समस्त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्कृष्ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.
कोरोनायोध्दा गीता शरणागत
गीता शरणागत के पति स्व. रविन्द्र शरणागत गायत्री नगर रायपुर के प्राइवेट स्कूल में मैथ्स सब्जेक्ट में लेक्चरर की पोस्ट पर कार्य कर रहे थे. एक दिन क्लास लेते-लेते अचानक सांस लेने में तकलीफ होने से उनकी तबीयत बिगड़ गयी. कोरोना के कारण हॉस्पिटल में जगह नहीं मिल पाई और 13.09.2020 को उनका निधन हो गया. इसके बाद भी श्रीमती गीता शरणागत पूरी लगन और मेहनत से शिक्षा दान के कार्य में लगी रहीं. उन्होने तय कर लिया था कि कोरोना के लॉकडाउन के बावजूद वे अपने छात्रों से दूर नही रहेंगी. यही सोचकर उन्होने सर्वप्रथम बच्चों का वाट्सएप ग्रुप बनाकर, खुद के ऑडियो, वीडियो और पीपीटी तैयार करके शैक्षिक सामग्री ग्रुप में बच्चो के साथ शेयर करना प्रारंभ कर दिया. फ़ोन कॉल, एवं वीडियो कॉल व्दारा वे लागात बच्चो की अकादमिक समस्या का निदान करती रहीं.
जब शासन ने ऑनलाइन कक्षायें प्रारंभ कीं, तो उन्होने देखा कि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे क्लास में नही जुड़ पा रहे हैं. इसके मुख्य कारण नेटवर्क और डेटा की कमी, मोबाइल फोन का पालकों के पास होना, स्मार्ट मोबाइल न होना, मोबाइल फोन खराब होना इत्यादि थे. अपनी सूझबूझ से उन्होने सभी पालको से फ़ोन व्दारा संपर्क किया और शाला समिति के सदस्यों तथा गांव के सरपंच की सम्मति से गांव के सामुदायिक भवन में ही बच्चों की ऑफलाइन पढ़ाई शुरू की. धीरे-धीरे उनका यह नवाचार पूरे प्रदेश में फैल गया. गांव में कोरोना का केस आने पर कक्षा कुछ समय के लिए बंद कर दी गई, परन्तु कुछ दिनो बाद पुन: प्रारंभ हो गई.
गांवो में उन्होने ऐसे युवाओं की खोज की जो स्वयं पढ़े-लिखे थे और गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिये तैयार थे. इन्हें शिक्षा सारथी का नाम दिया गया. गोपी और विक्की जो एम.एस.सी. की पढ़ाई पूरी करने के बाद गांव में ही रह रहे थे, शिक्षा सारथी बनकर कर बच्चों को पढ़ाई में मदद करने लगे.
जैसे ही कोरोंना का आतंक कम होता था वे ऑफलाइन क्लास शुरू कर देती थीं. ऑफलाइन क्लास में रुचिकर माहौल बनाने के लिये विभिन्न प्रकार की गतिविधियां करवाई जाती थीं. पढ़ाई के साथ वेस्ट मटेरियल से क्राफ्ट सामग्री, सजावट की वस्तुएं, झूमर, मॉडल इत्यादि बनाना सिखाया गया.
कोविड महामारी में पति के निधन के पश्चात वे रायपुर से स्कूटी व्दारा गरियाबंद जाकर ऑफलाइन क्लास लगातार लेती रहीं. जिला प्रशासन ने उनके शिक्षा के प्रति जुनून को देखते हुए उन्हें संकुल समन्वयक के कार्य के लिए चुना. आज वे पूरे संकुल को बेस्ट बनाने एवं हर बच्चे को पढ़ना, लिखना सिखाने का लगातार प्रयास कर रही हैं.
अस्वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्वयं उनका सत्यापन नही किया है.