अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

टीचर जी! मुझे भी देखिए

मम्मी मैं कल स्कूल नहीं जाऊँगी. प्रिया ने अपनी मम्मी से कहा. अरे, क्यों? तुम तो कभी स्कूल नहीं छोड़तीं. फिर क्या हुआ? मम्मी ने पूछा.

बस ऐसे ही. मेरा मन नहीं है. प्रिया बोली.

चलो ठीक है. लेकिन कोई समस्या हो तो बताओ. क्या तुमने अपना होमवर्क नहीं किया है? मम्मी ने प्रश्न किया.

होमवर्क कुछ था ही नहीं. तो क्या करती?

प्रिया के स्वर में कुछ चिढ़ झलक रही थी.

अच्छा चलो ठीक है. एक दिन की छुट्टी अपने मन से मना लो. मम्मी ने अपनी सहमति दे दी.

अगले दिन प्रिया स्कूल नहीं गई. दिनभर इधर-उधर अपना समय बिताती रही. वैसे प्रिया कभी भी स्कूल नहीं छोड़ती थी,कभी बीमार हो तो बात अलग है. पढ़ाई में उसकी रुचि थी. पाठ्यक्रम के अलावा भी किताबें पढ़ना उसे अच्छा लगता था. पर आज न जाने क्यों वह स्कूल नहीं गई. मम्मी को भी आश्चर्य हो रहा था.

शाम को मम्मी ने प्रिया से पूछा कि अगले दिन के लिए अपना स्कूल बैग तैयार कर लिया है या नहीं?

हाँ कर लिया है. प्रिया ने अनमने स्वर में उत्तर दिया.

मम्मी को लगा कि प्रिया का कल भी स्कूल जाने का मन नहीं है. जरूर कोई समस्या है. उन्होंने प्रिया से पूछा कि आखिर क्यों वह स्कूल नहीं जाना चाहती है?

अब प्रिया ने बताया कि स्कूल में आजकल उसका मन नहीं लगता है. शिक्षक अपना पूरा समय उन बच्चों को देते हैं जो पढ़ाई में कमजोर हैं. अर्धवार्षिक परीक्षा होने वाली है. मैं तो अपनी तैयारी पूरी कर चुकी हूँ, अब शिक्षक मुझसे कुछ पूछते भी नहीं हैं. मैं दिनभर स्कूल में खाली बैठी रहती हूँ, इससे मुझे बहुत बोरियत होती है.

इस कहानी को पूरी कर हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई उन्हें हम निचे प्रदर्शित कर रहे हैं.

शालिनी पंकज दुबे द्वारा पूरी की गई कहानी

प्रिया की बात सुनकर उसकी मम्मी ने उसे कुछ समझाया! मम्मी की बात सुनकर प्रिया खुश होकर स्कूल के लिए निकली. हालाँकि खुश होने के बावजूद उसके मन में कुछ प्रश्न भी उठ रहे थे. कंधे पर बैग लटकाए स्कूल के गेट पर पहुँचते तक उसका उत्साह फीका पड़ने लगा. वो सोच रही थी कि 'मम्मी को क्या पता स्कूल के बारे में?' कहीं मम्मी ने कहा वही सच हुआ तो?? तो, तो

'प्रिया'

जी टीचर जी!

'कल तुम क्यों नही आई थीं, क्या हुआ ?तबियत ठीक नही क्या?'

ये कहते हुए टीचर जी ने उसके माथे को स्पर्श किया व अंदर ले गयी.

इधर प्रिया की आँखों से टप-टप आँसु टपकने लगे. प्रिया ने मन ही मन सोचा कि अब उसे वही करना है जो उसकी मम्मी ने कहा है.

प्रिया जब घर लौटी तो मम्मी से जा लिपटी.

'मम्मा! आप ने बिल्कुल सही कहा! टीचर जी ने मेरे नही आने का कारण पूछा, उन्हें मेरी फिक्र है उनकी आँखों में मैंने देखा.'

'हम्म!'

और मैंने दूसरो की मदद की, जो मुझे याद था वो पाठ मैंने उनके सामने दोहराया जिनकी अर्धवार्षिक परीक्षा की तैयारी नही हुई थी. फिर कुछ को गणित के प्रश्नों को हल करने में मदद की,, मुझे बहुत मजा आया और,,,और टीचर जी मुस्कुरा कर मेरे पास आई और उन्होंने बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरा! ओह मम्मी आप ने तो सब ठीक कर दिया. जैसा आपने कहा,वैसा ही मैंने किया,अब तो कारण बताइये??

प्रिया की मम्मी ने एक कहानी के माध्यम से बताया कि जैसे माँ अपने सभी बच्चों को समान रूप से प्यार करती है उसी तरह शिक्षक भी. माँ का ध्यान हमेशा उस बच्चे की तरफ ज्यादा होता है जो छोटा हो या जिसे उसकी ज्यादा जरूरत होती है.

संतोष कुमार कौशिक द्वारा पूरी की गई कहानी

मम्मी प्रिया को समझा रही थीं कि शिक्षकों की भी समस्या है. सभी बच्चे पढ़ाई गई बातों को समझें,कोई भी बच्चा कमजोर ना हो. उसी समय फोन की घंटी बजी. प्रिया के शिक्षक ने चिंतित होकर फोन किया था कि कभी स्कूल नहीं छोड़ने वाली प्रिया स्कूल क्यों नहीं आ रही है ? कहीं बीमार तो नहीं है ? मम्मी ने शिक्षक को प्रिया के स्कूल नहीं जाने का कारण बताया. शिक्षक ने प्रिया से बात की और कहा कि बेटा तुम कल से स्कूल आओ तुम्हें स्कूल में बोरियत महसूस नहीं होगी. ना ही कोई शिकायत का मौका मिलेगा. समझाने पर कर प्रिया स्कूल आने के लिए मान गई.

अगले दिन प्रिया खुश होकर स्कूल गई. शिक्षक ने अपनी कक्षा के बच्चों को ग्रुप में विभाजित किया. हर ग्रुप में कमजोर बच्चों के साथ एक होशियार बच्चे को टीम लीडर बनाकर शिक्षण कार्य कराया. सभी ग्रुप को अलग-अलग कार्य दिया गया, सभी बच्चों ने अपने ग्रुप के साथ कार्य करने के पश्चात ग्रुप में किए हुए कार्यों को कक्षा में खुशी से प्रदर्शित किया. सभी बच्चे पूरे दिन एक दूसरे से सीखते हुए पढ़ाई में व्यस्त रहे. बच्चों द्वारा ग्रुप में किए हुए प्रदर्शन कार्यों को देख कर शिक्षक भी प्रसन्न हुए.

अब प्रतिदिन शिक्षक कभी खेल खिलाकर, कभी गीत कविता, कभी चित्रकारी करके तो कभी बाल सभा के माध्यम से आदि अलग-अलग विधियों का प्रयोग करके बच्चों को शैक्षणिक कार्य में व्यस्त रखने लगे हैं.अब होशियार बच्चे भी अपने साथी बच्चों को सिखाकर खुश होते हैं. अब किसी बच्चे को कोई शिकायत नहीं रही.

सभी बच्चों ने पूरी तैयारी के साथ अर्धवार्षिक परीक्षा दी. सभी बच्चों को अच्छे अंक प्राप्त हुए.

टेकराम ध्रुव 'दिनेश' द्वारा पूरी की गई कहानी

प्रिया की बातें सुनकर मम्मी सोचने लगीं कि यह इसी तरह स्कूल में बोरियत महसूस करती रही और स्कूल जाने से मना करती रही तो इसकी पढाई पर विपरीत प्रभाव हो सकता है. उसने परीक्षा की तैयारी पूरी कर ली है लेकिन घर पर रहकर वह पढ़ाई भी नहीं करेगी है, इधर-उधर समय बिताएगी. इसके लिए कुछ करना पड़ेगा.

अगले दिन मम्मी ने स्कूल जाकर प्रिया के टीचर से मुलाकात की और उन्हें प्रिया की समस्या के विषय में बताया.टीचर ने कहा-प्रिया तो पढ़ाई में अच्छी है, उसे ज्यादा समझाने की जरूरत ही नहीं पड़ती, इसलिए मैं उन बच्चो पर ज्यादा ध्यान दे रहा हूँ जो पढ़ाई में कमजोर हैं.

मम्मी ने कहा-टीचर जी, आप कमजोर बच्चों की तरफ ध्यान दे रहे हैं वो तो ठीक है लेकिन इसके चलते आपने प्रिया की तरफ से ध्यान हटा लिया है, इसलिए वह स्कूल में बोरियत महसूस करती है और उसका मन स्कूल में नहीं लग रहा है. आप कुछ उपाय सोचिए जिससे उसका मन स्कूल में लगा रहे.

टीचर ने कहा-ठीक कहा आपने, उसे स्कूल भेजिए हम उसकी बोरियत दूर करने का उपाय करेंगे.

अगले दिन प्रिया स्कूल गई.

टीचर ने कहा-आज हम कुछ सवाल हल करेंगे. फिर प्रिया की तरफ देखकर बोले क्या तुम इन सवालों को हल कर सकती हो

प्रिया? प्रिया के हाँ कहने पर टीचर ने कहा-बच्चो! आज प्रिया तुम लोगों को इन सवालों का हल समझाएगी, तब तक मैं दूसरे काम कर लेता हूँ

प्रिया ने अपने साथियों को एक-एक सवाल हल कर समझाए. जो बच्चे टीचर से प्रश्न पूछने से हिचकिचाते थे वे बेझिझक प्रिया से सब कुछ पूछ पा रहे थे. अब प्रिया को बोरियत महसूस नहीं हो रही थी क्योंकि उसकी बोरियत का इलाज हो चुका था.

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

आकाश और क्रिकेट

छठी कक्षा का छात्र आकाश क्रिकेट का अच्छा खिलाडी है. आसपास कहीं भी कोई मैच हो और आकाश वहाँ न हो ऐसा नहीं होता है. और जिस दिन टीवी पर कोई क्रिकेट मैच आ रहा हो उस दिन तो वह मैच के शुरू होने से लेकर समाप्त होने तक टीवी के सामने से हिलता तक नहीं. सारा ध्यान क्रिकेट पर होने के कारण पढ़ाई में आकाश पिछडता जा रहा है. इसबार के पालक बालक सम्मेलन में जब शिक्षक ने आकाश के माँ पिताजी को आकाश के पढाई में पिछड़ने की बात बताई तो वे दोनों चिंतित हो गये. रात को खाने के बाद पिताजी ने आकाश से उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा तो आकाश ने उत्तर दिया कि वह तो क्रिकेटर बनेगा और पढ़ाई में उसकी क़ोई ज्यादा रुचि नहीं है. पिताजी ने आकाश को समझाने की कोशिश की और कहा कि पढ़ाई भी तो जरूरी है. आकाश का उत्तर था कि आजकल तो सभी कहते हैं कि जीवन में वही करना चाहिए जिसमें रुचि हो. अगर मेरी रुचि क्रिकेट में है तो मैं अपना पूरा ध्यान क्रिकेट पर ही क्यों न लगाऊँ? क्रिकेटर बनने के लिए पढ़ाई करने की क्या जरूरत है? उसके लिए तो खेल का अभ्यास ही करना होगा.

अब इसके आगे आप अपनी कल्पना से इस कहानी को पूरा कीजिए और हमें माह की 15 तारीख तक ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा पूरी की गई कहानियों में से चुनी गयी श्रेष्ठ कहानी किलोल के अगले अंक में प्रकाशित की जाएगी.

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