बालगीत
चिड़िया रानी
रचनाकार-अरुण कुमार यादव
आओ बच्चो सुनो कहानी,
एक है प्यारी चिड़िया रानी,
चूँ-चूँ कर मुझसे बतियाए,
फुदक-फुदक वो नाच दिखाए,
जब भी बैठूँ खाना खाने,
साथ में मेरे खाना खाए.
दो-चार रोज को जाऊँ बाहर
परेशान हो मुझे बुलाए..
लौट के आऊँ जब घर को
झट से कंधे पर चढ़ जाए..
बस मैं कहूँ यही कहानी,
वो है मेरी नन्ही रानी..
बंदर मामा
रचनाकार-आशा उमेश पांडेय
बंदर मामा बड़े सयाने,
उनके हैं हजार ठिकाने,
बच्चे जब उन्हें सताते,
मामा उन्हें लपक भगाते.
झुंड बनाकर चलते मामा,
जंगल-जंगल फिरते मामा,
सब देख-देख खुश होते हैं,
बंदर मामा बच्चे कहते हैं.
पेड़ों पर रहता मामा का डेरा,
डाल-डाल पर उनका है फेरा.
कंद-मूल फल-फूल वो खाते,
बड़े मजे से हैं जीवन जीते.
गाँव में जब सजता मेला,
मदारी दिखाता उनका खेला.
बच्चे-बूढ़े सबका लगता रेला,
बंदर मामा खाते केला.
सद्भाव
रचनाकार-सत्या कौशिक
हे परमपिता परमेश्वर हम पर,
शुभ आशीष बनाए रखना.
मानव सेवा,दया-प्रेम की,
दिल में ज्योत जलाए रखना.
हम विश्व-शांति के हों अग्रदूत,
मन में विश्वास बनाए रखना.
प्राणिमात्र को हो समर्पित,
ऐसे भाव बनाए रखना.
दूध
रचनाकार-नरेन्द्र सिंह 'नीहार'
सेहत भरा खज़ाना दूध.
गैया का नज़राना दूध.
बच्चे पीते, बिल्ली पीती,
पहलवान का खाना दूध.
अंग-अंग में भरता जोश.
ताकत हिम्मत देता रोज़.
दही,छाछ मलाई-मक्खन.
दूध बनाए छप्पन भोग.
गट-गट पीता चतुर सुजान.
गुड़ संग पीते भाईजान.
मेहनत करते हैं जी तोड़,
सो जाते फिर चादर तान.
माँ का दूध समझ वरदान.
गाय भैंस और किसान.
भर-भर बाल्टी दूध से.
आकर ले जाते दीवान.
पीकर दूध बढ़ेगी सूझ.
सुबह शाम लोगों की बूझ.
सब पर भारी सोच तुम्हारी,
पी लो प्यारे मीठा दूध..
मोबाइल
रचनाकार-टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'
बच्चों ध्यान से सुनो मेरी बात.
जरूर जानो मोबाइल की करामात.
मोबाइल का सही उपयोग करो.
इसका न कभी दुरुपयोग करो.
सिर्फ काम की चीज सर्च करो.
फिर दिमाग अपना खर्च करो.
मोबाइल सिखाता है अच्छी बातें.
देता है हमें यह अच्छी सौगातें.
तु्म्हें आगे यह जरूर बढ़ाएगा.
एक उज्जवल भविष्य बनाएगा.
धरती माता
रचनाकार-अनिता चन्द्राकर
यह धरती जीवनदायिनी, कहलाती हम सबकी माता.
नदियाँ प्यास बुझातीं सबकी, कृषक है फसल उगाता.
विपुल खनिजों का भंडार यही, जीव भी आश्रय पाता.
ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखर यहीं, सुंदर उपवन मन लुभाता.
धरती माता कर रही पुकार, संकट से मुझे उबार लो.
हुआ रूप विकृत मेरा अतिदोहन से, पुनः मुझे सँवार लो.
है बहुत बातें करने वाले, अब कुछ कोशिश भी कर लो.
सब मिल छोटे-छोटे प्रयासों से, धरती माता को बचा लो.
खिलौना
रचनाकार-ज्योतिमाला सिन्हा
गुड्डे-गुड़िया, हाथी-घोड़ा,
बंदर-भालू, तोता-मैना,
एक से बढ़कर एक है बहना,
आओ तुमको दिखाता हूँ खिलौना.
ये देखो हाथी की शान,
लंबी सूंड, बड़े हैं कान,
घोड़ा अपना दमदार है,
दौड़ता तेज रफ़्तार है.
बंदर की है बात निराली
नकल करता सबकी,
बात-बात पर बजाता ताली.
वो देखो पीछे बैठी मैना,
सोच रही अब किधर है उड़ना.
हरे तोते की है चोंच लाल,
मिट्ठू-मिट्ठू करता रट्टूलाल.
भालू भी है खूब मतवाला,
भारी भरकम शरीर वाला.
अब बारी है खरगोश का,
छोटा सा है, सफ़ेद रंग जिसका.
गाजर यह खाता है,
बहुत तेज़ भागता है.
मगर, हिरण सब देख रहे थे,
मेरा नंबर कब आएगा,
ये सोच रहे थे.
जब तक गुड्डे-गुड़िया,
भी सज गए,
खिलौने देखकर,
बच्चे बहुत खुश हुए.
खिलौने देखकर,
बच्चे बहुत खुश हुए.
बाबा रविदास
रचनाकार-सीमान्चल त्रिपाठी
हे लोक हितकारी, करूणा के सागर.
भरते रहिए दीन, दुखियों की गागर..
हर्षित वृष्टि करते रहिए, हे अलौकिक दृष्टा संत.
दया की तुम प्रतिमूर्ति, करो महिमा अनंत.
करते थे वे सदा सर्वदा, लाल कर्म से कमाल.
कर्त्तव्यनिष्ठा से पूरित, भारत भूमि हुई निहाल..
आपने देकर जन संदेश, मन चंगा तो कठौती में गंगा.
बहाए अद्वितीय प्रेम धारा, बने निराली निर्मल गंगा..
भक्ति भाव से तेरे चरणों में, शीश झुकाते नित्य हम.
देंगे बाबा रविदास हमें, हर काम करने का दम..
परित्याक्त कर अहम् का, करते श्रद्धासुमन अर्पित.
लें बाबा का हम आशीर्वाद, झूम उठते होकर गर्वित..
मेरी दीदी
रचनाकार-खेमराज साहू
मेरी दीदी प्यारी-प्यारी है, हम सब की राज दुलारी है.
भाई-बहन का अनोखा प्रेम, ये सारे दुनिया से न्यारी है.
दिनभर मुझसे लड़ती है, माँ जब मिठाई देती है.
वो तब बाँटकर मुझसे खाती है, माँ मुझे डाँट लगाती है.
मुझसे पहले रो देती है, मेरी दीदी प्यारी-प्यारी है.
मेरी दीदी बड़ी भोली भाली है, बस अपने में ही मतवाली है.
हम दोनों भाई बहन एक हैं, माता-पिता की संतान हैं.
अनोखा है दीदी का प्यार, दीदी मेरी महान है.
मेरे लिए सब कुछ, करने को तैयार रहती है.
स्कूल जब हम जाते हैं, हम दोनों का बस्ता ले लेती है.
मेरे लिए सबसे लड़ लेती है, मेरी दीदी प्यारी-प्यारी है.
गुड़िया रानी
रचनाकार-डॉ. सतीश चन्द्र भगत
जल्दी जागो गुड़िया रानी,
क्यों करती हो आनाकानी.
बड़-बड़ करती किसे पढ़ाती,
अटर-पटर कुछ समझ न आती.
गुड्डा राजा दौड़कर आया,
ढ़म-ढ़म, ढ़म-ढ़म ढ़ोल बजाया.
उठो-उठो ओ गुड़िया रानी,
क्यों करती हो तुम मनमानी.
मिठुआ आम
रचनाकार-डॉ. सतीश चन्द्र भगत
चलो चलें हम पता लगाएं,
किस गाछी में मिठुआ आम.
तोड़ेंगे चखकर देखेंगे,
नहीं लगेंगे कोई दाम.
चलो चलें मिलकर हमजोली,
जिस गाछी में मिठुआ आम.
नन्हें बच्चों वाली टोली,
मिलकर खाएंगे सब आम.
हंसते-गाते, उधम मचाते,
हम पहुँचे बाबा के धाम.
बाबा ने सबको दुलराया,
दिये टोकरी भरकर आम.
मीठे और रसीले इतने,
सबने खाये छककर आम.
गाछी-आम का बाग
गाँव छोड़ शहर की ओर चला
रचनाकार-अनिता चन्द्राकर
छोड़ गाँव की मिट्टी, चल पड़ा शहर की ओर.
था ज़ुनून धन संग्रह का, दिल का बना कठोर.
रास आ गई चकाचौंध, तब गाँव गया वह भूल.
पैसा बंगला मोटर गाड़ी, पर ख़ुशी हो गई गुल
जगह जगह भीड़ भाड़, एक दूजे से अनजाने.
भावना शून्य लोग यहाँ के, सब पैसे के दीवाने.
याद आती है वो गलियाँ, जहाँ सभी थे अपने.
मत भूलो गाँव को, बस पूरे करने कुछ सपनें.
होली का त्यौहार
रचनाकार-अनिता चन्द्राकर
आया महीना फागुन का, सब मिल गाएँ फाग.
फूलों से लद गए पलास, भर गए मधुर पराग.
इठलाती आई पुरवाई, किसने छेड़ा वासन्ती राग.
रंग लगायें प्यार का हम, बुझा नफ़रत की आग.
रंग गुलाल पिचकारी से, सज गए हाट बाजार.
बच्चों के चेहरों पर छा गई, देखो ख़ुशियाँ अपार.
मिटा अहंकार मन का, कहता होली का त्यौहार.
विजीत हुआ है सत्य सदा, होती बुराई की हार.
महाशिवरात्रि
रचनाकार-प्रिया देवांगन 'प्रियू'
ध्यान मग्न रहते सदा, पर्वत करते वास.
बाबा भोलेनाथ जी, पूरा करते आस..
कांँवर पकड़े हाथ में, जाते हैं शिव धाम.
बम-बम भोले नाथ की, जपते रहते नाम..
सर में जटा विराज है, बहती गंगा धार.
कुंडल सोहे कान में, गले रुद्र की हार..
डम-डम-डम डमरू बजा, करते भोले नाच.
पर्व महाशिवरात्रि पर, नाचे भूत पिशाच..
बाबा भोलेनाथ जी, दर्शन देदो आज.
आये तेरे द्वार पर, रख दो सबकी लाज..
किचन गार्डन
रचनाकार-सपना यदु
हम सबका है एक ही सपना,
हरा-भरा हो किचन गार्डन अपना.
मिलकर सब्जियां लगाएंगे,
खाकर स्वस्थ हो जाएंगे..
भटा, टमाटर, भिंडी, लौकी
पालक और मेथी लगाएंगे.
मिलकर सब्जियां उगाएंगे,
खाकर स्वस्थ हो जाएंगे..
आओ दीदी, आओ भैया,
मिलकर करें हम इसकी सेवा.
इनके बीजों में पानी डालें,
गार्डन को हरा-भरा बनाएं..
छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर,
पानी सब तक पहुंचाएंगे.
गोबर और खाद डालकर,
इसकी उर्वरकता बढ़ाएंगे..
करेंगे हम इसकी सुरक्षा,
चारों ओर घेरा लगाएंगे.
कांटे या कटीले तार लगाकर,
पशुओं से इसे बचाएंगे..
इको क्लब का करके गठन,
सबको सदस्य बनाएंगे.
सबको उनके काम सौंपकर,
विद्यालय की शोभा बढ़ाएंगे..
चलो स्कूल
रचनाकार-योगेश्वरी तम्बोली
हरे हरे पत्ते लाल लाल फूल
चलो भाई जल्दी चलो स्कूल
छूट गई पेन्सिल कापी गई भूल
चलो भाई जल्दी चलो स्कूल
बाग में है झूला जा के झूल
चलो भाई जल्दी चलो स्कूल
बगीचे में पेड़ है पेड़ में है फूल
चलो भाई जल्दी चलो स्कूल
छूट गई बत्ती स्लेट गईं भूल
चलो भाई जल्दी चलो स्कूल
काली काली कोयल डाली रही झूल
चलो भाई जल्दी चलो स्कूल
छूट गई बैग थाली गई भूल
चलो भाई जल्दी चलो स्कूल
टीचर के हाथ में नही है रूल
चलो भाई जल्दी चलो स्कूल
शाला में है बेंच और है स्टूल
चलो भाई जल्दी चलो स्कूल
मैडम सुनायेगी कविता जरा नही भूल
चलो भाई जल्दी चलो स्कूल
आज है सन्डे गई थी मैं भूल
गेट पे है ताला बंद है स्कूल
आया बसंत
रचनाकार-वसुंधरा कुर्रे
आया बसंत देखो, आया बसंत.
खुशनुमा है वन उपवन.
देखो आया बसंत देखो आया बसंत.
आम बैराएं मैदानो में,
खेत खलिहान में
पीले सरसों लहराए.
रंग-बिरंगे खिले बगिया,
खिले पलाश और सेमल.
उपवन देखो रंग बिरंगी,
नारंगी छटा छा गई.
भीनी-भीनी खुशबू सबको भाग गई.
आया बसंत देखो, आया बसंत.
खुशनुमा है वन उपवन.
खुशनुमा है वन उपवन.
फूलों पर मंडराएं भंवरे,
भौरो की मधुर गुंजन से गूंजे उपवन.
कोयल कुहूक मधुर तान छेड़े.
पपीहा पीहू-पीहू बोले
आया बसंत देखो, आया बसंत
खुशनुमा है वन उपवन.
खुशनुमा है वन उपवन.
बसंत का बहार देखो,
युवाओं में उत्साह देखो,
बसंत में फुहार देखो,
खिल गया है अंतर्मन .
आया बसंत देखो, आया बसंत.
खुशनुमा है वन उपवन.
खुशनुमा है वन उपवन.
भोले भंडारी
रचनाकार-सोमेश देवांगन
हे मेरे प्रभू महेष,बाबा शिव भोले भंडारी.
मै सोमेश बना बन्दर,बाबा भोले बने मदारी..
हाथ डमरू,त्रिशूल,बाघाम्बर ओढ़े त्रिपुरारी.
देने वाले आप हो प्रभू मै हूँ केवल भिखारी..
भष्म रमाये बैठे करते हो नंदी की सवारी.
जन्म जन्म से हूँ बाबा आपका आभारी..
गले मे नाग की माला कान में बिच्छू बाला.
कैलाश पति हे शिवशंकर मेरे डमरू वाला..
हलाहल विष को पीकर जग को संभाला.
क्रोध जब आये तो पृथ्वी को हिला डाला..
माथ में चँदा सुंदर सोहे पिये भांग का प्याला.
बैठे धुनि रमाये जपते राम नाम की माला..
जटा से बहती है निर्मल पावन गंगा की धार.
शिव भक्ति ही है जीवन का मात्र असली सार..
अर्धनारीश्वर बन प्रभू किया दुष्टों का संहार.
मेरे भोलेनाथ आप की महिमा है अपरम् पार..
तितली आई
रचनाकार-बलदाऊ राम साहू
तितली आई जब बगिया में
भौंरे भी तो आए,
तितली आई चुपके-चुपके
भौंरे गीत सुनाए.
तितली आई जब बगिया में
कलियाँ भी मुस्काई,
धीरे-धीरे फूल खिले तब
मुनिया दौड़े आई.
तितली आई जब बगिया में
बच्चे भी तो आएँ,
तितली उड़ी कहीं दूर तलक
वे भी दौड़ लगाएँ
नमक
रचनाकार-महेंद्र कुमार वर्मा
हर घर की है शान नमक,
हर घर का अभिमान नमक.
भोजन का स्वाद बढ़ाती,
होती गुण की खान नमक.
राजा हो या रंक फ़कीर,
सबसे पाता प्यार नमक.
नमक बिना भोजन सूना,
मुखड़े की मुस्कान नमक.
आयोडीन युक्त बनती,
सेहत की वरदान नमक.
सबकी चाहत पाती है,
रसोइयों की शान नमक.
आलसी राम
रचनाकार-रीना मौर्य मुस्कान
बहुत सोते हैं आलसी राम,
कुछ भी ये करते नहीं काम,
सारा दिन बस खाते रहते,
दिन-पर दिन तोंद है बढ़ते,
कितना सबने समझाया इनको,
फिर भी अक्ल ना आई इनको,
बीमारी का जब हो गए घर,
तब लगा फिर इनको डर,
योग-व्यायाम अब इनको भाए,
स्वस्थ शरीर निरोगी काया
बात समझ में आए.
सीखना सिखायेंगे
रचनाकार-प्रतिभा त्रिपाठी
अंगना म शिक्षा से सीखना सिखायेंगे.,..
स्व प्रेरित महिला शिक्षिका की सोच को बढायेंगे...
अक्षर, ज्ञान, गतिविधियों से बच्चों को सिखायेंगे
अंगना म शिक्षा में सीखना सिखायेंगे...
माता उन्मुखीकरण से माताओं को बतायेगे..
गिनती, संख्या, चार्ट से जोड़ने को सिखायेंगे...
अंगना म शिक्षा में सीखना सिखायेंगे
माताओं को प्रेरित कर, बच्चों को सिखायेंगे
स्व प्रेरित महिला शिक्षिका की सोच को बढायेंगे..
वर्गीकरण कर कर के, छोटा-बडा बतायेगे..
अंगना म शिक्षा से सिखना सिखायेंगे
स्व प्रेरित महिला शिक्षिका की सोच को बढायेंगे
घने काले बादल से पानी को गिरायेगें..
अंगना म शिक्षा से बच्चों को सिखायेंगे...
अच्छी आदतें
रचनाकार-पुष्पलता साहू
आओ बच्चों तुम्हें मैं कुछ बात बताऊं,
अच्छी आदतें आज तुम्हें सिखाऊं.
करनी हो जब पार तुम्हें सड़क
ध्यान ना जाए भटक.
दाएं बाएं फिर सिग्नल देखो,
हरी बत्ती देख आगे बढ़ो.
करना है जो आज झटपट कर
डालो,
आज का काम तुम कल पर ना टालो.
कभी किसी से तुम झूठ ना बोलो,
सदा सत्य और मीठा ही बोलो.
जल्दी उठो सुबह और सैर पर जाओ,
बीमारियों को कोसों दूर भगाओ.
रखो स्वच्छता का हमेशा ध्यान,
कचड़े का कूड़ादान में ही करो निपटान.
रोज करो तुम ब्रश और स्नान,
नियमित रखो हमेशा अपना खानपान.
पैसा
रचनाकार-प्रिया देवांगन 'प्रियू'
जीवन जीने के लिए, करते हैं सब काम.
मिल जाते पैसे अगर, करते फिर आराम..
बनते पैसों से बड़े, आज यहाँ इंसान.
करते पूजा रोज है पैसा ही भगवान..
ऐसा कलयुग आ गया, टूटे घर परिवार.
पैसे खातिर लोगअब, छोड़े घर अरु द्वार..
लालच को तुम छोड़कर, करो नेक अब काम.
मिले सफलता रोज ही, होगा जग में नाम..
पैसा ही सबकुछ यहाँ, करते पैसे बात.
भेद अमीर-गरीब का, तय करते हालात..
चलो ज्ञान की दीप जलाएं
रचनाकार-सुरेखा नवरत्न
चलो ज्ञान का दीप जलाएँ
दूर तलक जहाँ तमस है.
आशा कि जोत जगाएँ
चलो ज्ञान का दीप जलाएँ
जो टूट गए हैं डाली से,
जो रूठ गए हैं माली से
वहाँ नया पुष्प हम खिलाएँ
चलो ज्ञान का दीप जलाएँ
गाँव की सकरी गलियों से,
शहरों तक, बाजारों तक.
नानाजी के गलियों से,
पीपल के चौबारों तक.
चलो ज्ञान का दीप जलाएँ
उन भोले-भाले नन्हों को,
जो भटक गए हैं राहों से.
फिर ढूँढ उसे हम ले आएँ
मदरसों के दरवाजे तक.
चलो ज्ञान की दीप जलाएँ
तू पढ़ प्यारे, आगे बढ़ प्यारे,
शिक्षा तेरे अधिकार में है.
आजा स्कूल तुझे पुकारे,
तेरा बचपन तुझे बुलाए.
चलो ज्ञान की दीप जलाएँ
गलियों से स्कूल तक
रचनाकार-सुरेखा नवरत्न
गलियों से स्कूल,
चल पड़े हैं नन्हें फूल.
पहनकर स्कूल ड्रेस,
कैसे? बदल गए हैं भेष.
हाथ में पानी डब्बा,
पीठ में लादे बस्ता.
और पैरों में लगे हैं धूल,
गलियों से स्कूल
चल पड़े हैं नन्हें फूल.
मन में लिए उत्साह,
पढ़ने लिखने की चाह.
अ,आ, इ, ई, करते हुए,
गिनती गया हैं भूल.
गलियों से स्कूल,
चल पड़े हैं नन्हें फूल.
हाथों में पकड़े थाली,
खुशी से बजाते ताली.
करे स्कूल में जलपान,
और घर को गया हैं भूल.
गलियों से स्कूल,
चल पड़े हैं नन्हें फूल.
सवेरा
रचनाकार-पुष्पलता साहू
चल रही है ठंडी हवा,
भंवरे भी गुनगुना रहे हैं.
खिल उठी है कलियाँ सारी,
फूल भी मुस्कुरा रहे हैं.
पेड़ों में देखो चहक रही हैं
छोड़कर चिड़िया अपना बसेरा.
गाये भी जा रही हैं देखो,
चरने छोड़कर अपना तबेला.
बीत चुकी है काली रात,
नभ में लालिमा छा रही है.
जाग गया है जग सारा,
तितली फूलों में मंडरा रही है.
चढ़ गया सूरज मुंडेर पर,
मिट गया है अब अंधेरा.
तुम भी उठ जाओ झटपट,
देखो हो गया अब सवेरा.
जंगल में होली
रचनाकार-बलदाऊ राम साहू
चलो मनाएँ हम जंगल में
होली का त्यौहार
जाने कितना अदभुत होता है,
जंगल का संसार.
बंदर लाया फल की डलिया
हाथी लाया केला
नन्ही गिलहरी झरबेरी लाई,
पर ऊँट खड़ा अकेला.
हिरन मौसी नाच रही थी
लिए हाथ गुलाल,
भालू दादा पी कर मदिरा
किया खूब बवाल.
कोयल गाई गीत पुराने
मैना नए तराने
साथ बैठकर बुलबुल रानी
लगी राग मिलाने.
गधे, घोड़े, रंगे सियार
संग लोमड़ी भी आई,
मस्ती में नाचे, धूम मचाए
गाए गीत फगुनाई.
जंगल का राजा आया
लिए हाथ पिचकारी
आगे-आगे खुद चल रहा
पीछे थी सवारी.
गैडा बजा रहा नँगाड़े
चीता डपली लाया,
लकड़बघा नाच-नाचकर
सबका मन बहलाया.
शहादत को सलाम
रचनाकार-श्रवण कुमार साहू 'प्रखर'
भारत माँ का बच्चा-बच्चा,
जब तेरी याद में रोया था.
ये मत पूछो तेरे पीछे किसने,
क्या-क्या खोया था??
*माँ की गोदी सूनी हो गई,
जिसमें तू नित खेला था.
घर आँगन भी सूने हो गये,
जिसमें सुख-दुख झेला था..
माँ की छाती छलनी हो गई,
जब आसमां भी रोया था--
*घर का कुलदीपक था वो तो,
पिता का अभिमान था.
गाँव का भोला-भाला बेटा,
भारत माँ की शान था..
बाप की हिम्मत टूट गयी थी,
जिस दिन बेटे को खोया था--
*मेहंदी का रंग उड़ गया,
जब कंगन चूड़ी टूटे थे.
हाय विधाता जिस दिन तूने,
माँग से सिंदूर लुटे थे..
बंधन टूटा, साथ भी छूटा,
जो बीज प्रेम का बोया था--
*हाथ में रेशम की डोरी ले,
बहना जब ये पूछती है.
कब आएगा मेरा भैय्या,
कोई तीर सीने में चुभती है..
बहन की डोली उठाने वाला,
पता नहीं क्यूँ सोया था?--
*मासूम बच्चे जब यह कहते,
पिताजी कब आएंगे.
गुड्डा-गुड्डी, खेल-खिलौने,
मेरे लिए कब लाएंगे..
उस अनाथ को कौन बताए,
जिसने बचपन खोया था--
*मेरे साथी, मेरे भाई,
क्यों तू मुझसे रुठ गया ?
तेरा मेरा खून का रिश्ता,
क्यूँ इतनी जल्दी टूट गया?
आज किशन ने बलराम,
जैसे भाई को खोया था--
*मरते दम जिसने यारों,
दुश्मन से लोहा लिया था.
देश की शान बचाने खातिर,
अपने प्राण को दिया था..
अमर रहो मेरे वीर जवान,
यह कहके हर कोई रोया था
बस्तर के समाधि स्तंभ
रचनाकार-रजनी शर्मा बस्तरिया
बस्तर तुम तो सदा से थे,
शांत, मदमस्त, अचल.
अपने आप को सहेजते,
सीधे सरल पथ की तरह.
जिन्होंने तुमसे तुम्हारा वजूद,
छीनने की कोशिश की.
कभी आधुनिकता के लिए,
कभी उदर पूर्ति के लिए.
तुम कभी भी नही इतराये.
कि तुम क्या हो?
तुम्हें तुम्हारा कद
कोई क्यों बतलाए?
जब तुम खुद खड़े हो
अपने बूते पर.
उठो नाकाम करो,
इन कोशिशों, इन साजिशों को.
ये तुम्हें बना ना दे,
समाधियों का शहर.
हर पत्थर, ज़र्रा
स्तंभ की तरह,
उठो मिटने पर भी,
'इन समाधि स्तंभों की तरह'
फन्नस कुआ
रचनाकार-रजनी शर्मा बस्तरिया
फन्नस कुआ ओ फन्नस कुआ,
बोलो ना बोलो आज तुम्हे क्या हुआ............?
पक भी जाओ भई पकने का मौसम हुआ,
बाट जोहते हैं दादा दादी और बुआ..........
कटता नही ये छाल कितना कड़ा है मुआ,
तुम्हारी खुशबू से आ पहूंचे है अब तो सुआ.........
अटकल लगाओ बच्चों किसे है कहते कुआ?
कटहल ही पक कर कहलाता है फन्नस कुआ..
रचनाकार-पुष्प लता साहू
कभी आधे तो कभी गोल,
कभी बादलों में छुप जाते हैं.
जैसे ही आते हैं सूरज काका,
हम सबसे शरमा जाते हैं..
सो जाता है जग सारा,
तब तारों के संग आते हैं.
झिलमिल सितारों के बीच,
अपनी चांदनी फैलाते हैं..
बच्चों के हैं प्यारे मामा,
सबके मन को भाते हैं.
सबसे प्यारे सबसे अच्छे,
चंदा मामा कहलाते है..
व्हाट्सएप
रचनाकार-स्व. महेंद्र देवांगन 'माटी'
रहते हैं सब दूर-दूर पर.
मन में कमल खिलते हैं.
व्हाट्सएप का कमाल तो देखो.
एक जगह सब मिलते हैं..
सुबह-सुबह जब आँखें खुलती.
झट से मोबाइल देखते हैं.
सुप्रभात और गुड़ मॉर्निंग का.
मैसेज सबको भेजते हैं..
चाय की प्याला लिये हाथ में.
की-बोर्ड पर ऊँगली रहती हैं.
चाय की चुस्की मार-मार कर.
हाय-हैलो सब करते हैं..
कोई बन्दा सीधा-साधा.
कोई बहुत है खाटी.
सबको प्रणाम करने आया.
छत्तीसगढ़ का 'माटी'..
चीन को चेतावनी
रचनाकार-स्व. महेंद्र देवांगन 'माटी'
आँख दिखाना छोड़ो हमको, नहीं किसी से डरते हैं.
हम भारत के वीर सिपाही, कफ़न बाँध कर लड़ते हैं..
एक कदम तुम आगे आओ, पैर काट कर रख देंगे.
वतन बचाने के खातिर हम, इतिहास नया लिख देंगे..
चलो नहीं अब चाल चीन तुम, हमसे जो टकराओगे.
याद करोगे नानी अपनी, पाछे फिर पछताओगे..
छोटी छोटी आँखे तेरी, बिल्ली जैसी लगते हो.
हाथ मिलाकर भारत से तुम, गद्दारी ही करते हो..
व्यर्थ नहीं जाएगा अब ये, वीरों की यह बलिदानी.
बदला लेकर ही छोड़ेंगे, नहीं मिलेगा अब पानी..
गूंगे की वाणी
रचनाकार-सोमेश देवांगन
मैं गूंगा कहता अपनी वाणी की कहानी.
मेरी वाणी ही तो है मेरी असल निशानी..
वाणी मेरी सब से अलग मै हूँ मूक-बधिर.
आ-आ कहते हुए धरता हूँ मै धीर..
कोई न समझता वाणी मेरी हे मेरे रघुवीर.
बोल न पाता कहीं भी बहता आंखों से नीर..
वाणी मेरी बन गया हँसी मजाक का ठिकाना.
बोलने वालों का है दुनिया में हर कोई दीवाना..
जुबान की कीमत समझा रह हमें जमाना.
लेकिन बिन जुबान के हमें है नाम कमाना..
अपनी पीड़ा कहूँ तो कैसे कहूँ नही है जुबान.
पकड़े बैठा हूँ तीर को नही है मेरे पास कमान..
हे राम सब कुछ दिया पर कर दियाहमें बेजुबान.
वाणी बन गयी है सबके लिए हँसी का सामान..
बेटी
रचनाकार-जितेन्द्र कुमार सिन्हा
बेटी तू चमक आसमान में सूरज बन,
बेटी तू दमक जहान में हीरा बन,
आंसू आँखों में खुद के दर्द के लिए नहीं,
दूसरो के दर्द के लिए बहे,
तेरे खून का कतरा -कतरा
देश और देशवासियों के लिए बहे..
तुझे उड़ना सिखा रहा हूँ,
दुनिया कैसी है दिखा रहा हूँ,
बदल दे ऐसी ख्वाहिश नहीं,
पर पंख लगा के सपने पूरा कर,
इसलिए फर्ज निभा रहा हूँबेट.
सुन बेटी..
कुछ रोकेंगे,कुछ टोकेंगे,
कुछ क़दमो में काँटे बोयेंगे,
रुकना नहीं, झुकना नहीं
बन जा सूरज,दीपक बन बुझना नहीं.
सुन बेटी..
ममता का जादू है हाथों में,
बेबस न होना बातों में,
आइना जब भी देखना
सूरत नहीं हौसलों को देखना,
लंबे फासले है अभी जीवन के,
मुड़कर कभी न देखना.
टपकते पसीने,दर्द से ऐंठते देखता हूँ,
हर पल आशीष तुम्हे देता हूं,
लिख दे एक इतिहास हर पन्ने पर
स्याही तेरे पसीना हो.
वो किताब हमारे लिए नगीना हो..
शबरी
रचनाकार-प्रिया देवांगन 'प्रियू'
राम-राम की रटन लगाई.
उम्र बिता तब दर्शन पाई..
प्रतिदिन राहे फूल बिछाती.
राम दरश की आस लगाती..
ऋषि मुनि की वह सेवा करती.
भक्ति भाव से तन-मन भरती..
राम लखन के जब दर्शन पावे.
नैनो से अपने नीर बहावे..
शबरी कुटिया खुशियाँ आई.
राम लखन को भीतर लाई..
आँखों में विश्वास जगाई.
राम लखन की चरण धुलाई..
चख-चख मीठे बेर खिलाई.
शबरी माता भाग्य जगाई..
भक्ति देख ईश्वर है हारे.
राम दरश कर जीवन तारे..