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दरिया-ए-अश्क

बादल की तरह वो मेरी किस्मत पे छा गए,
दरिया-ए- अश्क ग़म के साथ मुफ़्त आ गए.

उदासियों ने भी मेरा दामन पकड़ लिया,
लगता है सबके अश्क, मेरे हिस्से आ गए.

दिल और दिमाग की फिजूल रस्साकशी में,
हम अर्श से गिरे, फर्श में समा गए.

दरियादिली है आपकी कहते थे जो कभी,
दुश्मन की आस्तीन में पनाह पा गए.

ना दोस्त हैं यहाँ, ना कोई, रक़ीब है,
इस झूठ और फरेब से हम तंग आ गए.

यह आशियाना भी किसी कफ़स से कम नहीं,
जिद थी परवाजे फलक की, उड़ना भुला गए.

है ताइरे- असीर ‘अणिमा’ यह हौसले,
हर-सू बचा ना जोश शरारे बुझा गए.

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