़ियों से पोखर साजे.
पात-पात जल बूंँदें ठहरे.
मोती बन कर देते पहरे.
बच्चे बूढ़े सभी नहाते,
तैर-तैर आनंद उठाते.
सूर्य किरण की पड़ती लाली,
लगे स्वर्ण की है ये प्याली.
वृक्ष लगाते यहाँ किनारे,
उनमें बैठे पक्षी सारे.
चींव-चींव कर शोर मचाते,
पीकर जल को प्यास बुझाते.
पोखर सा तुम रहना सीखो,
मीठी बातें कहना सीखो.
बढ़े एकता भाईचारा,
एक रहे परिवार हमारा.
*****
नन्हीं सी आशा
रचनाकार- सीमा यादव
जब मन में छा जाते हैं उदासी के बादल,
तब अंतःपुर से आती है नन्हीं सी आशा.
मन के हजारों सवालों को पढ़कर,
सही राह दिखाती है नन्हीं सी आशा.
मन के गहन भीतर में जाकर,
सारी वेदना पढ़ जाती है नन्हीं सी आशा.
मन को टूटा हुआ जानकर,
अंतर से तीव्र वेदना पाती है नन्हीं सी आशा.
तब मन को अनेकों तर्क -वितर्क से,
सच्चा साथी बन समझाती है नन्हीं सी आशा.
मन के सारे दुःख, संताप व कष्टों का,
क्षण भर में निदान समझाती है नन्हीं सी आशा.
आखिर में मन के सारे अँधियारे कोने में,
उजाले की जगमगाहट पाती है नन्हीं सी आशा.
*****
मैं मैं का विकार अज्ञान का ढारा है
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी, महाराष्ट्र
नम्रता गहना ज्ञान का सहारा है
ज्ञानी को अज्ञानीं से भी ज्ञान का
गुण लेना गुणवत्ता का सहारा है
मैं मैं का विकार अज्ञान का ढारा है.
बुजुर्गों ने कहा यह जीवन का सहारा है
सामने वाले से कहो तुम अज्ञानी नहीं हो
मैं ज्ञानी नहीं हूं जीत पल तुम्हारा है
नम्र बनके रहो खुशहाल पल तुम्हारा है.
बड़े बुजुर्गों के जीवन का हमें अटूट सहारा है
बड़े बुजुर्गों ने अहंकार पर तीर मारा है
कहावतों में ज्ञान बहुत सारा है
नीवां होके ग्रहण करो ज्ञान तुम्हारा है.
*****
नाव
रचनाकार- नरेश अग्रवाल, झारखंड
पेड़ को काटकर
नाव बनाई गयी
उसी से हम नदी पार कर रहे
अब इसे कोई पेड़ नहीं कहता
डाल भी नहीं कहता
न जड़, न पत्तियां
सभी केवल नाव को पहचानते हैं
जो पानी में डूबी रहती हर पल
लेकिन किसी को डूबने नहीं देती
रात होते ही
गुलामी की रस्सी से बांध दी जाती
पड़ी रहती है किनारे पर
सितारे हंसते हैं इस पर
चिड़िया चोंच मारती है
पूछती है कहां है जगह
घोसला बनाने के लिए
निरुत्तर नाव सुबह फिर चल पड़ती है
अपनी सूनी देह लिए
फिर से अपने काम पर
भले इस पर पत्ते नहीं
लेकिन यह पेड़ ही तो है!
*****
मेरी मृत्यु के बाद
रचनाकार- नरेश अग्रवाल, झारखंड
हजारों सालों से
हमारा कब्जा इस जमीन पर
पुरखे दर पुरखे
अनाज उपजाते रहे, भूख मिटाते रहे
हर पीढ़ी ने चखा इसका स्वाद
इसके स्वाद में कभी कोई कमी नहीं आई.
अब पढ़ा-लिखा बेटा थक चुका
कहता है बहुत हुआ
अब यह किसानी बंद करो
इस जमीन पर विशाल इमारत बनाएंगे
जिसे बेच देंगे शहरियों को
अब यहां धूल नहीं उड़ेगी, गड्ढे नहीं दिखेंगे
सबकुछ सुंदर हो जाएगा.
इस बीमार अवस्था में
कैसे उसका प्रतिरोध करूं
हार कर हां कह देता हूं
एक वसीयत लिखता हूं
यह सब होगा मेरी मृत्यु के बाद!
*****
याचना
रचनाकार- नरेश अग्रवाल, झारखंड
आप बुद्ध हैं
इसलिए आपके सीने में
बड़ा सा दिल है
सभी से प्यार करने वाला.
कल जब आपके पास था
मैंने महसूस किया
लौटने पर भी लगा
जैसे अभी भी आपके साथ हूं .
हर आदमी जो आपसे मिलता होगा
साथ ले जाता होगा आपका दिल
फिर भी यह दिल छोटा नहीं होता
विस्तार लेता रहता है हर दिन.
मैं आज फिर आया हूं
इस बार थोड़ा सा बड़ा दिल मांगने
कि इस प्रेममय दिल से
हर किसी का दिल जीत सकूं .
*****
कहां कोई रोक पाता
रचनाकार- नरेश अग्रवाल, झारखंड
पेड़ से बहुत सारे पत्ते टूटे
टूट कर सूख गए
अब हवा की तरह उड़ रहे
धूल की तरह बैठ रहे
जूते उन्हें कुचल रहे
चूर चूर कर रहे
अब इतना छोटा आकार
मिट्टी और इनमें कोई फर्क नहीं
देखता हूं पेड़ की ओर
अभी भी बहुत सारे पत्ते हरे-भरे
पतंग की तरह उड़ते
मौसम के गीत गाते हुए
जो पत्ते दब चुके पांव से
कुचले जा चुके लोगों की तरह
कभी सिर नहीं उठाएंगे
सब कुछ बिना चाहे हो रहा
झड़ना, गिरना, मिट जाना
कहां कोई रोक पाता
हां कहां कोई रोक पाता
पेड़ों में नए पत्ते आना भी!
*****
अक्षर ज्ञान
रचनाकार- श्रीमती रजनी शर्मा बस्तरिया रायपुर
तोर मोर नाव ला संगी
लिखे बर जल्दी सीखबो रे
अ आ इ ई के संगे- संगे
पढ़े-लिखे बर सीखबो रे
चिखला माटी रेती खेत में
काड़ी के कलम बनाबो रे
ओमा उकेर के अक्षर ला
भारत ला साक्षर बनाबो रे
पट्टी बस्ताआऊ कागद के संगे
लईका ला स्कूल पठोबो रे.
अक्षर ज्ञान ला सीख के भईया
साक्षर हमहू कहिलाबो रे.
*****
एकता अखंडता भाईचारा दिखाना है
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी, महाराष्ट्र
एकता अखंडता भाईचारा दिखाना है
यह जरूर होगा पर
इसकी पहली सीढ़ी
अपराध को ह्रदय से निकालना है
इसानियत को जाहिर कर
स्वार्थ को मिटाना है
बस यह बातें दिल में धर
एक नया भारत बनाना है
सरकार कानून सब साथ देंगे
बस हमें कदम बढ़ाना है
हम जनता सबके मालिक हैं
यह करके दिखाना है
कलयुग से अब सतयुग हो
ऐसी चाहना है
हम सब एक हो ऐसा ठाने
तो ऐसा युग जरूर आना है-3
पूरी तरह अपराध मुक्त भारत बने
ऐसी चाहना है
भारत फिर सोने की चिड़िया हो
ऐसी भावना है
सबसे पहले खुद को
इस सोच में ढलाना हैं
फिर दूसरों को प्रेरित कर
जिम्मेदारी उठाना है
ठान ले अगर मन में
फिर सब कुछ वैसा ही होना है
हर नागरिक को परिवार समझ
दुख दर्द में हाथ बटाना है
इस सोच में सफल हों
यह जवाबदारी उठाना है
मन में संकल्प कर
इस दिशा में कदम बढ़ाना है
पूरी तरह अपराध मुक्त भारत बने
ऐसी चाहना है
भारत फिर सोने की चिड़िया हो
ऐसी भावना है
*****
हाइकु
रचनाकार- प्रदीप कुमार दाश 'दीपक', SARANGARH
दहक रहे
कुसुमित पलाश
मुस्करा रहे.
गुच्छे में सजे
टप टप महुआ
टपक रहे.
खड़े सेमल
आगंतुक बने हैं
स्वागत करे.
अधर चूमे
फूलों को फुसलाने
भँवरा आये.
फ़ाग जो आये
कोयल कूक रही
आम बौराये.
वसंतोत्सव
गोरी खेलती होरी
उल्लास छाये.
झूठा जगत
मिलते कहाँ अब
सच्चे ग्राहक.
युद्ध रुकेगा
शिकार कर देखो
महत्वाकांक्षा.
विक्षिप्त मन
युद्ध की जरुरत
पागलपन.
रुकेगा युद्ध
आसान नहीं होता
बनना बुद्ध.
*****
दस्तक गर्मी की
रचनाकार- नलिन खोईवाल, इंदौर
गर्मी ने दी दस्तक
जाड़े ने दौड़ लगाई
झटपट अंदर चल दी
ये ऊनी शाल रजाई.
पसीने से हुए तर
दिनकर जब दिखाऍं रंग
पादप पंछी नदिया
गर्मी से सभी हैं तंग.
छुट्टियाँ बिताएँगे
ननिहाल में हरेक साल
जब खेलेंगे हिम से
दिखेंगे तभी श्वेत बाल.
ना टीवी मोबाइल
खेलते हम डिब्बा-डोल
दौड़, खो-खो, घुमंतू
ये दुनिया है गोल-गोल.
*****
सेहत का राजा टमाटर
रचनाकार- नलिन खोईवाल, इंदौर
खाते जो हैं टमाटर लाल
हो जाते उनके लाल गाल
और मसालों के लज्जत से
बन जाती तड़का संग दाल.
है विटामिन इसमें भरपूर
और कैल्शियम भी बहुत प्रचुर
तन को ये बलवान बनाएँ
निर्बलता करें हमसे दूर.
बच्चे-बूढ़े सबको भाएँ
इम्युनिटी को बहुत बढ़ाएँ
पाचन शक्ति को ये सुधारे
सेहत का राजा कहलाएँ.
विविध ब्यंजन इसके बनाएँ
राजा-रंक सब इसे खाएँ
सेव टमाटर सब्जी खा कर
चेहरे सबके खिल-खिल जाएँ.
है सर पर इसके हरा ताज
गृहिणी के दिल पर करें राज
और इसके बिना न चलें हैं
रसोई का कोई भी काज.
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क्यों ना आती चिड़िया
रचनाकार- नलिन खोईवाल, इंदौर
दूर गगन से आती चिड़िया,
कौन वतन को जाती चिड़िया.
आँधी, तूफ़ाँ या हो बारिश,
मुश्किल से ना डरती चिड़िया.
जल में छप-छप खेले चिड़िया,
जल जीवन बतलाती चिड़िया.
नीम तले जब चूँ-चूँ करती,
मीठे गीत सुनाती चिड़िया.
अनुपम , सपनिल नन्ही-नन्ही,
कितनी प्यारी लगती चिड़िया.
सूना-सूना है घर-आँगन,
अब घर क्यों ना आती चिड़िया.
कब से नजरें ढूंढ रही है,
देख नलिन वो आती चिड़िया.
*****
किताबें हैं वरदान
रचनाकार- नलिन खोईवाल, इंदौर
पुस्तक में ज्ञान-विज्ञान
इनसे बनते सब विधान.
पुस्तक से मिलें हैं ज्ञान
पुस्तक में सारा जहान.
पढ़-लिखकर बढ़े हैं मान
बढ़ती है जगत में शान.
बांटने से बढ़ता ज्ञान
विद्या सबसे बड़ा दान.
पुस्तक से मिलें सम्मान
बनाती अच्छा इंसान.
हर एक रोग का निदान
हर मुश्किल का समाधान.
पुस्तकें हैं सर का ताज
दुनिया पर करें हैं राज.
दूर करें हैं हर मुश्किल
निश्चित मिलती हैं मंजिल.
सपनों का यह आसमान
पूरे करें सब अरमान.
बहुत रखें हमारा ध्यान
किताबें तो हैं वरदान.
राह हमारी तकती है
अपनी कुछ ना कहती है.
बीज अमन के बोती है
पर तन्हा ये रोती है.
समझो इनकी लाचारी
कैद रहती उम्र सारी
एटम बम पर है भारी
पुस्तकें दोस्त हमारी.
*****
मेरा गाँव सबसे प्यारा है
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु ', शिवरीनारायण
मेरा गाँव सबसे प्यारा है
जहाँ सुकून भरा नजारा है.
यहाँ चौंक और चौपालें हैं
जहाँ बरगद,वृक्षों की डंगालें हैं.
यहाँ सुंदर हवाएँ बहती है
जहाँ पंछियाँ खूब चहकती हैं.
यहाँ नित हरियाली रहती है
जहाँ लोगों में खुशहाली होती है.
यहाँ खेतों में फसल लहराते हैं
जहाँ माटी पुत्र हल को चलाते हैं.
यहाँ स्वच्छ सरोवर दिखते हैं
जहाँ सुंदर फुल कमल खिलते हैं.
यहाँ सुर-सरिता भी बहती है
जहाँ हम सबकी प्यास बुझती है.
*****
आओ-आओ प्यारे बच्चों
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', शिवरीनारायण
आओ-आओ प्यारे बच्चों
चलो घूमने-फिरने जाएंगे
छुटियाँ अब तो शुरु हुई
चलों आनंद खूब मनायेंगे.
छुट्टी के संग-संग गर्मी आई
आइसक्रीम भी खूब खाएंगे
चौंक-चौपाटी गार्डन जाकर
झुला खूब हम झूल आएंगे.
रंग-बिरंगे ठंडे बर्फ के गोले
चलो चुस्कियाँ खूब लगाएंगे
फिर खाएंगे चाट-कचौड़ियाँ
फुलकियाँ भी खूब खाएंगे.
*****
ग्रीष्म ऋतू आई है
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', शिवरीनारायण
ग्रीष्म ऋतू देखो आई है
गर्मी उमस बहुत छाई है
सूरज ने अगन बरसाई है
धूप ने भी जलन बढ़ाई है.
गर्मी से सब हलाक़ान हैं
जीव जन्तु सब परेशान हैं
पेड़-पौधे लगते बेजान हैं
तपने लगा सारा जहान है.
ताल-तलैया रेगिस्थान है
पनघट नदियाँ सुनसान है
पगडंडियाँ सारी विरान है
तपने लगा धरा आसमाँ है.
*****
चलो करें पढ़ाई अब
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु', शिवरीनारायण
चलो करें पढ़ाई अब तो
परीक्षा हमारी आई है
घूमना अब तो बंद करें
समय सारिणी आई है.
ध्यान लगाके करें पढ़ाई
फैसले की बारी आई है
चुनौती अब स्वीकार करो
लड़ने की बारी आई है.
न डरेंगे हम, न हटेंगे हम
डटकर मुकाबला करेंगे
चाहे जैसा भी प्रश्न आए
उत्तर लिखकर ही मानेंगे.
*****
मैं परिंदा हूँ
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु ', शिवरीनारायण
मैं परिंदा हूँ
उड़ता हूँ स्वछंद.
निर्भय होकर
उड़ता हूँ आसमान
मेरे मन में नही
कोई अंतरद्वंद्व.
मेरी कोई सिमाएं नहीं
सिमाएं, हैं मेरी अनंत.
ये आसमान ये धरती
और सारे क्षिती दीगंत.
ये चमन और हरियाली
जो लगाती है बड़ी निराली.
ये इठलाते फुल-कलियाँ
और झूमते तरु की डालियाँ.
इन सब में है मेरा बसेरा
बेझिझक लगाता हूँ मै फेरा.
सिमाओं का नही बंटवारा
नफरतों का नहीं कोई मारा.
यहाँ अमन है, चैन है, प्यार है
इंसानों से जुदा परिंदा है प्यारा.
*****
पेड़
रचनाकार- आशा उमेश पांडेय, सरगुजा
पेड़ों का रखना सब ध्यान,
देना सबको तुम यह ज्ञान.
पेड़ हमारे जीवन दाता,
तभी तो सबके मन को भाता.
शुद्ध हवा जब इनसे मिलती,
सांसें तभी तो है खिलती.
जन्मदिवस पर लेना संकल्प,
'पौध लगाओ'का रखो विकल्प.
नित्य सुबह तुम पानी देना,
उनकी सेवा खुद ही करना.
पेड़ बड़े जब हो जायेंगे,
फल उसका हम मिल खायेंगे.
*****
तितली
रचनाकार- डॉ अमृता शुक्ला
तितली रानी तितली रानी,
बगिया की तुम हो महरानी.
रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे,
देख उन्हें होती हैरानी.
पवन संग उडती फिरती हो,
फूल-फूल का रस पीती हो.
अगर पकड़ना चाहे तुमको,
झट से नभ में जा छिपती हो.
छोटी हो पर बडी सयानी .
ईश्वर की तुम सुंदर रचना,
अपने पंख बचा कर रखना.
भंवरा काला गुन-गुन करता,
तुम को तो चुप रह कर उड़ना.
देख तुम्हें सब खुश हो जाते,
जैसे हो बारिश का पानी.
*****
सवेरा
रचनाकार- डॉ अमृता शुक्ला
पूरब की खिड़की से झांका,
लाल लाल सूरज का गोला.
हुआ सवेरा आंखे खोलो,
चिड़िया बोली मुर्गा बोला.
सवेरा हुआ अब तुम जागो,
बिस्तर छोडो आलस त्यागो.
मुंह धोकर स्नान करो,
भगवान का ध्यान करो.
दूध पियो करो जलपान,
पढ़ाई में लगाओ ध्यान.
सही समय पर आना जाना,
कभी न व्यर्थ समय गंवाना.
*****
देश का तिरंगा तुझे सलाम
रचनाकार- कु मीना साहू, धमतरी
ऐ मेरे देश के तिरंगे तुझे सलाम
तेरी आन, बान,शान को सलाम
तुझमें बसी १४० करोड़ जनता को सलाम
तेरे 28 राज्य की हर भाषा को सलाम
तेरी दया, धर्म और उदारता को सलाम.
आज़ादी में कुर्बान भगत सिंह को सलाम
चंद्रशेखर आजाद, मंगल पांडे को सलाम
बॉर्डर पर शहीद हुए वीर जवानों को सलाम
सीना तान खड़े हुए सैनिकों को सलाम
जल, थल, वायु सेना को सलाम.
तेरी मिट्टी की खुशबू को सलाम
तेरी फसलों की हरियाली को सलाम
तेरे वनों की गहनता को सलाम
हिमालय पर्वत की सुंदरता को सलाम
तेरी नदियों की पवित्रता को सलाम
तेरे साथ अजूबों को सलाम
अलग-अलग धर्म के पुजारियों को सलाम
तेरे आंचल में जन्में राम सीता को सलाम
तेरी गोद में खेलने वाले राधा-कृष्णा को सलाम
ऐ मेरे देश का तिरंगा तुझे सलाम.
*****
क्यों नहीं जला करते चिराग अंधेरों में
रचनाकार- रेश्मा साहू 'झाँसी', कक्षा 12 वीं शास उच्च.माध्य.विद्यालय करेली, धमतरी
क्यों नहीं जला करते चिराग अंधेरों में
चिराग अंधेरों में जलाया जाए तो अच्छा है
बेघर सा उड़ रहें ये मायूस पंछियाँ
इसके लिए घोंसला बनाया जाए तो अच्छा है
मुस्कुराते फूल भी मुरझाने लगें हैं
ये नन्ही कलियों को हँसाया जाए तो अच्छा है
मुसाफ़िरों को डराती है राहें अंधेरी
सभी बेखौफ हो राह से गुजर जाए तो अच्छा है
कदम जलने लगे हैं धूप की दहशत से
इन राहों में दरख़्त लगाया जाए तो अच्छा है
*****
बाबू जी
रचनाकार- जितेन्द्र सुकुमार 'साहिर'
सब पर अपना प्यार लुटाते बाबू जी
घर का सारा बोझ उठाते बाबू जी
माँ तो कभी बन भाई, बहना औ दीदी
कितने ही किरदार निभाते बाबू जी
हम तक कोई ऑंच नहीं आने देते
हर उलझन से, खुद लड़ जाते बाबू जी
पूरा करने अपने बच्चों के सपने
दिन रात अपना खून जलाते बाबू जी
बचपन में जीत सके सारे खेलों में
अपनी जीत को हार बनाते बाबू जी
जब भी लौट आते दफ़्तर से घर 'साहिर'
पहला निवाला हमको खिलाते बाबू जी
*****
नाना जी
रचनाकार- जितेन्द्र सुकुमार 'साहिर'
मुझसे जब भी मिलने आते नाना जी
अपने साथ खिलौने लाते नाना जी
चलते-चलते जब भी मैं थक जाता हूँ
कंधों पे मुझे बिठाते नाना जी
खेला करते साथ सदा साथी बनकर
मैं रूठा तो मुझे मनाते नाना जी
नींद नहीं आती है आंखों को अक्सर
लोरी गाकर रोज सुलाते नाना जी
कहते मुझसे अव्वल आना कक्षा में
बैठाकर हर शाम पढ़ाते नाना जी
*****
निंदिया रानी आओ न
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु ', शिवरीनारायण
निंदिया रानी आओ ना
लल्ले को सुला जाओ ना
मीठी नींद दे जाओ ना
प्यारा सपना दिखलाओ ना
निंदिया रानी आओ ना.
परी बनके तुम आओ ना
आसमां की सैर कराओ ना
चाँद- तारों से मिलाओ ना
मामा-मौसी है ये बताओ ना
निंदिया रानी आओ ना.
स्वप्न लोक तुम ले जाओ ना
देव-अप्सरा से मिलाओ ना
सारी इच्छाएँ पुरी कराओ ना
सुंदर लोरी गीत सुनाओ ना
निंदिया रानी आओ ना.
*****
1 मई मजदूर दिवस
रचनाकार- श्रीमती युगेश्वरी साहू, बिलाईगढ़
मैं एक मजदूर हूँ
मेहनत करने पर मजबूर हूँ
अपना खून पसीना खूब बहाता हूँ
कभी वक्त की मार पड़े तो
भूखा ही सो जाता हूँ.
कठिन समय में भी मैं
अपना ईमान नहीं खोता हूँ
भले ही सपनो के
आसमान में जीता हूँ.
अंधियारा है जीवन मेरा
उजाले से बहुत दूर हूँ.
मैं एक मजदूर हूँ
मेहनत करने पर मजबूर हूँ.
है मेरे भी ख़्वाब बहुत
मैं भी सपने सजाता हूँ
पर हालात के आगे बेबस होकर
कुछ कर नहीं पाता हूँ.
अमीर लोग कद्र नहीं करते
हम मजदूरों की
हमारी मेहनत से ही बन रहे
महल अमीरों की.
पक्का छत नहीं मेरा
झोपड़ी में रहने पर मजबूर हूँ.
मैं एक मजदूर हूँ
मेहनत करने पर मजबूर हूँ.
*****
चिड़िया रानी
रचनाकार- श्रीमती युगेश्वरी साहू, बिलाईगढ़
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
लगती हो तुम बड़ी सयानी
कोमल कोमल पंख तुम्हारे
लगते हैं सबको प्यारे
सुबह सुबह तुम आती हो
चूँ चूँ करके हमे जगाती हो
नील गगन में तुम उड़ती
उड़ानों से कभी न डरती
चुन चुन कर दाना लाती
अपने बच्चों को तुम खिलाती
जब भी कोई संकट आती
ची ची करके शोर मचाती
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
लगती हो तुम बड़ी सयानी.
*****
मीठा आम
रचनाकार- अनिता मंदिलवार 'सपना', सरगुजा
देखो कितना
सुंदर आम
फलों का राजा
मीठा आम
पीला पीला
रसीला आम
बच्चों को बहुत
भाता आम
पेड़ों में ये जब
लगा है रहता
दिखता कितना
मनभावन आम
दशहरी, लंगड़ा
मालदा, बीजू
आम्रपाली, चौसा
तोतापरी,बैगनफली
जाने कितने
इसके नाम
सब का स्वाद
अलग-अलग
ऐसा निराला है आम
पेड़ों पर पक्षी मंडराते
उनको भी है
भाता आम
सब है मिलकर
खाते आम
सबको बहुत पसंद
है ये आम !
*****
चिड़िया रानी
रचनाकार- अनिता मंदिलवार 'सपना', सरगुजा
हर आँगन में
फुदकती रहती
चीं-चीं की आवाज
करती रहती
आपस में
बतियाती रहती
कभी इस डाल
कभी उस डाल पर
कभी मुनगे पर
कभी अमरूद पर
डाल-डाल
इतराती रहती
खग जाने
खग की ही भाषा
सच्ची है ये बात
जब इसको देखो तो
चलो उससे कुछ
दोस्ती कर लें
उसके लिए
आँगन में
पानी रख दें
कुछ भोजन के
दाने रख दें
चीं-चीं कर वह
आभार करेगी
अपनी खुशियाँ
व्यक्त करेगी
समझ लेना
उसने दोस्ती
कबूल कर ली.
*****
रसीले आम
रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू, धमतरी
पीले पीले रसीले आम
सबके मन को भाये आम.
बिन खाए कोई रह न पाए
सबका जी ललचाये आम.
चौसा, दशहरी,लंगड़ा आम
तरह तरह के हैं इनके नाम.
कुश,परी,प्रकाश,गीताली
सब मिले चूसे मीठे आम.
कच्चा आम पक्का आम
सबको खूब भाता आम.
जो खायेगा वो गायेगा
फलों का राजा कहलाता आम.
*****
गर्मी आई
रचनाकार- सुश्री मंजूलता प्रधान, कोरबा
गर्मी आई गर्मी आई
तेज धूप का गोला लाई
संदूक में डाले सबने गरम कपड़े
सूती कपड़े की अब बारी आई
गर्मी आई गर्मी आई
तेज धूप का गोला लाई
माँ बाजार से तरबूज लाई
मीठी कुल्फी मन को भाई
हाल सबकी बेहाल हो गयी
जूस लस्सी छाछ सबकी ढाल हो गयी
गर्मी आई गर्मी आई
तेज धूप का गोला लाई
गर्मी में कड़क धूप हैं छाँव नहीं
घर से निकले पाँव नहीं
पंखे कूलर बिना चैन नहीं
बिन बिजली के अब नींद नहीं.
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आखिर क्यों
रचनाकार- सृष्टी प्रजापति, सातवी, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर
रात होते ही नींद क्यो आ जाती है?
सुबह होते ही नींद क्यो नही खुल पाती है?
स़्वादिष्ट व्यंजन देख के झटपट भूख लग जाती है.
किताबो को देख कर पढ़ने कि याद क्यो नही आती है?
धूप देखते ही झटपट छाँव ढूँढते है.
अपने सपनो को पूरा करने के रास्तो को देखकर क्यो पीछे मुड जाते है?
मोबाईल किसी भी समय मिल जाए एक बार खोलकर जरूर देखते है.
किताबो को क्यो दूर से ही प्रणाम कर लेते है?
दोस्त खेलने बुलाऐ झटपट चले जाते है.
पढा़ई की बात सुनकर वहाँ से क्यो आ जाते है?
अपनी जिन्दगी को एक मकसद बना लो.
जो तुम करना चाहते हो वो पूरी दुनिया को कर के दिखा दो.
पढा़ई को बोझ नही मित्र बना लो.
क्योंकि जिन्दगी आप की है ,जो चाहे वो कर के बिता दो या कर के दिखा दो.
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भोर
रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे, कोरबा
भोर का सुंदर नजारा है कितना प्यारा,
भोर के सुंदर नजारा है कितना प्यारा.
लगते सुंदर मनमोहन प्यारा,
भोर होते मुर्गा देने लगा बाँग
और चांद- तारे भी लगते छिपने
पेड़-पौधे सभी झूमे धरती पर
ठंडी सुरीली चली पवन भोर के
भोर का सुंदर नजारा है कितना प्यारा,
भोर के सुंदर नजारा है कितना प्यारा.
सूरज की किरणें भी लालिमा बिखेर रही,
चिड़िया चहचहाने लगी चहुंओर,
और सभी जीव जंतु हो गए सचेत,
करना है विचरण उन्हें हो गई अब भोर,
भोर के सुंदर नजारा है कितना प्यारा,
भोर के सुंदर नजारा है कितना प्यारा.
भोर होते ही सभी करो सैर
और रखो स्वच्छ तन मन और निरोगी काया
तभी दिखेगा सभी मोह माया
भोर के सुंदर नजारा है कितना प्यारा,
भोर के सुंदर नजारा है कितना प्यारा.
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डॉ. बाबासाहब अंबेडकर
रचनाकार- अशोक कुमार यादव, मुंगेली
मन-ही-मन सोच रहा नन्हा भीम,
भेदभाव, छुआ-छूत क्यों हावी है?
कुआँ से पानी पी नहीं सकते हम,
मानव-ही-मानव पर कुप्रभावी है.
मुक बधिर बनकर जीना पड़ रहा है,
शिक्षा ग्रहण करना क्यों मनाही है?
जिंदगी बीत रही है कुंठा,अवसाद में,
मैं भुक्तभोगी, रोम-रोम अनुभवी है.
सामाजिक कुरीतियाँ देख संकल्पित,
चुनौतियों का सामना कर आगे बढूँगा.
छठा प्रहर तक विद्या ग्रहण करना है,
दुनिया की सारी ज्ञान पुस्तकें पढूँगा.
लिखूँगा एक दिन भारत का संविधान,
सबको स्वतंत्रता और अधिकार मिलेगा.
एकता,अखंडता और भाईचारे का संदेश,
समानता का सुवासित कुसुम खिलेगा.
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नवा जतन
रचनाकार- योगेश्वरी तंबोली जांजगीर
21वीं सदी का कौशल लाना है,
सीखने को कैसे सीखना है,
यह शिक्षण शास्त्र बताना है,
तो नवा जतन अपनाना है.
बच्चों को तेज गति से सीखाना है,
तार्किक,चिंतनशील बच्चे बनाना है,
अधिक आत्म विश्वास लाना है,
तो नवा जतन अपनाना है.
पहले इस्तेमाल किया फिर जाना है,
नवा जतन का 6 नुस्खा जादू का खजाना है,
मैने परिणाम देखा तो माना है,
नवा जतन अपनाना है.
बच्चों को स्वयं सीखने के लिए प्रेरित करते जाना है,
स्वयं से अधिक सीखने के लिए चुनौती आजमाना है.
विषय मित्र,गली मित्र, पियर लर्निग कराना है,
नवा जतन अपनाना है.
जिज्ञासा का सम्मान कर,जिज्ञासु बनाना है.
सीखने में टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ाना है.
सेल्फीविथ सक्सेज लेकर आत्मविश्वास जगाना है.
नवा जतन अपनाना है.
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मोटर गाड़ी मेरे यार
रचनाकार- गुलज़ार बरेठ, जांजगीर चाम्पा
मोटर गाडी मेरे यार
खिलौनो से है मुझको प्यार
साइकिल बाईक में है बड़ा दम
चलाऊ इसको मै हरदम
कार बस की बात निराली
मै तो करता इनकी सवारी
जेसीबी से गड्ढा करता
ट्रेक्टर से मै रेत को भरता
छप छप करके नाव चलाता
छुक छुक करके रेल चलाता
हेलीकाप्टर में उड़ता मै
हवाई जहाज में सैर करता मै
ट्रक में डीजे बजाता मै
बंदर भालू को नचाता मै
चोरी लड़ाई जब हो जाए
पुलिस गाडी तुरंत आ जाए
हो जाए जब कोई टक्कर
एम्बुलेंस मारे फिर चक्कर
तुम भी आओ गाड़ी चलालो
मस्ती करो और धूम मचालो
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अब मेहनत की बारी है
रचनाकार- सृष्टी प्रजापति, कक्षा -सातवी, स्वामी आत्मानंद तारबहार
सपना है तो सच भी होगा.
आज नही तो कल भी होगा.
रात के बाद ही सबेरा आता है.
कडी़ मेहनत के बाद व्यक्ति फल पाता है.
मेहनत कर तू अब तेरी बारी है.
कब से माता-पिता पर बोझ - सा भारी है.
दुनिया आवाज दे रही है, जा तू.
दुनिया को देखने की, अब तेरी बारी है.
गुरूओ का ज्ञान साथ लेकर ही जाना.
उनका ऋण सभी पर भारी है.
बिना गुरूओ के ज्ञान के तु .
बिना आत्मा के शरीर के भाँती है.
चल अब सपनो को सच करने के रास्ते पे.
फूलो के जगह काँटो को स्वीकार करते हुऐ रास्ते पे .
दुनिया की सौ पहेली सुलझा ले तु मिल जाऐगी कामयाबी.
विश्वास नही है तो, करके आजमा ले तु.
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मुस्कान
रचनाकार- किशन सनमुख़दास भावनानी, महाराष्ट्र
मुस्कान में पराए भी अपने होते हैं
अटके काम पल भर में पूरे होते हैं
सुखी काया की नींव होते हैं
मानवता का प्रतीक होते हैं
स्वभाव की यह सच्ची कमाई है
इस कला में अंधकारों में भी
भरपूर खुशहाली छाई है
मुस्कान में मिठास की परछाई है
मुस्कान उस कला का नाम है
भरपूर खुशबू फैलाना उसका काम है
अपने स्वभाव में ढाल के देखो
फिर तुम्हारा नाम ही नाम है
मीठी जुबान का ऐसा कमाल है
कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता
मीठा बोलने वाले की
मिर्ची भी बिक जाती है
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मन को सदा लुभाती तितली
रचनाकार- डॉ. सतीश चन्द्र भगत
जब बागों में आती तितली,
मन को खुश कर जाती तितली.
रंग- बिरंगे पंखों से वह,
मन को सदा लुभाती तितली.
पल- पल जब मुस्काते फूल,
चुपके पंख रंगवाती तितली .
फूलों से क्या- क्या बतियाती,
लगता है प्रेम जताती तितली.
इधर- उधर उड़ जाती तितली,
नहीं पकड़ में आती तितली.
देखो तो खिल जाता है मन,
लगता प्रीत जगाती तितली.
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