12
यह जीवन बहता पानी है
पतझड़ में जब बूढ़े पत्ते, सूखेंगे झड़ जाएंगे,
तब नई कोंपलें फूटेंगी, और नए फूल खिल जाएंगे.
फिर नई बहारें... नई उम्मीदें... नए रंग दिखलाएंगे,
यह जीवन बहता पानी है, कल में जो थे गुम जाएंगे.
है यही सत्य, सनातन है, हम भी इक दिन खो जाएंगे,
नव-जीवन में रंगत भरकर, खुशबू अपनी दे जाएंगे.
ले बंधी मुट्ठियाँ जन्मे थे, पर हाथ पसारे जाएंगे,
ना लेकर हम कुछ आए थे, ना ही कुछ लेकर जाएंगे.
जो कुछ जिससे छीना झपटा, सब यहीं छोड़ कर जाएंगे,
जिस पंच तत्व से निर्मित हम, उसमे विलीन हो जाएंगे.