लेख

भारत में वृद्धाश्रमों की जरूरत क्यों?

रचनाकार- एड. किशन सनमुखदास भावनानी

Vriddhaashram

भारतीय संस्कृति और सभ्यता, रीति रिवाज, त्यौहार, आध्यात्मिक आस्था, संयुक्त परिवार हजारों साल पुराने और जग प्रसिद्ध हैं. परंतु कुछ सालों से भारत में कुछ वाक्यांश सुनते आ रहे हैं कि, गया वह जमाना. जमाना बदल गया है. किस जमाने में जी रहे हो? इत्यादि.

साथियों बात अगर हम अपने माता-पिता दादा-दादी के प्रति अपनी फ़र्ज अदायगी और भारतीय संस्कृति के सभ्यतागत मूल्यों की करें, तो आज के नए पाश्चात्य संस्कृति से ओतप्रोत ज़माने में अपने बड़े बुजुर्गों के मान-सम्मान, सभ्यतागत फ़र्ज अदायगी, जवाबदारी से हमारे बहुत से युवा पीछे हटते हुए दिखाई दे रहे हैं जिसका प्रमाण वृद्ध आश्रमों की बढ़ती हुई संख्या है.

आखिर वृद्ध आश्रमों की जरूरत भारत जैसे सांस्कृतिक सभ्यतागत धन्य देश में क्यों ?

साथियों बात अगर हम युवाओं और माता-पिता बुजुर्गों के बीच बढ़ती अनबन, और वृद्ध आश्रमों में वृद्धों की बढ़ती संख्या की करें तो इसके चार मुख्य कारण हैं -

(1) युवाओं का नौकरी के लिए अपने पैतृक स्थान से बाहर जाकर अन्य बड़े शहरों मेट्रो सिटीज, विदेशों में सेट होना.

(2) पाश्चात्य संस्कृति का युवाओं पर असर.

(3) भारतीय संस्कृति, सभ्यतागत मूल्यों की जानकारी की कमी.

(4) माता-पिता व बुजुर्गों के वर्तमान समय के विचारों में ढलने की कमी.

साथियों बात अगर हम पहले कारण की करें तो आज हर गाँव, छोटे बड़े नगर के युवक-युवतियाँ बाहर जाकर नौकरी करना चाहते हैं. इस स्थिति में अधिकतम परिणाम यह देखने को मिले हैं कि युवा एक बार अगर बाहर गया, चाहे वह देश में या विदेश में, तो उसके वापस अपने पैतृक स्थान पर लौट आने की उम्मीद कम ही रहती है, और संयुक्त परिवार से टूट की ओर कदम बढ़ते हैं. वे माता-पिता घरबार के लिए शुरू में खर्च भेजते हैं बाद में स्थिति विपरीत हो जाती है, ऐसा मेरा मानना इसलिए है, क्योंकि मैंने अपने नगर में ही अपने आसपास कुछ परिवारों में स्थिति देखी है जिनके बच्चे आज बड़े शहरों में, विदेशों में जॉब कर रहे हैं और यहाँ माता-पिता की स्थिति अनुकूल नहीं है समझने वालों के लिए इशारा काफी है.

साथियों बात अगर हम दूसरे कारण की करें तो आज युवाओं को कृत्रिम संसाधनों पर व्यय, प्यार व्यार, का भूत दिमाग में सवार रहना है. हालांकि प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है पर माता-पिता को दुखी कर यह सब करना उचित नहीं. जुआ, सट्टा, मदिरा इत्यादि आदतों से ग्रसित होने के कारण माता-पिता, घर वालों के लिए स्थिति विपरीत हो जाती है और संयुक्त परिवार टूट की ओर कदम बढ़ाता है जिसके उदाहरण हम सब अपने आसपास देख सकते हैं यह भी हमारे नगर में अनेक स्थानों पर हुआ है जिससे गरीब से लेकर अमीर तक ग्रसित हैं.

साथियों बात अगर हम तीसरे कारण की करें तो आज अनेक युवाओं को भारतीय संस्कृति, सभ्यतागत मूल्यों की जानकारी तथा संयुक्त परिवार का महत्व पता नहीं है. जिसके कारण उनको श्रवणकुमार से प्रेरणा लेने में कठिनाई महसूस हो रही है, जिसके लिए हम सबको मिलकर हर जिला स्तर पर, सरकारी तंत्र के साथ मिलकर सामाजिक संस्थाओं को जिला स्तर पर एमओक्यू कर भारतीय संस्कृति, सभ्यतागत मूल्यों का जन-अभियान चलाकर युवाओं को जनजागरण में शामिल करना ज़रूरी है.

साथियों बात अगर हम चौथे कारण की करें तो आज ज़माना वास्तव में बदल गया है उसके अनुसार अब बुजुर्गों माता-पिता को भी बच्चों की खुशियों में ख़ुश रहने, थोड़ा त्याग करना समय की पुकार है!! परंतु खुद्दारी, सम्मान, आत्मसम्मान और अपनी स्थिति को कभी नहीं खोने देना होगा.

साथियों बात अगर हम माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा दिनांक 15 जनवरी 2022 को एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो उन्होंने एक परिवार में खुद से छोटे सदस्यों का मार्गदर्शन करने और सलाह देने के संबंध में बड़ों की निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि अंतरपीढ़ीगत जुड़ाव मूल्य प्रणाली को बचाने और इसे आगे बढ़ावा देने में सहायता करती है.

उन्होंने आज संयुक्त परिवार व्यवस्था और बड़ों का सम्मान करने की परंपरा को मजबूत करने का आह्वान किया, जो भारत के सभ्यतागत मूल्यों के मूल पहलू हैं. उन्होंने भारतीय संस्कृति में त्योहारों के महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि आज के युवाओं को प्रकृति की उदारता को मनाने, परिवारों को एक साथ लाने और समाज में शांति व सद्भाव लाने में अनेक त्योहारों की विशिष्टता को समझना चाहिए.

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएँगे कि आखिर वृद्धाश्रम की जरूरत भारत में क्यों? बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना भारतीय संस्कृति और सभ्यतागत मूल्यों के मुख्य पहलू हैं तथा युवाओं को भारतीय सभ्यता, संयुक्त परिवार सहित संस्कृति त्योहारों और आध्यात्मिक आस्था के प्रति एक अभियान चलाकर जागृत करना तत्काल ज़रूरी है.


*****

व्यक्तित्त्व है व्यक्ति का आईना

रचनाकार- अशोक पटेल 'आशु'

aaina

ऐसा माना जाता है कि व्यक्तित्व ही व्यक्ति का आईना होता है. चेहरे से व्यक्ति की आदतें, स्वभाव, आचार-विचार,रहन-सहन,उसकी संस्कृति,सभ्यता,ये सारी चीजें झलकती हैं.

व्यक्ति की सुंदरता उसकी सोच आचार-विचार और चरित्र से होती है, न कि उसके बाहरी आवरण अर्थात चेहरे से.

जिस व्यक्ति का चाल-चरित्र और आचरण अच्छा होता है उसका व्यक्तित्व महान बन जाता है और यह व्यक्तित्व आईने की तरह साफ झलकता है.

व्यक्ति का व्यक्तित्व वह महान गुण है जो यूँ ही नहीं आ जाता. इसके लिए हर व्यक्ति को महापुरुषों के आदर्श, उनकी जीवनी उनके प्रेरक प्रसंग,उनके आदर्श को आत्मसात करना पड़ेगा.

उच्च आदर्शों वाले साहित्य वेद-पुराण, गीता भागवत,रामायण,उपनिषद आदि का पठन- पाठन करना पड़ेगा. उनके आदर्शों को उनके महान चरित्रों को अंगीकार करना पड़ेगा. उनके बताए गए, आदर्शों पर चलना पड़ेगा.

व्यक्ति और व्यक्तित्व दोनों अलग-अलग चीजें हैं. दोनों में बहुत अंतर है. व्यक्ति मात्र हाड़-मांस का पुतला है. जो शैशव से ही ऐसे उच्च आदर्शों को प्राप्त करने के लिए कभी आश्रमों में तो कभी पाठशाला में तो कभी उच्च विद्यापीठों में जाता है. तब कहीं जाकर वह हाड़-मांस का पुतला उच्च ज्ञान की शिक्षा और संस्कार प्राप्त कर संस्कारवान बनता है.तभी उसके व्यक्तित्व में निखार और सौंदर्य आ पाता है.

अब बात करते हैं व्यक्तित्व की. व्यक्तित्व व्यक्ति का वह स्वरूप है जो ज्ञान प्राप्त करने के बाद उसके अंदर आमूल-चूल परिवर्तन लाता है. जिसमे व्यवहारिकता,सांस्कृतिक सौंदर्य,और आध्यात्मिक गुणों का विकास होता है और वह मन- मस्तिष्क से परिपक्व हो पाता है. उसके बाहरी शरीर की सुंदरता ही आवश्यक नहीं है. उसका अंतर्मन जरूर सुंदर हो जाता है. यही एक अच्छे व्यक्तित्व की पहचान होती है.

एक अच्छे व्यक्तित्व की पहचान उसके अच्छे गुणों से होती है.जिसमें उच्च आदर्श हों, अच्छे चरित्र वाला हो, उच्च आचरण वाला हो,मर्यादित हो,शालीन हो,नैतिकता का पालन करने वाला हो, देशप्रेम भाईचारा व स्नेह की भावना हो, संस्कारवान हो, स्वावलम्बी हो, व्यवहार कुशल हो, धार्मिक हो, सहयोग और सहानुभूति की भावना हो. यही सारी चीजें व्यक्ति को महान बनाती हैं. इन्ही सारे गुणों से व्यक्ति का व्यक्तित्व विकास हो पाता है.


*****

हमारी संस्कृति हमारा अस्तित्व

रचनाकार- अशोक पटेल

Sanskriti

मानव जीवन पुरी तरह संस्कृति पर आधारित होता है. बिना सस्कृति के जीवन निर्वाह सम्भव नही है. संस्कृति किसी भी देश की पहचान होती है. वैसे तो हर देश और प्रांत की अपनी अलग-अलग संस्कृति होती है. सभी को अपनी संस्कृति से बेहद प्यार भी होता है. इसी संस्कृति से ही मानव,समाज,देश उन्नति-प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है और इसी से ही वह अपनी परम्पराएँ रीति-रिवाज,धर्म-आस्था-विश्वास, सामाजिक-एकता,खान-पान, रहन-सहन को अक्षुण्ण बना पाता है. इस प्रकार वह अपनी संस्कृति का पोषण कर पाता है और पुष्पित पल्लवित हो पाता है. नई पीढ़ी के लिए वह मार्गदर्शन का काम करती है और उसी मार्ग पर चल कर वह अपने आप को एक सभ्य इंसान बनाने में सफल हो पाता है. एक तरह से संस्कृति हमारी थाती है. हमारी धरोहर, हमारी पूँजी है.

हमारे देश मे नाना प्रकार के भाषा-भाषी,जाति-सम्प्रदाय,धर्म के लोग रहते हैं, जिनकी अपनी अलग-अलग परम्पराएँ हैं.अलग-अलग रीति-रिवाज,खान-पान हैं, लेकिन आपस में भाईचारा, एकता, सद्भावना भी है. यही संस्कृति उन्हें आपस मे एक सूत्र में पिरो कर रखती है.यही हमारी संस्कृति की पहचान और सबसे बड़ी विशेषता है.

बिना संस्कृति के हमारा अपना कोई अस्तित्व नहीं है. हमारी संस्कृति ही हमें मान-सम्मान, अधिकार, प्रदान करती है, हमारी पहचान बनाती है. अपनी संस्कृति अपने धर्म की सुंदर परिभाषा युगपुरुष स्वामी विवेकानन्द जी ने बताई जिसको कभी भुलाया नही जा सकता. अगर किसी ने हमारी संस्कृति और धर्म को विश्व पटल में पहचान दिलायी तो वह थे स्वामी विवेकानन्द. संस्कृति का महत्व उपयोगिता किसी ने बताई तो वह थे विवेकानन्द.

अमेरिका शिकागो के धर्म सम्मेलन में जब उन्होंने 'भाइयों और बहनों' कह कर सम्बोधन शुरू किया तो सम्मेलन में आए पुरी दुनिया के लोग अवाक रह गए और जोरदार तालियों से उनका सम्मान किया. 'भाइयों और बहनों' का सम्बोधन हमारी अपनी संस्कृति थी. हमारे देश की पहचान थी. जिसको लोगों ने पहली बार सुना और मंत्रमुग्ध हो गए.

आज आधुनिकता के नाम पर लोग अपनी संस्कृति को भुला बैठे हैं. अपने धर्म को भुला बैठे हैं और पाश्चात्य संस्कृति का अंधाधुंध अनुकरण कर रहे हैं. यह हमारी मानव जाति,समाज के लिए,अपने देश के लिए खतरनाक है. हम धीरे-धीरे अपनी संस्कृति को खोते जा रहे हैं. हमारा अस्त्तिव धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है. लोग जाति का नाम पर भी खिलवाड़ कर रहे हैं. धर्म परिवर्तन हो रहा है. नई पीढ़ी नशे की गिरफ्त में आकर अपने आप को बर्बाद कर रही है. हमारी भाषा हिंदी पढ़ना लिखना बोलना बंद कर दिए हैं. सादाजीवन त्याग कर उपभोक्तावादी जीवन जी रहे हैं. खान-पान,बोल-चाल,रहन-सहन, पहनावा सारी चीजें बदल गई हैं. कुल मिलाकर हम अपनी संस्कृति के साथ अन्याय और खिलवाड़ कर रहे हैं. अपनी संस्कृति का हम ह्रास कर रहे हैं. यदि समय रहते हम नहीं सुधरे तो आने वाला समय हमारे लिए खतरनाक हो सकता है. हमारा अस्त्तित्व ही लगभग खत्म हो जाएगा.


*****

महिला सशक्तिकरण

रचनाकार- डॉ. माध्वी बोरसे

sashaktikaran

महिला सशक्तिकरण तभी सार्थक है जब महिलाओं को अपने निर्णय लेने की स्वतंत्रता हो. उनके लिए क्या सही और क्या गलत है, यह तय करने का उन्हें पूरा अधिकार हो. महिलाओं को दशकों से पीड़ित होना पड़ा है, उनके पास कोई अधिकार नहीं थे और अब भी बहुत सी जगहों, गाँव, यहाँ तक कि बहुत से शहर और देशो में भी नहीं है!

महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया गया और अब भी किया जा रहा है. अपने अधिकारों के साथ-साथ महिलाओं को सिखाया गया कि वे अपने जीवन के सभी पहलुओं में आत्मनिर्भर कैसे हों.

पुरुषों के पास हमेशा से सभी अधिकार होते थे. हालाँकि, महिलाओं को इनमें से कोई भी अधिकार नहीं था, यहाँ तक कि मतदान का अधिकार भी महिलाओं को नहीं दिया जाता था. अब चीजें बदल गईं हैं. महिलाओं ने महसूस किया कि उन्हें भी समान अधिकारों की आवश्यकता है. यह बदलाव अपने अधिकारों की माँग करने वाली महिलाओं द्वारा लाया गया.

दुनिया भर के देशों ने खुद को 'प्रगतिशील देश' कहा, लेकिन उनमें से हर एक का महिलाओं के प्रति गलत व्यवहार करने का इतिहास है. इन देशों में महिलाओं को आजादी और समान दर्जा हासिल करने के लिए उन प्रणालियों के खिलाफ लड़ना पड़ा, जो उन्होंने आज हासिल किया हैं. हालाँकि, भारत में, महिला सशक्तिकरण अभी भी पिछड़ रहा है. अब भी जागरूकता की बहुत अधिक आवश्यकता है.

भारत उन देशों में से एक है जो महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है, इसके कई कारण हैं. उनकी सुरक्षा में कमी का एक कारण ऑनर किलिंग का खतरा भी है.

महिलाओं के सामने एक और बड़ी समस्या यह है कि शिक्षा की कमी है. देश में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए महिलाओं को हतोत्साहित किया जाता है. इसके साथ ही उनकी शादी जल्दी हो जाती है. महिलाओं पर हावी पुरुषों को लगता है कि महिलाओं की भूमिका उनके लिए काम करने तक सीमित है. वे इन महिलाओं को कहीं जाने नहीं देते हैं, नौकरी नहीं करने देते हैं और इन महिलाओं को कोई स्वतंत्रता नहीं है.

महिला सशक्तीकरण लैंगिक समानता प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण पहलू है. इसमें एक महिला के आत्म-मूल्य, उसकी निर्णय लेने की शक्ति, अवसरों और संसाधनों तक उनकी पहुँच, उसकी शक्ति और घर के अंदर और बाहर अपने स्वयं के जीवन पर नियंत्रण और परिवर्तन को प्रभावित करने की उसकी क्षमता को बढ़ाना शामिल है. फिर भी लैंगिक मुद्दे केवल महिलाओं पर केंद्रित नहीं हैं, बल्कि समाज में पुरुषों और महिलाओं के बीच संबंधों पर भी हैं. पुरुषों और लड़कों के कार्य और दृष्टिकोण लैंगिक समानता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

यदि महिलाएं घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार से गुजर रही हैं, तो वे इसकी सूचना किसी को नहीं देती हैं.

भारत एक ऐसा देश है जिसमें महिला सशक्तिकरण का अभाव है. देश में बाल विवाह का प्रचलन है. माता-पिता को अपनी बेटियों को यह सिखाना चाहिए कि अगर वे अपमानजनक रिश्ते में हैं, तो उन्हें घर आना चाहिए. इससे, महिलाओं को लगेगा कि उन्हें अपने माता-पिता का समर्थन प्राप्त है और वे घरेलू हिंसा से बाहर निकल सकती हैं.

महिलाओं को उन क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए कि वे अपने सभी लक्ष्यों और आकांक्षाओं को प्राप्त कर सकें जो वो करना चाहती है.

आज भी विश्व स्तर पर, महिलाओं के पास पुरुषों की तुलना में आर्थिक भागीदारी के कम अवसर हैं, बुनियादी और उच्च शिक्षा तक कम पहुँच, अधिक स्वास्थ्य और सुरक्षा जोखिम, और कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व.

महिलाओं के अधिकारों की गारंटी देना और उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने का अवसर प्रदान करना न केवल लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों की एक विस्तृत श्रृंखला को पूरा करने के लिए भी महत्वपूर्ण है. सशक्त महिलाएँ और लड़कियाँ अपने परिवार, समुदायों और देशों के स्वास्थ्य और उत्पादकता में योगदान करती हैं, जिससे सभी को लाभ होता है.

लिंग शब्द सामाजिक रूप से निर्मित भूमिकाओं और जिम्मेदारियों का वर्णन करता है जो समाज पुरुषों और महिलाओं के लिए उपयुक्त मानते हैं. लिंग समानता का अर्थ है कि पुरुषों और महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता, शिक्षा और व्यक्तिगत विकास के लिए समान शक्ति और समान अवसर प्राप्त हैं.

अब भी बहुत से विकासशील देशों में लगभग एक चौथाई लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं. आमतौर पर, सीमित साधनों वाले परिवार जो अपने सभी बच्चों के लिए स्कूल की फीस, वर्दी और आपूर्ति जैसे खर्च नहीं कर सकते, वे अपने बेटों के लिए शिक्षा को प्राथमिकता देंगे.

एक शिक्षित लड़की की शादी को स्थगित करने, छोटे परिवार को बढ़ाने, स्वस्थ बच्चे पैदा करने और अपने बच्चों को स्कूल भेजने की अधिक संभावना है. उसके पास आय अर्जित करने और राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेने के अधिक अवसर हैं, और एचआईवी, कोरोना अन्य बीमारियों से संक्रमित होने की संभावना कम है.

महिलाओं का स्वास्थ्य और सुरक्षा एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र है. एचआईवी/एड्स महिलाओं के लिए तेजी से प्रभावी मुद्दा बनता जा रहा है. मातृ स्वास्थ्य भी विशिष्ट चिंता का एक मुद्दा है. कई देशों में, महिलाओं की प्रसव पूर्व और शिशु देखभाल तक सीमित पहुँच है, और गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जटिलताओं की अधिक संभावना है. यह उन देशों में एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है जहाँ लड़कियाँ शादी करती हैं और उनके तैयार होने से पहले बच्चे होते हैं; 18 वर्ष की आयु से पहले. शिक्षा मातृ स्वास्थ्य देखभाल सूचना और सेवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश बिंदु प्रदान कर सकती है जो माताओं को अपने स्वयं के स्वास्थ्य और अपने बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में उचित निर्णय लेने वालों के रूप में सशक्त बनाती है. हमें एक ऐसी संस्कृति की जरूरत है जो महिलाओं को सम्मान से देखती है और महिलाओं को पुरुषों के जितना ही आदर्श बनाती है.

लैंगिक समानता प्राप्त करने में ध्यान केंद्रित करने का एक क्षेत्र महिलाओं का आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण है. हालांकि महिलाओं में दुनिया की 50% से अधिक आबादी शामिल है, लेकिन उनके पास दुनिया की संपत्ति का केवल 1% ही है. दुनिया भर में, महिलाएँ और लड़कियाँ लंबे समय तक अवैतनिक घरेलू काम करती हैं. कुछ स्थानों पर, महिलाओं को अभी भी खुद की जमीन या संपत्ति का अधिकार प्राप्त करने, ऋण प्राप्त करने, आय प्राप्त करने या नौकरी के भेदभाव से मुक्त अपने कार्यस्थल में स्थानांतरित करने का अधिकार नहीं है. घर और सार्वजनिक क्षेत्र में सभी स्तरों पर, महिलाओं को निर्णय निर्माताओं के रूप में व्यापक रूप से रेखांकित किया जाता है. दुनिया भर की विधानसभाओं में, लैंगिक समानता और वास्तविक लोकतंत्र प्राप्त करने के लिए महिलाओं के लिए राजनीतिक भागीदारी महत्वपूर्ण है.

महिला सशक्तिकरण दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण विषयों में से एक है.

जिन पुरुषों के पास सभी अधिकार थे, उनकी तुलना में महिलाओं के पास सबसे लंबे समय तक मतदान करने जैसे आवश्यक अधिकार नहीं थे.

महिलाओं का सशक्तीकरण आवश्यक है क्योंकि महिलाओं के पास दशकों से अधिकार और स्वतंत्रता नहीं थी. महिलाएँ भी मनुष्य हैं, और उन्हें अपने साथी मनुष्यों के समान अधिकार और स्वतंत्रता की आवश्यकता है.

महिला सशक्तिकरण की जरूरत, इस समय की सबसे महत्वपूर्ण जरूरतों में से एक है. ऐसे कई तरीके हैं जिनसे महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है. महिला सशक्तिकरण को वास्तविकता बनाने के लिए लोगों को एकजुट होना चाहिए. महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम महिलाओं को शिक्षित करना होगा. महिला शिक्षा को और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि अधिक महिलाएँ साक्षर हो सकें. वे जो शिक्षा प्राप्त करती हैं, उन्हें आगे बढ़ाने में मदद की जानी चाहिए. महिलाओं के पास वह जीवन हो सकता है जो वे चाहती हैं और इसमें खुश रह सकती है!

महिला सशक्तिकरण का एक और तरीका है कि हर क्षेत्र में सम्मान और समान अवसर दिए जाएँ. महिलाओं को वही मौका दिया जाना चाहिए जो पुरुषों को मिलता है.

वेतन एक और क्षेत्र है जो महिलाओं और पुरुषों के लिए समान होना चाहिए. महिलाओं को उस काम के लिए समान रूप से भुगतान किया जाना चाहिए जो वे करती हैं.

महिला सशक्तिकरण एक महत्वपूर्ण विषय है जिसे पूरा करने की जरूरत है. आज महिलाओं के पास जो अधिकार और स्वतंत्रता है, वह उन संघर्षों का परिणाम है, जो सशक्त महिलाओं ने किया. इन सशक्त महिलाओं के कृत्यों से पता चलता है कि यह समय है कि महिलाएँ भी सभी स्वतंत्रता और अधिकारों का आनंद ले सकती हैं.

महिलाओं को अपने हक के लिए आवाज़ खोजने की ज़रूरत नहीं है, उनके पास एक आवाज़ है, आत्मविश्वास है और उन्हें इसका उपयोग करने के लिए सशक्त महसूस करने की आवश्यकता है, और लोगों को सुनने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है!


*****

Visitor No. : 6728909
Site Developed and Hosted by Alok Shukla