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छलावा

जो तारीखों में बंद हुए वो किस्से... फिर से ना खोलो,
बस अपनी जेबें भरने को तुम, भावनाओं से ना खेलो.

यह माना यह सब दिखलाकर तुम बड़े इनाम बटोरोगे,
पर कौमी हिंसा को कब तक, तुम यूं ही और निचोड़ेगे.

उन दर्दनाक चीखों को तुम, परदे पर जीवंत दिखलाते,
गुजरात, गोधरा, काश्मीर चित्रित करके क्या सिखलाते?

खूनी धब्बों से देश सना हर एक ने उसको धिक्कारा,
कौमी हिंसा और लूट-पाट अब तो इससे हो छुटकारा.

क्या निर्वासित जो लोग हुए उनको घर वापस पहुंचाया?
सत्ता में बैठे लोगों ने... बस जनता को है बहकाया.

सब बिके हुए हैं लोग यहाँ, सभी तो यहाँ लाभार्थी हैं,
हर बार चुनावों में उठती यहाँ प्रजातन्त्र की अर्थी है.

औरों के कहने पर जब तक, तुम कदम बढ़ाते जाओगे,
वो तो आगे बढ़ जाएंगे, तुम दल-दल में गड़ जाओगे.

अब तो जागो अब तो चेतो, अब और छलावा ना सहना,
सबसे मिलकर ये देश बना सबको ही मिलकर है रहना.

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