चित्र देखकर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिये यह चित्र दिया था –

इस चित्र पर हमें कहानियाँ प्राप्त हुई हैं, जो हम नीचे प्रकाशित कर रहे हैं –

श्रम ही पूजा

लेखक –टेकराम ध्रुव दिनेश

एक लकड़हारा था, नाम था - रामू. प्रतिदिन जंगल में लकड़ी काटने जाया करता था. दिन, हफ्ते, महीने, और साल गुजर गए, लेकिन रामू लकड़हारे की दिनचर्या नहीं बदली. वह रोज सूर्य उदय होने के पहले उठता, सूर्य को नमस्कार करता और भोजन ग्रहण कर के अपनी कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर चल देता. दोपहर तक परिश्रम कर लकड़ियां काटकर एकत्र करता और बाजार की ओर चल देता बेचने के लिए. लकड़ियाँ बेचकर जो पैसे मिलते उससे अपनी जरूरत की चीजें खरीद लेता.

उसके गाँव के लोग सालों से उसकी यह दिनचर्या देखते आ रहे थे. उनमें से कई लोग तो सबेरे देर से उठते, काम पर भी देर से जाते. कई तो ऐसे भी थे जो सुबह से शाम तक पूजा-पाठ में ही लगे रहते और सोचते रहते कि‍ अब तो भगवान ही हमारा मालिक है. लेकिन रामू इन सबसे दूर अपनी मेहनत की दुनिया में रमा रहता था.

एक दिन गाँव में एक महात्मा आए. उनका सम्मान करने के लिए गाँव के सारे लोग शाम को एक जगह एकत्र हुए. केवल रामू लकड़हारा वहाँ नहीं था. सारे लोग काना-फूसी करने लगे. महात्मा जी के पूछने पर कि क्या काना-फूसी हो रही है? लोग रामू के बारे में महात्मा जी से शिकायत भरी बातें बताने लगे. वे कहने लगे रामू बड़ा घमंडी है. देखिए आज भी यहां नहीं आया. महात्मा जी लोगों की बात ध्यान से सुनने के बाद बोले, कोई मुझे उनके पास ले जा सकता है क्या? सभी लोग महात्मा जी के साथ रामू के घर गए. सभी लोग अवाक् देखते रह गए जब महात्मा जी ने रामू लकड़हारे को प्रणाम किया और बोले - भाई, असली इंसान तो तुम्हीं हो जो श्रम को ही पूजा मानकर इतनी तन्मयता के साथ पालन करते आ रहे हो. महात्मा जी की बातें सुनकर लोगों के सर झुक गए.

शिक्षा - इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हम कोई भी काम करें उसे बड़ी तन्मयता और ईमानदारी से करें.

लकड़हारे की कर्तव्यनिष्ठा

(लेखक - इंद्रभान सिंह कंवर)

किसी जंगल के किनारे एक लकड़हारा रहता था, जो बहुत ही ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ था. वह प्रतिदिन जंगल से सूखी लकड़ी लेकर आता और उसे गाँव में बेचकर अपना परिवार चलाता. इस तरह उसका और उसके परिवार का जीवन यापन होता था. उसे अपने कर्तव्य और अपनी कुल्हाड़ी से बहुत प्रेम था. गाँव के अन्य लोग उसकी कर्तव्यनिष्ठा को देखकर, उसे शहर में अन्य कार्य करने की सलाह देते, परंतु उसे तो अपनी कुल्हाड़ी और लकड़ी काटने से ही प्यार था.

हर दिन की भति वह उस दिन भी लकड़ी काटने के लिए जंगल गया हुआ था. लकड़ी काटते-काटते काफी समय हो चुका था. उसकी कुल्हाड़ी हाथ से छिटक कर कहीं दूर चली गई और वह परेशान होकर उसे ढूंढने लगा. काफी ढूंढने के बाद भी उसे उसकी कुल्हाड़ी नहीं मिली. शाम हो रही थी. अब तो सूर्य देव के जाने का समय भी हो चुका था.

लकड़हारा काफी परेशान हो चुका था परंतु वह पूर्ण विश्वास के साथ ढूंढने में लगा हुआ था. यह सब सूर्य भगवान जी देख रहे थे. वे मानव का रूप धारण कर उसके पास आए और पूछे, क्या हुआ भाई, शाम होने को है और तुम घर जाने की तैयारी नहीं कर रहे हो. बहुत परेशान लग रहे हो. तब लकड़हारे ने उन्हें पूरा वृतांत सुनाया. सूर्यदेव बोले - एक कुल्हाड़ी के लिए तुम इतना परेशान क्यों हो? नई कुल्हाड़ी ले लेना, छोड़ो इस कुल्हाड़ी को.

यह सब सुनकर लकड़हारे ने कहा, यह कुल्हाड़ी नहीं मेरा जीवन है. इसी से मेरा और मेरे परिवार का पालन पोषण होता है. मैं इसे ऐसे ही नहीं छोड़ सकता. अपनी कुल्हाड़ी के प्रति लकड़हारे का प्यार देखकर सूर्यदेव बहुत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हुए. उन्होंने लकड़हारे की कुल्हाड़ी ढूंढकर उसे वापस कर दी. लकड़हारा सूर्य देव का दर्शन पाकर बहुत आनंदित हुआ. सूर्यदेव ने उसकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से प्रसन्न होकर उसे सदैव सुखी रहने का आशीर्वाद दिया.

सीख - हमें अपने कार्य एवं कार्य में उपयोग की जाने वाली सामग्रियों के प्रति वफादार होना चाहिए क्योंकि इसी से हमारी रोजी-रोटी चलती है.

पेड़ को न काटो

लेखक -डिजेन्द्र कुर्रे

एक छोटे से गाँव की कहानी है. वहाँ चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी. चिड़ियों की चहचहाहट और पशु पक्षियों की आवाज़ें सबका मन आकर्षित करतीं थीं, लोगों का दिल जीत लेती थीं. वहाँ के लोग प्रातःकाल सूर्य का दर्शन करते तथा नियमित योग व्यायाम आदि करते थे. गाँव का नज़ारा देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे. वहाँ का तालाब स्वीमिंग पूल से कम नहीँ था. चारों तरफ सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता था. फूलों की बागवानी, आकर्षित करते मनमोहक दृश्यों का नज़ारा गाँव में था. उस गाँव में वर्षा भी खूब होती थी. पानी की कोई कमी नहीं थी. हवा शुध्‍द होने के कारण लोग बीमार नहीं पड़ते थे.

उस गाँव में एक बढ़ाई रहता था. वह रोज पेड़ काटता और लकड़ियों से फर्नीचर तथा आर्ट की विभिन्न कलाकृतियाँ बनाकर शहर भेजता. इसमें टेबल, कुर्सी, बक्सा, चौखट, दीवान, डायनिंग टेबल, आलमारी, मेज, दरवाज़ा, पलँग, आदि कई तरह के सामान शामिल थे. दिनों दिन उसकी तरक्की होती गई परंतु गाँव में पर्यावरण संतुलन धीरे-धीरे बिगड़ता गया. हरियाली धीरे-धीरे वीरान हो गयी. वर्षा में कमी हो गयी. तालाब सूखने लगे. फूलों के बाग मुरझाने लगे. गाँव पहले पर्यटन का केंद्र था पर धीरे धीरे लोगों ने इस गाँव में आना छोड़ दिया. गाँव की स्थिति बहुत खराब हो गई. लोग बीमार भी पड़ने लगे.

इस कहानी से हमें सीख लेनी चाहिए कि पेड़ों को न काटें. हरियाली लाने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगायें ताकि हमारा जीवन सुखमय बना रहे.
'पेड़ खूब लगाना है, जीवन में खुशियाँ लाना है.'

लोभी लकड़हारा

लेखक -संतोष कौशिक

बरसों पहले किसी गाँव में, एक लकड़हारा था रहता.
नाम था रामू बेच के लकड़ी, जीवन यापन था करता ..
रोज की तरह लकड़ी काटने निकल पड़ा जंगल में.
ईश्वर को प्रणाम कर, लग गया लकड़ी काटने में..
काटते-काटते आ गई उसको गहरी सी थकान.
उसी पेड़ की छाया में फिर, उसे मिला विश्राम ..
मन में लालच का भाव जगा, सोची एक तरकीब.
पूरा जंगल काट अगर लूँ , बदले मेरा नसीब..
कटे रोज लकड़ी काटने का यह जंजाल.
बेचकर लकड़ी हो जाऊँगा मालामाल ..
जो पैसा आएगा, उसे बैंक में जमा करूँगा .
मूलधन तो पास ही रहेगा, ब्याज से खर्चा चलाऊँगा ..
लोभी रामू गाँव से, कई मजदूर बुलाया.
काटे सारे पेड़, जंगल का किया सफाया.
काटकर लकड़ी रामू ,बेचने ले गया शहर.
बैग भर रुपए मिले, खुश हो चल पड़ा घर..
रास्ते में बैठे-बैठे, ताक रहा था चोर.
बैग लूटा धक्का मारा, रामू ने मचाया शोर..
वहाँ सहायता के लिए, कोई नहीं आया.
रामू रो-रो कर अपने, किए पर बहुत पछताया..
कट गया जंगल हुई न वर्षा , पड़ गया अकाल.
गाँव वालों ने रामू के लिए बैठाया फिर चौपाल..
चौपाल में निर्णय हुआ, रामू का धन जप्त करेंगे.
उसे बेचकर पेड़ों की, पूरी भरपाई करेंगे..
गाँव वाले मिलकर, फिर से पेड़ लगाए.
आबाद हुआ फिर जंगल, सब मन में हर्षाए..
मिलकर सब ने एक दूजे को, फिर से शपथ दिलाई.
हरा भरा हो जंगल अपना, हो ना कभी कटाई ..
शिक्षा--- रामू की तरह लोभ नहीं करना बच्चे.
पढ़ लिख कर इंसान बनना सच्चे..

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