चित्र देख कर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको यह चित्र देख कर कहानी लिखने दी थी –

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हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई हम नीचे प्रदर्शित कर रहे हैं

मनोज कुमार पाटनवार द्वारा भेजी गई कहानी

मोर और कौआ

एक दिन कौए ने जंगल में मोर के बहुत सारे पंख बिखरे देखे. वह अत्यंत प्रसन्न होकर कहने लगा- भगवान! बड़ी कृपा की आपने, जो मेरी पुकार सुन ली, मैं अभी इन पंखों को लगाकर मोर बन जाता हूँ. इसके बाद कौए ने मोरपंखों को अपने पंख के ऊपर लगा लिया. अपना नया रूप देखकर बोला- अब तो मैं मोर से भी सुंदर हो गया हूँ. अब उन्हीं के पास चलकर उनके साथ आनंद से नाचता हूँ. वह बड़े अभिमान से मोरों के समूह में पहुँचा जहां बहुत से मोर नाच रहे थे. उनके बीच कौआ भी नाचने लगा. उसे नाचते देख मोरों ने ठहाका लगाया, एक मोर ने कहा- जरा देखो इस दुष्ट कौए को, यह हमारे गिरे हुए पंख लगाकर मोर बनकर नाचने चला है. यह सुनते ही सभी मोर कौए पर टूट पड़े और मार-मारकर उसे अधमरा कर दिया.

कौआ भागा और अन्य कौओं के पास जाकर मोरों की शिकायत करने लगा तो एक बुजुर्ग कौआ बोला- सुनते हो इस अधम की बातें. यह हमारा उपहास करता था और मोर बनने के लिए बावला रहता था. इसे इतना भी ज्ञान नहीं कि जो प्राणी अपनी जाति से संतुष्ट नहीं रहता, वह हर जगह अपमान पाता है. आज यह मोरों से पिटने के बाद हमसे मिलने आया है. मारो इस धोखेबाज को.

इतना सुनते ही सभी कौओं ने मिलकर उसकी अच्छी धुनाई कर दी.

ईश्वर ने हमें जिस रूप में बनाया है, हमें उसी से संतुष्ट रहकर अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए. कर्म ही महानता के द्वार खोलता है.

युगांतर यादव (कक्षा-5) द्वारा भेजी गई कहानी

कौआ और मोर

एक जंगल में बहुत सारे जीव- जंतु और पशु -पक्षी रहते थे. वहाँ मोर का एक परिवार भी रहता था और एक कौआ भी रहता था. कौआ बहुत सीधा-सादा था. मोर को अपने रंग-बिरंगे पंखों पर बहुत घमंड था. जब भी बारिश का मौसम बनता,तो मोर खुशी से नाचता था. उन्हें देखकर कौआ बहुत खुश होता था, उसका मन ललचाता था. मोर की तरह कौआ भी रंग-बिरंगे पंख वाला बनना चाहता था. एक दिन कौआ कहीं जा रहा था, रास्ते में उसे मोर के बहुत सारे पंख बिखरे हुए मिले. कौए ने उन पंखों को अपने शरीर के ऊपर लगा लिया. तभी वहाँ पर कई मोर भी आ गए. वे सब कौए को देखकर जोर-जोर से हँसने लगे, क्योंकि वह आधा कौआ और आधा मोर लग रहा था. कौआ मोर की तरह बनने की कोशिश कर रहा था, जिसके कारण वह और भी खराब लग रहा था. सभी मोर कहने लगे कि तू कभी मोर नहीं बन सकेगा. ऐसा कहकर फिर सभी मोर हँसने लगे. कौआ बहुत उदास और दुःखी हो गया, उसे अपनी बेवकूफी पर गुस्सा भी आ रहा था.

कौए की समझ में यह बात आ गई थी कि कभी भी दूसरों की नकल नहीं करनी चाहिए. क्योंकि दूसरों की नकल करने से केवल मजाक और अपमान का सामना करना पड़ता है.

मधु शर्मा कटिहा द्वारा भेजी गई कहानी

कोको कौआ

कोको कौआ उस दिन स्कूल से लौटकर आया तो मुँह लटकाए चुपचाप अपने कमरे में बैठा रहा. खाना भी ठीक से नहीं खाया उसने और न ही खेलने के लिए निकला. उसे ऐसे हाल में देख मम्मी ने कारण पूछा तो उसने निराश स्वर में बताया कि कल एक पेड़ के नीचे गिरे मोर के कुछ पंखों को पाकर वह बहुत खुश हुआ था और उसने वे पंख अपने पंखों के ऊपर सजा लिए थे. जब अपने को मोर बताकर कोको मोरों के झुण्ड में गया तो वहाँ सब उस पर खूब हँसे और उसे भगा दिया. यह बात उन मोरों ने अन्य मित्रों को भी बता दी और वे सभी कोको का आज मज़ाक़ उड़ा रहे थे.

'अरे! तुमने मोर के पंख लगाये ही क्यों थे?' मम्मी आश्चर्य से कोको को देख रहीं थीं.

'मैं अपने को सुन्दर बनाने के लिए मोर के पंख लगाना चाहता था.' कोको सुबकने लगा.

मम्मी उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए समझाने लगीं, 'शरीर से सुन्दर होना ही सब कुछ नहीं होता, तुम अपने अन्दर के गुणों को निखारकर भी सुन्दर बन सकते हो. मैं जब भी तुम को होमवर्क करवाती हूँ तो देखती हूँ कि तुम बहुत जल्दी सब कुछ समझ लेते हो, जानते हो न कि कौआ एक बुद्धिमान पक्षी माना जाता है?'

'हाँ, मैंने सुनी थी आपसे मटके में कंकड़ डालकर पानी पीने वाले कौए की कहानी.' कोको की आँखें चमक उठीं.

'कोको, कुछ दिनों से मैं देख रही हूँ कि तुम पढ़ाई को बहुत कम समय देते हो. टेस्ट में अंक भी कम मिले हैं इस बार तुम्हें. जब से कक्षा में पिकू मोर ने दाखिला लिया है तब से तुम्हारा ध्यान उसकी तरह दिखने की तरकीबें सोचने में लगा रहता है. मैं ठीक कह रही हूँ ना?'

कोको माँ से सहमत होते हुए बोला, 'मैं क्या करूँ? क्लास में सब पिकू के पंखों की इतनी तारीफ करते हैं कि मेरा मन वैसा ही सुन्दर पंखों वाला पक्षी बनने को करने लगता है.'

'क्या कुछ दिनों के लिए तुम वैसा ही कर सकते हो जैसा मैं कहूँ.' माँ ने कहा तो कोको ने तुरंत हामी भर दी.

अगले दिन से वह मां के कहने पर स्कूल से लौटते ही अपना होमवर्क निपटा लेता और कुछ देर आराम करता. शाम को क्लास में पढ़ाये गए पाठ को मां की मदद से दुबारा पढ़कर समझते हुए याद कर लेता. मां जब घर के काम में व्यस्त होती तो कोको को प्रश्नों के उत्तर लिखने व गणित के सवाल हल करने को कहती. कोको वैसा ही करता. इसका परिणाम यह हुआ कि कोको का दिन पढ़ाई में व्यस्त रहते हुए बीतने लगा. उसे पिकू के बारे में सोचने का समय ही नहीं मिल पाता था. जिससे वह उससे अपनी तुलना करना भूल गया. वार्षिक परीक्षा हुई तो कोको को कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ. सभी दोस्त व उनके माता-पिता कोको की खूब प्रशंसा कर रहे थे. कोको को पुरस्कार देते हुए क्लास टीचर ने कहा कि कोको की तरह सभी को मन लगाकर पढ़ाई करनी चाहिए.

कक्षा में अब सभी में होड़ लगी रहती कि कौन कोको जितने नंबर ला सकता है. खेल के मैदान में कौवा, मोर व अन्य पक्षी सब यह चाहते थे कि कोको उनके ही झुण्ड में खेले.

कोको जान गया था कि अपने अन्दर की खूबियों को संवारकर भी सुन्दर बना जा सकता है. ऐसे में सब प्रशंसा तो करते ही हैं साथ ही मेहनत के बल पर कुछ अच्छा पाने का सुख भी मिलता है.

संतोष कुमार कौशिक द्वारा भेजी गई कहानी

हमारे जैसा कोई दूसरा नहीं

एक जंगल में एक कौवा रहता था. वह अपने काले रंग से असंतुष्ट था. वह दूसरे पक्षियों की तरह रंग-बिरंगे होने की चाहत रखता था. कौवा अपने रंग-रंगे पक्षी दोस्तों को देख,उदास हो जाता था. एक दिन उसने जमीन पर पड़े मोर के पंख देखे. वह खुश हो गया और सोचने लगा अब मैं इन पंखों को अपनी पूँछ पर लगा लेता हूँ. मैं रंग-बिरंगे पंख लगाकर मोर जैसा बन जाऊँगा. कौवा मोर-पंखों को अपनी पूँछ पर लगाकर घूमने लगा.

वह बहुत खुश था,तभी मोर ने उसे देखकर कहा, तुम कितने बेवकूफ हो हमारे पंख लगा कर मोर नहीं बन जाओगे और न ही तुम्हारा व्यवहार बदलेगा. यह कहकर मोर हँसने लगा लेकिन कौवे ने उसकी परवाह नहीं की और आगे बढ़ गया. कुछ दूर बाद उसे एक तोता मिला. तोता भी कहने लगा, मोर-पंख लगाकर कहाँ जा रहे हो? ईश्वर ने तुम्हें जो बनाया है उसी में खुश रहो. तोते की बातों को अनसुना करते हुए कौवा आगे बढ़ गया. अब उसे तालाब में तैरता हुआ हंस दिखाई दिया. कौवा कहने लगा -हंस भाई! मैं बहुत खुश हूँ. देखो ये रंग-बिरंगे पंख लगाकर मैं मोर से भी सुंदर दिख रहा हूँ. मोर की नृत्य भी कर सकता हूँ. हंस उसकी मूर्खता पर हंसते हुए कहने लगा. अच्छा-अच्छा, मोर के पंख लगाकर क्या तुम नहा भी लोगे?

कौआ बोला, बिल्कुल, मैं तालाब में डुबकी लगाकर स्नान कर सकता हूँ. कहते हुए कौवा तालाब में डुबकी लगाने लगा. जैसे ही कौवे ने तालाब में डुबकी लगाई वैसे ही मोर के सारे पंख पानी में गिर गए. कौवे को बहुत शर्मिंदगी महसूस होने लगी.

अब कौवा कहने लगा कि मोर के पंख लगाकर मैं अपने आप को विशेष समझ रहा था. मैं अपने कार्य पर बहुत शर्मिन्दा महसूस कर रहा हूँ. पेड़ पर बैठे एक बुजुर्ग कौवे ने कहा- तुमने यह अच्छा नहीं किया. तुम जैसे भी हो अच्छे हो दोस्त, तुम्हारा यह काला चमकता हुआ रंग बहुत अच्छा लगता है. हम दूसरे पक्षियों की नकल करने से मोर, तोता या हंस नहीं बन जाएँगे. देखो इन पक्षियों का जीवन हमारे जीवन से भी अधिक कष्टमय है. तोता पिंजरे में रखा जाता है. हंस को छोटे से टब में रखकर बंधक बनाया जाता है और मोर का जीवन तो और भी कष्टप्रद है उसके पंखों को नोच-नोच कर बाजार में बेचा जाता है. हम लोगों को कोई बंधक नहीं बनाता इसलिए भगवान का शुक्रिया करो कि हम सब आजाद घूम रहे हैं.

कौवा कहने लगा-क्षमा करना, अब मुझे भली-भांति समझ में आ गया है. जो जीव जैसा ही है, वैसा ही स्वीकार कर लेता है तो उसका जीवन आनंदमय हो जाता है इससे बढ़कर कुछ नहीं. हमारे जैसा दुनिया में दूसरा कोई और नहीं है इसी भाव के साथ अपना जीवन व्यतीत करने से हमारा जीवन सुखमय हो जाता है. सभी उसकी बातें सुनकर खुश हो जाते हैं.

आस्था तंबोली (कक्षा-2) द्वारा भेजी गई कहानी

मोर

जंगल में कुछ मोर घूम रहे थे वे एक दूसरे से मौसम के बारे में बातचीत कर रहे थे और कह रहे थे कि आज मौसम बहुत सुहाना है, लगता है आज बारिश होने वाली है यह सोच कर मोरनी पंख फैलाकर नाचने को तैयार थी. तभी मोर बोला- लगता है तेज बारिश होने वाली है, हमें अब घर चलना चाहिए. यह सुनकर मोरनी उदास हो गई और रूठ कर बैठ गई मोर उसे मनाने के लिए स्वयं मोरनी के सामने नाचने लगा. मोर के नृत्य से मोरनी खुश हो गई. दोनों अपने-अपने पंख फैलाकर नाचने लगे और कहने लगे बरखा की बूँदें आई ढेर सारी खुशियाँ लाई.

अगले अंक की कहानी हेतु चित्र

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