छत्तीसगढ़ी बालगीत
हमर नवां साल हा
रचनाकार- जीवन चन्द्राकर'लाल', बालोद
लाल लाल फूल के मारे,
लथरत हावै,
सेम्हर परसा के डाल हा.
धनहा डोली मा,
मउर कस फभथे
खड़े गहूं के बाल हा.
चांदी के मौर पहिरे,
तरिया के जम्मो आमा हे,
डारा मा बासुरी बजावथे
जिहां नंदलाल हा.
हवा , पानी, जीव पौधा,
सब मा नवां जोश हे,
खुशी के रंग लेके आवथे,
हमर नावां साल हा.
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छत्तीसगढ़ी बाल कविता
रचनाकार- दीपक कंवर, कोरबा
बदख, कुकरी के चिंया,
दुनो बदीन सँग म गिंया.
घूमे ल जाय सँगे सँग,
रेंगे - दउड़े चंग - चंग.
बदख तरिया म घुमाय,
कुकरी बारी म खवाय.
एक झन बैरी कुकुर पिला,
सोचे राँध के खाहूँ चीला.
कुकर ह मारे बर कुदाय,
एक दूसर ल दुनो बचाय.
पानी कोती बदक भगाय,
बारी म कुकरी लुकाय.
कुकुर कभु नइ पाइस पार
मितानी के इही हे सार.
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पढ़ई तुंहर दुआर
रचनाकार- शांति लाल कश्यप, कोरबा
सुनव गुरुजी सुन लईका, बंद हे स्कूल के फईका.
नई होवन दन पढ़ई खईता, आनलाईन जुड़ के सब बईठा. सुन भईया.
नवा छत्तीसगढ़ गढ़ना हे अऊ, आनलाईन सब ल पढ़ना हे.
सी.जी.स्कूल डाट इन म जाके, सब ल इही म जुडना हे. सुन भईया.
एमा सबके सुविधा हे अऊ, कोई नहीं एमा दुविधा हे.
सब कक्षा के पुस्तक ले ले, सब ल इही म पढ़ना हे. सुन भईया.
तुंहर पारा जाना हे अऊ, मोहल्ला क्लास पढ़ाना हे.
सोशल डिस्टेंन्सिग अऊ भईया, चेहरा म मास्क लगाना हे. सुन भईया.
स्वेच्छा से जो पढ़ावत हे ओ, शिक्षा सारथी कहावत हे.
ए बिषम स्थिति म भईया, ज्ञान के अलख जगावत हे. सुन भईया.
जागौ लईका जागौ सियान, मिल जुल के हमन पढ़ान.
बुलटू के बोल ले भईया, हो ही हमर पढ़ई आसान. सुन भईया.
कोनो बात के दुविधा हे, मिसकॉल गुरुजी सुविधा हे.
नम्बर म मिसकॉल करौ जी, टरही सब असुविधा हे. सुन भईया.
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हमर बबा
रचनाकार- श्रीमती योगेश्वरी साहू, बलौदा बाजार
हमर बबा के अड़बड़ खरखर,
लकड़ी चिरय ओहा फरफर.
हमर गांव के बड़का सियान,
हमर बबा हर गजब सुजान.
हाथ म धरे एक गोटानी,
पाका चुंदी ओकर निशानी.
चक ले पहिरे रहिथे धोती,
नइ जावय वो कोनो कोती.
घर के बरवट ओकर डेरा,
खावय बासी तीनों बेरा.
गांव के जुन्ना बात बताथे,
हमर बबा ल सब डर्राथे.
जब होथें बड़का नियाय,
हमर बबा ल तभे सोरियाय.
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पनही
रचनाकार- श्रीमती योगेश्वरी साहू, बलौदा बाजार
पाँव म सुग्घर फबथे पनही,
नइ पहिरबे त काँटा गढ़ही.
साँप बिच्छी ले परान बचाथे
काँटा खुटी ले घलो बचाथे.
पाँव जरथे जब चट चट चट,
पहिरव पनही तुमन झटपट.
धुर्रा-माटी ल राखथे दुरिहा,
पनही राखव बाहिर कुरिया.
जावव जब भी बाहिर-बट्टा,
पहिनव पनही नोहय ठठ्ठा.
बीमारी ल दुरिहा भगाथे,
पनही घलो मान ल पाथे.
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नरवा
रचनाकार- श्रीमती योगेश्वरी साहू, बलौदा बाजार
हमर गाँव म बड़का नरवा
पानी पीये जेमा गरवा.
पानी सुग्घर फरियर-फरियर
खेती-खार सब हरियर-हरियर.
लइका लोग तउरे बर जाथे
कूद-कूद के गजब नहाय.
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छत्तीसगढ़ के बासी
रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु ', शिवरीनारायण
छत्तीसगढ़ के पेजहा-बासी
अमसूरहा आमा-अथान हे,
छप्पन भोग हर बिरथा लागे
जइसे इही म बसे परान हे.
छत्तीसगढ़ के चटनी-भाजी
जेमा छत्तीस ठन मिठास हे,
तरकारी हर सिट्ठा कस लागे
इहिच मा गजब के सुवाद हे.
छतीसगढ़ के बरी-बिजौरी
चेंच-भाजी के अउ साग हे,
डुबकी-घारी, निचट मिठाथे
लागेथे छप्पन भोग सुवाद हे.
छत्तीसगढ़ के नान्हे-लइका
राम-कृष्ण , अउ बलराम हे,
इहाँ के सियान बाबू-भईया
अउ वसुदेव-दसरथ समान हे.
छत्तीसगढ़ के मोर गँवई-गाँव
लागे अयोध्या-गोकुल-धाम हे,
इहाँ के मंदिर देव-देवाला
जइसे लागथे चारो-धाम हे.
छत्तीसगढ़ के नदिया-नरवा
गंगा-जमना कस पावन-धार हे,
इहाँ के तरिया घाट-घठोंधा
देवता के चरण-कुंड दुवार हे.
छत्तीसमगढ़ के तुलसी-चौरा
सालिग देव ह विराजमान हे,
बिहना-संझा होवय आरती
लागय अंगना तीरथ-समान हे.
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गांव ला झन भुलाबे
रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू, धमतरी
सहर म जाके तै गांव ल झन भुलाबे,
बर पिपर के तै छाव ल झन भुलाबे.
लिम बमबूर के मुखारी करे ल झन भुलाबे
दाई ददा के पाव परे ल झन भुलाबे.
सहर म जाके गांव के माटी ल झन भुलाबे,
नान्हेपन के खेल भाउरा बाटी ल झन भुलाबे.
सिलबत्ता के पताल चटनी ल झन भुलाबे,
चीला, अंगाकर रोटी ल खाय ल झन भुलाबे.
अपन भाखा म गोठियाय ल झन भुलाबे,
सहर म जाके तै गांव ला झन भुलाबे.
तरिया म चिभोर के नहाय ल झन भुलाबे,
अमली के लाटा ल खाय बर झन भुलाबे.
गवई गांव के तै बेटा गांव ल झन भुलाबे,
संगी संगवारी के तै नाव ल झन भुलाबे.
अनपढ़ दाई ददा ला गवार झन समझबे.
अपन भाखा अउ संसकार ल झन भुलाबे,
सहर म जाके तै गांव ला झन भुलाबे.
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गरमी काबर आथे
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित', भाटापारा
दाई काबर आथे गरमी?
बरतै एक न येहा नरमी.
सूरुज तातेतात उछरथे,
धरती चटचट नँगते जरथे.
काबर झरफर झाँझे झोला?
चिटिक सुहावय नइ तो मोला.
काबर ये नौटप्पा आथे?
अगिन बरोबर देंह जराथे.
घाम सहय तब आमा पाकय,
मीठ कलिंदर तात म पागय.
रुखराई नइ धीरज खोवय,
सहिके नवा पान उलहोवय.
बात सुजानिक दाई कहिथे,
जौन पोठ गरमी ला सहिथे.
उही सरी सुख, जिनगी पाथे,
छँइया बइठे बड़ पछताथे.
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