19
फिजाँ बदल गई
रफ़ाक़त बनाते उनसे यह ज़ुर्रत नहीं हुई,
फिर उनसे यह कहने की भी हिम्मत नहीं हुई.
अंजाम तक तो ले गई परवाज-ए-मुहब्बत,
मौका-ए-दस्तूर असीरी सी चुभ गई.
बेखौफ़ बेधड़क निशेमन सजा लिए,
उनकी वो बेरुखी मेरी किस्मत बदल गई.
गुलो-गुलाब चुनके यह चमन सजाया था,
खुशियां कब खाक बन गई खबर नहीं हुई.
यह अहद था कि ना कभी उनको भुलाएंगे,
वह रूबरू थे निगोड़ी आँखें यह मुंद गईं.
अब सोंचते हैं ‘अणिमा’ दुआओं में सही,
वो याद रखें कह दूँ पर फिजाँ बदल गई.