लेख

श्रीरामचरितमानस का प्रसंग

सीमा यादव

Ramcharit

चौपाई

'सुमति कुमति सब कें उर रहहीं
नाथ पुरान निगम अस कहहीं
जहाँ सुमति तहँ सम्पति नाना
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना'

अर्थात् 'सुमति और कुमति (सद्बुद्धि और दुर्बद्धि) सबके हृदय में निवास करती हैं. ऐसा पुराण, उपनिषद् एवं वेदों में कहा गया है. जहाँ अच्छी बुद्धि का वास होता है वहाँ तरह -तरह की सम्पत्ति निवास करती हैं, इसके विपरीत जहाँ कुबुद्धि हावी होती है वहाँ की वायु नाना प्रकार के कष्टों को देने वाली हो जाती है.'

मित्रों! आइये आज मैं आप को सुमति और कुमति से उत्पन्न होने वाले परिणामों के बारे में बताना चाहती हूँ. हो सकता है आप मेरी बातों से सहमत न हों, पर यदि आप में से एक थोड़े से समूह को भी मैं अपनी बात समझा पाने में सफलता प्राप्त करती हूँ तो ये मेरे लिए बड़ी उपलब्धि होगी.

दोस्तों! हम अपने आस-पास घटित घटनाओं से कई बार स्तब्ध या मौन हो जाते हैं, क्योंकि कभी-कभी ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं जिनके बारे में हमने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होती है. तब हमारा मन मस्तिष्क हमें विचार मंथन करने पर विवश कर देता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? यदि ये बात होती तो ऐसा कभी नहीं होता? या फिर काश! ऐसा किए होते तो ये दिन देखने नहीं पड़ते. जब व्यक्ति के पास सुख-शान्ति और सुकून होते हैं तो उसे उनकी क़ीमत समझ में नहीं आती. किन्तु जब कोई चीज उसके पास नहीं होती तो उन चीजों को पाने के लिए हजार प्रयत्न करते हैं. भले ही उसकी क़ीमत जो भी हो. यही मानवीय स्वभाव है.

मानव की इस जगत के सबसे बुद्धिमान प्राणियों में गिनती होती है. फिर भी मनुष्य अपनी आदत से बाज नहीं आता. जिसका जैसा स्वभाव होता है वह वैसा कार्य करने हेतु उत्साहित रहता है. मानव भी प्रकृति के ही अधीन होते हैं, उनके अपने हाथ में कुछ नहीं होता है. तभी तो न चाहते हुए भी बिना किसी प्रयोजन के उनके द्वारा ऐसा कृत्य कर दिया जाता है कि कल तक जो इतने आदरणीय, सम्माननीय माने जाते थे वे एक ही झटके में सबकी नजरों में घृणा के पात्र हो जाते हैं.

एक पाती शिक्षक के नाम

रचनाकार- श्रीमती रजनी शर्मा

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यह एक पाती आपको लिखने का साहस कर रही हूँ. जब से पढ़ने के साथ समझना सीखा 'संवादहीन संप्रेषण' तो होता ही रहा है हमारे बीच. 'सुक्खम-दुक्खम' की चुगली आपसे करती रही मैं बाल सुलभ मन से. मौसमों के अखबार में मेरे मन का जब रिजल्ट छपता था तो आप के ही हस्ताक्षर मुझसे संवाद करते थे. बाल मन से कैशोर्य के चंपई अंधेरों में धूप -छाँव तो आप ही बाँटते रहे.

जब तय शुदा तरीकों से परे शिक्षण की बात हो तब आप ही मेरे सामने इस उम्र में भी नए कलेवरों के साथ सदैव उपस्थित रहे. जानती हूँ कि यांत्रिक उपकरणों का प्रयोग आप जैसे शब्दों के महारथी के लिए कितना दुरुह रहा होगा पर आपने अपने अनुभव की शरबत में धैर्य की चीनी घोली. घर-घर दस्तक देते मुझे आप ही मिलते थे. सारे रोगों की चपेट में आकर भी आप सारी गणनाएँ करते रहे. मेरे भविष्य के लिए तमाम दुरूह, उबाऊ यांत्रिकी कार्यों का ककहरा आपने हमारे लिए सीखा.

इस बीच कितनी उथल- पुथल रही होगी आपकेअंतस में? पर हमारे मन के पहाड़े को आप बिना बोले पढ़ते रहे. इन परिस्थितियों में जीवन के गुणा-भाग से परे साँत्वना का इमला मन की स्लेट पर लिखवाते रहे. जिसमें सकारात्मकता की मात्राओं पर ही आपका विशेष ध्यान रहा.

हाड मांस की देह आपकी भी तो थकती होगी. मन भी पस्त होता रहा होगा. पर कभी नहीं कहा न कभी बताया. आड़ी तिरछी मकड़ी सी रेखा वाले अक्षरों पर शाबाशी देना. अनगढ़ रचनाओं पर वाहवाही करना और मेरी अशिष्टता. घंटों तक आपका मोबाइल पर अनावश्यक संदेशों का यत्नपूर्वक उत्तर देना. ऊँगलियां आप की भी दुखती रही होंगी न? रीढ़ की हड्डी भी बहुत कुछ कहती रही होगी न? आपके चश्मे का नंबर भी बढ़ गया होगा न? पर हमने यह सब कब समझा? आपका यह आचरण क्या कोई समझ पाया? क्या कभी समझ पाएगा? आज आप जैसे भगीरथी ही ज्ञान की गंगा को इस विकट परिस्थिति में धारण कर हम तक पहुँचा रहे हैं. ज्ञान की सलिला को हम तक ला देना क्या कोई कर सकता है? ज्ञान के निवाले तो बाद में भोजन का निवाला भी आप घर-घर तक बिना नागा पहुँचा ही रहे हैं.

सामान्य परिस्थितियों के शिक्षक और इस लंबी असामान्य परिस्थिति में आपका नया कलेवर और अधिक सहज, सरल, मानवीय संवेदनाओं से भरा हुआ. क्या कुछ नही खोया आपने?

पर आपने समेट लिया मुझे ........ हमेशा हमेशा की तरह ... नि:शब्द

हमारे प्रेरणास्रोत- पिंगली वेंकैया

Venkaya

हम सभी जानते हैं कि हमारे देश का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है. आज हम आपको तिरंगे की रूपरेखा तैयार करने वाले पिंगली वेंकैय्या के बारे में बताने वाले हैं जिनका जन्मदिन भी अगस्त माह में ही आता है, तो आइए उनके बारे में कुछ और जानते हैं.

भारत के राष्‍ट्रीय ध्वज की रूपरेखा तैयार करने वाले पिंगली वेंकैय्या का जन्म आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले के 'दीवी' तहसील के 'भटालापेन्नमरू' नामक गाँव में 2 अगस्त, 1876/1878 को हुआ था. उनके पिता का नाम पिंगली हनुमंत रायुडू एवं माता का नाम वेंकटरत्‍नम्‍मा था. पिंगली वेंकैय्या भटालापेन्नमरू एवं मछलीपट्टनम से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद 19 वर्ष की उम्र में बम्बई (अब मुंबई) चले गए. वहाँ उन्‍होंने सेना में नौकरी कर ली, जहाँ से उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया.

सन 1899 से 1902 के बीच दक्षिण अफ्रीका के 'एंग्लो बोअर' युद्ध में उन्होंने भाग लिया. दक्षिण अफ्रीका में वेंकैय्या की मुलाकात महात्मा गाँधी से हुई. वे गांधीजी के विचारों से बहुत प्रभावित हुए. दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौटने पर बम्बई (अब मुंबई) में रेलवे में गार्ड की नौकरी करने लगे. इसी बीच मद्रास (अब चेन्नई) में प्लेग महामारी के चलते कई लोगों की मौत हो गई, इससे उनका मन व्यथित हो उठा. उन्‍होंने रेल्वे की नौकरी छोड़ दी और मद्रास आकर प्लेग रोग निर्मूलन इंस्‍पेक्‍टर के पद पर तैनात हो गए. बाद में वे उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने लाहौर चले गए.

वेंकैय्या कई विषयों के ज्ञाता थे, उन्हें भूविज्ञान और कृषि से विशेष लगाव था. 1906 से 1911 तक पिंगली कपास की विभिन्न किस्मों के अध्ययन में लगे रहे. उन्‍होंने अमेरिका  से कम्बोडिया नामक कपास के बीज का आयात किया और इस बीज को भारत के कपास बीज के साथ अंकुरित कर भारतीय संकरित कपास का बीज तैयार किया. उनके इस शोध कार्य के लिये इन्हें पट्टी वेंकय्या के नाम से जाना जाने लगा.

काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान वेंकैय्या ने भारत के राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता पर बल दिया. इस विचार से सहमत होकर गाँधीजी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया.

पिंगली वैंकया ने पाँच सालों तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया और अंत में तिरंगे के लिए सोचा. 1921 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के विजयवाड़ा अधिवेशन में पिंगली वेंकैय्या ने महात्मा गाँधी को अपने द्वारा डिज़ाइन किया लाल और हरे रँग से बनाया झण्डा दिखाया. इसके बाद काँग्रेस के अधिवेशनों में दो रंगों वाले झण्डे का प्रयोग किया जाने लगा लेकिन तब इस झण्डे को कांग्रेस से अधिकारिक स्वीकृति नहीं मिली थी.

इस बीच जालंधर के हंसराज ने झण्डे में चरखा बनाने का सुझाव दिया. चरखे को प्रगति और आम आदमी का प्रतीक माना गया. बाद में पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया. 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया. बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली.

इस ध्वज को लेकर स्वतंत्रता के सिपाहियों ने अनेक आन्दोलन किए और अंततः भारत ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947 को मुक्त हो गया. उन दिनों पिंगली वेंकैय्या का बनाया यह झण्डा झण्डा वेंकैय्या के नाम से लोकप्रिय हो गया था. 04 जुलाई 1963 को पिंगली वेंकैय्या का देहावसान हो गया. भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था.

पिंगली वेंकैय्या को भारत के राष्ट्रीय ध्वज की रूपरेखा तैयार करने के लिए हमेशा याद किया जाएगा.

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पढ़ई तुँहर दुआर

रचनाकार- श्रीमती शालिनी दुबे

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स्कूल चल रहे थे, सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा था कि एकाएक शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए.

क्योंकि कोरोना वायरस के संक्रमण से सबसे पहले बच्चों को बचाना था. किसी प्रकार की तैयारी का समय ही नहीं मिल पाया. न परीक्षा हो पाई, न ही बच्चों को कुछ समझाईश देने का मौका मिला. जैसे छुट्टियाँ शुरू होने के पूर्व शिक्षक बच्चों को गृहकार्य देते हैं, निर्देश देते हैं. बच्चों को लेकर मन में चिंता बढ़ने लगी थी कि घर पर रहकर वे कैसे पढ़ाई से जुड़े रहेंगे?

इधर कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए केंद्र सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया. बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो इसलिए एक योजना लाई गई ``पढ़ई तुंहर दुआर' जिसका उदघाटन मुख्यमंत्री जी द्वारा 7 अप्रैल 2020 को किया गया. एक माह बाद ही इस योजना की सफलता का आँकड़ा 27 करोड़ पेज व्यू तक पहुँच गया. 20 लाख विद्यार्थियों ने पंजीयन करवा लिया और एक लाख 70 हजार से अधिक शिक्षक ऑनलाइन शिक्षा प्रदान कर रहे हैं.

छतीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा संचालित ऑनलाइन शिक्षा पोर्टल में 'पढ़ई तुंहर दुआर' कार्यक्रम की बिना किसी खर्च के की गई. चिंता का विषय था कि आने वाले सत्र की तैयारी नहीं हो पा रही है. इस बीच स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा एक ऐतिहासिक पहल की गई. एक तरह की अभिनव पहल, जिसमें बच्चों ने अपना रजिस्ट्रेशन एक सामान्य प्रक्रिया द्वारा किया. इस वेब पोर्टल पर ऑनलाईन पढ़ाई आकर्षक तरीके से कराई जा रही है. बच्चे भी अपनी सुविधानुसार विषय का चयन कर ऑनलाइन कक्षाओं से जुड़ते हैं. शिक्षकों के साथ चर्चा करते हैं. वास्तविक कक्षाओं की तरह होमवर्क से लेकर फीडबैक, शंका का समाधान भी किया जा रहा है.

सिर्फ एक क्लिक पर बच्चों को शिक्षा उपलब्ध हो रही है. जिसका लाभ सरकारी व निजी स्कूल के विद्यार्थी उठा रहे है. उत्कंठा ऐसी जागी कि बच्चें जुड़ते चले गये और इतना रम गये की कब गर्मी की छुट्टियाँ आई कब गयीं पता ही नही चला. बच्चे ननिहाल जाना भी भूल गए.

जुलाई करीब आ गयी. जब हँसते-खिलखिलाते, स्कूल यूनिफॉर्म पहने, पीठ पर बैग लादे, आँखों में भविष्य के न जाने कितने सपने लिए. मुट्ठी में वक्त को थामे. नई ऊर्जा के साथ स्कूल के लिए नन्हे कदमो से डग भरते बच्चे आह्हा! ये सुंदर दृश्य देखकर न सिर्फ शिक्षक बल्कि हर इंसान के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है. यही मौसम, यही माह जब स्कूल खुलता है. हाँ क्या हुआ? जो स्कूल इस बार कुछ विलम्ब से खुले.

भला किसने हिम्मत हारी है,
पढ़ाई तो अब भी जारी है.

अब इस योजना के तहत बच्चे पढ़ाई से वंचित नही बल्कि वो इतिहास बना रहे है. आने वाली पीढ़ी गर्व से फूली नही समाएगी कि 'संकट की घड़ी में बच्चों ने कैसा साहस दिखाया. उनके गुरूओं की मेहनत, परिश्रम ने मिलकर शिक्षा जगत में शिक्षक व छात्र का सुंदर चित्र बनाया.

बहुत से प्रश्न मन में उठते है कि यह कैसे सम्भव हुआ? कुछ आलोचनाएँ भी हुईं पर जिनकी इच्छाशक्ति प्रबल थी वो निकल पड़े स्वर्णिम इतिहास रचने. सच कहूँ तो जिगर में हौसला हो तो समंदर भी रास्ता देता है.

बस एक शुरुआत थी आने वाले हर पल को बेहतर बनाने की.
पूरा विश्वासहै कि 'आज से बेहतर आने वाले कल की तस्वीर होगी.'

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सफलता की कहानी

रचनाकार- श्रीमती शालिनी दुबे

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शोर मचाये सफलता,मेहनत इतनी ज्यादा हो. हो फख्र हर किसी को इकदिन, खुद से ऐसा वादा हो..

मुश्किलें इंसान को न जाने क्या-क्या हुनर सिखाती है. कोविड के इस समय में, मैंने स्वयं को विद्यार्थी की तरह पाया है औऱ बहुत कुछ सीखा है. नई-नई तकनीकें सीखीं ताकि अपने विद्यार्थियों को बेहतर तरीके से पढ़ाऊँ कि वो आभासी कक्षा में भी उसी तरह लगन से पढ़ें जैसे वास्तविक कक्षा में. ऐसा मानना है बेमेतरा जिले की शिक्षिका श्रीमती शालिनी दुबे का. इनकी सफलता की कहानी बच्चों के प्रति निस्वार्थ प्रेम व तन्मयता से शिक्षण कार्य का ही परिणाम है, जिससे इस डिजीटल समय में इनका कार्य डिजिटल हुआ व जिले में इनका नाम उभरकर सामने आया.

पढ़ई तुँहर दुआर एक ऐसा पवित्र यज्ञ है जहाँ कोरोनाकाल में शिक्षा विभाग के शिक्षकों ने विद्यार्थियों को लाभान्वित करने का नवाचार किया व अपनी पूरी क्षमता लगा दी.

ऑनलाइन शिक्षा:- बच्चों का cgschool में पंजीयन कर ऑनलाइन क्लास, बहुत ही रोचक तरीके से पी.पी.टी. के द्वारा कक्षाएँ आयोजित की जाती हैं. बच्चों को सरलतम तकनीक द्वारा व रोचक तरीके से शिक्षण कार्य के लिए विभिन्न तकनीकों को सीखकर शिक्षण के दौरान आकर्षक पीपीटी का इस्तेमाल किया गया. 249 कक्षाएँ अब तक ली गई. ऑफलाइन कक्षाएँ भी ली गईं.

ब्लॉग लेखन:- राज्यस्तरीय ब्लॉग लेखन के दायित्व का निर्वहन किया गया व cg वेबपोर्टल पर इनके द्वारा लिखे 17 ब्लॉग अपलोड हुए.

पॉडकास्ट टीम:- जनवरी माह चर्चा पत्र में एजेंडा -09,फरवरी माह-एजेंडा-05 व मार्च माह एजेंडा-03 को अपनी आवाज देने का अवसर मिला.

कार्टून वीडियो:-.इनके द्वारा कार्टून वीडियो बनाए गए हैं जो लर्निंग आउटकम पर आधारित होते हैं.

टॉय पेडागोजी:-टॉयज मेकिंग (खिलौने बनाना) नई शिक्षा नीति के तहत लर्निंग आउटकम पर आधारित बहुत सारे खिलौने इनके द्वारा बनाए गए हैं. बच्चो को मिट्टी की कलाकृति बनाना सिखाया गया साथ ही बच्चों को अपने मन से आकृतियाँ बनाने का अवसर दिया गया. बच्चों ने खूब सारे मिट्टी के खिलौने भी बनाए. शाला स्तर पर प्रदर्शनी भी आयोजित की गई व SCERT 2021 टॉय फेयर में इनके बनाए वायु दाब पर आधारित टॉयज का चयन भी हुआ.

टी.एल.एम. निर्माण कार्य :- विज्ञान के अलावा संस्कृत इंग्लिश, हिंदी गणित सामान्य ज्ञान पर भी टी.एल.एम. बनाए गये.

अँगना म शिक्षा कार्यक्रम का बेमेतरा जिले में पहला आयोजन इनके द्वारा किया गया.

ऑग्मेंटेड रियलिटी:-शिक्षण कार्य मे ऑग्मेंटेड रियलिटी का उपयोग किया गया, ताकि बच्चे शब्द प्रमाण तक सीमित न रहें, उनके सामने ही वो चीजें वास्तविक रूप में हों.

स्टोरी वीवर:- लेखन का शौक होने की वजह से कुछ कहानियाँ, बाल साहित्य लिखकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. किलोल में भी बच्चों के लिए कविता, कहानी,लेख लिखे.

कबाड़ से जुगाड़:-क्ले और वातावरण में उपलब्ध अन्य सामग्री के द्वारा कबाड़ से जुगाड़ बनाया गया, ताकि बच्चों को भी सिखा सकें व उन्हें शिक्षण कार्य से जोड़ सकें.

विज्ञान की अनोखी दुनिया:- नवाचारी गतिविधि. इस कोविड महामारी के समय में भी विभिन्न तरीकों से बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया गया. 'विज्ञान की अनोखी दुनिया' के द्वारा शनिवार को बच्चों के बीच प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. इस कार्यक्रम के माध्यम से कोरोना से बचाव के लिए जागरूक किया गया. प्रतिदिन ऑनलाइन कक्षा के साथ विज्ञान पर आधारित चित्रों की प्रतियोगिता आयोजित की गई.

बच्चों में रचनात्मक कौशल के विकास के लिए

1. आर्ट एंड क्राफ्ट की कक्षाएँ ली गईं.
2. खिलौने बनाना सिखाया गया.
3. कबाड़ से जुगाड़ के अंतर्गत शाला स्तर पर प्रदर्शनी लगाई गई. जिसमें लगभग 90% बच्चों ने भाग लिया.
4. खिलौना बनाना सिखाया गया जो लर्निंग आउटकम पर आधारित है. मेरे द्वारा भी लर्निंग आउटकम पर बहुत सारे खिलौने और शिक्षण सामग्री बनाई गई ताकि बच्चे शिक्षा से जुड़ सकें.
5. कोरोना के प्रति जागरूकता के लिए टीमवर्क का आयोजन किया गया और 'कोरोना को पत्र' लिखा गया. ऑरिगामी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया.

कहानी लेखन प्रतियोगिता का आयोजन ऊर्जा संरक्षण पर चित्रकला व स्लोगन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. ताकि बच्चों में कल्पना शक्ति का विकास हो.

विज्ञान के लिए रुचि जागृत करने के लिए बच्चों को विज्ञान से संबंधित मजेदार कार्य दिया जाता है जैसे अपने आसपास से विज्ञान के चमत्कार से संबंधित उदाहरण ढूँढ कर उनकी फोटो खींच कर या वीडियो बनाकर भेजें.

बच्चों में सामाजिक गुणों के विकास करने के लिए चर्चा का विषय पर कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है 'राष्ट्रीय किसान दिवस पर चर्चा रखी गई 'हमें भोजन कहाँ से मिलता है और हमारे अन्नदाता किसान व उनके कार्यों पर चर्चा करें!'

गूगल फॉर्म:-विज्ञान, संस्कृत, इंग्लिश टेस्ट गूगल फॉर्म के द्वारा लिया जाता है.

लर्न विद फन':- इस कार्यक्रम के तहत प्रयोगों पर आधारित शिक्षण कार्य करवाया जाता है. जिसमें विज्ञान से संबंधित प्रयोग करके बच्चों को उनके सिद्धांत बताए जाते हैं.

इंग्लिश रीडिंग आयोजन किया जाता है ताकि बच्चे अच्छे से इंग्लिश पढ़ना सीखें.

इनके यू ट्यूब चैनल विज्ञान की अनोखी दुनिया में टी.एल.एम. लर्निग आउटकम पर आधारित टॉयज, पीपीटी आधारित पाठ्यक्रम व कार्टून वीडियो द्वारा शिक्षण सामग्री उपलब्ध है.

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त्रिया चरित्र

सीमा यादव

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'त्रिया चरित्र' अर्थात् तीन प्रकार के लक्षण या विशेषता या फिर पहचान. त्रिया चरित्र शब्द का प्रयोग आख्यानों में नारियों के लिए किया गया है. कई लोग अपनी नासमझी के कारण नारी जाति को हेय नजरों से देखते हैं वे त्रिया चरित्र का अर्थ अपनी अनभिज्ञता के कारण गलत रूप में इस्तेमाल करते हैं, इसी कारण आदिकाल से आज पर्यन्त दोयम दर्जे का कलंक लिए कई स्त्रियाँ आज भी उपेक्षित और प्रताड़ित हो रही हैं. मैं त्रिया चरित्र का तात्पर्य अपने तरीके से समझाने की प्रयास करुँगी.

त्रिया चरित्र शब्द का इस्तेमाल सिर्फ महिलाओं के ही संबंध में किया जाता है. महिलाएँ इस कारण भी बहुत अधिक सम्माननीय एवं पूजनीय होती हैं कि प्रत्येक नारी अपने तीन चरित्रों के साथ इस सृष्टि में जन्म लेती हैं.

प्रथम -बेटी का रूप लेकर माता-पिता के कुल की रक्षा करती हैं, द्वितीय -किसी की पत्नी होकर जीवन पर्यन्त पतिव्रत धर्म का अनुसरण करती हैं और पति की सहगामिनी बनकर प्रत्येक दशा में गुरु की तरह सलाह देती हैं एवं आने वाली समस्या से सतर्क रखने हेतु सावधान कराती है.

तृतीय -नारी अपने बहू रूप में दो परिवारों को आजीवन गहरे एवं मधुरता के साथ सामंजस्य रखकर चलना सिखाती है. नारी का यह तृतीय रूप बड़ा ही दुष्कर और विकट होता है. यही वह भूमिका होती है, जिसमें सुव्यवस्थित होकर चलने की बात होती है. यदि ससुराल पक्ष अच्छा हुआ तो सोने पर सुहागा हो जाता है और दुर्भाग्यवश यदि नारी का प्रारब्ध दुःखदायी हो तो बेचारी नारी पर तरह-तरह की यातनाएँ यहीं पर आरम्भ होती हैं. यह तीसरी भूमिका ही वास्तव में मुख्य भूमिका होती है. इसी रूप से नारी को अबला या सबला का चोगा पहना दिया जाता है.

दोस्तो, ध्यान रहे, त्रिया शब्द का अर्थ अच्छे-अच्छे ज्ञानी लोगों को भी नहीं पता होता है. वे स्त्री के बारे में बहुत ही ओछी सोच रखते हैं और अपनी कमजोरी को छुपाने में शिद्दत से लगे रहते हैं. कई पुरुष तो इतनी संकीर्ण विचारधारा वाले होते हैं कि उनकी दृष्टि में पत्नी केवल भोग की वस्तु है. ऐसा निकृष्ट नजरिया रखते हैं कई पुरुष इतने झूठे अहंकार में जीवन जीते हैं कि औरत को नरक का द्वार तक की संज्ञा दे डालते हैं. अपनी खोखली सोच को समाज में इस तरह से स्थापित कर देते हैं कि नारी- ही नारी की सबसे बड़ा शत्रु हो जाती है. एक नारी दूसरी नारी के गुणों को कुचलने की कोशिश में लगी होती है. उन्हें जरा भी दूसरों की खुशी की अनुभूति नहीं होती है.नारी को नारी का दुश्मन बनाने वाला कोई दूसरा नहीं वरन् पुरुष जाति ही सबसे बड़ा कर्ता-धर्ता एवं हर्ता है. निष्ठुर, निकम्मे होकर भी पुरुष परिवार का प्रधान अंग माने जाते हैं. पुरुष अपने इसी अहंकार के कारण दम्भी, व्यभिचारी एवं हवसी होते हैं और शक्तिस्वरूपा नारी के चरित्र को कलुषित करके समाज, परिवार एवं सम्पूर्ण सृष्टि में नारी को असहाय बनकर दर- दर की ठोकरें खाने को विवश कर देते हैं. बेचारी नारी इस परिस्थिति को स्वीकार करें या बर्दाश्त यह उनकी अंत:करण की पवित्रता एवं सहनशीलता पर निर्भर करता है. नारी किसी भी क्षेत्र में पुरुष से कम नहीं होती बल्कि गौर किया जाए तो वे पुरुषों से भी कई मायनों में श्रेष्ठ होती है. नारी में संतति को उत्पन्न करने का वरदान प्राप्त है. पुरुष वर्ग अपनी छाती से किसी नन्हें शिशु को 'दूध' नहीं पिला सकता है. कोई पुरुष किसान की तरह केवल संतति या सृष्टि की रचना हेतु बीज की बुवाई कर सकता है, उस बीज के अंकुरण होने से लेकर एक पौधा बनने तक की प्रक्रिया में जो त्याग और मेहनत लगती है उसे केवल और केवल नारी ही अपनी सहनशीलता एवं असीमित धैर्य से कर लेती है और परिस्थिति को काबू में करके सारी दुनिया में अपनी ममता की वर्षा से बाढ़ ला देती है. नारी ममता की वह मूर्ति होती है कि उसका दर्जा और माँ धरती का स्थान स्वर्ग से भी श्रेयस्कर एवं श्रेष्ठ होता है.

धरती पर नारी के औचित्य की जो महत्ता आख्यानों से मिलती है उससे यही स्पष्ट होता है कि नारी ही शक्ति है और अपनी अपार शक्ति से स्वयंभू ब्रह्म, विष्णु एवं महेश जो कि क्रमशः कर्ता -भर्ता -हर्ता हैं, उन्हें भी माँ शक्ति विशेष परिस्थिति में उनकी स्तुति, प्रार्थना एवं वंदना करने हेतु विवश कर देती हैं. अर्थात् ब्रह्म, विष्णु और शिवशम्भू का अस्तित्व तभी कायम रहेगा जब माँ भगवती, माँ भवानी एवं माँ आद्यशक्ति उनकी ओर कृपा दृष्टि रखती है, उनके बिना सृष्टि में सुख, शान्ति नहीं मिल सकती है. पराशक्ति ही प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में सृष्टि की वास्तविक रचयिता है. कलयुग के सारे नकारात्मक, दोयम दर्जे की सोच रखने वाले पुरुषों को अपने खोखले आडंबर, दिखावे और झूठी मर्दानगी का अर्थ समझ में आ गया होगा. इसीलिए समभाव की भावना और दृष्टिकोण अपनाने वाले बुद्धिमान पुरुष का घर-परिवार बहुत ही बहुत खुशहाल माना जाता है. चतुर पुरुष हमेशा अपनी पत्नी को परिवार की मुख्य धूरी समझकर उसकी भावना का सम्मान और प्रेम करते हैं. ऐसे पुरुष ही समाज के स्वस्थ और अभिन्न अंग माने जाते हैं.

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