सारे जहाँ से अच्छा
सर मुहम्मद इक़बाल की लिखी हुई इस प्रसिध्द गज़ल का भारत की देशभक्तिपूर्ण शायरी में बहुत बड़ा स्थान है. इक़बाल ने इसे तराना-ए-हिन्दी अर्थात् हिन्द (या भारत) का गीत का नाम दिया था. सच में यह गीत भारत की महानता और भारतवासियों की एकता का उद्घोष करता है.
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलसिताँ हमारा।।
ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में।
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा।।
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का।
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा।।
गोदी में खेलती हैं, उसकी हज़ारों नदियाँ।
गुलशन है जिनके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा।।
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको।
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा।।
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा।।
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।।
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।।
'इक़बाल' कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में।
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा।।
आगे बढ़ने के पहले आइये इस गीत को लता मंगेशकर की मधुर आवाज़ में सुनते हैं –
यह भी बड़ी विचित्र बात है कि भारत के इस महान देशभक्तिपूर्ण गीत को लिखने वाले सर मुहम्मद इक़बाल ने बाद में भारत के विभाजन और पकिस्तान के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. इक़बाल का जन्म 9 नवम्बर 1877 को हुआ था. उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है. इकबाल के दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित थे जो बाद में सिआलकोट आ गए थे. असरार-ए-ख़ुदी, रुमुज़-ए-बेख़ुदी और बंग-ए-दारा उनकी प्रमुख रचनाएं हैं. उन्हें अल्लामा (विव्दान) इक़बाल कहा जाता है. उन्हें मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक), शायर-ए-मशरीक़ (पूरब का शायर) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का विव्दान) भी कहा जाता है. वे पाकिस्तान के राष्ट्रकवि माने जाते हैं. वर्ष 1923 में उन्हें सम्राट जार्ज पंचम ने सर की उपाधि दी थी. वर्ष 1930 में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में इक़बाल ने ही सबसे पहले अपने अध्यक्षीय भाषण में भारत के विभाजन की मांग उठाई थी. इसके बाद इन्होंने जिन्ना को भी मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उनके साथ पाकिस्तान की स्थापना के लिए काम किया. इक़बाल का जन्मदिवस पाकिस्तान में राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इक़बाल का मज़ार भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.
इक़बाल के इस प्रसिध्द गीत को पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने बांसुरी की तान में बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया है –
व्दिराष्ट्र सिध्दांत स्वीकार करने के बाद इक़बाल की सोच में इतना परिवर्तन हो गया कि उन्होने आपने ही गीत तराना-ए-हिन्दी के जवाब में खुद ही तराना-ए-मिल्ली लिखा जिसमें राष्ट्रावाद के बजाय मुस्लिम मज़हब का होने पर गर्व प्रदर्शित किया गया है -
तराना-ए-मिल्ली
चीन ओ अरब हमारा, हिन्दोदस्तां हमारा
मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहाँ हमारा
तौहीद की अमानत, सीनों में है हमारे
आसाँ नहीं मिटाना, नाम ओ निशाँ हमारा
दुनिया के बुतकदों में, पहले वह घर ख़ुदा का
हम इस के पासबाँ हैं, वो पासबाँ हमारा
तेग़ों के साये में हम, पल कर जवाँ हुए हैं
ख़ंजर हिलाल का है, क़ौमी निशाँ हमारा
मग़रिब की वादियों में, गूँजी अज़ाँ हमारी
थमता न था किसी से, सैल-ए-रवाँ हमारा
बातिल से दबने वाले, ऐ आसमाँ नहीं हम
सौ बार कर चुका है, तू इम्तिहाँ हमारा
ऐ गुलिस्ताँ-ए-अंदलुस! वो दिन हैं याद तुझको
था तेरी डालियों में, जब आशियाँ हमारा
ऐ मौज-ए-दजला, तू भी पहचानती है हमको
अब तक है तेरा दरिया, अफ़सानाख़्वाँ हमारा
ऐ अर्ज़-ए-पाक तेरी, हुर्मत पे कट मरे हम
है ख़ूँ तरी रगों में, अब तक रवाँ हमारा
सालार-ए-कारवाँ है, मीर-ए-हिजाज़ अपना
इस नाम से है बाक़ी, आराम-ए-जाँ हमारा
इक़बाल का तराना, बाँग-ए-दरा है गोया
होता है जादा पैमा, फिर कारवाँ हमारा
तराना-ए-मिल्ली भारत में पसंद नहीं किया जाता पर पाकिस्तान में इसे बड़ी शोहरत मिली हुई है. यू-ट्यूब पर उपलब्ध इस तराना-ए-मिल्ली को भी सुनकर देखिये. आप को इसमें इक़बाल का बदला हुआ रूप – उनकी मज़हब परस्तीे साफ दिखाई देगी और - मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना – की धर्मनिरपेक्षता दूर-दूर तक भी नज़र नहीं आयेगी. इक़बाल के व्यक्तित्व का यह सबसे दु:खद पहलू है.
सारे जहां से अच्छा भारत में बेहद लोकप्रिय है. कहते हैं कि महात्मा गांधी जब 1930 में पुणे की यरवदा जेल में बंद थे, तो उन्होने यह गीत 100 बार गाया था. वर्ष 1945 में पंडित रविशंकर मुम्बई में इप्टा के साथ काम कर रहे थे. उसी समय उन्होने इस गीत की धुन बनाई. आइये कलकत्ता यूथ कायर व्दारा समूह गीत के रूप में प्रस्तुत इस गीत को सुनते हैं.
यह गीत फिल्मों में भी कई बार आया है. देव आनंद और शर्मीला टैगोर की फिल्म - यह गुलिस्तां हमारा में यह गीत फिल्माया गया है. वर्ष 1950 में बनी राम दरयानी की फिल्म भाई-बहन में इसे आशा भोंसले ने अपनी सुमधुर आवाज़ में गाया है –
इस गीत को पंडित रविशंकर की बनाई गई धुन में भारतीय सेना ने अपने मार्चिग सांग के रूप में अंगीकार किया है. नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस की बीटिंग रिट्रीट के अवसर पर सेना के व्दारा इस गीत पर सुंदर मार्च देखिये -
इस गीत के साथ जुड़ी हुई एक बहुत ही दिलचस्प बात यह है कि भारत के प्रथम अंतरिक्ष यात्री स्वार्डन लीडर राकेश शर्मा से अंतरिक्ष मे बात करते हुए तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जब उनसे पूछा कि ऊपर से भारत कैसा दिखाई देता है, तो उन्होने उत्तर दिया – सारे जहां से अच्छा. आइये इस बातचीत का वीडियो देखते हैं –
साहिर लुधियानवी ने इस गीत पर एक व्यंग्यात्मक पैरोडी लिखी थी, जिसे 1958 की राजकपूर की फिल्म फिर सुबह होगी में मुकेश ने गाया है. यह पैरोडी भारत के गरीबों की हालत पर बड़ा तीखा तंज़ है -
और अब अंत में दूरदर्शन व्दारा तैयार किया गया और राजन बेज़बरुआ व्दारा गाया हुआ इस गीत का संस्कृत अनुवाद भी सुनिये.