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अल्फ़ाज़

सफ़र पर निकालने के बाद क्यूँ मेरा हाल पूंछते हो?
हाशिये पे रखते हो, और कहते हो कि याद करते हो.

मुनासिब समझो तो!! हमें भी, तवज्जो दे देना,
कुछ पल फुरसत के हमारे नाम भी कर देना.

साथी ना कहो दोस्त भी नहीं, रक़ीब ही समझ करो,
कम से कम किसी बहाने से मेरी याद कर लिया करो.

अब भी कुछ नमक बाकी है तेरी- मेरी दोस्ती के बीच ऐ यार,
इतनी भी क्या किफ़ायत है की होने नहीं देते अपने दीदार!!

चलो बहुत हुआ... अब और नहीं छेड़ेंगे तुम्हें,
मुस्कुराहट तो झेल नहीं पाते, आंसू... क्या झेलेंगे यह लम्हे.

तेरी और मेरी झुर्रियों में बहुत सी दास्ताने छिपी-सिमटी हैं,
ये दिखाने की चीज़ नहीं हैं, यह तो दौलते-बेशकीमती हैं .

अभी रुखसत कर दे फिर मिलेंगे यह वादा है...
बाँट लेंगे आधा-आधा, ना तेरा कम हो, ना मेरा समय ज़्यादा है.

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