अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

लोमडी और सारस

इस चित्र पर हमें कहानियाँ प्राप्त हुई हैं, जो हम नीचे प्रकाशित कर रहे हैं –

एक बार की बात है, एक जंगल में चालाक लोमड़ी था जो हर किसी जानवर को अपनी मीठी बातों में फंसा कर कुछ न कुछ ले-लेता था या खाना खा लेता था. उसी जंगल में एक सारस पक्षी रहता था. लोमड़ी ने अपने चालाकी से उसे दोस्त बनाया और खाने पर घर बुलाया. सारस इस बात पर खुश हुआ और लोमड़ी के घर खाने बार जाने के लिए आमंत्रण स्वीकार कर लिया.

अगले दिन सारस, लोमड़ी के घर खाने पर पहुंचा. उसने देखा लोमड़ी उसके लिए और अपने लिए एक-एक प्लेट में सूप ले कर आया है. यह देख कर सारस मन ही मन बड़ा दुखी हुआ क्योंकि लम्बे चोंच होने के कारण वह प्लेट में सूप नहीं पी सकता था.

लोमड़ी ने चालाकी से सवाल पुछा – मित्र सूप कैसा लग रहा है. सारस ने उत्तर दिया – यह बहुत अच्छा है पर मेरे पेट में दर्द है इसलिए में नहीं पी पाउँगा और वह चला गया.

कन्हैया साहू (कान्हा) व्दारा पूरी की गई कहानी

सारस दुखी मन से घर चला गया. वह अब मन ही मन लोमड़ी को सबक सिखाने का उपाय सोचने लगा. कुछ दिनों के बाद उसने लोमड़ी को अपने घर भोज पर आने का निमंत्रण दिया. अगले दिन लोमड़ी सजधज कर सारस के घर जाने के लिए निकल पड़ा. सारस ने बहुत ही जोश के साथ अपनी मित्र लोमड़ी का स्वागत किया और उसे अपना घर दिखाया. लोमड़ी मन ही मन बहुत खुश था कि आज कुछ मजेदार खाना खाने को मिलेगा. कुछ देर बाद लोमड़ी को खाने के लिए बैठक में बैठने को कह कर सारस रसोई घर से दो सुराही जैसे लंबी गर्दन वाले बर्तनों में मीठी खुशबू से भरपूर खीर लाई और लोमड़ी से खीर खाने का निवेदन कर खुद भी खाने लगा. लोमड़ी उस सुराही जैसे बर्तन में अपना मुंह ही नहीं डाल पा रहा था और खीर नहीं खा पा रहा था. अब लोमड़ी को अपने उस व्‍यवहार की याद आई जो उसने सारस को अपने घर बुलाकर किया था. उसे समझ में आ गया कि सारस उससे बदला ले रहा है और वह बहाना बनाकर घर जाने लगा. इधर सारस समझ गया कि लोमड़ी को सबक मिल गया है. अब सारस ने भी पुरानी बात को भुलाकर लोमड़ी को वापस बुलाया और एक बड़ी सी थाली में बहुत सारी खीर खाने के लिए दी. इसे देखकर लोमड़ी बहुत खुश हुआ. वह जल्दी-जल्दी खीर खाने लगा. खाना ख़त्म होने के बाद दोनों ने बहुत देर तक बातें की. खेल भी खेलें. तब से लोमड़ी ने किसी से भी चालाकी दिखाना छोड़ दिया. दोनों मित्र खुशी-खुशी अपना समय बिताने लगे.

सीख – प्रेम-व्यवहार से दुष्टों के भी आचरण को बदला जा सकता है.

संतोष कौशिक व्दारा पूरी की गई कहानी

वहां से जाने के बाद बेचारे सारस पक्षी को लोमड़ी की चालाकी का आभास हो गया. परंतु उसने अपने मित्र की निंदा करना उचित नहीं समझा. बल्कि उसे उसी के अंदाज में सबक सिखाने की सोची. फिर उसने भी लोमड़ी से कहा मित्र मैंने तो आपका आतिथ्य स्वीकार किया जो कि बहुत ही अच्छा था, तो कृपा कर एक बार आप भी मेरे गरीब की कुटिया में पहुंचे, और मुझे भी सेवा का अवसर प्रदान करें. यह सुनकर चालाक लोमड़ी अत्यंत प्रसन्न हुई और उसने सारस के यहां जाने की हामी भरी.

सारस अपने जन्मदिन के कार्यक्रम में सभी मेहमानों के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान एवं जो भी जीव जंतु जिस प्रकार का भोजन करते हैं उसी प्रकार का भोजन बनवाता है. कुछ देर पश्चात सारस व्दारा बुलाए हुए सभी मेहमान घर में उपस्थित हो जाते हैं. आए हुए सभी मेहमान सारस को विभिन्न प्रकार के गिफ्ट और जन्मदिन की बधाई देते हैं. तत्पश्चात सारस प्यार से सभी को भोजन करने के लिए आग्रह करता है. सभी अपनी इच्छानुसार भोजन करते हैं और सारस व्दारा किए हुए प्रबंध पर सभी खुश होते हैं.

इधर लोमड़ी भी आता है और एक कोने में बैठ जाता है. उसे सारस की व्यवस्था को देखकर अचंभा होता है. साथ ही अपने किए पर पछतावा करते हुए लोमड़ी सोचता है कि सारस को एक कप सूप देने के लिए मैने कितनी चालाकी की. उस दिन मैंने उसे भूखा ही रखा. मैं कितना बुरा हूं. लोमड़ी यह सब सोच ही रहा था तभी सारस वहां पहुंचता है और कहता है कि लोमड़ी भैया कुछ और चीजों की आवश्यकता हो तो बताइए.

लोमड़ी अपने किए की पछतावा करते हुए सारस को अपना चेहरा दिखा नहीं पा रहा था. लोमड़ी रोते हुए सारस से हाथ जोड़कर कहता है कि भाई सारस मैं उस दिन के किए कार्य पर बहुत शर्मिंदा हूं. आपसे हाथ जोड़कर क्षमा मांगता हूं कि ऐसी गलती मैं कभी नहीं करूंगा. इधर सारस उसे क्षमा कर, प्यार से बैठा कर भोजन कराता है. इस घटना को घर में आए हुए सभी मेहमान देखते है. सभी सारस के व्यवहार को देखकर खुश हो जाते हैं.

शिक्षा - हमें किसी को सुधारना है तो बदले की भावना से नहीं बल्कि बिना शारीरिक दंड दिए, प्यार से सुधारना चाहिए.

इंद्रभान सिंह कंवर व्दारा पूरी की गई कहानी

वहां से जाने के बाद बेचारे सारस पक्षी को लोमड़ी की चालाकी का आभास हो गया. परंतु उसने अपने मित्र की निंदा करना उचित नहीं समझा. बल्कि उसे उसी के अंदाज में सबक सिखाने की सोची. फिर उसने भी लोमड़ी से कहा मित्र मैंने तो आपका आतिथ्य स्वीकार किया जो कि बहुत ही अच्छा था अब कृपा कर एक बार आप भी मुझ गरीब की कुटिया में पधारें और मुझे भी सेवा का अवसर प्रदान करें. यह सुनकर चालाक लोमड़ी अत्यंत प्रसन्न हुई और उसने सारस के यहां जाने की हामी भर दी.

फिर वह दिन आ ही गया जब लोमड़ी को सारस के यहां दावत पर जाना था. लोमड़ी बन-ठन कर ज्यादा खाना खाने के लालच से बिना कुछ खाए ही सारस के घर चल पड़ी. वहां पहुंचते ही उसे मछली की खुशबू आने लगी. उसे पता चल गया कि सारस ने दावत में मछली बनाई है. लोमड़ी के घर पहुंचते ही सारस ने उसे ससम्मान चटाई पर बैठाया और कहा मित्र दावत तैयार है, यदि आपकी आज्ञा हो तो भोजन पेश करूं. लोमड़ी ने हामी भरी. अंदर से स्वादिष्ट मछली की खुशबू आ रही थी. इसे सूंघ-सूंघ कर लोमड़ी बड़ी ही आनंदित हो रही थी. फिर सारस ने दो बड़े से गड्ढे वाले पात्रों में लोमड़ी के समक्ष स्वादिष्ट मछली का व्यंजन पेश किया. दोनों खाने के लिए बैठे. सारस अपनी लंबी गर्दन की सहायता से अपने पात्र में से मछली निकाल-निकाल कर बड़े मजे से चाव के साथ खा रहा था परंतु लोमड़ी का मुंह अपने पात्र के अंदर पहुंच ही नहीं पा रही था. इतने में सारस की आवाज आई - मित्र व्यंजन कैसा है. मजबूरन लोमड़ी को व्यंजन की खुशबू के सहारे ही उसकी तारीफ करनी पड़ी. भूख के मारे उसका बुरा हाल हो चुका था. फिर भी उसे कहना पड़ा मित्र व्यंजन तो बहुत ही अच्छा है. और इस तरह लोमड़ी को भूखा रहना पड़ा और उसे अपने उस दिन की याद आई जब उसने सारस के साथ भी ऐसा ही किया था. इसे कहते हैं जैसे को तैसा.

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

मित्रता

एक गांव में दो मित्र रहते थे।एक का नाम था चंदन,दूसरे का गुलाब। दोनों की मित्रता इतनी गहरी थी कि लोगों को इनसे बड़ी ईर्ष्या होती थी। कई लोग यह कोशिश भी करते थे कि किसी तरह इनकी मित्रता टूट जाए।

कुछ दिनों बाद चंदन के परिवार को दूसरे गांव में जाकर बसना पड़ा।अब इनका रोज का मिलना बंद हो गया। पर इन्होंने एक दूसरे को चिट्ठियां लिखनी शुरू कर दीं। बहुत दिनों तक ये सिलसिला चलता रहा। फिर पता नहीं क्या हुआ,गुलाब की चिट्ठियां आनी बंद हो गईं।चंदन बड़ी प्रतीक्षा करता था। उसने गुलाब को लिखना जारी रखा पर गुलाब का कोई उत्तर नहीं आता था।

चंदन अब उदास रहने लगा था। उसे समझ में नहीं आता था कि अचानक ये क्या हो गया। एक दिन वह अपने पिताजी से पूछकर अपने पुराने गांव की ओर चल पड़ा।

(इसके बाद क्या हुआ,यह आप हमें लिख कर भेजें। आपकी कहानी हम अगले अंक में प्रकाशित करेंगे)

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