उत्‍कृष्‍ट शिक्षकों की कथाएं
समस्‍त गुरुजनों के चरणों में वंदना करते हुये में आज से शिक्षकों के उत्‍कृष्‍ट कार्यों की कथाएं कहना प्रारंभ कर रहा हूं. शिक्षकों के इन कार्यों से मैं तो अभिभूत हूं, ही, मुझे विश्‍वास है कि आप सब भी प्रभावित होंगे. मुझे इस बात की भी आशा है कि शिक्षक भी इन कहानियों को पढ़कर एक दूसरे से सीख सकेंगे.

श्रीमती रजनी शर्मा के शैक्षणिक नवाचार और बस्तर की खुशबू

रजनी शर्मा ने सन 1987 में घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर के मद्देड़ गांव से शासकीय सेवा की. यह गांव ज़ि‍ला मुख्‍यालय जगदलपुर से लगभग 400 किलोमीटर की दूरी पर है. इस स्कूल में मात्र 5 बच्‍चे ही थे. अन्‍य सभी बच्‍चे स्कूल आने के बजाय मछली पकड़ने जाते थे. इस चुनौती से निपटने के लिये रजनी जी ने वहां की स्थानीय बोली में संवाद करने के लिए हल्बी-मुरिया बोली सीखी. इसके बाद विभिन्‍न स्‍थानों पर पदस्‍थाना के दौरान कभी भी चुनोतियों के आगे हथियार नही डाले.

रजनी जी ले लगभग 21 शाला त्यागी छात्राओं को व्यावसायिक विभाग के गारमेंट मेकिंग में प्रवेश दिलवाया है, जिसमें से दो आज फैशन डिजाइनिंग में आत्मनिर्भर हो चुकी हैं. कोरोना काल में बाल मनोविज्ञान पर आधारित 23 पाठ एस.सी.ई.आर.टी. रायपुर में बुल्टु के बोल एप के लिए रिकॉर्ड करवाये, जिनमें हल्बी व छत्तीसगढ़ी भाषा के सरल प्रयोग से बस्तर और छत्‍तीसगढ़ के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे लाभान्वित हुए. कोरोना काल में ही बस्तर की गोदना कला का प्रयोग करते हुए मास्क व दास्तानों का निर्माण तथा छात्राओं को प्रशिक्षण देकर मास्क बनाओ प्रतियोगिता में भी उन्‍हें विशेष पुरस्कार मिला है. 2019 में ही लोक कला महोत्सव में बस्तर के टाइगर ब्याय चेंदरू और शेर के शावक टेंबू को छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खिलौने - पुतरा-पुतरी के माध्यम से प्रस्तुत किया. यह संकुल, ब्लॉक, जिला व राज्य में प्रथम स्थान अर्जित कर नेशनल लेवल तक जा पहुंचा है. सन में 2019 में बस्तर की प्राचीन गोदना कला जो कि पारंपरिक श्रृंगार तो है ही, साथ ही टैटू की तुलना में नैसर्गिक व हाइजीनिक होता है, पर बनाया गया प्रोजेक्ट राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस तिरुअनंतपुरम के लिए चयनित हुआ.

छत्तीसगढ़ के स्टोरीविवर वेबसाइट पर रजनी जी की बाल मनोविज्ञान व बस्तर की संस्कृति पर आधारित लगभग 100 कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं. कोरोना काल में लगभग 100 से अधिक ऑनलाइन क्लास का संचालन भी मेरे द्वारा किया जा चुका है. उन्‍होने बस्तर पर 14 किताबें लिखी हैं. इनमें से चार किताबें एस.सी.ई.आर.टी. के व्दारा शालेय शिक्षा विभाग के पुस्तकालय के लिए चयनित हुई हैं. लगभग 22 राज्यों की महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में सैकड़ों कहानियां और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं. सीजी पोर्टल में जिले के - हमारे नायक कालम में भी रजनी जी को स्थान मिला है.

रजनी जी ने खिलौने व्दारा शिक्षण के तहत लगभग 40 सशक्त महिला पात्रों को पुतरा-पुतरी के माध्यम से शिक्षण के लिए निर्मित है और प्रयोग में भी लाया हैं. रजनी जी को 40 से अधिक राज्य व राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं, जिनमें से मुख्यमंत्री गौरव अलंकरण, शिक्षा श्री, अति विशिष्ट राज्यपाल पुरस्कार, बलदेव प्रसाद स्मृति पुरस्कार, पुनर्नवा पुरस्कार, उत्तराखंड का सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार, ग्लोबल टीचर अवार्ड आदि प्रमुख हैं.

रजनी जी ने बस्तर से विशेष लगाव होने के कारण शाला परिसर में ही कबाड़ से जुगाड़ शैक्षणिक वाटिका का निर्माण कराया है, जिसमें बस्तर की कोटमसर गुफा (जहां अंधी मछलियां पाई जाती हैं), बस्तर का घोटुल, बस्तर के समाधि स्तंभ, बस्तर का संविधान गुड़ी, दंतेवाड़ा का ढोलकल गणेश आदि की रैप्लिका के व्दारा छात्राओं को शानदार शिक्षण दिया जा रहा है. वे हल्बी और छत्तीसगढ़ी में नाटकों व्दारा शिक्षण भी लगातार कराया दे रही हैं. राजनीति विज्ञान के लिए उनका रेल गाड़ी का मॉडल भी चर्चित रहा है. बस्तर के कोसे पर गोदना कला की उनके व्दारा निर्मित साड़ियां राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रही हैं.

अस्‍वीकरण: मैने यह कहानियां संबंधित शिक्षकों एवं उनके मित्रों व्दारा दी गयी जानकारी के आधार पर लिखी हैं, स्‍वयं उनका सत्‍यापन नही किया है.

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