छत्तीसगढ़ी लेख

रक्सापथरा

रचनाकार- पेश्वर राम यादव

गरियाबंद जिला मुख्यालय ले रक्सेल कोती मैनपुर ले गयारह कोस के दुरिहा म वनांचल उदंती सीतानदी सेंचुरी के कोरा म बसे हावे गोना गाँव ह अउ गोना के आश्रित गाँव हरे रक्सापथरा. इंहा के पुरखा मन के कहना हावे की इहाँ रामायणकाल म रक्सा मन ह बिचरन करे. त भगवान राम ह अपन बनवास काल म रक्सा मन ल मार के ये छेत्र ल मुक्त कराय रिहिस हे. सियान मन कहिथे- रक्सा के मरे ले ओकर हाड़ा मन ह पथरा बन गिस अउ पहाड़ बन गिस जेकर पुख्ता परमान आजो ऊँहा गाँव के तीर सियार म मिलथे. जेमा पहेली बखत म पानी गिरथे त बिस्सर बिस्सर पथरामन ह महाकथे. गाँव के पहाड़ी म अब्बड़ कांदा खोदरा हावे अउ सुघ्घर जलप्रपात तको हावे जेला हमन ह रक्सापथरा जलप्रपात कहिथन. जेहा पथरा पहाड़ी ले झर-झर, झर-झर कलकलावत बोहावत हावे. इही पथरा पहाड़ी के सेती गाँव के नाँव ह रक्सापथरा पड़िस. जेला जग ह रक्सापथरा गाँव के नाँव से जानथे.

पढ़ई के मतलब परीछा नो हे

रचनाकार- सुवर्णा साहू

जब ले ए करोना ह पांव पसारे हे, तब ले हर आदमी हलाकान हो गे हे. काम-धंधा, आय के साधन नँदागे, समान नइ मिले, अउ तबियत के हाल ला पूछ मत. हर मनखे ह परेसान अउ डर्राए हावे, फेर एक ठन टीम अइसे हे जेन ह अब्बड़ खुस हे. इस्कूल नइ खुलत हे त ऊंकर बर चांदी-चांदी हो गे हे. पढ़ई लिखई के जंजाल छूटिस, मनमाने घूमत हें अउ खेलत हें. बिंदास कहिथें कि पर साल बिना परीछा दे फोकट मा पास हो गेन अउ एहू साल पास होबो त काबर पढ़बो.

ए डेढ़ हुसियार लईका मन ह कई ठन बात ल न समझत हें. पहिली बात, तुमन ह फोकट मा पास न्इ होए हो. साल भर छोटे-बड़े कई ठन परीछा देथो, उही मा पास होए हो, एके ठन अंतिम परीछा बाँच गे रीहिस. अउ इस्कूल नइ खुलत हे त तुँहर बचाव बर हरे. बाहिर ले अवइया सगा मन ला इस्कूल मा ठहराए रीहिस, ओमा कतको झन ला करोना निकल गे. हवा मा, इस्कूल भवन मा, समान मा वायरस हो सकत हे. तुमन ह इस्कूल मा तीर-तीर मा बइठथो, रिसेस मा दोस्त के घेंच मा बाँही डार के घूमथो, एकरे कारन इस्कूल ल नइ खुलत हें.

लेकिन इस्कूल बंद होए के मतलब पढ़ई बंद नइ हे. सरकार अउ सर-मेडम मन ह कतको उपाय जतन करत हें कि तुमन ह कुछ न कुछ पढ़त-सीखत रहव. ओमन फोन मा आॅनलाइन अउ बु

ब्लू-टू के सहारा पढ़ाथें, गाड़ी मा घूम घूम के तुँहर कर आथें, पारा-मोहल्ला मा आसपास के दीदी-भइया मन गियान बाँटत हें. फेर कतको लइका मन ह ए सब ले बचे के फेर मा रहिथें. पूछबे त फोन नई हे, डाटा नई हे कथें, कभू दूसर दूसर पारा के नाँव गिना देथें अउ कोनो जगा नइ जावें.

सबले खास बात, जेन ला सब लइका मन ला समझना जरूरी हे, पढ़ई के मापन के अधार 'परीछा' नइ हे, ग्यान हरे. तुमन का जानथो-समझथो', ए हरे. कतको लइका मन ला परीछा मा अब्बड़ नंबर मिलथे फेर अचानक काहीं पूछ देबे त नइ बता सकें, समस्या आथे त मुंड़ धर लेथे अउ दूसर ले मदद खोजथें, त अइसे नंबर के का फाइदा. कई झन ला परीछा मा ठीक-ठाक नंबर मिलथे लेकिन हर बात ला सोंच बिचार के गोठियाथें, बिस्वास के साथ समस्या के हल सोंच सकथें, ओकर गियान जादा सारथक हे.

पढ़ई-लिखई के उदेस्य परीछा दे-दे के नंबर लानना नइ होए, जानकारी होना अउ समझ-बूझ बढ़ाना होथे. त तुमन पढ़ई ले मत भागो. कोनो कर भी कक्छा चलत होही, ऊँहा जाओ, कतको नवा बात सीखहू. माँ-पापा, परोसी दीदी-भइया ला पूछव, घर मा खुद पढ़व. अपन आप ला निखारे के मउका मत छोड़व. एमा तुँहर भलाई हे.

Visitor No. : 6734278
Site Developed and Hosted by Alok Shukla