छत्तीसगढ़ी कहानियाँ

आलसी किसान

रचनाकार-कन्याकुमारी पटेल

एक गांव म एक झन किसान रहय. ओ किसान के अड़बड़ कन गरूवा, भईसा अउ छेरी रहय. एमा ओखर एक जोड़ी भईसा रहय, जेखर से ओ ह अपन खेत के काम करय. अऊ एक ठन रहय बईला-गबरू. किसान ह गबरू के जोड़ी नईहे सोच के ओला काम म नई ले जावत रहिस. फेर ओखर करा भईसा घलो तो रहिस ओहि म अपन काम ल निपटा लेवत रहिस.

अब तो गबरू के अंतस म घलों कोड़िया पन अमा गे रहिस. ओ ह दिन-भर, बेर-कुबेरा खाय अऊ कोनो करा परे रहय. जम्मों जानवर मन ओला चेताय घलो

के ते हर निमगा आलस झन रहे कर गबरू, कोनो दिन तहुं ला काम करे ला पड़ सकथे. ये ला सुनके गबरू ह अंटियातीस अऊ कही देतिस के तुमन अपन ला देखव, मोर चिंता झन करव. अइसने बनेच दिन बितगे.

एक दिन किसान ह सोचथे के ए भईसा मन ला बेच के गबरू के जोड़ी लाना चाहि, अऊ गबरू ला घालो नांगर सिखाना चाहि.ये सोच के किसान ह गबरू के जोड़ी बिसा के ले अइस, अब गबरू के पोटा कांपे लगिस, अऊ जम्मो जानवर मन के गोठ ह घलो सुरता आवय. ओ दिन ले गबरू ल समझ आगे के हमला खाली बेरा आलस नई करना चाही, अपन देह ल फुर्ती रखना चाहि अऊ अवईया काम बर आघू रहना चाहि.

शिक्षा- ए किस्सा ले हमन ल सीख मिलथे के मोर काम नईहे सोच के आलस नई करना चाही,हमेशा काम बर आघु तियार रहना चाही.

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