महासिवरातरी अउ हर हर महादेव

रचनाकार:- डॉ. जयभारती चंद्राकर

महासिवरातरी परब हर हमर हिन्दुमन के अब्बड़ महत्व के तिहार हरे. इही तिहार हर भगवान संकर के पूजा-पाठ अउ अराधना के तिहार हरे. हर बछर बारह ठन सिवरातरी परथे तेमा महासिवरातरी के अब्बड़ महत्व हवय. फागुन कृस्न चतुर्दर्सी के सिवरातरी हर बिसेस हरे. इही सिवरातरी के दिन भगवान संकर हर बरम्हा ले रूद्र के रूप धरिस. परलय के समे इही दिन प्रदोस काल म भगवान सिव हर तांड़व करत रिहिस. उही बेरा ब्रम्हांड़ ल तीसर आँखी के ज्वाला ले भस्म कर दीस. ऐखर सेती इही दिन अउ रथिया ल महासिवरातरी अउ कालरातरी कहे जथे.

महासिवरातरी के दिन भगवान सिव के बिहाव हर पारवती के संग होय रिहिस. तीनों भुवन के सुघ्घर तिपुरा सुन्दरी सीलवती गौरी ले संकर भगवान के बि हाव होइस. इही जम्मो गोठ हर हमर पुरान गरूड़ पुरान,पद्मपुरान, स्कंद पुरान ,सिव पुरान अउ अग्नि पुरान म महिमा के बखान हवय.

कहे गे हवय ,भगवान संकर हर अब्बड़ भोला भंड़ारी हवय. जेन हर मन अउ हिदय ले सुरता करथे तेखर उप्पर संकर भगवान जल्दी खुस हो जथे. भगवान सिव के मुंड़ी म एक लोटा जल रितोय ले अउ बेल पाना चघाय ले ,रथिया जागरन करे ले ओहर मन के कामना ल पूरा कर देथे. भगवान सिव के वेस हर तको अब्बड़े किसिम के हरे. तन म मसान के राख ल पोते रहिथे. गला म साँप के माला ,कंठ म विष अउ जटा म गंगा ल धरे ,माथा म तीसर आँखी ल खोलत बिकराल अउ बइला म बइठे जम्मो भगत मन के मंगल करत रहिथे.

सिव के अरथ कल्यान हवय. सिव ल भोलेनाथ,सिवसंकर,सम्भू,नीलकंठ रूद्र तको कबे जथे. हमर सब्बो देवी-देवता, देवता धामी ले बड़का महादेव हर कहाथे. महादेव हर राक्छक मन के तको देवता हरे. आज इही संसार म भगवान सिव के उपासक अउ मनइया जम्मो जगह बगराय हवय. अभे सिव रातरी म जम्मो सिव मंदिर म मेला-मड़ई भराथे. कांवरिया मन कांवर म जल ल लोटा म धर के अब्बड़ दूरिहा ल लानथे अउ सिव मंदिर म सिव लिंग म रितोथे अउ अपन मनोकामना ल पा जथे.

हमर छत्तीसगढ़ हर सिव उपासक के गढ़ हवय. इहा जगह-जगह प्राचीन सिव मंदिर हवय अउ स्वयंभू सिव लिंग तको हवय. जेखर महिमा अब्बड़ हवय.

गरियाबंद जिला म मरौदा गाँव म स्वयंभू भूतेश्वर महादेव हरे,जेला भकूर्रा महदेव तको कहिथे.जेखर महिमा अपरंमपार हवय. वोला विस्व के सबले बड़का सिवलिंग के उपाधि मिले हवय. जेमा महासिव रातरी म बड़का मेला भराथे. दूरिहा-दूरिहा ले लोगनमन सिवलिंग के दरसन बर आथे अउ अपन मन के मुराद ल पा जथे.

शिवरात्रि मनाबो --- महादेव में पानी चढाबो

रचनाकार:- महेन्द्र देवांगन 'माटी'

शंकर भगवान ल औघड़ दानी कहे गेहे। काबर पूजा पाठ करे के सबले सरल विधि एकरे हे. अऊ बहुत जल्दी खुश होके वरदान भी देथे. शंकर भगवान ल भोला कहिथे त सीरतोन में भोलेच भंडारी हरे.

शिवरात्रि के दिन एकर बिसेस पूजा पाठ करे जाथे. फागुन महीना में अंधियारी पांख के चौदस के दिन शिवरात्रि ल मनाय जाथे.

कहे जाथे की इही दिन शिव जी ह तांडव करके अपन तीसरा आंखी ल खोले रिहिसे अऊ पूरा ब्रमहांड ल समाप्त कर दे रिहिसे। एकरे पाय ए दिन ल महाशिवरात्रि या कालरात्री भी कहे जाथे.

कोई कोई काहनी में माने जाथे के भगवान शंकर के बिहाव ह इही दिन होइस हे

शंकर भगवान के रुप ह निराला रहिथे. अपन हाथ गोड़ में राख ल पाऊडर बरोबर चुपरे रहिथे. गला में नाग सांप के माला, कान में बिच्छी के कुंडल, कनिहा में बघवा के छाला अऊ नंदी बैला के सवारी रहिथे.

शिव जी ह अपन भक्त मन उपर जल्दी खुश हो जथे अऊ तुरते वरदान देथे.

पौरानिक कथा ----- एक बार एक शिकारी ह शिकार करे बर जंगल में जाथे. शिकार करत करत वोला रात हो जथे अऊ रसता भटक जाथे. त वोहा अराम करे बर एक ठन बेल के पेड़ में चढ़ जथे. वो शिकारी ह रात भर जागत जागत बेल पत्ता ल टोर टोर के खाल्हे में फेंकत जाय। पेड़ के खाल्हे में एक ठन शिवलिंग रखाय रिहिसे. बेल के पत्ता ह उही शिवलिंग में गिरत रिहिसे. वो दिन शिवरात्रि रिहिसे. एकर से शिव जी ह भारी खुश होगे अऊ शिकारी के कलियान बर वरदान दीस.

एक अऊ कथा में आथे की

एक मंदिर में सोना के घंटी बंधाय रहिथे. रात में एक झन चोर ह चोरी करे बर जाथे. वो घंटी ल निकालना चाहथे लेकिन ओकर हाथ ह घंटी तक अमरात नइ राहे. तब वोहा शिवलिंग के उपर चढ़गे अऊ घंटी ल निकाले लागीस। शिवलिंग उपर चढ़ीस त शंकर भगवान परगट होगे अऊ वरदान मांगे बर बोलीस। तब वो चोर डररा जथे अऊ बोलथे के मेंहा तो तोर पूजा पाठ कुछु नइ करे हों भगवान, अऊ मोर ऊपर कइसे खुस होगेस. तब भगवान बोलथे के सब आदमी आथे अऊ मोर ऊपर फूल पान नरियर भर चढ़हाथे , लेकिन तेंहा तो अपन पूरा शरीर ल चढ़हा देस। एकर से मेंहा बहुत खुश हावँव.

अइसे बोल के वोहा चोर ल वरदान दीस अऊ चोर के गरीबी दूर होगे.

ए परकार से शंकर भगवान ह जल्दी खुश होके वरदान देवइया हरे.

शिवरात्रि के दिन जेहा भी सच्चे मन से पूजा पाठ करथे ओकर मनोकामना जरुर पूरा होथे

ॐ नम: शिवाय

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