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निशान

अगर पात्र में पानी रक्खो, वह भी निशां छोड़ता है...
जीवन में मिलने वालों को कोई कहाँ भूलता है.

कुछ निशान गहरे होते हैं, कुछ ज़िद्दी कुछ रह जाते,
यह मिट जाएँ इस कोशिश में, पात्र ही कभी घिस जाते.

नया लेप चढ़ा कर देखो, शायद कुछ दिन छिप जाए...
पर उतरे जो नया लेप तो नीचे दाग नजर आए.

गहरे पड़े निशानों को तुम, ऐसे मिटा ना पाओगे,
जतन करोगे जितना भी, उतना उनको गहराओगे.

बस खामोशी एक दवा है, ज़ख्म नहीं कुरेदना, तुम...
ना बहलाना ना सहलाना घाव नहीं छेड़ना तुम.

समय के साथ ही ढल जाएगा ऐसा भी हो जाता है,
गौर से उसको देखोगे तो हल्का नज़र वो आता है.

यही सत्य सनातन ‘अणिमा’ घाव सभी दे जाते हैं...
पर घावों को भरने वाले विरले ही मिल पाते हैं.

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