जाड़े की मिठाई
रचनाकार - श्वेता तिवारी
जाड़े के दिनों में सुबह की गुनगुनी धूप का आनंद लेते हुए राजा, मंत्री और पंडित बैठे बातें कर रहे थे. राजा ने कहा' जाड़े का मौसम सबसे अच्छा मौसम है. खूब खाओ और सेहत बनाओ' यह बात सुनकर पंडित के मुंह में पानी आ गया. वह बोला महाराज जाड़ों में तो मेवा और मिठाई खाने का अपना ही मजा है, अपना ही आनंद है.
'अच्छा बताओ जाड़े की सबसे अच्छी मिठाई कौन सी है?' राजा ने पूछा. पंडितजी ने बर्फी, लड्डू, काजू की बर्फी आदि कई मिठाईयां गिना दी. राजा ने सभी मिठाईयां मंगा कर पंडित को दी. पंडित से कहा जरा खाकर बताइए. 'पंडित जी इनमें से सबसे अच्छी मिठाई कौन सी है? ' पंडित को सभी मिठाइयां अच्छी लगती थी किस मिठाई को सबसे अच्छी कहता इसलिए वह बारी-बारी से सब मिठाईयां खाता गया और कहा कि सभी मिठाईयां बहुत अच्छी है.
राजा ने मंत्री से पूछा तो वह बोला महाराज एक ऐसी मिठाई है जो सबसे अच्छी है मगर वह यहाँ नहीं मिलेगी, आज रात को मेरे साथ चलें तो मैं वह बढ़िया मिठाई आपको भी दूंगा. ठीक है भाई, इसमें देर क्यों, चलते हैं. रात को राजा और पंडित जी मंत्री को साथ लेकर चल पड़े. चलते-चलते तीनों काफी दूर निकल गए एक जगह पर कुछ लोग अलाव के सामने बैठे आपस में बातें कर रहे थे. वे तीनो वहीँ रुक गए पास ही कोल्हू चल रहा था. मंत्री वहां गया और पैसे देकर गरम गरम गुड ले लिया. गुड़ लेकर वह पंडित और राजा के पास आ गए. अंधेरे में राजा और पंडित को थोड़ा-थोड़ा गुड़ देकर बोले लीजिए खाइए जाड़े की असली मिठाई और मिठाई का मजा लीजिए.
राजा ने गरम-गरम गुड़ खाया तो उन्हें बड़ा स्वादिष्ट लगा. राजा ने पूछा कहां से आई तभी, मंत्री को एक कोने मे पड़ी पत्तियां दिखाई दी. अपनी जगह से उठा और कुछ पत्तियां इकट्ठा कर आग लगा दी. फिर मंत्री बोले ठंड में गरम गरम चीजें अच्छी लगती हैं इसलिए स्वादिष्ट हैं यह सुनकर राजा मुस्कुराए और पंडित जी चुप बैठे रहे.
परिवार
रचनाकार - डिजेन्द्र कुर्रे
एक गांव में सोनूराम नाम का वृद्ध रहता था उसके नौ बेटी और चार बेटे थे. परिवार बहुत बड़ा था. परिवार का लालन-पालन खेती मजदूरी करके करता था. सोनू राम की पत्नी बहुत परेशान रहती थी. परिवार बड़ा होने के कारण दिनोंदिन उनके बाल बच्चे झगड़ते रहते थे. सुबह होती कि चाय रोटी के लिए झगड़ते, स्कूल जाने समय पुस्तक कापी के लिए झगड़ते.
मां काफी परेशान रहती थी फिर भी मां की ममता सभी बच्चों को लाड़-प्यार देने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती. एक दिन सोनू के बेटों रंगा और बिल्ला में कपड़ों के लिए हाथापाई हो गयी. रंगा की शर्ट को बिल्ला ने पहन लिया था. बिल्ला ने गुस्से में शर्ट फाड़ दी जब उसके पिताजी काम करके घर आये तो बिल्ला को खूब डांट फटकार पड़ी.
वे एक-एक पैसे जोड़ कर इकट्ठा करते लेकिन परिवार चलाना इतना आसान नहीं था. आट- दाल का भाव सोनूराम को परिवार के पालन-पोषण से ही पता चल गया. एक दिन अचानक रंगा की तबीयत बहुत खराब हो गयी उसकी मां उसकी हालत देखकर जोर-जोर से रो रही थी पैसे के लिए इस घर उस घर दर-दर भटक रही थी अंत में पैसे के अभाव में उसके बेटे ने दम तोड़ दिया. सोनू राम भी सोचने लगा इतना ज्यादा बच्चों वाला परिवार चलाना बहुत कठिन है मन ही मन खुद रोने लगा. बहुत पश्चाताप किया.
अंत मे उसके जीवन में एक ऐसा बदलाव आया कि सोनूराम को गांव में सरपंच बनने का अवसर मिला. तब गांव का मुखिया होने के नाते उसने पूरे गांव का विकास कर गांव को तरक्की की ओर ले गया. गांव में हम दो हमारे दो की योजना को पहल कर लोगों को जागरूक किया. उस पंचायत में गांव में किसी भी परिवार में 2 बच्चे से अधिक बच्चा पैदा नही किये. धीरे-धीरे उस गांव में खुशहाली आ गई लोग सोचने लगे जनसंख्या बढ़ाने से कोई लाभ नहीं है इसलिए छोटा परिवार ही सर्वोत्तम है.
सीख:- छोटा परिवार सुखी परिवार.