बालगीत

ये नभ के हैं न्यारे तारे

रचनाकार-महेंद्र कुमार वर्मा

शाम ढले नभ पे छा जाते,
सबको अपनी चमक दिखाते.

बड़े सवेरे सूरज आता,
उसे देख सारे छुप जाते.

उनकी गिनती करना मुश्किल,
इसीलिए अनगिनत कहाते.

सारी रात चमकते रहते,
नहीं काम से जी ये चुराते.

चंदा बदले रूप रोज ही,
ये जैसे हैं वही दिखाते.

ये नभ के हैं न्यारे तारे,
ये बच्चों का मन हर्षाते.

'

गर्मी आई

रचनाकार-पुष्पलता साहू

आई रे आई, गर्मी आई,
ठंडी आइसक्रीम मन को भाया.
छोड़कर अब कंबल रजाई,
कूलर पंखा मन को भाया.

खट्टे मीठे आम और अंगूर,
रसभरे तरबूज ने प्यास बुझाई.
लौकी कद्दू भिंडी और ककड़ी,
दादी का मन फिर ललचाया.

आग सी जल रही है धरती,
मौसम ने ली है अँगड़ाई.
पेड़ों पर लदे पलाश के फूल,
खेत है फिर से मुस्काया.

वो बचपन का जमाना था

रचनाकार-संतोष तारक

एक बचपन का जमाना था....
जिसमें खुशियों का खजाना था.
चाहत चाँद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दिखाना था.
खबर न थी कुछ सुबह की,
न शाम का ठिकाना था.
थककर आना स्कूल से,
पर खेलने जाना था.
माँ की कहानी थी,
परियों का फ़साना था.
बारिश में कागज की नाव थी,
हर मौसम सुहाना था.
रोने की वजह न थी,
ना हँसने का बहाना था.
वो बचपन का जमाना था.

'

धरोहर अपनी कहानी लिए

रचनाकार-दीक्षा मिश्रा

हर धरोहर अपनी निशानी लिए है.
हमारे अतीत की कहानी लिए है..

कहीं सदा वीरत्व दिखता रहा है.
कहीं रंग इतिहास छलका रहा है.
नए युग में गाथा पुरानी लिए है,
हर धरोहर अपनी निशानी लिए है..

कहीं पर संस्कृति मुस्कराती दिखेगी.
कहीं पर विरासत कहानी लिखेगी.
कभी न मिटे वो रवानी लिए है,
हर धरोहर अपनी निशानी लिए है..

कहीं साक्ष्य बनकर हम ही से मिलाए.
कहीं वीरगाथा विजय की सुनाए.
रिवाजों से सजी काल-रानी लिए है,
हर धरोहर अपनी निशानी लिए है..

'

खिलौने

रचनाकार-सुधा रानी शर्मा

मामा लेकर,
आया खिलौना.
बंदर-भालू,
तोता-मैना.
बिस्कुट-टाफी,
चना-चबैना.
खेले-खाएँ,
दोनों भाई-बहना.

अमराई

रचनाकार-टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

देखो अमराई को गौर से.
हर पेड़ लदा है बौर से..

पत्तियाँ तक ढँकी हुईं हैं.
मस्त महक बिखरी हुई है..

कीट-पतंगे झूम रहे हैं.
डाल-डाल को चूम रहे हैं..

कोयल रानी बनी मेहमान.
छेड़ रही है प्रीत की तान..

शांति-सुकून है अमराई में.
बड़े-बड़े गुण रुख-राई में..

'

गर्मी आई

रचनाकार-राजेंद्र श्रीवास्तव

उफ! गरमी का मौसम आया,
तेज धूप से मन घबराया.
वन-उपवन में प्यासे पंछी,
खोज रहे पानी और छाया.
सूरज की किरणें झुलसातीं,
दया-भाव मन में न लातीं,
जिसने घर से कदम निकाले-
उसको तुरंत पसीना आया.
ए.सी.कूलर कोई चलाता
सीलिंग फैन कहीं घर्राता,
किसी-किसी को भली लग रही,
आम, नीम बरगद की छाया.
आइसक्रीम अहान को भाती
रानू कोल्ड ड्रिंक घर लाती
रोहन शरबत लेकर पीता,
परी को नींबू-पानी भाता.
टिया सयानी 'लू 'के डर से,
दोपहर में न निकलें घर से.
नन्हे हनु ने भी आँखों पर,
काला चश्मा आज लगाया.

'

प्रिंट रिच गांव, प्रिंट रिच वॉर्ड

रचनाकार-गोविंद पटेल

प्रिंट रिच वातावरण ने,
बना दिया गाँव को ही स्कूल.
हर बच्चा कोने–कोने से सीखे,
यही शिक्षक का ऊसूल.
शिक्षा देती हर गली,
सिखाती है हर दीवार.
हर खंभा भी बोल रहा है,
पढ़ लो मेरे लाल.
जहाँ होती है समस्या,
वहीं होता है समाधान.
दीवारें बन गईं ज्ञान का कोना,
अपने स्कूल जैसे लगने लगा.
अब गाँव का कोना-कोना,
खेल-खेल में मिल रही है शिक्षा,
गाँव की गलियों-दीवारों से शिक्षा.
खेलते-कूदते, उछलते-गाते,
अ-अनार सीख रहे बच्चे हँसते-गाते.
शिष्टाचार ज्ञान-विज्ञान की बातें,
सिखा रही है अब दीवारें.
आओ मिलकर करें प्रयास,
ताकि न रुके बच्चों का विकास.

'

मेरी धरती चमत्कारी

रचनाकार-कामिनी जोशी

चुंबक है धरती हमारी,
जिससे हैरान दुनिया सारी.
एक युवक था बड़ा बुद्धिमान,
आइजैक न्यूटन था उसका नामl
गया एक दिन टहलने बगीचा,
पेड़ के नीचे आराम करने सोचा.
जब बैठा वह पेड़ के बगीचे,
सेब आ गया उसके सिर के नीचे.
आगे देखा, पीछे देखा,
देखा ऊपर-नीचे,
सोचता` रहा यह फल कैसे आया नीचे.
फिर क्या था न्यूटन ने भी फल फेंका ऊपर के ओर,
फल फिर से आ गया खिंचे धरती की ओर.
क्या है यह रहस्य, कैसा यह चमत्कार,
फल क्यों आता हैं नीचे बार-बार,
सोच-सोचकर यह पता लगाया.
खोजबीन कर यह बताया.
चुंबक बनकर धरती हमारी,
खींचे अपनी ओर वस्तुएँ सारी.

चूहा-चुहिया

रचनाकार-सुनीला फ्रेंकलीन

चूहा-चुहिया की हुई सगाई.
चुहिया चली आई बिन बिहाई..
आते ही उसने शर्त लगाई.
बनना होगा तुम्हें घर-जमाई..
चूहा बोला ले अँगड़ाई.
मंजूर मुझको राम-दुहाई..
चूहे को ले चुहिया आई.
सबको निमंत्रण भिजवाई..
दावत उन्होंने ख़ूब सजाई.
दावत में एक बिल्ली भी आई..
आकर उसने धूम मचाई.
कहाँ छुप गए दूल्हे-भाई..
तुम्हें ज़रा भी शर्म न आई.
बन गए हाय राम घर-जमाई..
ठहर, तुझे मैं मज़ा चखाऊं.
चूहा भागा और जान बचाई..

बिल्ली और पिल्ली

रचनाकार-सुबोध कुमार फ्रेंकलीन

एक थी मोटी झबरी बिल्ली,
उसकी सहेली कुत्ते की पिल्ली.
नाम था उसका सिस्टर लिल्ली,
घूमने पहुँचे दोनों दिल्ली.
नेता की कर दी कुर्सी ढिल्ली,
चमचों ने एक लगाई किल्ली.
उनको मिला एक शेख-चिल्ली,
तीनों ने खाई फ़िर बर्फ-सिल्ली.
उसमें से निकली लम्बी इल्ली,
सब की उड़ गई ख़ूब खिल्ली.
फ़िर खरीदे तीन लड्डू तिल्ली,
खाकर खेले वो डण्डा-गिल्ली..

नारी शक्ति

रचनाकार-सपना यदु

चौका चूल्हा कपड़ा बर्तन.
रहती दिनभर की थकान..

गर्भ में शिशु, पर काम में जाती.
घर आकर फिर करती काम..

अपने सारे गम छुपाकर.
लाती सबके चेहरे पर मुस्कान..

पुरुषों से कहीं कम नहीं.
नारी तू तो है महान..

बिल्ली रानी

रचनाकार-खेमराज साहू

बिल्ली रानी बड़ी सयानी,
तुम खूब करती शैतानी.
कई चूहे पकड़े हैं उसने,
जैसे शेरनी की है नानी.
बिल्ली रानी बिल्ली रानी..

बिल्ली मौसी नाम जुबानी,
म्याऊँ-म्याऊँ है गाया करती.
हर चूहे पर रौब जमाती,
दूध-मलाई चाट कर खाती.
बिल्ली रानी बिल्ली रानी..

बिल्ली रानी करती मनमानी,
घर-घर ताक-झांक वह करती.
घूमे जैसे कोई महारानी,
दूर से आँखे ही चमकाती.
बिल्ली रानी, बिल्ली रानी..

बचपन से ही करे नादानी,
जल्दी से हाथ नहीं है आनी.
कूद-फांद की शुरू कहानी,
खुद को समझे शेर की नानी.
बिल्ली रानी बिल्ली रानी..

बेटी

रचनाकार-जितेन्द्र कुमार सिन्हा

सुन बेटी,
तू चमक आसमान में सूरज बन,
तू दमक जहान में हीरा बन,
आँसू आँखों में खुद के लिए नहीं,
दूसरों के दर्द के लिए बहे,
तेरे खून का कतरा-कतरा
देश और देशवासियों के लिए बहे..

सुन बेटी,
तुझे उड़ना सिखा रहा हूँ,
दुनिया कैसी है दिखा रहा हूँ,
बदल दे ऐसी ख्वाहिश नहीं,
पर पंख लगा के सपने पूरे कर,
इसलिए फर्ज निभा रहा हूँ बेटी.

सुन बेटी,
कुछ रोकेंगे,कुछ टोकेंगे,
कुछ क़दमों में काँटे बोएंगे,
रुकना नहीं, झुकना नहीं
बन जा सूरज,दीपक बन बुझना नहीं.

सुन बेटी,
ममता का जादू है हाथों में,
बेबस न होना बातों में,
आइना जब भी देखना
सूरत नहीं हौसलों को देखना,
लंबे फासले हैं अभी जीवन के,
मुड़कर कभी न देखना.

सुन बेटी,
जब तेरे टपकते पसीने देखता हूँ,
हर पल आशीष तुम्हें देता हूं,
लिख दे एक इतिहास
हर पन्ने पर
स्याही तेरा पसीना हो.
वो किताब हमारे लिए नगीना हो..

ये गर्मी के मीठे फल

रचनाकार-सतीश उपाध्याय

फल हैं ये कमाल के,
सेहत रखें संभाल के.

गोल-गोल प्यारा तरबूज,
इसमें पानी रहता खूब.

लू से हमें बचाता है,
गर्मी में ही आता है.

मिनरल्स और विटामिन भी
ये सबको दे जाता है.

खरबूजा ठंडक पहुंचाता,
विटामिन-ए भी है लाता.

पाचक भी होता भरपूर,
लाता ये चेहरे पे नूर.

झटपट ऊर्जा देना काम,
ये फलों का राजा आम.
पना चटपटा चटनी भी,
इसमे भरे विटामिन सी.

काले और निराले जामुन,
खूब भरे है इसमें गुन.

इसमें आयरन पाया जाता,
तन को जो मजबूत बनाता.

देते सबको ताकत बल,
ये गर्मी के मीठे फल.

पापा की गुड़िया

रचनाकार-प्रिया देवांगन 'प्रियू'

मैं पापा की गुड़िया रानी, मेरे अच्छे साथी थे.
खेल-खेल में हम दोनों भी, बनते घोड़े-हाथी थे..

छोड़ कभी न अकेले मुझको, साथ सदा ले जाते थे.
चाट-पकौड़े बड़े मजे से, पापा मुझे खिलाते थे..

प्यार दिये भरपूर मुझे वह, कहानी वह सुनाते थे.
रुठ जाती बातों पर मैं जब, आकर प्यार जताते थे..

कहाँ गए वो दिन भी सारे, याद बहुत अब आती है.
अब छोटी-छोटी बातें ही, मुझको बहुत रुलाती हैं..

क्यों करते हो ऐसा भगवन, कैसे अब विश्वास करूँ.
दूर किये खुशियों से अपनी, क्या तुमसे अब आस करूँ..

सपने देखे मिलकर दोनों, सारे सपने टूट गए.
हँसते-रोते दिन भी सारे, पीछे सारे छूट गए..

जब भी आता जन्मदिन पापा, साथ सदा मनाते थे.
गुब्बारे और आइसक्रीम, केक हमेशा लाते थे..

दूर हुए क्यों मुझसे पापा, याद बहुत ही आती है.
बात दिलों को छूने वाली, आँखें नम कर जाती है..

माँ

रचनाकार-अनिता चन्द्राकर

माँ ममता की मूरत होती, माँ होती भगवान.
माँ का स्थान अद्वितीय, माँ गुणों की खान.

माँ शब्द में संसार बसा है, माँ से बढ़कर कौन.
अद्भुत धैर्य वसुधा सा उनमें, सहती रहती मौन.

माँ धूप में शीतल छाया, स्नेह भरी पुरवाई माँ.
सर्द भोर में गुनगुनी धूप, हर रोग की दवाई माँ.

गंगाजल सी पावन होती, माँ पूजा की थाली.
गोद लगे सुखद बिछौना, माँ की बात निराली.

माँ नाम समर्पण का, वात्सल्य की निर्मल धारा.
खुश रहती सबकी खुशी में, होती सुदृढ़ सहारा.

अमृत रस पिला बच्चों को, वो आनंद भर देती.
दया प्रेम करुणा का पर्याय, माँ सबसे प्यारी होती.

छलक पड़े आँखों से आँसू, माँ की याद आते ही.
मुँह से निकलता है माँ, चोट जरा सा लगते ही.

शहादत को सलाम

रचनाकार-श्रवण कुमार साहू

भारत माँ का बच्चा-बच्चा,
जब तेरी याद में रोया था.
ये मत पूछो तेरे पीछे किसने,
क्या-क्या अपना खोया था.

माँ की गोदी सूनी हो गई,
जिसमें तू नित खेला था.
घर आँगन भी सूने हो गये,
जिसमें सुख-दुख झेला था..
माँ की छाती छलनी हो गई,
जब आसमां भी रोया था.

घर का कुलदीपक था वो तो,
पिता का अभिमान था.
गाँव का भोला-भाला बेटा,
भारत माँ की शान था..
बाप की हिम्मत टूट गयी थी,
जिस दिन बेटे को खोया था.

मेहंदी का रंग उड़ गया,
जब कंगन चूड़ी टूटे थे.
हाय विधाता जिस दिन तूने,
माँग से सिंदूर लूटे थे..
बंधन टूटा, साथ भी छूटा,
जो बीज प्रेम का बोया था.

हाथ में रेशम की डोरी ले,
बहना जब ये पूछेगी
कब आएगा मेरा भैय्या,
कोई कील हृदय में चुभेगी
बहन की डोली उठाने वाला,
पता नहीं क्यों सोया था.

मासूम बच्चे जब यह कहते,
पिताजी कब आएंगे.
गुड्डा-गुड्डी,खेल-खिलौने,
मेरे लिए कब लाएंगे..
उस अनाथ को कौन बताए,
जिसने बचपन खोया था.

मेरे साथी,मेरे भाई,
क्यों तू मुझसे रुठ गया ?
तेरा मेरा खून का रिश्ता,
क्यों इतनी जल्दी टूट गया?
आज किशन ने बलदाऊ सा
प्यारा भैया खोया था.

मरते दम तक जिसने यारो,
दुश्मन से लोहा लिया था.
देश की शान बचाने खातिर,
अपने प्राण को खोया था..
अमर रहो ओ वीर जवानो
कहके हर कोई रोया था.

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

रचनाकार-सपना यदु

स्कूल में दाखिला दिला दो,
मैं भी पढ़ने जाऊँगी.
पढ़ लिखकर कर्तव्य करूंगी,
अपने सपने सजाऊँगी.

मरीजों की सेवा करके,
स्वस्थ उन्हें बनाऊँगी,
मां अपना आशीष दे दो
डॉक्टर बन के दिखाऊँगी..

क ख ग घ, A B C D
सबको मैं सिखाऊँगी.
पढ़ा-लिखा साक्षर बनाकर,
देश का भविष्य सजाऊँगी.
डॉक्टर, नेता, इंजीनियर, वकील
इन सब को शिक्षा दें,
शिक्षिका मैं कहलाऊँगी..

रक्षा करो माँ

रचनाकार-सोमेश देवांगन

आयी नवरात्रि माता, जगमग जोत जले.
विपदा घोर आन पड़ी माँ, बच्चें कैसे पले..

त्राहिमाम माँ पुकार रहा, पूरा जग संसार.
कोरनोसुर दानव से माँ, रक्षा करो हमार..

रक्त बीज बन कोरोना, पल-पल बढ़ता जाए.
जो सामने उसके आये, साथ में लेता जाए..

कोरोनासुर दानव माँ, छुप के करता वार.
जो सामने आये उसके, कर देता वो बीमार..

अज्ञानी बालक माँ, घोर विपदा आन पड़ी है.
अपने को हम छू नहीं सकते, कैसी ये घड़ी है..

माँ शैलपुत्री रूप धर, अब लो माँ अवतार.
कोरोना रूपी दैत्य का भी, करो अब सँहार..

राख सी हस्ती

रचनाकार-श्रवण कुमार साहू 'प्रखर'

आज जिंदगी क्यूँ मौत से,
इतनी सस्ती हो गई.
आबाद शहर की मानों,
राख सी हस्ती हो गई..

जिंदगी इतनी सख़्त,
अब तक कभी न थी प्रखर.
सपनों का घरौंदा एकाएक,
क्यों गया है बिखर..

टूटी हुई पतवार,
फूटी हुई,ज्यों कश्ती हो गई.
साजिश और अविश्वास का,
चहुंओर मंजर हो गया.
कपटी,छद्मवेश सा जीवन,
पीठ पे ख़ंजर गोभ गया..

तपती मरुभूमि सी,
आज हरेक बस्ती हो गई.
अब तो लोग अपनों की मैय्यत में,
जानें से डरने लगे हैं.
खबर छप रही है हरेक घर में,
हर रोज कोई अपने मरने लगे हैं..

लाशों का हिसाब कौन करे,
ये जिंदगी परहस्ती हो गई.
इत्ता तो समझ जा रे मानव,
अब तेरी क्या औकात हो गई.
रूप, रंग, धर्म और भाषा,
अब बता तेरी क्या जात हो गई..

इस मायाबाजार में मानों,
यमदूत की मटरगस्ती हो गई..

मैं हूँ पानी

रचनाकार-प्रमिला जांगड़े

मैं हूँ पानी.
ना मेरा कोई रंग, ना मेरा कोई रूप.
फिर भी मेरी जरूरत है, चाहे ठंड हो या धूप.
मुझ में बसा है सारा संसार.
फिर भी
कोई क्यों नहीं करता मुझसे प्यार?

मैं हूँ पानी.
जहां मैं बहता हूँ, वहां मैं बहता ही रहता हूँ.
मेरी कीमत ना जाने कोई
जितना चाहे उतना सब मुझे फेंके.

मैं हूँ पानी.
जिस दिन हो जाऊंगा मैं अनमोल,
लोग मेरे लिए रोएंगे उस दिन.
हो जाऊंगा इस दुनिया से गोल.

मैं हूँ पानी.
जितना हो सके पेड़-पौधे लगा लो.
अभी भी वक्त है मुझे बचा लो.
मैं हूँ पानी.

बाबा भीमराव अम्बेडकर

रचनाकार-वसुंधरा कुर्रे

बाबा भीमराव, बाबा भीमराव
तू ही है संविधान का शिल्पकार.
बाबा भीमराव, बाबा भीमराव,
तू ने ही बनाया भारत का संविधान.

बाबा भीमराव, बाबा भीमराव,
सबको दिया समानता का अधिकार.

ऊंच-नीच, जात-पात, छुआछूत को,
जड़ से मिटाने का दिया अधिकार.

बाबा भीमराव, बाबा भीमराव,
पुरुष के समान महिला को भी दिया,
शिक्षा का समान अधिकार.

बाबा भीमराव, बाबा भीमराव,
किसी पर शोषण ना हो,
किसी पर अत्याचार ना हो,
सबको दिया धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार.

बाबा भीमराव, बाबा भीमराव
आज शिक्षित है बेटियां.
छू रही है धरा आसमां,
स्वतंत्र है बेटियां,
मिला सबको ऐसा अधिकार.

बाबा भीमराव, बाबा भीमराव,
संविधान में लिख दिया हर मानव के लिए हर अधिकार.

हम करते हैं बाबा आपको,
बारंबार नमन, प्रणाम और नमस्कार.

रंग बदलते रिश्ते

रचनाकार-नंदिनी राजपूत

एक परी जिसके आने से घर में खुशियाँ छाई.
वह परी अपने आई-बाबा की लाडली कहलाई..


परी जब विद्यालय गई,दादा ने उंगली थामी.
शिक्षक ने भी हाथ फेरकर, सिखाया अ से अनार, ज्ञ से ज्ञानी..

दोस्त बनाने में उसको, लगता था इतना डर.
पता नहीं किस बिल में छुपा हो तरह तरह के सांँप भयंकर..

अ से आम, इ से इमली ने ऐसी स्वाद चखाई.
हंँसते-खेलते, अठखेलियों से परी ने कदम बढ़ाई..


घर से बाहर जाने में, लगती थी इतनी पाबंदी.
दुनिया के गंदे माहौल, ना कर दे परी को गंदी..

माँ-बाप भाई का कड़ा पहरा, परी समझ ना पाई.
परी इन बातों से अनजान, रहती हरदम सकुचाई..


परी की मन की बात किसी ने समझ ना पाई.
अजनबी एक लड़के से कर दी गई उसकी सगाई..

परी का भी एक सपना था उसका दूल्हा हो राजकुमार.
जो उसको इतना प्यार दे कि भूल जाए मायके का दुलार..

शादी हुई वह भी घड़ी आई,
परी हुई मायके से पराई..

सब रिश्तो को खुश करने में लग गई वह दिन-रात.
जेठ-जेठानी, देवर-देवरानी भी रहते थे सब साथ-साथ..

हर रिश्ते ने अपना ऐसा रंग दिखाया.
बनावटी था जो रिश्ता कुछ दिन ही टिक पाया..

पति अपने काम में रहता ऐसा मशगूल.
परी को अपने से रखता हरदम दूर..

प्यार के एक बोल को तरसती थी हरदम.
सोचती थी कैसे काटेगी जिंदगी का हर पल

धीरे-धीरे पति ने अपना भयंकर रूप दिखाया.
मदिरा में मस्त होकर परी को आहत पहुंचाया..

सब दुखों को चुपचाप सहकर रोती हरदम आहिस्ता.
मांँ-बाप के लाज के खातिर निभाती थी वो रिश्ता..

फिर परी ने एक दिन ऐसा कदम उठाया.
सब रिश्तो को छोड़कर मौत को गले लगाया..

कुदरत का यह खेल देखो मौत भी रास ना आया.
जीवन ने परी को फिर से गले लगाया.


कभी तो चौखट में खुशियाँ आएगी एक बार.
इसी उम्मीद में जी उठती थी वह बार-बार..

पर समय ने अपना ऐसा चक्र चलाया.
पति ने ही पत्नी के माथे पर कलंक लगाया..

पति का बेबुनियाद कलंंक, परी को समझ ना आया.
जिसे देवता समझती थी उसने राक्षस रूप दिखलाया.

परी ने देखा था जो सपना आज वह चकनाचूर हुआ.
पति का साथ छोड़कर उसका मन मायके जाने को मजबूर हुआ..

भाई-भाभी की तानों ने परी को ऐसी चोट पहुंचाई.
मांँ-बाप की थी जो लाडली वह बन गई फिर से पराई..


लड़की का घर कहीं नहीं, हर रिश्ते ने ये एहसास दिलाया.
दुनिया में कोई अपना नहीं, रंग बदलते रिश्ते ने ही सिखलाया..

अपमान मत करना नारियों का, इनके बल पर जग चलता है.
पुरुष जन्म लेकर तो इन्हीं की गोद में पलता है..

सब दुखों को भूलकर नारी आगे कदम बढ़ाएगी.
जीवन तो जीना ही है यह सोच कर वह फिर से मुस्कुराएगी..

जिसका कोई नहीं उसका खुदा है यह सबको बतलाएगी.
फिर भी क्या यह समाज परी को चैन से जीने दे पाएगी????

सच्ची श्रद्धांजलि

रचनाकार-श्रवण कुमार साहू 'प्रखर'

मेरे धरती को रंग दिया,
आज फिर से लाल रंग में.
क्या तकलीफ है इतना बता,
तुझे रहना मेरे संग में..

कौन सा तेरा कौम है,
और क्या है धरम और जात.
मेरे सरफ़रोशों के आगे,
बता क्या है तेरी औकात..

क्या मिलता है तुझे बता,
नफरत के इस जंग में.
दंडकारण्य की घाटी में,
तूने क्यों किया नरसंहार.

वीर साहसी हो नहीं सकता,
तू कायर है,तू गद्दार..
छिपकर वार किया है तूने,
दर्द दिया अंग-अंग में.

कब तक चलती रहेगी,
तुम्हारी ऐसी दानवीवृत्ति.
जयचन्दों अब बन्द करो,
शहादत पर राजनीति..

क्या एकजुट नहीं रह सकते,
मुसीबत के सामने.
छ.ग.के इस मिट्टी से,
कब खत्म होगा नक्सली.

वीर शहीदों को मिलेगी,
तभी सच्ची श्रद्धांजलि..
तभी राष्ट्र खुशहाल बनेगा,
जीना होगा संग-संग में.

वक़्त है साहब, गुजर जाएगा

रचनाकार-यशवन्त कुमार चौधरी

साहब कहते है उसके दर पर देर है अंधेर नहीं.
जहाँ उसकी झोली में दुःख-दर्द है,
वहीं सुख-शांति की पोटली भी तो साथ है.
आज परिस्थितियों की बयार प्रतिकूल है तो क्या हुआ,
पिछले कल की अनूठी गुदगुदी भरी यादों के सहारे ही सही.
इस वक्त को मात देने की साहस तो रखते ही हैं जनाब.
देखना ए दोस्त,वह भी यह मंजर देख हैरान-परेशां रह जाएगा.
वक्त की मार के साथ नई सीख लेने का हुनर जो हमें आ जाएगा.
हमें ही देख लो, किसी मिसाल से कम नहीं,
जीवन में हमारी भी परेशानी कम नहीं.
चौराहे पर धैर्यता के साथ खड़ी है जिन्दगी,
न घर-न दौलत-न शोहरत,
फिर भी संतानों के सुनहरे भविष्य के लिए,
उम्मीद भरी निगाहें टकटकी लगाएँ हैं.
इस लगन और आत्मविश्वास के साथ,
कि खोने को है नहीं कुछ,
पाने को है सारा जहाँ.
क्योंकि उम्मीदों-आशाओं की नौका पर सवार है जिन्दगी,
लहर रूपी जीवन में बिना संघर्ष कोई,
नौका रुपी लक्ष्य पार नहीं होती.
चाहत भरी नज़रों की कोशिशें बेकार नहीं होतीं.
राहें मिली हैं तो मंजिल भी मिल ही जाएगी,
और ये वक्त है साहब बदल जरुर जाएगा.
हो अगर दिल में जीने की नेक फितरत,
तो दुनिया की कोई कायनात रोक नहीं सकती.
अपनी क्षमता पहचान करें कुछ नेक काम,
आइए अपने हौसले को एक नई ऊँचाई दें.

मेरा सपना

रचनाकार-मनोज कश्यप

मित्र मिलकर आओ देखे सपना,
साथ चले.
हितकर बनकर कार्य करेंगे,
नहीं छले.
सब अपने है हम सबके है,
सोच रखें.
प्रेम, एकता, भाई-चारा कल्प तले,
बड़ी सोच लेकर चलता जो,
डटे रहे.
आँधी में भी दीप जले ज्यों,
चुप्प सहे.
बन्द पलक में सपने पलते रातो में,
कर्मक्षेत्र श्रम पूर्ण करे तब बात कहे.
सपनो में संसार सुहाने लगते है,
चांद सितारे साथ हमारे चलते हैं.
बचपन वापस और बुढ़ापा मिलते है,
स्वप्न परी से आंख मिचौली करते है.
स्वप्न अधूरे रह जाते है मेले में,
मिलन विरह के चक्र व्यूह फँस खेले में.
मनसूबे दिल मे रह जाते कौन सुने,
जन्म मरण का कारण,
अंतिम बेले में, अंतिम बेले में..

अखबार के पन्नों से

रचनाकार-श्रवण कुमार साहू,'प्रखर'

यूँ अखबार पढ़ने में,अनजाना-सा डर लगता है.
हर पन्ने पर कोरोना का,खूनी खेल ही छपता है..
अखबार छूते ही मन में,कुछ घुटन-सा लगता है.
खबर ही खबर देख,अंतर्मन टूटने-सा लगता है..

हर तरफ वही खबरें,हर तरफ करुण चित्कार है.
कहीं संतोष मिलता नहीं,हर तरफ धिक्कार है..

हर एक पृष्ठ पर दर्द छपा है, हर एक पेज पर व्यथा है.
कौन किसका आँसू पोंछे,सबकी एक-सी कथा है..

सबके सपनों के घरौंदे, मानो अब टूट रहे.
अपने पराये लोग सभी,एक-एक करके छूट रहे..

मौत के नर्तन के आगे,देख हर एक आदमी रो रहे.
चुनावों के राग अलापे,राजनेता भीड़ में खो रहे..

गांव शहर लाकडाउन हो गया, बन्द पड़ी मजदूरी.
महंगाई को सर पे ढोना, है बेबसी और मजबूरी..

रागरंग जीवन,उत्सव,अब कहीं भी दिखता नहीं.
बच्चों की छोटी-छोटी खुशियाँ, बाजारों में बिकती नहीं..

आखिर क्यों लोग तुम्हें पढ़ें,बस इत्ती बात बता दे.
मेरी खुशियां कहीं खो गई,जा उसे घर का पता दे..
-
अखबार के पन्नों से, फिर निकली करुण पुकार.
दुष्ट-दनुज के नाश हेतु, फिर धरो दिव्य अवतार..

हे प्रभु! एक ही प्रार्थना,कोई अच्छी-सी खबर दे.
रोज अखबार पढ़े फिर, बेफिक्री और बेखबर दे..

आधुनिक काल

रचनाकार-महेंद्र देवांगन 'माटी'

आजकल के छोकरे, चला रहे सब नेट.
आये कोई द्वार में, खोले कभी न गेट..

काम-धाम अब छोड़ के, करते रहते चेट.
पढ़े-लिखे सब घूमते, होय मटिया मेट..

पहले खोलो वाट्सअप, देखो सब मैसेज.
कापी-राइट पेस्ट कर, तू भी सब को भेज..

भेजे ना सन्देश जो, कुप्पा उसको जान.
करे कभी ना वाह भी, बोझा उसको मान..

माँ कुछ चमत्कार करो

रचनाकार-प्रिया देवांगन 'प्रियू'

मुझ पर थोड़ी दया करो माँ,
कुछ ऐसा उपकार करो.
नये वर्ष में माँ तुम अपना,
चमत्कार साकार करो..

संकट में है सारे मानव,
त्राहि-त्राहि है मचा हुआ.
रोते-रोते दिन है कटते,
मुक्ति धाम है सजा हुआ..

टूट पड़ो माँ काली बनकर,
राक्षस का संहार करो.
नये वर्ष में माँ तुम अपना,
चमत्कार साकार करो..

रोजी-रोटी खातिर मानव,
भटक रहा दुनिया सारी.
ऐसा कलयुग आया साथी,
विपदा टूट पड़ी भारी..

छोटे-छोटे बच्चे हैं माँ,
कुछ ऐसा उपकार करो.
नये वर्ष में माँ तुम अपना,
चमत्कार साकार करो..

आना-जाना बंद सभी का,
घर पर ही सोये रहते.
बच्चे-बूढ़े भूखे बैठे,
मात-पिता खोये रहते..

जो पापी अत्याचारी है,
उस पर तुम तलवार धरो.
नये वर्ष में माँ तुम अपना,
चमत्कार साकार करो..

कन्या भोज

रचनाकार-प्रिया देवांगन 'प्रियू'

छन्न पकैया छन्न पकैया, माता घर घर जाती.
नौ कन्या बनकर माता, खुशियाँ वह बिखराती..

छन्न पकैया छन्न पकैया, बेटी दुर्गा काली.
सदा करो रक्षा तुम मानव, बनकर के तुम माली..

छन्न पकैया छन्न पकैया, मैया दर्शन देती.
नौ दिन तक जो पूजा करते, सारे दुख हर लेती..

छन्न पकैया छन्न पकैया, बेटी सभी बचाओ.
जग को रौशन करती बेटी, धरती पर तुम लाओ..

छन्न पकैया छन्न पकैया, नव दिन जोत जलाओ.
मनोकामना पूरी होगी, कन्या भोज कराओ..

बुजुर्ग बरगद की तरह होते हैं

रचनाकार-मनोज कुमार पाटनवार

बुजुर्ग बरगद की तरह होते हैं
सुख दुख में साथ खड़े रहते हैं.
माली बनकर सिंचित करते है
बरगद बनकर पोषित करते है.
बेटो को जीवन का हुनर बताया
पोते को हंसना चलना सिखाया.
उनके रहने से घर की शान है
बुजुर्ग ना रहें तो घर बेजान हैं.
बुजुर्गों से मिलती घर को पहचान हैं
बुजुर्गों से ही मिलता नया-नया ज्ञान है
जिस घर में बुजुर्गों का होता मान हैं
उस घर के बच्चे बनते ज्ञानवान हैं.
यदि चाहते हैं बच्चे बने संस्कारवान
तो बुजुर्गों का करें मन से सम्मान.
बुजुर्गों से ही संस्कृति की आन हैं
बुजुर्गो से ही कहानियों में जान है.
बुजुर्ग अनुभवों और गुणों की खान है
इनके नुस्खों से ही बच्चे बनते महान है.
जिस घर में बुजुर्ग सुख से रहते है
उस घर में देवता रहते है.

बेटे की मुस्कान

रचनाकार-मनोज कुमार पाटनवार

तेरा मुस्कान मुझे लगे अति प्यारा
तुझपे वारूं अपना जीवन सारा
तेरे मुस्कान से मिटता थकान सारा
तू ही तो है मेरा एक सहारा

तेरा मुस्कान मुझे लगे अति प्यारा
तुझसे ही पाऊं जीवन में उजियारा
तेरे मुस्कान से घटता जाता दुख सारा
तू ही तो है मेरे खुशियों की धारा

तेरा मुस्कान मुझे लगे अति प्यारा
हर अदा लगे तेरा मनभावन
किलकारीयों से गूंजता घर-आंगन
तेरा मिट्टी से खेलना लगे सुहावन

तेरा मुस्कान मुझे लगे अति प्यारा
उम्मीद पर मेरी खरा उतरना
लोगों की निश्वार्थ सेवा करना
नेक कर्मों से घर महकाते रहना
मुख पर मुस्कान सबकी
सदा तुम लाते रहना

अमर बलिदान

रचनाकार-अविनाश तिवारी

गर्व हो अभिमान हो,
छत्तीसगढ़ के लाल हो.
इस माटी का कर्ज चुकाया,
दे बलिदान फ़र्ज़ निभाया.
तेरी यशगान गा रहा तिरंगा,
चेहरे में रंग लाल गुलाल है.
नतमस्तक तेरी शहादत पर
ऊंचा भारत का भाल है,
गर्वित है वह कोख जिसका
मान बढ़ाया है.
चौड़ी है पिता की छाती
अन्तस् में जिसके तू समाया है.
नमन वंदन अश्रुदल समर्पण,
दिल आज भर आया है.
ईश्वर के घर,
धरती से फरिश्ता आया है.

वीर जवान

रचनाकार-प्रिया देवांगन 'प्रियु'

रक्षा खातिर देश के, छोड़े घर अरु द्वार.
जान हथेली पर रखे, बिछड़ गए परिवार..

बहती आँखे नीर है, बिछड़े बेटा आज.
खून पसीना एक कर, रखते माँ की लाज..

चलते हैं अंगार पर, ले बन्दूकें हाथ.
है भारत के शेर ये, नहीं झुकाते माथ..

गर्मी सर्दी ठंड हो, चाहे हो बरसात.
रहते सीमा पर खड़े, कैसी हो हालात..

भारत माँ के वीर जब, चलते सीना तान.
आतंकी को मारते, मिले उसे सम्मान..

भाई बहन

रचनाकार-श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

अपने सब कामों से हैं सबको रिझाते.
भाई बहन प्यार के हैं गीत गुनगुनाते..

साथ-साथ रहते हैं, साथ-साथ खाते.
साथ-साथ लड़ते झगड़ते खिलखिलाते.
खेलते हैं साथ-साथ, साथ-साथ पढ़ते-
नाचते हैं कूदते, साथ-साथ गाते.
भाई-बहन प्यार के हैं गीत गुनगुनाते..

छोटा है भाई बहन थोड़ी बड़ी है.
भाई के लिये बहन तत्पर खड़ी है.
छोटा है भाई किन्तु खोटा बहुत है-
बहन स्नेह की एक मधुर फुलझड़ी है.
आपस में रूठते हैं और मान जाते.
भाई बहन प्यार के हैं गीत गुनगुनाते..

बाहर का कोई यदि आँख भी दिखाये.
दोनों के हमले से तुरंत मात खाये.
घूमते टहलते हैं काम खूब करते-
काम सभी अच्छे हैं कोई कह न पाये.
दीनों के, दुखियों के, काम सदा आते.
भाई बहन प्यार के हैं गीत गुनगुनाते..

कोरोना और बचाव

रचनाकार-पुष्पलता साहू सहायक

' छाई हुई है पूरी दुनिया में,
'आज कोरोना का कहर.
'कांप रहा है जर्रा जर्रा,
'हर एक गांव और शहर.
'
'कैसे फैलता है यह,
'आओ इसे हम जानें.
'जनहित में जारी,
'हर निर्देशों को मानें.
'
'मिलना जुलना छोड़ अब,
'समय बिताएं घर पर.
'घबराए नहीं इससे,
'
'छाया हुआ है पूरी दुनिया में,
'आज कोरोना का कहर.
'कांप रहा है जर्रा जर्रा,
'हर एक गांव और शहर.
'
'कैसे फैलता है यह,
'आओ इसे हम जानें.
'जनहित में जारी,
'हर निर्देशों को मानें.
'
'मिलना जुलना छोड़ अब,
'समय बिताए घर पर.
'घबराए नहीं इससे,
'सामना करे डट कर.
'
'दो गज की रखें दूरी,
'रखे संयमित खान पान.
'अब सोशल डिस्टेंस ही,
'इसका है समाधान.
'
'मास्क लगाए रहे सुरक्षित,
'हाथ धोये बार-बार.
'देश की सुरक्षा में आप भी,
'हो जाए भागीदार.

भाग्य

रचनाकार-महेंद्र देवांगन 'माटी'

भाग्य भरोसे क्यों बैठे हो, काम करो कुछ नेक.
कर्म करो अच्छा तो प्यारे, बदले किस्मत लेख..

जो बैठे रहते हैं चुपके, उसके काम न होत.
पीछे फिर पछताते हैं वे, माथ पकड़ कर रोत..

जो करते संघर्ष यहाँ पर, उसके बनते काम.
रुख हवाओं के जो मोड़े, होता उसका नाम..

कर्म करोगे फल पाओगे, ये गीता का ज्ञान.
मत कोसो किस्मत को प्यारे, कहते सब विद्वान..

'माटी' बोले हाथ जोड़कर, करो नहीं आघात.
सबको अपना साथी समझो, मानो मेरी बात..

होली में गोली

रचनाकार-सोमेश देवांगन

माँ कह रही इस होली आ रहा मेरा लाल.
बच्चों के लिए पिचकारी हाथ धरे गुलाल..

बम धमाके चल रहे पिचकारी वाली गोली.
खेल रहे है दुश्मन आज भी खून की होली..

उड़ा दी बस बम लगा के कायरता दिखाई.
कायर दुश्मन ये कैसी पीठ पीछे की लड़ाई..

दम होता तो करते वार चलाते सीने में गोली.
एक अकेला सौ मार गिराता दुश्मन की टोली..

कब तक चढ़ाए दुश्मन के हाथो अपनो की बली.
बैठे माँ बाप आस लगा बैठी पत्नी लिए नन्ही कली.

देखो फिर खो दिया हमने अपने वीर लालो को.
जागो और मारो थप्पड़ दुश्मन के गालो को.

सब ने दी श्रधांजलि और पुष्प गुच्छ किये भेट.
मुख भी देख न पाए कहे माँ जी हो गया लेट..

मजदूर और मेहनत

रचनाकार-सुरेखा नवरत्न

मैं मजदूर हूँ मेहनत करता हूँ,
अपने मेहनत के दम पर अपना पेट भरता हूँ,
लोग भले ही समझते हैं मुझे दीन-हीन,
मैं ही तो मेहनत से उनकी किस्मत बदलता हूँ..
मैं मजदूर हूँ मेहनत करता हूँ.....

सूरज के जागने से पहले, जाग जाता हूँ,
सूरज के सो जाने के बाद, घर लौटता हूँ.
मैं गारे बनाता हूँ, ईंटें चुनता हूँ,
हाँ मैं वही मजदूर हूँ,
जो तुम्हारे सपनों का महल बुनता हूँ.
मैं मजदूर हूँ मेहनत करता हूँ.....

खुद बड़ी-बड़ी इमारतें बनाता हूँ लेकिन मैं,
गंदी बस्ती की झोपड़पट्टी में रहता हूँ.
नहीं मेरे पास मुलायम मखमली बिस्तर,
पत्थर पर सिर रखकर जमीन में सो जाता हूँ.
मैं मजदूर हूँ मेहनत करता हूँ.....

कई दफ़ा मैं रेल की पटरियों से कट जाता हूँ,
कोयले की चाप से, खदानों में भी दब जाता हूँ.
मेरी आवाज कोई नहीं सुनता,
फिर भी मैं कारखानों में काम करता हूँ.
भूखा हूँ, दो वक्त की रोटी कमाने के लिए
जी तोड़ मेहनत करता हूँ.
मैं मजदूर हूँ मेहनत करता हूँ.....

थोड़ा सा काम बिगड़ जाने पर,
मालिक डांट लगाता है.
मेरी हजार रुपए की सैलरी से,
सौ रूपए कट जाता है.
फिर भी मैं दिल पर तकलीफ़ और,
होठों पर मुस्कान लिए लौट आता हूँ.
मैं मजदूर हूँ मेहनत करता हूँ.....

चंद पैसे कमाने परदेश आया हूँ,
घर में बूढ़ी माँ और बच्चों को बेसहारा
छोड़ आया हूं.
कभी-कभी उनकी चिंता सताती है,
इसलिए थोड़े से पैसे डांक पर भेज आया हूँ.
मैं मजदूर हूँ मेहनत करता हूँ.......

कहती कोयल

रचनाकार-डॉ. सतीश चन्द्र भगत

चढ़ी धूप है
कड़ी धूप है
कैसे गाऊँ गाना.

पेड़ कटे हैं
छाँव नहीं है
कैसे पाऊँ खाना.

हवा नहीं है
बेचैनी है
कैसे गाऊँ गाना.

कहती कोयल
पेड़ लगाओ
तब गाऊँ मैं गाना.

बादल लाओ
पानी लाओ
सब खुश हो जाना.

तब गाऊँ मैं
कूं कूं स्वर में
मिसरी जैसी गाना.

मास्क वाली होली

रचनाकार-सोमेश देवांगन

मास्क पहन के खलेंगे हम सब होली.
बुरा न मानो कोरोना वायरस की बोली..

पिचकारी की जगह, सेनेटाइजर चलाएंगे.
सूखे रंग गुलालो से होली हम सब मनाएंगे..

दोस्त-यारों से इस होली मिल नही पायंगे.
मिल जाये धोखे से तो गले नही लगाएंगे..

फीका-फीका रहेगा होली का आयोजन.
नही खा सकेंगे दोस्त घर जा के भोजन..

त्योहार पर कोरोना वायरस भारी रहेगा.
मास्क सेनेटाइजर से खेल भी जारी रहेगा.

आग के गोले

रचनाकार-डॉ. सतीश चन्द्र भगत

बैसाख-जेठ है भैया
सूखे सब ताल-तलैया
सूरज दादा गुस्से में
कैसे निकलूँ हा दैया.

फेकते आग के गोले
सूरज दादा धमकाते
डर के मारे कोटर में
बेबस है सोनचिरैया.

मक्खियाँ बहुत इतराये
मच्छर तो बीन बजाये
बछड़ा का मन घबराये
हाँफ रही घर में गैया.

रहम करो बस दादा जी
करते हैं हम वादा जी
यह धूप नरम कुछ कर दो
हम हाथ जोड़ते भैया.

माँ

रचनाकार-अनिता चन्द्राकर

माँ ममता की मूरत होती, माँ होती भगवान.
माँ का स्थान अद्वितीय, माँ गुणों की खान.
माँ शब्द में संसार बसा है, माँ से बढ़कर कौन.
अद्भुत धैर्य वसुधा सा उनमें, सहती रहती मौन.
माँ धूप में शीतल छाया, स्नेह भरी पुरवाई माँ.
सर्द भोर में गुनगुनी धूप, हर रोग की दवाई माँ.
गंगाजल सी पावन होती, माँ पूजा की थाली.
गोद लगे सुखद बिछौना, माँ की बात निराली.
माँ नाम समर्पण का, वात्सल्य की निर्मल धारा.
खुश रहती सबकी खुशी में, होती सुदृढ़ सहारा.
अमृत रस पिला बच्चों को, वो आनंद भर देती.
दया प्रेम करुणा का पर्याय, माँ सबसे प्यारी होती.
छलक पड़े आँखो से आँसू, माँ की याद आते ही.
मुँह से निकलता माँ माँ, चोंट जरा सा लगते ही.

शक्ति स्वरूपा देवी महिमा

रचनाकार-सीमान्चल त्रिपाठी

शक्ति स्वरुपा तुम हो देवी,
तू ही अम्बे तू काली मईया.
बड़ा ही दिव्य स्वरुप है तेरा,
आभा बड़ी निराली मईया..

जीवन हो प्रतिपल प्रकाशित,
तुम प्रकाश पुंज़ की मलिका.
तेरी अखंड ज्योत से नित दिन
खिलती मुखमंडल पे कलिका..

सच्चे मन से जो करे अराधना,
उस पर तुम कृपा बरसाती हो.
भर देती सुख संपदा से घर को,
दुख दारिद्र व कष्ट मिटाती हो..

धारण करती जब रूप दुर्गा का,
बन जाती ममता की मूरत हो.
ज्यों ही धरती तुम रूप चंडी का,
माँ बनता रूप तेरा विकराल हो..

झोली फैलाए दर तेरे जो आते,
भर देती तुम उनकी झोली हो.
सच्ची शक्ति भर तू देती मन में,
दर से ना जाए कोई खाली हो..

ना चाहो कभी तुम भोग छप्पन,
तुम तो ठहरी भाव की ही भूखी.
है मिलती जिसको तुम्हारी कृपा,
हो जाए वह मालामाल व सुखी..

'

कैलाश में होली

रचनाकार-सोमेश देवांगन

महाकाल की होली चिता भस्म लगाए.
महाकाल की होली मन को अति भाए..

पार्वती मईया पीसे देखो भांग और धतूरा.
गण सब बोले होली इसके बिना अधूरा..

नंदी गण संग भूत पिशाच सब झूमे गाये.
बम बम भोले जयकारे कैलाश में लगाये..

नंदी खेले दौड़े गणपती कार्तिकेय दौड़ाये.
चूहा मयूर भाग-भाग पिचकारी को चलाये..

होली में नजारा देखने कैलाश सब आओ.
भोले संग शक्ति के दर्शन कर सुख पाओ..

'

कोरोना नारे

रचनाकार-वृंदा पंचभाई

1-रह रह कर रूप कोरोना
बदल रहा है आज
अपने हाथों में ही छिपा
इससे बचने का राज.

2-गली मोहल्ले में बेखौफ
घूम रहा कोरोना.
मास्क लगा सम्हल जा अब
तभी भागेगा कोरोना.

ब्रज की होली

रचनाकार-प्रिया देवांगन 'प्रियू'

होली का ये रंग, सभी के मन को भाते.
राधा रानी संग, कृष्ण को रंग लगाते..
गाते ब्रज में फाग, श्याम मारे पिचकारी.
गोपी ग्वाला रंग, लगाते बारी बारी..

पकड़े दोनों हाथ, प्रेयसी यूँ शर्माती.
लाल गुलाबी गाल, गोपियाँ छुप मुस्काती..
दौड़ दौड़ के आज, प्रेम की मारे गोली..
राधा रानी संग, खेलते आँख मिचोली..

मुरली की ये धून, दौड़ सुन राधा आती.
मीठी मीठी राग, प्रेम की गीत सुनाती..
लिए प्रीत की रंग, करे मीठी सी बोली.
रहे मिलन की आस, खेलते मिलकर होली..

'

चंदा मामा

रचनाकार-वृंदा पंचभाई

चंदा मामा, चंदा मामा
प्यारे प्यारे, चंदा मामा
पास नहीं मेरे आते हो
दूर बहुत तुम रहते हो.

अंगुल भर कभी होते हो
कभी आधी रोटी से दिखते हो
कभी गोल माँ की बिंदी से
रोज रूप बदला करते हो.

सजा थाली चंदन,रोली की
माँ तुम्हारी पूजा करती है
आशाओं के दीप जला कर
आरती नित उतारा करती है.

मंगल कामना मन में रखती
तुमको जल भर अर्घ्य चढ़ाती
चौथ पुन्नी उपवास भी करती
रहे सौभाग्य कुशल मांगती.

भोग लगाती पकवानों के
मालपुआ, खीर, मिठाई
चंदा मामा संग में तुम्हारे
मुझको भी मिल जाते है.

भाईदूज पर चंदा मामा
हमको थोड़ा सताते हो
पहले तुम्हारी पूजा होती
फिर नम्बर मेरा आता है.

ईद, करवा चौथ, दिवाली
तुम बिन ये सब आधा है
यात्रा तुम्हरी अमावस पुन्नी
निस दिन यूं ही चलती रहती.

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