बाल बचत बैंक

प्रेषक - सुनील यादव

माध्यमिक शाला पेण्डरखी वि. खं. उदयपुर सरगुजा में पिछले साल 5 फरवरी 2019 को बाल बचत बैंक की स्थापना की गई थी जिसका उद्देश्य बच्चों में बचत की आदत का विकास करने के साथ-साथ बैंकिंग प्रक्रिया को समझना था. इस बाल बचत बैंक का संचालन स्वयं बच्चों के द्वारा किया जाता है. बच्चों के लिए बचत बैंक पासबुक, जमा पर्ची, आवक रजिस्टर, आदि का रखरखाव किया जाता है. पिछले एक वर्ष में बच्चों के द्वारा छोटी-छोटी राशी जमा और निकासी करके दस हजार रुपये की लेनदेन किया. प्रत्येक बच्चे के बचत खाते में सौ रुपए जमा होने के बाद, प्रोत्साहन स्वरूप 5 रूपये का ब्याज प्रभारी प्रधान पाठक सुनील यादव द्वारा दिया जाता हैं. वर्तमान में बाल बचत बैंक में लगभग चार हजार रुपये जमा हैं. आवश्यकता होती है तो बच्चे अपने बचत बैंक खाते से रपये निकाल लेते हैंउनकी पासबुक में दर्ज किया जाता है. इस प्रकार बच्चों में बचत की आदत का विकास होता है. और बैंकिंग प्रक्रिया को भी समझनेका काम होता है.

मैं बहुत खुश हूँ

प्रेषक - सोनी केवट

छात्रा का नाम – सोनी केवट
कक्षा - सातवीं
गाँव – सलिहा , तहसील – बिलाईगढ़, बलोदा बाज़ार
संस्था का नाम – कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय बिलाईगढ़, बलोदा बाज़ार, छत्तीसगढ़

कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय बिलाईगढ़ में कक्षा सातवीं में पढ़ने वाली बालिका सोनी केवट, जिनका कहना है कि “भेदभाव रहित समाज ही सबको आगे बढ़ने में मदद करेगा” सोनी का कहना है कि पहले उसे पता नहीं था कि अगर कोई बात हमें अच्छी नहीं लग रही है तो उसे कैसे कहा जाये, इसी पर सोनी ने कहा “ मेरी माँ पहले मेरे साथ बहुत भेदभाव पूर्वक व्यवहार करती थी. मेरे दोनों भाइयों को ज्यादा प्यार देती थी और मुझे कम. मेरे भाइयों के लिए नए नए कपड़े खरीदती थी और मेरे लिए बहुत ही कम और यह सब देखकर मुझे बहुत ही दुःख होता था और मैं बहुत रोती थी”.

जब सोनी अधीक्षिका द्वारा अगस्त माह में आयोजित कक्षा सातवीं के जीवन कौशल सत्र “लिंग भूमिकाएँ और रूढ़ीवाद” में शामिल हुयी और उसे इस बात की जानकारी हुयी कि जो उसके साथ घर पर परिवार वाले व्यवहार करते हैं, वो भी तो भेदभाव ही है और फिर सोनी ने सोचा कि मैं यह बात घर पर कहूँगी और जब छुट्टियों में वह अपने घर गयी तो उसने अपनी मम्मी पापा को समझाया कि हमारे स्कूल में जीवन कौशल की शिक्षा दी जाती है, जिसमें बताया जाता है कि माता पिता को अपने बच्चों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करना चाहिए, तो आप लोग भी मेरे साथ इस तरह का भेदभाव पूर्वक व्यवहार मत किया कीजिये, इस तरह से मेरे मम्मी पापा को भी अहसास हुआ कि वो मेरे साथ गलत कर रहे थे. अब मेरे मम्मी पापा दोनों मुझसे बहुत प्यार करते हैं और मेरे लिए नए कपड़े लाते हैं.

इस पूरी घटना की जानकारी सोनी ने अपने अधीक्षिका एवं शिक्षिका को दिया और कहा कि “मैडम ! मेरे जीवन में यह बदलाव जीवन कौशल की शिक्षा के कारण हुआ है और अब मैं बहुत खुश हूँ.”

सोनी का कहना है कि “अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए जो कार्य लड़के कर सकते हैं वो कार्य लड़कियां भी तो कर सकती हैं और पैसों के कारण कभी भी पढाई नहीं छोड़ना चाहिए .”

पर्यावरण संबधी पहल

प्रेषक - चानी ऐरी

शाला व घर दोनो ही जगह मैं जल संरक्षण व प्लास्टीक मुक्त वातावरण की पहल करते आ रही हुं.
प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने की शिक्षिका सुश्री चानी ऐरी के द्वारा गांव पंधी व शाला में विशेष रूप से किया जा रहा है. ईको क्लब गठन कर के बच्चो के साथ
1)ऐरी मैडम स्वंयम व अपनी शालाओं के बच्चों के द्वारा पेपर व कपडे के थैलै सील कर बना कर शाला परिसर व गांव में घर जा जा के दैने का विशेष अभियान चलाया है.
2) गांव के सार्वजनिक स्थलो की सफाई
3) शाला के मध्यान भोजन व अन्य भोज्य वेस्ट पदार्थो से खाद बनाने का काम हाल ही में शाला मे ही शुरु किया है.
4) द्वियांग बच्चों का सहयोग भी प्रर्यावरण संरक्षण मेले कर शाला परिसर को सुंदर बनाती है. वो बच्चे इनके साथ सहर्ष कार्य करते है
5)सफाई का महत्व बता कर बहुत से रोगों एवं प्रदुषण से बचाने का प्रयास

फागुन तिहार

प्रेषक -धारिणी सोरी

होली का त्योहार पूरे देश में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह त्योहार रंग,उमंग और खुशियों का त्योहार होता है. लोग मन के बैर- भाव को भूलकर प्रेम से गुलाल लगाकर गले मिलते हैं, और एक दूसरे को बधाईया देते हैं। सभी अपने बड़ो से आशीर्वाद लेते हैं.

हर त्योहार मनाने के अपने-अपने रीती-रिवाज ,परंपरा या वैज्ञानिक आधार होते हैं. आज हम अपने छत्तीसगढ़ में होली मनाने की इस रीत के बारे में जानेंगे. बुजुर्गों से पूछने पर पता चला कि हम होली का त्योहार क्यो मनाते हैं? और इसके पीछे क्या कारण है ?जबकि हम बचपन से स्कूलों में यह पढ़ते आ रहे है कि होलिका नाम की एक असुर राजकुमारी ने प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर अग्नि में जलाकर मारने का प्रयत्न किया और स्वयं जलकर भस्म हो गयी.

बुजुर्ग दादा जी ने बताया कि हम हिंदी महीने के अनुसार अपने तीज त्योहारों का आयोजन करते है. चैत्र में नया साल मनाते हैं ,और फागुन के साथ ही साल की समाप्ति हो जाती है. साल का अंतिम माह 'फागुन' के आखरी दिन में फागुन का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन हम इस साल को 'अंतिम विदाई' देते हैं, साथ ही अपने आने वाले नए वर्ष में सुखद जीवन की कामना करते हुए रंग -गुलाल लगाकर फागुन को बिदा करते हैं. फागुन के कुछ दिन पहले से ही लोग फ़ाग गीत गाते हैं,जो कि फागुन के बाद तेरह दिन तक चलता रहता है.

रंग -गुलाल लगाकर इस त्योहार को इसलिए मनाते हैं क्योंकि जब भी किसी को अंतिम विदाई देते हैं तो गुलाल लगाकर उसके प्रति अपना स्नेह, प्रेमभाव प्रकट करते हैं,चाहे वह मृत व्यक्ति हो , कार्यमुक्त या सेवानिवृत्त व्यक्ति हो उनके साथ व्यतीत किए मीठी यादों को संजोकर रखते हैं,बुरे समय को भूलते हैं. ठीक उसी प्रकार फागुन महीने के अंतिम दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर अपना स्नेह प्रकट करते हैं. आने वाला समय अच्छा हो यह आशीर्वाद देते हैं,और इसलिए छत्तीसगढ़ में लोग इसे 'फागुन तिहार' के नाम से जानते हैं.

हमारे छत्तीसगढ़ में यह त्योहार एक तरीके से 'काठी' अर्थात छुआ(मृतक कार्य) की तरह मनाया जाता है जिसमे फागुन के एक दिन पूर्व होलिका दहन(दाह) किया जाता है,जो कि हमारे अंदर निहित बुराइयों के दहन का प्रतीक होता है. अगले दिन रंग -गुलाल लगाया जाता है, और तेरह दिन बाद(तेरहवीं) 'धुर तिहार' होता है,उस दिन पूरे घर की फिर से लिपाई करके साफ करते है और पुनः रंग खेलते हैं. फ़ाग गीत गाते हैं. इस तरह हमारे छत्तीसगढ़ में फागुन का त्योहार हर्षोल्लास और प्रेम भाव से मनाया जाता है.

आइये पत्तल की परंपरा को पुनर्जीवित करें

प्रेषक - मंजूषा तिवारी

पत्तलों से लाभ:

  1. सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिटटी में दबा सकते है.
  2. पानी नष्ट नहीं होगा.
  3. कामवाली नहीं रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा.
  4. केमिकल उपयोग नहीं करने पड़ेंगे.
  5. केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि नहीं पहुंचेगी.
  6. अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक आक्सीजन भी मिलेगी.
  7. प्रदूषण भी घटेगा.
  8. सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिटटी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है.
  9. पत्तल बनाने वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा.
  10. सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा. जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है.
आजकल हर जगह भंडारे, विवाह शादियों , पार्टियों में डिस्पोजेबल की जगह इन पत्तलों का प्रचलन करना चाहिए.

आपकी लिखावट आपके बारे में क्या बताती हैं

रचनाकार:- गौतम कुमार शर्मा

किसी भी व्यक्ति की लिखावट से आप उस व्यक्ति के चरित्र के बारे में काफी कुछ जान सकते हैंं. वैसे कौन सोच सकता था की हमारी लिखावट में भी कोई राज छिपा हुआ हो सकता हैं! जैसे कि कहा जाता हैं,‘कलम की शक्ति तलवार की धार से कई गुना अधिक शक्तिशाली होती हैं.’ इस कथन के पीछे बहुत गहरा अर्थ छुपा हुआ हैं! अगर आप लोग भी अपनी लिखावट से अपने व्यक्तित्व के बारे में जानना चाहते हैंं तो तैयार हो जाइये. हम दावे से कह सकते हैं कि इन जानकारियों से आप काफी हद तक सहमत ही होंगे. तो आईये जानते हैं कुछ ऐसी ही बातों के बारे में:-

  1. आपकी लिखावट के अक्षरों का साइज़
    • छोटा अक्षर : अगर आप छोटे अक्षरों का इस्तेमाल करते हैंं तो आपकी एकाग्रता बहुत अच्छी हैं, जीवन के प्रति आपका नजरिया संकीर्ण और अपने उद्देश्य के प्रति आपका ध्येय भी निश्चित होता हैं.
    • बड़ा अक्षर : अगर आप बड़े अक्षरों का इस्तेमाल करते हैंं तो जीवन के प्रति आपका नजरिया बहुत ही खुला हुआ होता हैं और आप आसानी से बोरियत को महसूस नहीं करते हैं इसके साथ ही आपको मान सम्मान प्राप्त करने की बहुत इच्छा होती हैं!

  2. लिखते समय अक्षरों पर दबाव
    • अधिक दबाव : यदि आप लिखते समय अक्षरों पर अधिक दबाव डालते हैं तो आप बहुत ही भावुक किस्म के इंसान हैं!
    • कम दबाव : लिखते समय यदि आप अक्षरों पर कम दबाव डालते हैं तो आप अपनी भावनाएं को जाहिर नही होने देते हैं!

  3. लिखावट में अक्षरों के बीच का अंतर
    • कम अंतर : यदि आपकी लिखावट में अक्षरों के बीच का अंतर कम हैं तो आप समय के प्रबंधन में निपुण नहीं हैं.
    • बराबर अंतर : यदि आपकी लिखावट में अक्षरों के बीच का अंतर बराबर हैं तो आपका जीवन बेहद सुलझा हुआ होता हैं और चीज़ों का प्रबंधन अच्छे तरह से करने के साथ ही आप मानसिक रूप से भी काफी सुलझे हुए होते हैंं.
    • अधिक अंतर : यदि आपकी लिखावट में अक्षरों के बीच का अंतर अधिक हैं तो आपको आज़ादी में रहना काफी पसंद हैं. साथ ही आपको व्याकुल होना भी पसंद नहीं हैं. तथा आपको अपना व्यक्तिगत दायरा काफी पसंद हैं

  4. आपकी लिखावट किस ओर झुकी हैं?
    • बायीं ओर : यदि आपकी लिखावट बायीं ओर झुकी हुई हैं तो आप अंतर्मुखी हैंं और आपको आजादी में रहना पसंद हैंं.
    • दायीं ओर : यदि आपकी लिखावट दायीं ओर झुकी हुई हैं तो आपको लोगों से मिलना-जुलना, घूमना-फिरना, बातें करना काफी पसंद हैं लेकिन वो भी आपके अपने मूड के हिसाब से ही.
    • सीधा : अगर आपकी लिखावट सीधी हैं तो आप अपनी भावनाओं को अच्छे से नियंत्रित करना जानते हैंं और भावनाओं को अपने मन मुताबिक ज़ाहिर करते हैंं. चाहे किसी भी तरह का काम हो आप बहुत सोच समझ कर करते हैं.

  5. आपके वाक्य किस दिशा में जाते हैंं?
    • ऊपर : अगर आपके लिखावट के वाक्य ऊपर की ओर जाते हैंं तो आपका व्यक्तित्व आशावादी हैं और आप हर समय अच्छे मूड में रहने की कोशिश करते हैंं.
    • नीचे : अगर आपके लिखावट के वाक्य नीचे की ओर जाते हैंं तो आप निराशावादी हैं और ये आपके तनावग्रस्त और थके हुए होने की तरफ इशारा करता हैं.
    • लहरदार : अगर आपके लिखावट के वाक्य लहरदार हैंं तो इससे पता चलता हैं कि आपका दिमाग स्थिर नहीं रहता हैं. और आप काफी चंचल स्वभाव के हैं.

  6. आप अपने अक्षरों को कैसे जोड़ते हैं?
    • जुड़े हुए : अगर आपके लिखावट में अक्षर जुड़े हुए हैंं तो आप तार्किक, व्यवस्थित हैंं और सोच समझ कर निर्णय लेते हैंं.
    • अलग-अलग : अगर आपके लिखावट में अक्षर अलग-अलग हैंं तो आप बुद्धिमान हैंं और साथ में सहज ज्ञान से परिपूर्ण हैंं.

  7. आप अंग्रेजी के ‘i’ letter को कैसे लिखते हैंं?
    • चुलबुले आकार में : अगर आप अंग्रेजी के ‘i’ अक्षर को चुलबुले आकार में लिखते हैं! तो आप बेहद चंचल और रचनात्मक स्वभाव के हैंं, साथ ही आपको भीड़ से अलग हटकर दिखना पसंद हैं.
    • अव्यवस्थित : अगर आप अंग्रेजी के ‘i’ अक्षर को आप अव्यवस्थित करके लिखते हैंं तो आपको किसी भी तरह की अव्यवस्था पसंद नहीं और आप हर छोटी से छोटी बात पर नज़र रखते हैंं.

  8. अंग्रजी भाषा के ‘t’ letter की ऊपरी लाइन कैसे बनाते हैंं?
    • ऊपर: अगर कोई व्यक्ति अंग्रजी भाषा के ‘t’ अक्षर की ऊपरी लाइन को उपर की तरफ बनाते हैंं तो ऐसे लोगों का आत्मसम्मान बहुत ऊंचा होता हैं और इसी वजह से ऐसे लोग दूसरों की तुलना में बहुत बड़ा सोचने की क्षमता रखते हैंं.
    • नीचे : इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति अंग्रजी भाषा के ‘t’अक्षर की उपरी लाइन को नीचे की तरफ बनाते हैं तो ऐसे व्यक्ति में आत्मसम्मान की कमी पाई जाती हैं और ऐसे व्यक्ति अपनी काबिलियत के हिसाब से खुद को बहुत कम आंकते हैं. ऐसे व्यक्ति अक्सर अपनी काबलियत को नहीं पहचान पाते हैं.

मातृभाषा के संरक्षण का दिन

प्रेषक - प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

मातृभाषा मानव जीवन में आनन्द का उत्स है, लोक का अप्रतिम प्रसाद है और अवसाद से मुक्ति का द्वार भी. यह कुछ नया रचने-गुनने और चिंतन-मनन करने की आधारभूमि है. मातृभाषा है तो जीवन में उमंग, उत्साह की उत्ताल तरंगें हैं. वास्तव में मातृभाषा स्वयं की सहज अभिव्यक्ति और कल्पना के इंद्रधनुषी रंगों को साकार करने का एक फलक है. मातृभाषा में कड़ाही में गुड़ बनाने के लिए पक रहे गन्ने के रस की सोंधी सुगंध और मिठास होती है. मातृभाषा में किसी पहाड़ी झरने की मोहक ध्वनि सा सरस सुमधुर संगीत और गत्यात्मकता होती है. वह नित नये शब्द बुनती नवल रूप ग्रहण करती है. वह जीवन का स्पन्दन हैं, प्राण हैं. कोई व्यक्ति भले ही कितने बढ़े पद पर पहुंच जाये पर हर्ष, दुःख, प्रेम और क्रोध के अत्यधिक आवेग में उसके कंठ से सहसा मातृभाषा का स्वर ही फूटता है. यह मातृभाषा की जीवन्तता और जीवन में बसाहट का घोतक है. तभी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को कहना पड़ा – “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल. बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल.”

मातृभाषा के सम्बंध में अभी भी स्पष्ट परिभाषा का अभाव दिखता है. मातृभाषा से आशय किसी बच्चे को उसकी माता से प्राप्त होने वाली भाषा के अर्थ में किया जाता है. लेकिन यह मातृभाषा के व्यापक फलक को सीमित और संकुचित कर देना है. मेरे मत में मातृभाषा किसी व्यक्ति के बचपन में उसके परिवेश में कार्य-व्यवहार की वह सामान्य भाषा है जिसमें उसने लोक से सम्पर्क एवं संवाद किया है, भले ही वह उसकी मां की भाषा से अलग रही हो. तो हम कह सकते हैं की मातृभाषा किसी व्यक्ति की सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहचान होती है. मातृभाषा का स्थान वास्तव में कोई दूसरी भाषा कभी भी नहीं ले सकती. इसलिए मातृभाषा को न केवल संरक्षित रखना बल्कि सवंर्धित करते हुए अगली पीढ़ी को सौपना हमारी सामाजिक, भाषाई नैतिक जिम्मेदाराी है. इस दृष्टि से यूनेस्को द्वारा विश्व भर में 21 फरवरी को अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है.

भाषाई और सांस्कृतिक विशेषताएं एवं बहुभाषावाद के बारे में वैश्विक जन-जागरूकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्रसंघ की संस्था यूनेस्को द्वारा प्रत्येक वर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. अगर इस दिवस का ऐतिहासिक संदर्भ देखें तो अपनी मातृभाषा के लिए प्राणों का उत्सर्ग कर देने की प्रेरक घटना समृति पटल पर उभरती है. वास्तव में मातृभाषा दिवस को बांग्लादेशी विद्यार्थियों की अपनी भाषा की रक्षा के लिए छठे दशक के मध्य में पाकिस्तानी सरकार के विरुद्ध हुए संघर्ष में विजय के उत्सव के रूप में देखा जाना चाहिए, जिन्होंने पाकिस्तान द्वारा 1948 में उर्दू को राष्ट्रभाषा बनाकर पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लाभाषी आम जनता पर थोपने के कुत्सित बलात् प्रयास के विरुद्ध अपनी मातृभाषा बांग्ला के अस्तित्व की लड़ाई में उठ खड़े हुए आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार ने ढाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के इस भाषाई आंदोलन को बर्बरतापूर्वक कुचलने के लिए विद्यार्थियों के ऊपर पुलिस द्वारा गोली चलवाई थी, जिसमें कुछ विद्यार्थी मारे गए, सैकड़ों लापता हुए. अमानवीय काले इतिहास की वह तारीख 21 फरवरी थी. तो विद्याार्थियों के इस अतुल्य बलिदान की स्मृति में सम्पूर्ण बांग्ला देश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अपनी मातृभाषा बांग्ला को राजकीय आधिकारिक दर्जा देने की मांग के साथ छोटे-बड़े हजारों कार्यक्रम आयोजित किये जाते रहे हैं. आखिरकार 29 फरवरी 1956 को पाकिस्तानी सरकार ने बांग्ला भाषा को दूसरी आधिकारिक राष्ट्रभाषा का दर्जा प्रदान कर दिया. तब से 21 फरवरी को प्रति वर्ष बांग्लादेशी मातृभाषा दिवस का आयोजन करते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ से मांग करते रहे हैं कि 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मान्यता प्रदान की जाये. उनकी इस मांग के आधार मातृभाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के महत्व को स्वीकारते हुए यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 को इसकी स्वीकृति देते हुए वर्ष 2000 से इस दिवस को सम्पूर्ण विश्व में मनाने की घोषणा की. और तब से आधिकारिक रूप से राष्ट्रसंघ से जुड़े सभी देशों में यह दिवस अपनी मातृभाषा-बोली को स्मरण करने, बचाये रखने एवं अगली पीढ़ी तक पहुंचाये जाने के महतवपूर्ण अवसर के रूप में मनाया जाता है. उल्लेखनीय है कि 21 फरवरी को बांग्लादेश में राष्ट्रीय अवकाश घोषित है.

पर वर्तमान समय मातृभाषा-बोलियों पर संकट का है. दैनंदिन जीवन में बढ़ते तकनीकी उपकरणों के व्यामोह, आर्थिक सुदृढता के लिए पलायन करने, मुट्ठी में सिमटती-समाती दुनिया के कारण दैनिक कार्य व्यवहार में मातृभाषा के प्रयोग के अवसर बहुत सीमित हुए है. एक शोध-सर्वेक्षण के अनुसार विश्व में बोले जाने वाली लगभग 6900 भाषा-बोलियों में से 3000 भाषाएं मरणासन्न हैं. लगभग प्रतिदिन एक बोली मरने को विवश है. विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाएं केवल 10 हैं जिनमें जापानी, रूसी, बांग्ला, पुर्तगाली, हिंदी, अरबी, पंजाबी, मंदारिन और स्पेनिश सम्मिलित है. विश्व की कुल आबादी का 60 प्रतिशत केवल 30 प्रमुख भाषा में अपना कार्य व्यवहार संपादित करता है. आने वाले तीन-चार दशकों में विश्व की 5000 से अधिक भाषाएं खत्म होने के कगार पर हैं. भारत का संदर्भ लें तो 1961 की जनगणना में भारत में 1652 भाषाएं थीं जो अब 1300 के करीब शेष बची हैं और आगामी जनगणना में यह आंकड़ा और नीचे जायेगा, ऐसा माना जा सकता है. भारत में 30 भाषाएं ऐसी हैं जिनके बोलने वालों की संख्या 10 लाख के आसपास ही है. 7 भाषाएं ऐसी कि जिनके जानकार एक लाख से ज्यादा नहीं है. 122 भाषाएं ऐसी हैं जिनके बोलने वालों की संख्या केवल दस हजार ही बची है. कुछ भाषा-बोली, विशेषरूप से जनजातीय समाज. के व्यवहार करने वाले तो केवल अंगुलियों में गिने जा सकते हैं. मातृभाषा रोजगारोन्मुख न होने के कारण गैरयूरोपीय देशों की बड़ी आबादी अंग्रेजी सीख रही है. जो रोजगार का द्वार तो खोल रही है पर अपनी जड़ों से काट रही है.। महात्मा गांधी मातृभाषा की पैरवी करते हुए बच्चों या व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखाने के प्रयासों को गुलाम मनोवृत्ति का पोषक मानते थे. बच्चों के सीखने में विदेशी भाषा का माध्यम उनमें अनावश्यक दबाव, रटने एवं नकल करने की प्रवृत्ति को बढ़ाता है. वह उसकी मौलिकता का हरण कर लेता है. यूरोप में हुए एक शोध से यह तथ्य सामने आया कि जो बच्चे स्कूलों में अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं और घरों पर मातृभाषा का प्रयोग करते हैं वे दूसरे बच्चों की अपेक्षा कहीं अधिक बुद्धिमान और मेधावी होते हैं. भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने कहा था कि मैं अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बन सका क्योंकि गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त की थी.

तो संयुक्त राष्ट्रसंघ ने व्यक्ति के विकास में मात्भाषा की भूमिका स्वीकारते हुए 2008 को अंतरराष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित किया. गतवर्ष के आयोजन के थीम विषय ‘विकास, शांति और संधि में देशज भाषाओं की भूमिका’ से इस दिवस की गम्भीरता स्पष्ट है. विश्व के कई देशों ने स्मारक बनाकर मातृभाषा के महत्व को रेखांकित किया है. जिनमें सिडनी स्थित ‘अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस स्मारक’ एवं ढाका ‘शहीद स्मारक मीनार’ प्रेरक एवं उल्लेखनीय है. वास्तव में यह दिवस अपनी मातृभाषा और बोली के सहेजने-संवारने और दैनंदिन जीवन में अधिकाधिक व्यवहार करने के संकल्प का दिन है.

अन्तराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

प्रेषक - डॉ एम सुधीश

प्रतिवर्ष 21 फरवरी, 2020 को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष हमारे लिए यह दिवस बहुत ही यादगार बन गया है क्योंकि हमारे राज्य में अब प्राथमिक शालाओं में शुरू की कक्षाओं में बच्चों को समझाने के लिए बच्चों के घर की भाषा का इस्तेमाल किया जाएगा. बच्चों के घर की भाषा में सिखाने के लिए शिक्षकों को भी बच्चों के घर की भाषा सीखनी होगी. क्या हम अपने पालकों एवं आसपास भाषा के जानकार लोगों को अपने शिक्षक को हमारी भाषा सिखाने में मदद करने के लिए निवेदन कर सकते हैं ?

  1. हमारी अपनी भाषा अच्छे से जानने वाले लोगों की सूची बनाकर अपने शिक्षक/ शिक्षिका को देना
  2. हमारे बड़े भाई और बहनों को हमारी भाषा में शब्दकोश जैसा कुछ बनाने के लिए मदद लेना
  3. हमारी भाषा में वर्णमाला चार्ट बनाने में सहयोग लेना
  4. समुदाय से बड़े-बुजुर्गों को आमंत्रित कर बच्चों को इस सप्ताह में प्रतिदिन स्थानीय भाषा में कहानी सुनाना
  5. मुस्कान पुस्तकालय में उपलब्ध स्थानीय सामग्री का उपयोग कर प्रतिदिन स्थानीय सामग्री का वाचन
  6. बड़ी कक्षाओं / स्थानीय समुदाय के सहयोग से बड़ी चित्र कहानी की पुस्तक तैयार कर वाचन
  7. स्थानीय भाषा में गीत-कविताओं एवं विभिन लोक कलाओं से परिचय एवं स्थानीय कार्यक्रमों का आयोजन
हम सभी बच्चे, हमारे युवा एवं इको क्लब इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए अपने शिक्षकों को हमारी भाषा सीखने में सहयोग प्रदान करेंगे. ऐसा यदि हम सभी प्राथमिक शालाओं में कर लेवें तो हमारे ऐसे साथी जिन्हें ठीक से समझ में नहीं आता, वे भी समझने लगेंगे.

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