छत्तीसगढ़ी लेख

छेरा -छेरा के तिहार

लेखक -प्रिया देवांगन प्रियु

छेरछेराछत्तीसगढ़ के पारंपरिक तिहार पूष पुन्नी के दिन मनाये जाथे. येहा छत्तीसगढ़ के कृषि धान संस्कृति में संपन्नता अउ समानता के भावना कट करथे . छत्तीसगढ़ में ये फसल ला नवा फसल के खलियान से घर आ जाये के बाद माघर घर जा के लोग-लइका मन धान मांगथे. लोक परंपरा के अनुसार पूष महीना के पूर्णिमा में हर साल छेरछेरा के दिन बिहनिया ले लईका मन अउ बड़े सियान मन ह हाथ म टुकना अउ बोरी ल धर के मांगे ल जाथे . नान नान लइका मन ह झोला धर के मांगे ल जाथे अउ दुवारी - दुवारी म जा के चिल्लाथे -
'छेरछेरा छेरछेरा माई कोठी के धान ल हेरहेरा, अरन बरन कोदो दरन, जभ्भे देबे तभ्भा टरन.' के गूंज हर गलीमोहल्ला म सुनाई देथे .

रामायण मंडली के मनखे मन भी ये तिहार ल धूमधाम से बाजा गाजा के साथ मांगे बार जाथे. जे तिहार ह कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता के परंपरा ल याद दिलाथे.

छेरछेरा कइसे अउ कब शुरू होइसे बाबू रेवाराम के पाण्डुलिपि से पता चल थे की कलचुरी राजवंश के कौशल नरेश कल्याण साय अउ मण्डल के राजा के बीच म झगरा होइसे . अउ ओकर बाद मुग़ल शासक अकबर ह ओला दिल्ली बुला लिस. कल्याण साय 8 साल तक दिल्ली म रिहिस. उहा राजनीति अउ युद्ध कला के शिक्षा लिसे.8 साल बाद के कल्याण साय राजा के पुर्वाधकर के साथ अपनी राजधानी रतनपुर वापस पहुंचीस . जब राजा ल जा के लहुटे के खबर मिलिस त सबो झन जा के स्वागत में राजधानी रतनपुर आ पहुंचीस. जा के मेल देख के रानी फुल्लकेना के तरफ से रत्न अउ सोनमुद्रा के बारिस करवाईस. अउ रानी ल जा के हर साल उसी तिथि में आये के न्योता दिस. उसी दिन ले तिहार ल धूमधाम में मनाये जाथे.

लोकपरम्परा के अनुसार धान मिसाई हो जाये के बाद गाँव में घर घर धान के भण्डार होथे. जेकर चलते मनखे मन छेरछेरा मांगे वाले मन ला दान करथे . छेरछेरा के तिहार ह अन्न दान करे के तिहार हरे . ये दिन दान पून करे ले सब प्रकार के पाप कट जाथे अउ स्वर्ग के प्राप्ति होथे अइसे बताय गेहे.

बसंत पंचमी के तिहार

लेखक -महेन्द्र देवांगन 'माटी'

बसंत ऋतु ल सब ऋतु के राजा कहे जाथे। काबर के बसंत ऋतु के मौसम बहुत सुहाना होथे। ए समय न जादा जाड़ राहे न जादा गरमी। ए ऋतु में बाग बगीचा सब डाहर आनी बानी के फूल फूले रहिथे अउ महर महर ममहावत रहिथे। खेत में सरसों के फूल ह सोना कस चमकत रहिथे। गेहूं के बाली ह लहरावत रहिथे। आमा के पेड़ में मउर ह निकल जाथे। चारों डाहर तितली मन उड़ावत रहिथे। कोयल ह कुहू कुहू बोलत रहिथे। नर नारी के मन ह डोलत रहिथे। ए सब ला देखके मन ह उमंग से भर जाथे। एकरे पाय एला सबले बढ़िया ऋतु माने गेहे।

बसंत पंचमी ल माघ महिना के पंचमी के दिन याने पांचवां दिन तिहार के रुप में मनाय जाथे। ये दिन ज्ञान के देवइया मां सरस्वती के पूजा करे जाथे। एला रिसी पंचमी भी कहे जाथे। ए दिन पीला वस्तु अऊ पीला कपड़ा के बहुत महत्व हे। आज के दिन सब मनखे मन पीला रंग के कपड़ा पहिर के पूजा पाठ करथे।

बसंत पंचमी के दिन ल शुभ काम के शुरुवात करे बर बहुत अच्छा दिन माने गेहे। जइसे ----- नवा घर के पूजा पाठ, छोटे लइका के पढ़ाई लिखाई के शुरुवात, नींव खोदे के काम, दुकान के पूजा पाठ, मोटर गाड़ी के लेना आदि।

बसंत पंचमी के कथा ------ जब ब्रम्हा जी ह संसार के रचना करीस त सबसे पहिली मानुस जोनी के रचना करीस। फेर वोहा अपन रचना से संतुष्ट नइ रिहीस। काबर के आदमी मन में कोई उतसाह नइ रिहीस। कलेचुप रहे राहे। तब विष्णु भगवान के अनुमति से ब्रम्हा जी ह अपन कमंडल से जल (पानी) निकाल के चारो डाहर छिड़कीस। एकर से पेड़ पौधा अऊ बहुत अकन जीव जंतु के उतपत्ति होइस।

एकर बाद एक चार भुजा वाली सुंदर स्त्री भी परगट होइस। ओकर एक हाथ में वीणा दूसर हाथ में पुस्तक तीसर हाथ में माला अऊ चौथा हाथ ह वरदान के मुद्रा में रिहीस। ब्रम्हा जी ह ओला वीणा ल बजाय के अनुरोध करीस। जब ओहा वीणा ल बजाइस त चारो डाहर जीव जंतु पेड़ पौधा अऊ आदमी मन नाचे कूदे ल धरलीस। सब जीव जंतु में उमंग छागे। जीव जंतु अऊ आदमी मन ल वाणी मिलगे। सब बोले बताय बर सीखगे। तब ब्रम्हा जी ओकर नाम वाणी के देवी अऊ स्वर के देने वाली सरस्वती रखीस। मां सरस्वती ह विदया अऊ बुद्धि के देने वाली हरे। संगीत के उतपत्ति मां सरस्वती ह करीस।

ए सब काम ह बसंत पंचमी के दिन होइस। एकरे पाय बसंत पंचमी ल मां सरस्वती के जनम दिवस के रुप में मनाय जाथे।

बसंत पंचमी के तिहार ह खुशी अऊ उमंग के तिहार हरे। ये दिन पतंग उड़ाय के भी परंपरा हे। आज के दिन छोटे बड़े सब आदमी पतंग उड़ाथे अऊ खुशी मनाथे। कतको जगा पतंग उड़ाय के प्रतियोगिता भी होथे।

ए प्रकार से बसंत पंचमी के तिहार ल सब झन राजीखुशी से मनाथे अऊ एक साथ मिलके रहे के संदेश देथे।

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