कहानियाँ

पंचतंत्र की कथाएँ

राजा और बंदर

Pkhani

एक राजा था. बड़ा ही योग्य व कुशल. बड़े योग्य मंत्री व विद्वान सभासद थे उसके साथ. राजा के महल में एक बंदर भी पल रहा था. कभी जब वह छोटा था तभी महल में आ गया था. राजा ने उसे आश्रय दिया. रहते-रहते सभी उसे प्यार करने लगे. राजा भी उससे बहुत प्यार करता था. इस प्यार और दुलार से बंदर थोड़ा निर्भीक और उच्छृंखल हो गया. जहाँ चाहता वहाँ जाता, जो चाहता वह करता. राजा का उसके प्रति स्नेह देखते हुए कोई कुछ ना कहता.

वह बंदर अब पूरे समय राजा के आसपास ही रहता. यहाँ तक की राजा जब अपनी सभा में बैठता तब वह भी सिंहासन के आसपास उछल-कूद करता रहता. धीरे-धीरे उसकी आदत हो गई कि वह राजा के शयन कक्ष में भी जाने लगा. किसी में इतना साहस नहीं था कि वह राजा को समझा पाता कि किसी पशु को इतना स्वतंत्र रखना उचित नहीं है. राजा ने भी कभी इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया.

एक रात जब राजा सोया हुआ था, बंदर बिस्तर के पास ही बैठा था. उसने देखा, एक मक्खी राजा के चेहरे पर बैठी है. बंदर ने उसे हाथ हिला कर उड़ा दिया. मक्खी उड़ी और राजा के हाथ पर बैठ गई. बंदर ने उसे फिर उड़ाया. यह खेल देर तक चलता रहा.

अब बंदर को गुस्सा आ रहा था. उसने देखा, राजा की छाती पर वह मक्खी फिर से बैठ गई है. अब की बार बंदर ने वहाँ रखी तलवार उठा ली और पूरी ताकत लगाकर मक्खी पर वार किया. पर क्या तलवार से मक्खी मरती? वह कब उड़ी पता ही नहीं चला. तलवार राजा की छाती में धँस गई. तत्काल ही राजा के प्राण-पखेरू उड़ गए. सच ही कहा है- मूर्ख सेवक कभी भला नहीं कर सकता.


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हर अजनबी पराया नहीं होता

रचनाकार- यशवंत कुमार चौधरी

Address

एक बार एक युवक अपने ऑफिस से संबंधित काम से किसी दूसरी जगह गया. उसके पास उस जगह का पता था पर अनेक लोगों से पूछने पर उन सभी ने वह पता जानने से इंकार कर दिया. वह निराश होकर बैठ गया, शाम हो चली थी, तभी एक अजनबी आया.

अजनबी को उसकी हालत देखकर उस पर तरस आया और उसने मदद करने की सोचकर कहा क्या आपको किसी प्रकार की मदद की आवश्यकता है? युवक ने कहा- हाँ, क्या आप यह पता बता सकते हैं? अजनबी ने कहा जानता तो नहीं पर दोनों मिलकर ढूँढ़ लेंगे. रात होने को है, चलिए मेरे साथ. युवक दुविधा में था कि इस अजनबी पर विश्वास करूँ या कोई दूसरा विकल्प तलाश करूँ? पर वक़्त कम था रात हो चली थी और आसपास कोई परिचित भी नहीं था. उसने सोचा कि इस अजनबी को ही आजमा लिया जाए. अजनबी उस नवयुवक को अपने घर ले गया, खाना खिलाया. युवक काफी खुश हुआ पर उसकी मंजिल अब भी उसे नहीं मिली थी. फिर दोनों उस पते की तलाश में निकले. कालोनी में रहने वाले एक दादा जी ने पता बताया जो समीप ही था. उस अजनबी ने युवक को मंजिल तक छोड़ा उस वक़्त बताया कि वह उसी की कक्षा में पढ़ने वाला उसी का दोस्त है जो आजकल इस नगर का मेयर है. युवक को अपने मित्र को इस विषम परिस्थिति में अजनबी सहयोगी के रूप में पाकर काफी प्रसन्नता हुई और उसे अब यह शहर पराया नहीं बल्कि अपना सा लगने लगा. युवक ने अपने मित्र का धन्यवाद किया और उसके साथ एक सेल्फ़ी भी ले ली.

इसलिए कहा जाता है कि हर अजनबी पराया नहीं होता और हर परिचित समय पर काम आ जाए य़ह भी जरूरी नहीं.


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पिता की सीख

रचनाकार- अर्चना त्यागी

Father

सूरज शहर छोड़कर अपने गाँव लौट आया था. पिता की बीमारी की सूचना मिली थी. लेकिन गाँव आने पर पता चला कि पिता तो चले गए थे. बिना कुछ बोले, बिना कुछ कहे. अब अपनी माँ के साथ सूरज अकेला रह गया था. सूरज चौबीस साल का नवयुवक था. पढ़ा लिखा भी था लेकिन व्यवहारिकता में एकदम शून्य था. बातों को ठीक से समझ नहीं पाता था.

पिता की मृत्यु को एक साल हो चुका था, लेकिन उसने कुछ भी काम करने की नहीं सोची थी. एक दिन माँ ने कहा, 'बेटा तुम्हारे पिता को गुजरे एक साल हो चुका है अब कुछ काम धंधा ढूंढो.' सूरज ने माँ की बात मान ली. घर से चलते समय माँ ने पिता की सीख याद दिलाई.

'छाँव में जाना और छाँव में ही वापिस आ जाना.' अपनी आदत के अनुसार सूरज ने गलत मतलब समझ लिया. उसने पिता के छोड़े हुए पैसे उठाए और घर से लेकर अपनी दुकान तक एक शामियाना लगवा दिया ताकि उसके रास्ते में हमेशा छाँव ही रहे. दुकान चलानी उसे आती नहीं थी और पिता की जमा पूंजी भी छाया करवाने में खर्च हो गई थी.

बेटे को उदास देखकर माँ ने दूसरी सीख याद दिलाई, 'कभी व्यापार में घाटा हो तो मंदिर की चोटी से रुपया निकाल लेना.' पिता पूजा पाठ में काफी विश्वास रखते थे इसलिए घर भी उन्होंने मंदिर जैसा ही बनवाया था. सूरज घर की छत पर चढ़ गया लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं था.

पिता के अभिन्न मित्र दूसरे गाँव से उनसे मिलने आए. सूरज ने अपनी परेशानी उन्हें बताई, 'चाचा लगता है पिताजी मुझसे नाराज़ थे तभी ऐसी सीख देकर गए.' चाचा मुसकुराकर बोले, 'सीख सही है बस तुमने समझा गलत है.' सूरज हैरान परेशान. 'वो कैसे?' उसने पूछा.

देखो तुम्हारे पिता की पहली बात का आशय है कि सूर्य उगने से पहले काम पर चले जाओ और सूर्यास्त के बाद घर वापिस आओ तो तुम व्यापार में अधिक समय दे पाओगे और तरक्की करोगे.

'अच्छा, पर दूसरी बात का तो कोई मतलब ही नहीं था. मैं घर की छत पर चढ़ा पर कुछ भी हाथ नहीं लगा.' सूरज ने अपनी खीझ जाहिर करते हुए कहा. चाचा जोर से हँस पड़े.

'तुम्हारे मंदिर जैसे घर की चोटी की परछाईं एक तालाब में पड़ती है. वहाँ जाकर देखो कुछ मिलेगा.' चाचा की बात मानकर सूरज तालाब पर गया. तालाब की मिट्टी हटाने पर सोने चांदी से भरे घड़े निकले. सूरज ने मन ही मन अपने पिता से माफी मांगी और उनकी सीख के अनुसार व्यापार पुनः प्रारंभ कर दिया.


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आत्मसंतुष्टि

रचनाकार- श्रीमती वंदिता शर्मा

Selfsatisfaction

गरिमा की परीक्षा पास आ रही थी और वह पढ़ाई में व्यस्त हो गयी थी. गरिमा पढ़ाई में बहुत अच्छी थी. लेकिन कहते हैं न कि बुरी संगति व्यक्ति को बुरा बना देती है, वैसे ही गरिमा भी अपने सहेलियों से परीक्षा में नकल करना सीख गई है.

अब गरिमा को नकल करना बहुत अच्छा लगने लगा. वह किताबों से महत्वपूर्ण बातों को छोटी-छोटी पर्चियों में छोटे-छोटे अक्षरों में लिख लिया करती थी. फिर इन पर्चियों को कपास में, जूतों में और अपने कपड़ों में छिपाकर परीक्षा देने चली जाती थी.

पहले गरिमा बहुत बुद्धिमान और पढ़ाई के प्रति समर्पित थी. पर कुछ ग़लत सहेलियों की संगत में अपने विवेक का प्रयोग न कर परीक्षा में नकल की पर्चियाँ बनाकर वह भी ले जाती थी. उसकी कुछ सहेलियाँ नकल की पर्ची ले जाकर आसानी से पास हो जाती थी. यह देखकर उसे भी ऐसा करना अच्छा लगने लगा और गरिमा भी यही सब करने लगी.

परीक्षा प्रारंभ हो गई. गरिमा प्रतिदिन नकल की पर्ची बनाकर ले जाती और नकल मारकर लिखती थी.

एक दिन गरिमा नकल की पर्चियाँ बनाने में बहुत ज्यादा व्यस्त थी.

तभी गरिमा की माँ उसे दूध देने कमरे में आयी. माँ ने जब देखा की गरिमा पर्चियाँ बनाने में व्यस्त है, तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ. उन्होंने कभी भी नहीं सोचा था कि गरिमा ऐसा कुछ करेगी. पर उस समय माँ गरिमा को देखकर बाहर चली गयी.

उस समय गरिमा को तो कुछ नहीं कहा पर जब रात हुई और गरिमा सो गई,तब माँ ने गरिमा के कमरे में चुपके से आकर नकल की पर्चियों को निकाल लिया.

सुबह गरिमा बहुत खुशी-खुशी स्कूल चली गई. उसने नकल की सारी पर्चियाँ कपास में रखी थीं. जब शिक्षिका ने प्रश्न-पत्र का वितरण किया, तो गरिमा ने देखा कि वही प्रश्न पूछे गए थे जिनकी पर्चियाँ उसने बनाई थी. पर जब गरिमा ने कपास खोला तो वह हैरत में पड़ गई क्योंकि कपास में एक भी पर्ची नहीं थी. वह मन ही मन सोचने लगी कि मुझसे ये कैसी गलती हो गई? अब मैं इन सवालों को कैसे हल करूँगी? उसकी आँखों में आँसू भर आये. गरिमा, शिक्षकों की चहेती छात्रा थी सभी शिक्षकों को पूर्ण विश्वास था कि गरिमा सारे सवालों को हल कर लेगी. परंतु गरिमा के आँखों में आँसू देखकर शिक्षिका उसके पास आई और बोली-क्या बात है गरिमा तुम रो क्यों रही हो? प्रश्न तो बहुत सरल आये हैं. इनकी पुनरावृत्ति हम कक्षा में पहले ही कर चुके हैं.

शिक्षिका की बात सुनकर गरिमा के मन में आत्मविश्वास जागृत हुआ और उसने शिक्षिका से कहा-'जी हाँ मैडम मैं प्रश्न देखकर भ्रमित हो गई थी.' गरिमा ने ध्यान से प्रश्नों को पढ़ा और उनके हल अपनी समझ के आधार पर लिख दिए.

जब वह घर पहुंची तो माँ ने कहा_गरिमा बेटा आज का पेपर कैसा बना? गरिमा ने कहा- बहुत अच्छा बना है माँ, मैं पास हो जाऊँगी. आँखों में आँसू लिए अपने कमरे में जाकर नकल की पर्चियाँ ढ़ूँढ़ने लगी. उसके मन में डर था कि मेरे इस गलत काम पर माँ जरूर डांटेंगी. माँ ने पीछे से आकर गरिमा से कहा- तुम इसे ही ढ़ूँढ़ रही हो न? माँ के हाथ में नकल की पर्ची को देखकर गरिमा रोने लगी और माफी माँगने लगी कि माँ अब कभी भी ऐसा गलत काम नहीं करूँगी. गरिमा की समझ में आ गया था कि गलत काम का नतीजा गलत ही होता है. इस प्रकार के कार्य से आत्म संतुष्टि नहीं मिलती. हमेशा मेहनत का फल ही मीठा होता है.


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चीड़ा और चीड़ी का जोड़ा

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

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बहुत साल पहले की बात है. एक समुद्र तट के पास एक बरगद के पेड़ पर एक चिड़ा और चिड़ी का जोड़ा रहता था. एक रोज चिड़ी ने चिड़ा से कहा- 'हमें यहां समुद्र तट पर रहते बहुत साल हो गए. मेरा मन कहता है एक बार समुद्र के उस पार की दुनिया कैसी है उसे देख आए. अगर तुम चलने को राजी हो तो बताओ?’’ चिड़ी की बात सुन कर चिड़ा बोला समुद्र का कोई ओर-छोर नजदीक नहीं होता है. समुद्र बहुत विशाल होता है. हम समुद्र के उस पार नहीं जा सकते हैं. बीच राह में थक जाएंगे. चिड़ा की बात सुन चिड़ी बोली चाहे समुद्र कितना भी बड़ा क्यों न हो, मैं तो उड़ कर समुद्र के उस पार की दुनिया देखने जरूर जाऊंगी. 'ठीक है मैं भी तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ.' चिड़ा ने कहा.

अगले दिन सूरज निकलने से पहले चिड़ी और चिड़ा खा पी कर अपनी समुद्र यात्रा पर निकल पड़े. रास्ते में बादलों ने कहा चिड़ी और चिड़ा तुम दोनों वापस लौट जाओ क्योंकि समुद्र पार करना तुम दोनों के बस की बात नहीं है. थक कर समुद्र में गिर जाओगे. मगर चिड़ी और चिड़ा बादलों की बातें अनसुनी कर के उड़ते ही रहे. तीन दिन की लम्बी उड़ान के बाद आखिर चिड़ी और चिड़ा समुद्र उस पार की एक वन में पहुंच ही गए. मगर वन में न कोई जानवर दिखाई दिया न कोई चिड़िया दिखाई दी. सुनसान वन में पहुंच कर चिड़ी और चिड़ा एक आम के पेड़ पर बैठ कर सुस्ताने लगे. कुछ घंटे बाद सफेद कपड़ा पहने एक सुन्दर नव जवान व्यक्ति वहां आया और चिड़ी और चिड़ा से बोला तुम दोनों यहाँ कहाँ आए हो?’’ नव जवान व्यक्ति की बात सुनकर चिड़ी और चिड़ा बोले हम दोनों समुद्र उस पार से यहाँ की दुनिया देखने आए है. मगर आप कौन हैं अपना परिचय हमें दीजिए. नव जवान व्यक्ति अपना परिचय देते हुए बोला मैं वन देवता हूँ. मगर हमारे वन में एक डायन रहती है. वह रात में घुमने निकलती है. रात में उसके सामने जो भी जानवर और पक्षी जाते है उसे वह मार कर खा जाती है. डायन के डर से सारे जानवर और पक्षी यह वन छोड़ कर दूसरे वन में चले गए. इसलिए तुम दोनों भी रात में यहाँ रूकने की कोशिश मत करना वरना डायन तुम दोनों को पकड़ कर खा जाएगी. वन देवता क्या आप हमें यह बता सकते है कि वह डायन रहती कहाँ है?’’ डायन यहाँ से उत्तर दिशा में काफी दूर एक बरगद के पेड़ पर रहती है. दिन में वह चुहिया बन जाती है और रात में डायन बन जाती है. अगर कोई चुहिया को पकड़ कर जलते आग में डाल कर जला दे तो डायन की मौत हो जाएगी और उससे हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा.

डायन चुहिया बन कर एक पिंजड़े में रहती है. ताकी कोई उसे पकड़ न पाए. इतना कह कर वन देवता खामोश हो गए. वन देवता की इतनी बात सुन कर चिड़ा और चिड़ी बोले हम दोनों उस डायन को कल तक मार कर रहेंगे. इतना कह कर चिड़ा उड़ कर दूसरे वन में चले गए विश्राम करने के लिए. अगले दिन सुबह चिड़ा और चिड़ी उस बरगद के पेड़ के पास पहुंच कर देखा कि बरगद के पेड़ की एक डाल पर एक पिंजड़ा लटका हुआ था. उसमें एक चुहिया गहरी नींद में सोई हुई थी. चुहिया को सोते देख कर चिड़ी और चिड़ा दोनों ने मिल कर ढ़ेर सारे सूखे पत्ते और लकड़ियाँ इकठ्ठा कर के उसमें आग लगा दिया. जब लकड़ियां धू-धू कर जलने लगी तो चिड़ा उड़ कर पिंजड़े को बरगद के पेड़ से उतार कर उसे जलते आग में ला कर डाल दिया. आग में पड़ते ही चुहिया बचाओ बचाओ चिल्लाने लगी. मगर चुहिया मौत से बच न सकी और आग में जल कर राख हो गई. पूरे वन को दुष्ट डायन से हमेशा हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया. तभी वन देवता वहाँ आ पहुंचे और चिड़ा और चिड़ी से हाथ जोड़ कर बोले तुम दोनों ने इस वन को डायन से छुटकारा दिला कर एक महान काम किया है. इसलिए आज से यह वन तुम दोनों का हो गया. अब तुम दोनों को इस वन को छोड़ कर कहीं जाने की जरूरत नहीं है. डायन के मरने की खबर पा कर दूसरे वन गए सारे जानवर और पक्षी अपने पुराने वन में लौट आए और मिल जुल कर रहने लगे.


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होली है

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

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पूरा चंपक वन बहुत खुश लग रहा था. हर जगह पिचकारी रंग अबीर की दुकान सजी नजर आ रही थी. मोनू भालू अपनी दुकान पर एक बोर्ड टंगवा रखा था. उस पर लिखा था दो पिचकारी खरीदने पर एक रंग का डब्बा मुफ़्त ले जाइए. इस बार सोनू हिरन,कालू हाथी और मंटू जेबरा ने अपनी-अपनी रंग पिचकारी और अबीर की दुकान लगाई थी. चंपक वन के सारे जानवर अपनी-अपनी पसंद क़े पिचकारी रंग अबीर-गुलाल खरीद कर घर ले जा रहे थे. चंपकवन के राजा ओम शेर का मंत्री टनटन बंदर कई दिन से बीमारी का बहाना बना कर घर में छुप कर बैठा हुआ था. वह होली नहीं खेलना चाहता था इसलिए बीमारी का बहाना बना कर घर से बाहर नहीं निकल रहा था. चंपकवन के राजा ओम शेर टनटन बंदर को सबक सिखाने के लिए होली से दो दिन पहले यह घोषणा करवा दी कि इस साल चंपकवन में होली के दिन जो सबसे ज्यादा रंग खेलेगा उसे हमारी तरफ से चंपकवन सम्मान पत्र और एक लाख रूपया नगद इनाम दिया जाएगा. राजा ओम शेर का ऐलान सुनकर सभी चंपकवन वासी बहुत खुश नजर आ रहे थे. मगर टनटन बंदर मन ही मन पछता रहा था. मैंने झूठमूठ में बीमारी का बहाना बना कर बहुत बड़ी गलती कर दी. एक लाख रूपया और चंपकवन सम्मान पत्र तो हमें मिलना चाहिए. शाम होते ही टनटन बंदर राजा ओम शेर के पास पहुंच कर बोला महाराज मैं भी होली प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता हूँ. मगर तुम तो बीमार हो तुम कैसे होली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हो?

राजा ओम शेर टनटन बंदर से बोल पड़ा. महाराज मैं होली न खेलने के कारण आप से बिमार होने का बहाना बना कर घर में बैठा हुआ था. मुझे कोई बीमारी नहीं है. मैं भला चंगा हूँ. टनटन बंदर की इतनी बात सुन कर राजा ओम शेर हंस पड़े और बोले मैं जनता था तुम्हारी झूठ की बीमारी पकड़ी जाएगी. इसलिए मैंने यह ऐलान करवाया. मगर इस साल का सम्मान और पुरस्कार तुम्हें नहीं दिया जाएगा किसी दूसरे जानवर को दिया जाएगा. अगले दिन होली थी. चंपकवन के सभी जानवर होली खेलने के लिए चंपकपार्क में जमा हो गए.

अबीर- गुलाल लगाया और रंग भी लगा कर होली की शुरूआत कर दी और होली है होली है कह कर सब पर रंग बरसाने लगे. कालू हाथी सुबह से शाम तक रंग खेल कर सभी जानवरों को रंगो से नहलाता रहा. अन्त में जब सम्मान पत्र और पुरस्कार देने की राजा ओम शेर ने घोषणा की तो सभी जानवर खुशी से हंस पड़े. राजा ओम शेर ने कालू हाथी को चंपकवन सम्मान पत्र और एक लाख रूपये का चेक दे कर सम्मानित किया.

कालू हाथी को सम्मान देने की खुशी में जंगल के सारे जानवर राजा ओम शेर की जय-जयकार करने लगे. इस तरह सभी जानवरों ने हँसी ख़ुशी से होली का त्योहार मनाया.


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तनु की कुछ शर्तें

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

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इस बार ओड़गाँव, गाँधीपारा के बच्चों को होली का बेसब्री से इंतजार था. कोई खूब रंग-गुलाल खेलने की सोच रहा था, कोई पिचकारी चलाने की, कोई ढोल-नगाड़े बजाने व नाचने-गाने की. सभी ने रंग-गुलाल व पिचकारी भी खरीद लिये थे. किसी की पिचकारी बोतलनुमा, किसी की पिचकारी चिड़िया जैसी, तो किसी की बिलकुल बन्दूक जैसी. सब खुश थे. सबने एक जगह इकट्ठे होकर रंग-गुलाल खेलने का मन बना लिया था.

होली का दिन आया,तनु अपनी मम्मी के साथ घर के कामों में व्यस्त थी. उसका होम-वर्क पूरा हो गया था. कक्षा दसवीं की छात्रा तनु अपनी पढ़ाई के प्रति बहुत सतर्क थी. कोरोना काल में भी पढ़ाई का महत्व वह अच्छी तरह समझती थी, वह अपनी ऑनलाइन क्लास कभी मिस नहीं करती. अगर घर में नेटवर्क प्रॉब्लम होती, तो वह खेत की ओर या मैदान में चली जाती; और क्लास अटैंड करती थी. पढ़ाई के प्रति उसकी लगन देख उसके माता-पिता व शिक्षक खुश थे.

इस बार होली में तनु का अपनी सहेलियों के साथ रंग-गुलाल खेलने व पिचकारी चलाने का मन नहीं था. वह पिछले साल का होली-हुड़दंग नहीं भूली थी. उसने ठान लिया था कि आज वह घर से बाहर नहीं निकलेगी. दस-ग्यारह बजे तक वह किचन में अपनी मम्मी के साथ काम करती रही. फिर खाना खाकर ड्राइंग रूम में पुस्तक पढ़ने लगी. पढ़ते-पढ़ते उसे नींद आ गयी. पंद्रह-बीस मिनट ही हुए होंगे कि उसकी सहेलियाँ रंग-गुलाल लिए आ गई. कमरे में घुसते ही शिखा कहने लगी- 'क्यों तनु, तू सोयी है.आज सोने का दिन है. अरी आज तो होली है. नहीं पता क्या ? चल उठ. बाहर चल. मजा आएगा.'

तनु चौंक गयी. बोली- 'पहले तुम सब बैठो. वाह ! तुम सब तो बड़े खुश लग रहे हो. क्या बात है. क्या इस बार कुछ अलग ही ढंग से होली मना रहे हो ?'

'हाँ बिल्कुल ! तुम भी हमारे साथ चलोगी, तभी मजा आएगा तनु.' नीतू सोफे पर बैठते हुए बोली. मनु बोला- 'तनु दीदी, देखो. मेरी पिचकारी कितनी सुंदर है. यह एक चिड़िया लग रही है.'

'हाँ मनु ! बहुत अच्छी है तुम्हारी पिचकारी.' तनु ने मनु को अपने पास बिठा लिया.

'तनु दीदी.' मैंने अपने दोनों जेब में गुलाल रखा है; लाल और हरा दोनों. मैं तो आप पर जरूर लगाऊँगा दीदी.' ओमू ने हँसते हुए कहा.

'नहीं भाई, रुको.रुको. तनु अपनी हथेलियों से चेहरा ढँकते हुए बोली.

तनु की माँ एक बड़ी सी प्लेट में ठेठरी, खुरमी, पुड़ी, बड़ा, गुजिया ले आयी. बोली- 'चलो पहले इन्हें खा लो; फिर जाना खेलने बाहर.'

बच्चों ने तनु की माँ के माथे पर गुलाल लगाया और पैर छुए. सबने पकवान खाए. फिर शिखा बोली- 'चल तनु बाहर रंग-गुलाल खेलेंगे.'

'दीदी, चलो न.' बिट्टू बोला.

'नहीं. नहीं. बिट्टू, मेरा मन नहीं है. मैं नहीं जाऊँगी.'

'तुम नहीं जाओगी, तो कैसे चलेगा?' ओमू बोला.

'नहीं-नहीं मैं नहीं जाऊँगी.' तभी शिखा ने उसका हाथ पकड़ लिया. बोली- 'क्यों, हमारे साथ रंग-गुलाल खेलना तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा? हम सब अच्छे नहीं हैं तनु ?'

सभी बच्चे तनु से प्रश्न करने लगे कि आखिर हमारे साथ खेलने बाहर क्यों नहीं जाएगी. कुछ देर तनु चुप रही. फिर बोली- 'नीतू, खुशी, शिखा! मैं जाऊँगी तुम सब के साथ पर मेरी कुछ शर्तें हैं.'

'क्या शर्तें हैं दीदी?' ओमू और बिट्टू बोले.

'बाहर रंग खेलते समय कोई किसी को अपशब्द नहीं बोलेगा.' तनु 'किसी के ऊपर कोई सादा या गर्म पानी नहीं डालेगा; और कोई, किसी के चेहरे या शरीर पर कोयला, कीचड़, तेल, पेंट, ग्रीस आदि नहीं लगाएगा. बोलो, क्या तुम्हें मेरी शर्तें मंजूर है ?' शिखा बोली- 'हाँ तनु, ठीक है. तुम सही कह रही हो. ऐसा कुछ नहीं होगा.'

'हाँ-हाँ,दीदी! आप जैसा चाहोगी, वैसा ही होगा, अब चलो बाहर.' सभी ने हाँ में हाँ मिलाई. तनु मान गयी. बच्चे खुशी से झूम उठे- 'होली है भई,होली है.'


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बोलते मुर्दे

रचनाकार- अजय अवस्थी किरण

murda

एक राजा था उसे सनक सूझी और उसने फरमान जारी कर दिया कि इस राज्य में कोई बूढ़ा नहीं रहेगा. राजा ने अपने सभासदों से कहा कि बूढ़े किसी काम के नहीं होते. ये केवल अनाज के दुश्मन होते हैं. राजा के विरुद्ध कौन बोले. सबने हाँ कर दी. राजा ने कह दिया कि इस राज्य में जो भी बूढ़ा है उसे मार दिया जाए.

अब तो बूढ़ों पर आफत आ गई घर-घर से बूढ़े ढूँढकर निकाले जाने लगे और मौत के घाट उतारे जाने लगे. राज्य से सारे बूढ़े गायब हो गए. कत्लेआम के बाद राज्य भयावह सन्नाटे में डूब गया. लोग दहशत में आ गए. अब जो भी बूढ़ा होगा वो मार दिया जाएगा. बूढ़े हो रहे लोग अपनी मौत के दिन गिनने लगे.

राज्य में एक गरीब व्यक्ति ने राजा के सैनिकों के आने से पहले रातोंरात अपने बूढ़े पिता को राज्य के बाहर ले जाकर जंगल में छुपा दिया.

राजा बड़ा खुश था कि अब उसके राज्य में खूब तरक्की होगी, राज्य का खर्च बचेगा और युवाओं के अधिक संख्या में होने से खूब काम होगा.

कुछ दिन बीते, पड़ोसी राज्य के शक्तिशाली राजा का दूत इस राज्य में पहुँचा. उसने अपने राजा की चुनौती दी, कि हमारे राजा ने कहा है कि यदि राजा ने एक शंख के इस पार से उस पार धागा डालकर दिखा दिया, तो उसे युद्ध नहीं लड़ना होगा अन्यथा उसे युद्ध लड़ना होगा.

राजा ये चुनौती सुनकर सोच में पड़ गया. उसने खूब प्रयत्न किया लेकिन उसे कुछ न सुझा. अतः इसे सुलझाने का काम अपने युवा दरबारियों को दिया,कोई भी इसे नहीं सुलझा सका. शंख के अंदर तो बहुत घुमावदार नली होती है, उसमें से धागा आर-पार निकालना लगभग असंभव था. मंत्री, सेनापति,विद्वान सभी हार गए, राजा की चिंता बढ़ गई कि यदि ये समस्या नहीं सुलझी तो समझो मौत निश्चित है. क्योंकि उस राजा से युद्ध होना मतलब राजपाट और जीवन दोनों से हाथ धोना था. उसने राज्य भर में ऐलान करवा दिया कि जो भी इस प्रश्न का समाधान बताएगा उसकी मुंहमांगी मुराद पूरी होगी.

कोई नहीं बता पा रहा था. इधर मियाद खत्म हो रही थी. वो गरीब लड़का हर दिन अपने पिता के लिए खाना लेकर जाता और राज्य का हाल चाल अपने बूढ़े पिता को बताता. उसने ये बात भी बताई. सुनकर उसके बाप ने उसे कुछ समझाया और राजा के पास जाने को कहा.

वो गरीब लड़का राजा के महल में पहुँचा उसने दरबारियों से कहा कि उसे राजा की समस्या का हल मिल गया है. उसे राजा से मिलने दिया जाए.

उसे राजा के पास ले जाया गया. सभा भरी हुई थी. दुश्मन देश का दूत भी मौजुद था. फिक्र और डर में डूबा राजा अपने सिंहासन पर बैठा हुआ था.

लड़के ने शंख और गुड़ की चाशनी से डूबा धागा मँगवाया. शंख के एक सिरे पर धागे में बहुत सारी चीटियाँ डालकर रख दिया. चीटियाँ धागे का सिरा पकड़ कर शंख के छेद में घुस गईं और धागे को साथ लेकर शँख के दूसरी ओर बाहर आ गईं. धागा शंख के आर-पार हो गया. इस समाधान को देख कर पड़ोसी राजा का दूत बहुत निराश हुआ और चला गया और राज्य में आया युद्ध का संकट टल गया. राजा की खुशी का ठिकाना नही रहा. उसने लड़के से पुरस्कार माँगने को कहा लेकिन इससे पहले राजा को उत्सुकता हुई कि ये तरकीब उसे कहाँ से पता चली. उसने लड़के से सच सच बताने को कहा. अब लड़का सच बोलता तो मुश्किल थी, कि उसने राज्य से एक बूढ़ा गायब कर राजा के आदेश की अवहेलना की थी, राजद्रोह का आरोप लग सकता था. उसने चालाकी से कहा कि महाराज ये राज मुझे कब्रिस्तान से मिला है. मैंने तंत्र साधना की हुई है और मुझे मुर्दों ने बताया है. आप चाहें तो मैं आपकी बात भी मुर्दों से करवा सकता हूँ. आपने जितने बूढों को मरवाया है,वही मुर्दे मुझसे बात करते हैं. उनमें से एक मुर्दे ने मुझे ये तरकीब बताई है.

राजा को आश्चर्य हुआ, उसने सत्यता जानने के लिए अपने सैनिक को उस युवक के साथ भेजा.

रात के सन्नाटे में उस लड़के ने अपने पिता को कब्रिस्तान में घने पेड़ो के बीच छुपा दिया. सैनिक जब साथ में आया तो लड़के ने बुदबुदाते हुए चावल के कुछ दाने फेंके. उस इशारे को भांप कर उसके बाप ने जोर जोर से बोलना शुरू किया.

राजा का अंत आ गया है, राजा बच नहीं सकता. राजा जब तक बूढ़ों का सम्मान नहीं करेगा ऐसे संकट आते रहेंगे, राजा का अंत करीब है.

सैनिक घबरा गया और जाकर सारी बात राजा को बताई कि इस राज्य के कब्रिस्तान में सच में मुर्दे बोलने लगे हैं और आपके अंत की भविष्यवाणी कर रहे हैं.

राजा घबरा गया और उसने तत्काल अपना सनकी फरमान वापस ले लिया और ऐलान किया, कि आज से सभी घरों में बुजुर्गों की पूजा होगी. उसने लड़के को खूब सारा इनाम देकर अपना सलाहकार बना दिया.


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