उत्‍कृष्‍ट शिक्षकों की कथाएं
समस्‍त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्‍कृष्‍ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्‍वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.

अर्चना शर्मा के बड़े काम

श्रीमती अर्चना शर्मा 24 जून सन 2005 से शिक्षा के कार्य में संलग्न हैं. खिसोरा और मुड़पार जैसे ग्रामों में नागरिकों में आर्थिक कमजोरी के कारण पलायन की प्रवृत्ति देखी जाती है जिसे अर्चना जी ने अपने लिये मुख्य चुनौती माना. यहां के लोग खेती के तुरंत बाद अपने परिवार के पालन पोषण हेतु किसी दूसरे शहर में सपरिवार चले जाते थे. कुछ ऐसे भी छात्र थे जो अपने माता-पिता के साथ न जाकर दादा-दादी के पास रह जाते थे, किंतु वे भी भय के कारण विद्यालय नहीं आते थे. उनका संबंध विद्यालय से टूट सा रहा था, जिससे एक ही स्तर के छात्रों के बीच समझ की खाई बन रही थी. अंग्रेजी भाषा बच्चों के परिवेश की भाषा न होने के कारण उनके उसे पढ़ पाना, समझ पाना और लिख पाना संभव नहीं था. यह असमर्थता भी उन्हें विद्यालय से दूर ले जा रही थी. इस समस्या का समाधान भी शिक्षक को ही करना था.

इन सभी समस्याओं के समाधान हेतु सबसे पहले अर्चना जी ने शिक्षा की मुख्यधारा से बच्‍चों को जोड़ने के लिए घर-घर जाकर अभिभावकों से भावनात्मक जुड़ाव स्थापित किया. उन्‍होने छात्रों को उनकी जरूरत की सामग्री जैसे, टाई, बेल्ट, जूता, मोजा, स्वेटर, कॉपियां व लेखन सामग्री उपलब्ध कराना प्रारंभ किया. समय-समय पर उन्‍हें कुछ गैर सरकारी संस्थाओं, जैसे अमेरिका से सत्यमेव फाउंडेशन व मारवाड़ी युव माहिला मंच ने भी सहयोग प्रदान किया.

शाला में छात्र भयमुक्त होकर आएं और मनोरंजक वातावरण में सभी शिक्षण अधिगम को सरलता पूर्वक प्राप्त कर सकें, इसके लिये उन्‍होने टी.एल.एम. निर्माण, विषयवस्तु संबंधित गीतों का सृजन, खेल गतिविधियों का आयोजन ,बेस्ट मां पुरस्कार देना, महापुरुषों की जयंती के आयोजन, वर्कशीट का निर्माण, मासिक प्रोत्साहन कार्यक्रम, अभिभावकों का सम्मेलन आदि किया. इससे न केवल छात्र प्रति दिवस नियमित शाला आने लगे, अपितु खेल-खेल में सीख कर सरलतापूर्वक सभी दक्षताओं और कौशलों को प्राप्त करने लगे. माताओं और अभिभावकों का संपर्क अनवरत विद्यालयों से बढ़ रहा है. अब वे स्‍कूल की सभी गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.

अब अर्चना जी के विद्यालय में निजी विद्यालयों में पढ़ने वाले व अन्य ग्राम के छात्र भी आकर्षित हो रहे हैं. साथ ही ऐसे छात्रों का दाखिला भी विद्यालय में कराया गया है जो 8 वर्ष की आयु तक किसी भी विद्यालय में नहीं गए थे. इस तरह उनके विद्यालय की दर्ज संख्या लगातार बढ़ रही है.

अर्चना जी का कहना है कि उन्‍होने खुद से इस बात का वादा किया है कि चुनौती चाहे कितनी भी बड़ी हो, वे अपने पथ पर अविचल डटी रहेंगी.

अस्‍वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्‍वयं उनका सत्‍यापन नही किया है.

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