मापन

इस अध्याय में हम वस्तुओं की लंबाई, आयतन, द्रव्‍यमान और ताप मापने की विधियों के प्रयोग करायेंगे और साथ ही समय के मापन की विधियां भी सीखेंगे.

लंबाई आदि जिन राशियों का हम मापन करते हैं उन्हें भौतिक राशियां कहते हैं. इन भौतिक राशियों के लिये पूरे विश्व के लिये एक ऐसा माप तैयार कर लिया गया है जिससे हम अन्य वस्तुओं की तुलना कर सकें. इसे इस राशि का मात्रक कहते हैं. उदाहरण के लिये लंबाई की माप के लिये एक स्टेंडर्ड मीटर का मात्रक बनाया गया जो पेरिस के अंर्तराष्ट्रीय मानक ब्यूरो में रखी हुई प्लेएटिनम-इरीडियम की एक छड़ पर बने हुए चिन्हों के बीच की दूरी है. नीचे के चित्र में पेरिस में बने हुए पहले मीटर को दिखाया गया है.

क्योंकि अलग-अलग तापमान पर धातु की छड़ की लंबाई अलग-अलग हो सकती है इसलिये अब मीटर की परिभाषा बदल कर यह कर दी गई है – ‘प्रकाश व्दारा एक सेकंड के 1299 972 458 वें भाग में जितनी दूरी तय की जाती है वह एक मीटर है’

इसी प्रकार सभी भौतिक राशि‍यों के मात्रक तय कर लिये गये हैं. जब हम किसी वस्तु का मापन करते हैं तो उसकी तुलना हम उसके मात्रक के साथ करते हैं. वस्तु का मापन हम मात्रक के गुणजों में करते हैं. जैसे हम कह सकते हें कि किसी वस्तु की लंबाई दो मीटर है अथवा किसी अन्य वस्तु की लंबाई आधा मीटर है.

लंबाई का मापन – लंबाई का मापन रूलर, स्केल अथवा पैमाने से करते हैं. यहां पर हमें बच्चों को यह बताना चाहिये कि लंबाई मापने के लिये जिस वस्तु का माप करना है उसके साथ स्केल को लगाकर माप किया जा सकता है. क्योंकि स्केल किनारे पर टूटा हो सकता है इसलिये माप करने के लिये स्केल के बीच से मापना चाहिये और प्रारंभ तथा अंत के पाठ्यांकों का अंतर ले लेना चाहिये. यदि वस्तु के साथ स्केल को नहीं लगाया जा सकता तो कंपास की सहायता से वस्तु को मापा जा सकता है. इसी प्रकार टेढ़ी-मेढ़ी वस्तु की लंबाई को धागे की सहायता से मापा जा सकता है. बच्चों से विभिन्न वस्तुओं की लंबाई का मापन स्केल, कंपास और धागे की सहायता से करवाएं.

द्रवों के आयतन का मापन – द्रवों के आयतन का मापन करने के लिये मापक सिलिंडर का उपयोग बच्चों को सिखायें. इसमें बच्चों को यह भी बताना होगा कि मापक सिलिंडर में द्रव की सतह कुछ गोलाई लिये होती है. पानी के लिये यह गोलाई नीचे दबी हुई और पारे के लिये ऊपर उठी हुई होती है. यदि गोलाई दबी हुई है तो मापन का पाठ्यांक गोलाई के सबसे नीचे की सीध में लेना होगा और यदि उठी हुई है तो सबसे ऊपर की सीध में.

नियमित आकार की ठोस वस्तुओं का आयतन – बच्चों को सूत्र समझाये कि लंबाई गुणित चौड़ाई गुणित ऊंचाई बराबर आयतन होता है. यह समझाने के लिये एक आसान गतिविधि कक्षा में कराई जा सकती है. बाज़ार से शुगर क्यूब (शक्‍कर के क्यूब आसानी से किसी भी किराने की दुकान में मिल जायेंगे क्योंकि यह चाय बनाने के काम आते हैं) खरीद लें. इन शुगर क्यूब्स को पास-पास रखकर विभिन्न आकार बनाये जा सकते हैं. यदि एक शुगर क्यूब को एक मात्रक माना जाये तो बच्चों को यह भी दिखाया जा सकता है कि किसी आकार को बनाने में लगने वाले शुगर क्यूब्स की संख्या लंबाई, चौड़ाई और मोटाई में लगने वाले शुगर क्यूब्स को गुणा करके निकाली जा सकती है.

अनियमित आकार की ठोस वस्तुओं का आयतन – हमें बच्चों को यह समझाना होगा कि आयतन का अर्थ होता है यह बताना कि कोई वस्तु कितनी जगह घेरती है. यदि किसी वस्तु को किसी द्रव में रखा जाये तो वह उतने ही द्रव को हटायेगी जितनी जगह वह धेरेगी. अत:किसी ठोस वस्तु का आयतन निकालने के लिये हम यह गतिविधि कर सकते हैं - एक मापन सिलिंडर में पानी भरकर आयतन पाठ्यांक लेकर नोट कर लें. इसके बाद उस ठोस वस्तु को मापन सिलिंडर में पानी में पूरी तरह डुबा दें. पानी की सतह ऊपर उठ जायेगी. पुन: पाठ्यांक लेकर आयतन ज्ञात करें. दोनो आयतनों का अंतर ही उस ठोस वस्तु का आयतन है जिसे पानी में डुबाया गया है.

द्रव्यमान का मापन – किसी वस्तु में पदार्थ की जितनी मात्रा होती है उसका द्रव्यमान उतना ही होता है. किसी वस्तु का द्रव्यमान जितना अधिक होगा वह उतनी ही भारी होगी. इसे हम गुरुत्वाकर्षण के सिध्दांत से समझ सकते हैं. जिस वस्तु का द्रव्यमान जितना अधिक होता है हमारी पृथ्वी उसे उतनी ही अधिक शक्ति से अपनी ओर खींचती है. इस कारण उस वस्तु का भार अधिक होता है. हम अलग अलग वस्तुओं को अपने हाथ में उठाकर उनके भार की तुलना कर सकते हैं. परन्तु भार की तुलना सही प्रकार से करने के लिये तुला का उपयोग किया जाता है. यदि दो वस्तुओं का भार एक बराबर होगा तो उन दो वस्तुओं को तुला के दो पलड़ों में रखने पर तुला समस्थानि‍क या बराबर होगी, क्योंकि तुला के दोनो पलड़ों को धरती एक बराबर शक्ति से अपनी ओर खींच रही होगी.

कपड़े टांगने के साधारण हेंगर में पलड़े लगाकर हम कक्षा में तुला बना कर दिखा सकते हैं. द्रव्यमान का मात्रक ग्राम होता है. द्रव्यमान को मापने के लिये ग्राम, किलोग्राम आदि के मानक भार बनाकर पहले से रखे जाते हैं और इन्हें तुला के एक पलड़े में रखकर दूसरे पलड़े में जिस वस्तु का द्रव्यमान मापा जाना है उसे रखकर वस्तु का द्रव्‍यमान निकाला जा सकता है. इसी प्रकार की तुला से बाज़ार में दुकानदार भी वस्तुएं तौलकर बेचते हैं. जब हमें शुध्द द्रव्यमान निकालने की आवश्यककता होती है तो हम भौतिक तुला का उपयेाग करते हें क्योंकि यह अत्यंत संवेदनशील होती है और इससे बहुत कम द्रव्यमान का माप भी किया जा सकता है.

समय का मापन – समय का मापन करने के लिये मात्रक एक सेकंड है. दरअसल हमारे पास समय को मापने का सबसे आसान साधन दिन और रात का होना है. जितने समय में धरती एक बार अपनी धुरी पर घूम जाती है उतने समय को एक दिवस कहते हैं (जिसमें एक दिन और एक रात का समय शामिल है). एक दिवस को 24 घंटों में, एक घंटे को 60 मिनट में तथा एक मिनट को 60 सेकेंडों में बांटा गया है. इस प्रकार एक दिवस में 24X60X60 इस प्रकार कुल 86400 सेकंड होते हैं. समय का मापन घड़ी व्दारा किया जाता है. घडियां अनेक प्रकार की होती हैं.

धूपघड़ी - क्योंकि समय का मात्रक दिन और रात के होने से बनाया गया इसलिये प्रचीन काल में घडियां भी सूर्य की सहायता से बनी. इन्हें धूपघड़ी कहते हैं. हम कक्षा में प्रयोग करके धूपघड़ी बना सकते हैं. एक कागज की प्लेट लेकर उसके बीचोबीच एक छेद बनायें. इसके बाद इस प्लेट के किनारे पर एक ओर 12 का अंक लिख दें. ठीक 12 बजे दोपहर को बच्चों को बाहर धूप में ले जायें और इस प्लेट को जमीन पर धूप में रखकर उसके बीच में बनाये गये छेद में एक पेंसिल लगा दें. अब प्लेट को इस प्रकार घुमाएं कि पेंसिल की छाया 12 के अंक पर पड़े. इसके बाद कुछ पिनों की सहायता से प्लेट को जमीन पर फिक्स कर दें. अब प्रत्येक घंटे बच्चों से बाहर जाकर पेंसिल की छाया जहां पड़ रही हो वहां पर प्लेट पर 1, 2, 3, 4 इस प्रकार अंक लिखने को कहें. धूपघड़ी तैयार हो गई. अब बच्चे प्रतिदिन इस धूपघड़ी में समय देख सकते हैं. बच्चों को समझाएं कि पेंसिल की छाया इस प्रकार क्यों घूमती है और हम उससे समय का मापन कैसे कर सकते हैं.

रेतघड़ी – यदि हम किसी बर्तन की तली में एक छोटा सा छेद करके उस बर्तन में रेत भर दें तो रेत छेद में से गिरने लगती है. रेत के गिरने की गति छेद के आकार पर निर्भर करेगी. किसी घड़ी की सहायता से हम माप सकते हैं कि रेत के पूरी तरह गिर जाने में कितना समय लगता है. रेत के पूरी तरह गिर जाने के बाद हम फिर से उस रेत को उठाकर उस बर्तन में भर सकते हैं और रेत का गिरना पुन: प्रारंभ हो जायेगा. इस प्रकार की घड़ी को रेतघड़ी कहते हैं. बाजार में इस प्रकार की रेतघड़ी मिलती है जिनमें कांच के दो बल्ब एक बहुत बारीक नली से जुड़े होते हैं. इसमें रेत भरी हुई होती है. जब हम इसे इस प्रकार रखते हैं कि रेत भरा बल्ब ऊपर हो तो उस बल्ब में से रेत नीचे के बल्ब में गिरने लगती है. इस प्रकार हम समय का मापन कर सकते हैं. जब पूरी रेत नीचे के बल्बे में गिर जाय जब इसे उल्टा कर दिया जाता है जिससे रेत भरा बल्ब फिर ऊपर हो जाये और रेत नीचे के बल्ब में फिर गिरने लगे. इसी प्रकार एक घड़े में छेद करके उसमें रेत के स्थान पर पानी भरकर जलघड़ी भी बनाई जा सकती है.

लोलक घड़ी – यदि किसी भारी वस्तु को एक धागे की सहायता से किसी कील से लटकाकर उसे हिला दिया जाये जो वह वस्तु काफी समय तक हिलती रहती है. इसी को लोलक कहते हैं. यदि ध्यान से देखा जाये तो लोलक को हर बार एक ओर से दूसरी ओर जाने में एक निश्चित समय लगता है. यदि हम यह माप लें कि इस प्रकार लोलक को एक ओर से दूसरी ओर जाने में कितना समय लगता है तो हम लोलक का उपयोग भी समय का मापन करने में कर सकते हैं. इसीलिये लोलक का उपयोग घडियों में किया जाता है.

आजकल बाज़ार में डिजिटल घडियां मिलती है जिनमे सुइयां नहीं होतीं बल्कि अंक लिखे होते हैं. इसलिये इनमें समय देखना आसान हो गया है.

ताप का मापन – ताप किसी वस्तु की उष्णता या गर्मी का माप है. ताप के मापन से हम बता सकते हैं कि कोई वस्तु कितनी गर्म अथवा ठंडी है. ताप का मात्रक डिग्री सेंटीग्रेड है. जिस ताप पर पानी जम कर बर्फ बन जाता है उसे शून्य डिग्री सेंटीग्रेड कहते हैं और जिस ताप पर पानी उबलने लगता है उसे 100 डिग्री सेंटीग्रेड कहते हैं. ताप का मापन तापमापी या थर्मामीटर से किया जाता है. हम बच्चों को कक्षा में एक तापमापी बनाकर दिखा सकते हैं और यह समझा सकते हैं कि ताप का मापन तापमान बढ़ने पर द्रव में प्रसार (expansion) होने के गुण के व्दारा किया जा सकता है.

एक प्लास्टिक की पारदर्शी बोतल में समान मात्र में पानी और मेडिकल स्पिरिट (rubbing alcohol) भर लें. इसके बाद बोतल में लाल रंग की कुछ बूंदे डालकर अच्छी तरह हिला लें जिससे बोतल में भरा गया मिश्रण लाल रंग का हो जाये और उसे देखने में आसानी हो. इस काम में सावधानी की आवश्यकता है जिससे बच्चे एल्कोहल से दूर रहें. बोतल को एक चौथाई ही भरें. अब एक पारदर्शी स्ट्रा को बोतल में इस प्रकार डालें कि वह बोतल की तली से कुछ ऊंचाई पर रहे परंतु पानी एवं एल्कोहल के मिश्रण में डूबा रहे. बोतल के मुंह को प्लास्टिसिन से सील कर दें. आपका तापमापी तैयार है. आप इस बोतल को यदि गर्म पानी के किसी बर्तन में रखेंगे तो आपको स्ट्रा के भीतर लाल रंग का मिश्रण ऊपर उठता दिखाई देगा. इसी प्रकार यदि आप इस बोतल को बर्फ से भरे किसी बर्तन में रखेंगे तो यह मिश्रण नीचे जाता दिखेगा. इसके बाद हम बच्चों को बाज़ार से खरीदा हुआ ज्वरमापी भी दिखा सकते हैं और यह बता सकते हैं कि इसमें पानी और एल्कोहल के मिश्रण के स्थान पर पारे का उपयोग किया जाता है.

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