छत्तीसगढ़ी बालगीत

पढ़ई तुहर दुआर

रचनाकार- नीलम

महामारी संकट मा संगी थम गए देस महान,
शिक्षा फिर घर-घर उतरिस नेटवर्किंग हे बलवान!

खेल-खेल में पढ़ई लिखई अब दुआर दुआर हे उतरिस,
ध्रुवतारा कस उतरिन शिक्षक चमचम गाँव घर चमकिस

नवा नवा शिक्षा अभियान ला करके सब अभिनन्दन,
स्वीकारिन नोनी बाबु सब ऑन लाइन के बंधन

आ जाए अब कोनो संकट आगू बढ़ के दिखाना हे,
लक्ष्य बेध ला साध के संगी देस ला अब जिताना हे!

लहलहाही जम्मो बारी अब घर-घर दीप जलाना हे,
नवा जुग मा छउवा मन ला नवाचार सिखलाना है!

हँसिया

रचनाकार- नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

महामारी संकट मा संगी थम गए देस महान,
शिक्षा फिर घर-घर उतरिस नेटवर्किंग हे बलवान!

खेल-खेल में पढ़ई लिखई अब दुआर दुआर हे उतरिस,
ध्रुवतारा कस उतरिन शिक्षक चमचम गाँव घर चमकिस

नवा नवा शिक्षा अभियान ला करके सब अभिनन्दन,
स्वीकारिन नोनी बाबु सब ऑन लाइन के बंधन

आ जाए अब कोनो संकट आगू बढ़ के दिखाना हे,
लक्ष्य बेध ला साध के संगी देस ला अब जिताना हे!

लहलहाही जम्मो बारी अब घर-घर दीप जलाना हे,
नवा जुग मा छउवा मन ला नवाचार सिखलाना है!

माता बहादुर कलारिन

रचनाकार- नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

महादेव के साधक सच्चा, शिव पुराण देवय परमान.
शिव पुराण इक पोथी पढ़के, जागे मन मा हावय ज्ञान..

कला प्रेम अउ शौर्यवीरता, हे कलार मा लेवव जान.
कला वार सैनिक के कर ले, हे कलार के उदभव मान..

हैहैवंशी जैन कलचुरी, जुड़े सबो ले हे कलवार.
बेंचत राहय भरके मदिरा, हाथ धरे वो लट्ठ कटार..

परिचय होगे कलावार के, बनगे कइसे जेन कलार.
मातु बहादुर बने कलारिन, होवय शोभित गर मा हार..

सुन लव संतों मोर बात ला, कथा सुनावँव मँय हर एक.
कलावती के बात करत हँव, वीर रहे जे नारी नेक..

कलावती बिन माँ बाबू के, होगे बेटी जगत महान.
मातु कथा नेमेन्द्र कहत हे, देवव सब माता ला मान..

अँचरा ले ममता के झरना, छलके झर झर चारों ओर.
माँ कलार के बनगे कइसे, बहादुरी के होवय सोर..

सरहरगढ़ इक गाँव जिहाँ के, सुबेलाल खोले व्यापार.
बड़का बाबू कलावती के, राहय छोटे साहूकार..

मंद बना के बेंचे सुग्घर, रोजगार साधन कहलाय.
छत्तीसगढ़ म चर्चा होवय, चारो मूड़ा नाम कमाय..

कलावती हर सुबेलाल के, सबो काम मा हाथ बटाय.
मंद बनाए बड़े सबेरे, साँझा बेरा हाट लगाय..

रूप रंग मा कलावती हर, सौहत लछमी लगे समान.
बरछी भाला हाथ धरे मा, रन चण्डी दुर्गा जस जान..

कोठी भरके आव भाव मा, राहय सुग्घर निक संस्कार.
कलावती राहय वो नारी, पाय समाज के अड़बड़ प्यार..

कलावती के सुंदरता हर, लगे मोहनी रूप समान.
ब्रम्ह देव हर ध्यान लगा के, करे रूप के हे निर्मान..

वो मृगनयनी जइसे सुन्दर, देखत लोगन भूले होश.
जान वीरता काँपय लोगन, हो जाए ठंडा सबके जोश..

अउ मृगनयनी ला पाए खातिर, राजा परजा रूप बनाय.
कलावती के सुनते जौहर, फेर सबो हर तो डरराय..

सरहरगड़ बीहड़ जंगल मा, राजा आखेटन बर आय.
रतनपुरी के राज कलचुरी, कलावती ला देख मुहाय..

रूप देख ले कलावती के, राजा हिरदे जाथे हार.
प्रेम बिहा बर कलावती सन, झप ले हो जाथे तैयार..

प्रेम बिहा के पबरित वेदी, सुख के मंगल बरसा लाय.
दिवस महीना साल गुजर थे, हाँसत गावत दिवस पहाय..

उही समय मा एक बेर जब, घर सुरता राजा ला आय.
राज काज के बना बहाना, राजा नारी ले संग छुड़ाय..

कलावती ला छोड़ छाड़ के, राज कलचुरी राजा जाय.
सरहड़गड़ के वो रद्दा मा, कभू दुबारा वो नइ आय..

कलावती के गर्भ भीतरी, इक बालक राहय मुस्काय..
नवे मास मा वो बालक हर, ये दुनिया मा जनम ल पाय..

कलावती हर अपन बाल के, छ्छानछाड़ू नाम धराय.
रूप रंग गुण लागय जइसे, सुरुज नरायन सौहे आय..

धीरे धीरे वो छ्छान हर, माँ ले शिक्षा दीक्षा पाय.
वीर बली तलवार असन वो, तेज गठीला तन ला धाय..

कलावती के सुन्दर बेटा, वो छछानछाडू हर आय.
वीर बहादुर राजनीति के, सुग्घर माँ शिक्षा पाय..

जब छ्छान के पिता नाम के, खिल्ली संगी रोज उड़ाय.
अपन पिता के बारे मा वो, रोज प्रश्न हे करते जाय..

अत्याचार सहे माँ कतका, देखत राहय बेटा रोज.
बदला के मन आगी सुलगे, ज्वाल भरे नित मन मा सोज..

जब किशोर के उम्र भरे तब, कलावती हर कथा बताय.
कोन पिता ये तोर बाल सुन, तय जग मा हस कइसे आय..

राजा के करनी ला सुनके, बालक रोष म सुलगे जाय.
राज वंश ले घिरना करके, बदला लेके उदिम लगाय..

धीरे धीरे वो बालक हर, खुद के सेना अपन बनाय..
राज वंश के नारी मन ला, धर धर के वो घर मा लाय..

राज कुमारी के गिनती ला, बना एक सौ सैंतालीस.
अत्याचार करे वो निसदिन, नारी लाज ल रोजे पीस..

बना ओखली रोज धान ला, राजकुमारी ले कुटवाय.
डूब वासना के आगी मा, सबके असमद लूटत जाय..

निरपराध नारी ला देखत, कलावती हर रोवय जाय.
झन कर अत्याचार कही के, बेटा ला वो हर समझाय..

बेटा के करनी ला देखत, कलावती हर सोंचे रोज.
नारी के सनमान बड़े हे, मानत नइ हे बेटा सोज..

मातु बात नइ माने बेटा, पाप घड़ा ला भरते जाय.
निर्णय लेके तब तो माँ हर, मन ला अपने वो समझाय..

सरहरगड़ मा एक रोज जब, रहे धूर के निक त्यौहार.
मंद नशा मा प्यास मरे जब, अउ छ्छान के टपके लार..

घर छ्छान हर आके बोलय, पानी देदे माँ तै आज.
प्यास लगे हे बड़े जोर के, बिगड़े जइसे लागय काज..

कलावती हर सोच समझ के, नइ राखे नौकर ला आज.
टोंटा सूखत हे छ्छान के, खाली हड़िया बिन पानी साज..

तब छ्छान ला कलावती हर, तीर बावली ले के जाय.
पानी ले बर बेटा नवथे, तइसे धक्का माँतु लगाय..

बुड़के मरगे जब छ्छान हर, माँ हर दुख मा कलपत जाय.
अउ नारी सनमान बड़े हे, सोंचत नारी सबो छुड़ाय.

अपन सूत ला अपन हाथ ले, मारे माँ बड़ मुस्कुल आय.
तब ले नारी कलावती हर, धरम नाम बर कदम उठाय..

बहादुरी ला देखत माँ के, नाम कलारिन वीर धराय..
बने बहादुर मातु कलारिन, सरी जगत मा नाम ल पाय..

कलावती माँ रहे कलारिन, पूजत जेला सबो कलार..
छत्तीसगढ़ मा अमर नाम हे, कलावार के बल हे सार..

जय हो जय माँ कलावती की, जय छ्छानछाड़ू के होय.
जे माँ के बदला ले खातिर, झेल पाप ला खुद गे सोय..

सुरुज रहत ले तीन लोक माँ, होही माँ के जय जयकार.
जय कलार के मातु कलारिन, बहादुरी तोरे जग सार..

चिट्ठी पतरी

रचनाकार- नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

चिट्ठी पतरी हर बने,सपना जइसे बात.
लिखे रहे जेमा कभू,मन भर के जज्बात..

कल जुग मा कल कल करत, मोबाइल अउ मेल.
रिश्ता नाता हर लगे,बनगे जइसे खेल..

महक धरा वो गाँव के,चिट्ठी लाने संग.
पढ़ के मन अइसे लगे,भीजे जइसे अंग..

आजी आजा के मया,छलके नदिया धार.
चिट्ठी के हर डाँर मा,कूट भरे वो प्यार..

सबो गोठ सपना असन, भूलत अब के लोग.
ये कल जुग हर आज के,जउँहर बनगे रोग..

हलो हाय के गोठ हर,अब के निक व्यवहार.
पाती के जय राम का,अब बनगे बेकार..

लोगन कर नइ हे समय,जिनगी भागम भाग.
दया मया पाती सबो,लगगे हावय आग..

पढ़ई तुँहर द्वार हे

रचनाकार- कन्हैया साहू'अमित'

पढ़ई तुँहर द्वार हे, तुँहरे तीर-तार हे.
छोड़व संसो सुभहा, संगे म सरकार हे..

खेलत बीतय दिन झन, ठलहा बुलके छिन झन.
बीते मा पछतानी, पाछू बड़ परसानी..
अनपढ़ त अँधियार हे, पढ़ना ह उजियार हे.
पढ़ई तुँहर द्वार हे...तुँहरे तीर तार हे.

मोबाइल ल धरव जी, सुग्घर उदिम करव जी.
गुरुजी संग जुड़व अब, पढ़ई डहर मुड़व अब..
जुरमिल पढ़व घरे मा, सिरतों मजेदार हे....
पढ़ई तुँहर द्वार हे... तुँहरे तीर-तार हे.

कोरोना के बेरा, रहि के अपन डेरा.
बढ़िया माढ़े जोखा, काज'अमित' अति चोखा..
मन के हार, हार हे, जीतव इही सार हे.
पढ़ई तुँहर द्वार हे, तुँहरे तीर तार हे.
छोड़व संसो सुभहा, संगे म सरकार हे....

औघड़ दानी

रचनाकार- स्व. महेन्द्र देवांगन 'माटी'

भोले बाबा औघड़ दानी, जटा विराजे गंगा रानी.
नाग गले में डाले घूमे, मस्ती से वह दिनभर झूमे..

कानों में हैं बिच्छी बाला, हाथ गले में पहने माला.
भूत प्रेत सँग नाचे गाये, नेत्र बंद कर धुनी रमाये..

द्वार तुम्हारे जो भी आते, खाली हाथ न वापस जाते.
माँगो जो भी वर वह देते, नहीं किसी से कुछ भी लेते..

देवारी के तिहार

रचनाकार- सपना यदु

आगे आगे रे संगी देवारी के तिहार.
जगमग -जगमग दिया बरत हे उज्जर होगे सबो दुआर..

खुशी से लईका झूमत नाचत हे,, खुश हावे सबो परिवार.

सुरसुरी, एटम बम, लक्ष्मी, अउ नीक लागत हे अनार,,
सबो फटाखा फोड़े लईकामन, छा गे हे खुशी के फुहार..

फसल कटगे, कोठी भरे हे, राजा बनगे हे बनिहार.
नवा -नवा कपड़ा पहिर के, करै सबो ला जय जोहार..

ठेठरी, खुरमी, बरा, सुहारी,बने हे अब्बड़ पकवान.
अब्बड़ मजा से खावत हावे, का लईका का सियान..

पूजा होवत हे लक्ष्मी दाई के, चघे हे लाई, बतासा अउ पेड़ा,
चउंक पूरे अंगना दुआरी में, सजे हे देखो गौरा चौरा..

कोन्हों बारत हे माटी के दिया,
कोन्हों बारै दिया चांउर के पिसान..
भूला के अपन सबो रीस बैरी ला,
गला मिलत हे, सबों मितान..

पढ़ई तुहर दुआर

रचनाकार- अल्का राठौर

तीन प्रकार ले आय हे,
पढ़ई तुहर दुवार !
ऑनलाइन,ऑफलाइन,
लाउड स्पीकर क्लास!
कोरोना के संकटकाल मा,
घर ले बाहिर झन निकल!
घर म बइठे- बइठे,
जइसे चाहे वइसे पढ़ !
ऑनलाइन म पढ़े के
तैं नवा तकनीक गढ़
ऑफलाइन म पढ़बे,
तब नवा प्रयोग करबे!
लाउडस्पीकर म पढ़बे,
तब अड़बड़ मजा करबे !
ये कोरोना हर भारी,
तबाही मचा दिस!
हमन सबला तितिर-
बितिर कर दिस!
स्कूल ले दूर हो गेन
तब का होगीस !
हमर सर मेडम मन तो,
आधा कोर्स पूरा पढ़ा दिस!

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