अधूरी कहानी पूरी करो
पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –
बारिश का वह दिन
परसा टोली तीस - चालीस घरों की एक छोटी सी जंगली बस्ती थी जो एक टेकरी के ऊपर बसी थी. यहां के लोग जंगल की उपज इकट्ठी करते और थोड़ी फल - सब्जियां उगाते थे.
परसा टोली के सबसे पास का गांव था कुंवरपुर. आसपास की सभी बस्तियों और टोलों के लोग जरूरत की चीजें यहीं से खरीदकर ले जाते थे. यहां एक छोटा सा अस्पताल, पोस्ट ऑफिस और एक हाई स्कूल भी था. स्कूल के सभी शिक्षक बहुत परिश्रमी और अपने काम के प्रति बहुत जागरूक थे.स्कूल के सभी बच्चे अपने इन शिक्षकों को बहुत चाहते थे और उनका सम्मान करते थे. यही कारण था कि स्कूल की उपस्थिति प्रायः शत - प्रतिशत रहती थी.
परसा टोली के लगभग पन्द्रह - सोलह बच्चे भी यहीं पढ़ने आते थे. परसा टोली और कुंवरपुर के बीच एक नाला पड़ता था. इसमें साल भर घुटनों तक पानी रहता ही था. एक बार दो दिनों तक लगातार बारिश होती रही. पहले दिन तो बच्चों ने किसी तरह नाला पार कर लिया. दूसरे दिन नाले में पानी कुछ ज्यादा बढ़ गया. जो बच्चे कुछ बड़े थे उन्होंने छोटे बच्चों को वापस घर भेज दिया और खुद तैर कर नाले को पार कर लिया. जब वे स्कूल पहुंचे तो गीले कपड़ों में उन्हें देखकर शिक्षकों ने समझाया कि ऐसी कठिन स्थितियों में वे स्कूल ना आया करें.
छुट्टी होने के बाद ये बच्चे जब घर लौट रहे थे, नाला उफान पर था. उसे देखकर बच्चों की हिम्मत जवाब दे गई. शाम हो चली थी. आसमान में घनी बदलियां छाई हुई थीं. धीरे-धीरे अंधेरा गहराने लगा था. बच्चे फंस चुके थे. वे वापस कुंवरपुर भी नहीं जा सकते थे और उफनते नाले को पार करना भी खतरे से खाली नहीं था.
संतोष कुमार कौशिक द्वारा पूरी की गयी कहानी
समस्या समाधान
नाले के पास बैठकर सभी बच्चे सोच रहे थे कि इस उफनते नाले को कैसे पार किया जाए? कुछ देर पश्चात शिक्षकों को सूचना प्राप्त हुई कि बच्चे नदी के पास बैठे हुए हैं. अत्यधिक बाढ़ के कारण बच्चे नदी पार नहीं कर सकते. सूचना प्राप्त होते ही शिक्षक गाँव के मुखिया के साथ नाले के पास बैठे बच्चों के पास पहुँचकर,बच्चों को समझाने लगे कि इस तरह बाढ़ की स्थिति में नदी पार करने से दुर्घटना हो सकती है. इस तरह नदी में बाढ़ हो तो वापस स्कूल आकर शिक्षकों को सूचना देना चाहिए.
शिक्षक सभी बच्चों को वापस स्कूल ले गए. गाँव के मुखिया एवं शिक्षकों के सहयोग से सभी बच्चों के लिए खाने और सोने की व्यवस्था कर दी गई. साथ ही बच्चों के पालकों को भी सूचना भेज दी गई कि बच्चे स्कूल में ही सुरक्षित हैं. नदी में बाढ़ आ जाने के कारण घर नहीं आ सकते,सूचना पाकर पालक निश्चिंत हो गए.
मुखिया के मन में विचार आया कि इस समस्या का समाधान करने का कोई उपाय करना चाहिए. यह सोचकर दोनों गाँव के पालकों एवं जन समुदाय की बैठक आयोजित की गई. बैठक में चर्चा हुई कि दोनों गाँवों के बीच आवागमन के लिए आपसी सहयोग से नदी पर पुल का निर्माण करना चाहिए ताकि हमारा कार्य सुचारू रूप से चले. शिक्षकों और गाँव के मुखिया ने स्थानीय विधायक को इस समस्या की जानकारी दी. विधायक महोदय ने समस्या का हल करने का पूरा प्रयास करने का आश्वासन दिया. शासन एवं गाँव के लोगों के सहयोग से नदी पर पुल का निर्माण हो गया. अब दोनों गाँव के लोगों की समस्या का हल हो गया है.
टेकराम ध्रुव ' दिनेश' द्वारा पूरी की गयी कहानी
बच्चे नाले का उफान देखकर सोच में पड़ गए कि अब क्या करें? तैरकर नाला पार करना खतरे से खाली नहीं है. नाले का जलस्तर जल्दी कम होने वाला नहीं है. यहाँ इंतजार करने से बेहतर है कि हम वापस कुंवरपुर अपने शिक्षक के यहाँ चलते हैं. वहाँ कुछ न कुछ इंतजाम हो जाएगा.
बच्चों ने कुंवरपुर अपने शिक्षक के यहाँ पहुँच कर सारी बात बताई. शिक्षकों ने कहा - बहुत अच्छा किया बच्चो जो नाला पार न करके वापस आ गए. तुम लोगों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. जब तक नाला पार करने लायक नहीं हो जाता,तब तक तुम लोगों के रहने की व्यवस्था कर देते है. स्कूल के एक कमरे में बच्चों के रहने और खाने की व्यवस्था कर दी गई. और परसा टोली में बच्चों के माता-पिता तक यह संदेश पहुँचा दिया गया कि वे लोग परेशान न हों, उनके बच्चे सकुशल है.
दो दिन तक नाला उफान पर रहा और बच्चे अपने घर परसा टोली नहीं पहुँच पाए. कुंवरपुर में उनके रहने और खाने की व्यवस्था हो गई थी इसलिए वे परेशान नहीं थे. लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? यह सोचकर बच्चे चिंतित थे. बच्चे सोचते रहे कि यदि नाले पर पुल बन गया होता, तो ऐसा दिन देखना नहीं पड़ता.
उधर परसा टोली में भी बच्चाें के माता-पिता बैठक में इसी बारे में बातचीत कर रहे थे. आज तक नाले में इतना उफान कभी नहीं आया था कि पार करने में परेशानी हो. लेकिन इस बार के उफान ने हमें सचेत कर दिया है कि अब हम इस नाले पर पुल का निर्माण करें.
अगले दिन नाले का जलस्तर कम हुआ तो बच्चे अपने- अपने घर सकुशल पहुँचे. परसा टोली और कुंवरपुर के लोग आपसी जन सहयोग से नाले के ऊपर पुल निर्माण के कार्य में जुट गए.
यशवंत कुमार चौधरी द्वारा पूरी की गयी कहानी
परसा टोली के बच्चे वाकई मुसीबत में फँस चुके थे और दुविधा में थे पर उनका साहस अभी भी उनके साथ था. उनके परिवारजनों को भी डर सता रहा था पर वे करें भी क्या? रात हो चली थी और नाला उफान पर था. बच्चों ने इस उफनते नाले को तुरंत पार करना मुनासिब नहीं समझा और धैर्य दिखाया. साँप आदि के डर से चुपचाप रात बिताने की सोची और सुबह नाला पार करने की एक तरकीब सोची. आखिर वे पहाडी निवासी थे और उन्हें लकड़ी का उपयोग अच्छी तरह आता था. उन्हें पता था कि पुरानी सूखी लकडियाँ उनके लिए नाव का काम करेंगी,सुबह नाले का उफान कम होने पर बच्चों ने आसपास पड़ी लकड़ियों को इकट्ठा किया और सबने लकड़ियों के सहारे नाले में छलाँग लगा दी. सभी ने मिलकर लकडियों को रस्सी से अच्छी तरह से बाँध दिया था ताकि कोई ज्यादा दूर तक ना बह पाए. लकड़ियों के सहारे और तैराकी के अपने हुनर के बल पर सभी बच्चे नाला पार कर किनारे पर पहुँच गए और फिर किनारे के पेड़ के सहारे से नाले से बाहर आते गए. सब अपने-अपने घर पहुँच गए. गाँव वालों ने बच्चों को देखकर राहत की साँस ली. सबने बच्चो के साहस के लिए उन्हें शाबाशी दी.
अगले अंक के लिए अधूरी कहानी
किताब
छुट्टी की घंटी बजी और सारे बच्चे हो - हो करते स्कूल से बाहर निकल अाए. संदीप और किशोर साथ - साथ बाहर निकले. दोनों यह बात कर रहे थे कि आज गणित में गृहकार्य के जो प्रश्न दिए गए हैं उन्हें कैसे हल किया जाए.
किशोर को गणित में बहुत कठिनाई होती थी. उसने संदीप ने कहा इन सवालों को हल करने में तुम मेरी मदद करना. संदीप ने कहा जरूर करूंगा लेकिन अभी तक मेरे पास गणित की किताब नहीं है. किशोर ने कहा, कोई बात नहीं, मैं शाम को तुम्हारे घर आ जाऊंगा. दोनों मिलकर सवाल हल कर लेंगे.
घर लौटकर संदीप किशोर की प्रतीक्षा करता रहा. बहुत देर हो गई, किशोर नहीं आया. अंधेरा होने को आ गया. अब संदीप को घबराहट होने लगी. उसे लगा यदि किशोर नहीं आया तो सवाल बन नहीं पाएंगे. वह घर में नहीं बताना चाहता था कि उसके पास गणित की किताब नहीं है. उसे मालूम था कि पिताजी अभी किताबें खरीद नहीं पाएंगे. ऐसे में उन्हें परेशान करना अच्छा नहीं होगा.
उसने किशोर के घर जाने का निश्चय किया. अपनी मां को उसने बताया कि मैं और किशोर कुछ देर साथ-साथ पढ़ना चाहते हैं. मैं उसे घर जा रहा हूं.
मां ने कहा, ठीक है लेकिन जल्दी आ जाना. संदीप अपनी कॉपी और कलम लेकर दौड़ता हुआ किशोर के घर पहुंचा. गेट पर ही चौकीदार खड़ा था. वह संदीप को पहचानता नहीं था. उसने पूछा, तुम कौन हो और यहां क्यों आए हो?
संदीप ने हांफते हुए कहा कि वह किशोर के साथ ही पढ़ता है. आज दोनों को मिलकर काम करना है.
चौकीदार ने कहा, मैं अंदर से पूछ कर आता हूं. तुम यहीं रुको.
संदीप गेट पर खड़ा रहा.
चौकीदार ने लौटकर कहा कि किशोर के पिताजी ने अंदर आने से मना किया है. संदीप अवाक रह गया, कुछ कह ना सका. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करूं.
अब इसके बाद क्या हुआ होगा, इसकी आप कल्पना कीजिए और कहानी पूरी कर हमें माह की 15 तारीख तक ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे