बालगीत
शारदे वरदान दे
रचनाकार - स्नेहलता स्नेह
शारदे मुझको नवल वरदान दे '
ज्ञानरुपी जलकमल वरदान दे
शत्रुता के भाव भस्म हों
मित्रता पावन तरल वरदान दे
दूर रख मिथ्या से मुझको मात हे
सत्य का हो अटल पथ वरदान दे
कथ्य भी लालित्य से परिपूर्ण हो
किन्तु भाषा हो सरल वरदान दे
घास की कुटिया में होती है बसर
स्नेह का हो उर महल वरदान दे
पतंग
रचनाकार - योगेश ध्रुव भीम
नील गगन में स्वछंद,
उमड़-घुमड़ कर उड़ती,
पीले- काली, रंग- बरंगी,
उड़ती -उड़ती मैं पतंग ..
कागज से तन बना है,
नथ लगी हाँकने को,
लंबी डोरी से चलती,
उड़ती-उड़ती मैं पतंग ..
न घबराती,डर किसी से,
उड़ती हूँ नील गगन पर,
साहस देती डोरी मेरी,
उड़ती-उड़ती मैं पतंग ..
दुश्मन को भाँप चली मैं,
युद्ध क्षेत्र उस नील गगन,
लगे काटने डोरी करतन,
उड़ती-उड़ती मैं पतंग ..
मुझे साधती ओ साधक,
डोरी लंबी बढ़ाओ जरा,
जीवन की आपा-धापी में,
उड़ती उड़ती मैं पतंग..
लंबी यात्रा नील गगन की,
सहसा आगे आगे बढ़ती,
भय जरा न मन में रखती ,
उड़ती-उड़ती मैं पतंग ..
जीने की नई राह बताती,
जीवन की एक नई कला,
पथ को देती है उमंग,
उड़ती -उड़ती मैं पतंग ..
पतंग और चूहा
रचनाकार - गोपाल कौशल
हाथी दादा लेकर आएं
बाजार से पतंग न्यारी .
चूहा बोला मुझको दे दो
लगती है कितनी प्यारी ..
चूहेजी ने पतंग का जैसे
ही पकडा मांजा - धागा.
नटखट पतंग के संग
सर-सर उड गए चूहे राजा ..
आए खिलौने
रचनाकार -टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'
मड़ई-मेले में आए खिलौने .
नन्हे-मुन्नों को भाए खिलौने ..
देखो शेर उड़ाता प्लेन .
और चीता चलाता ट्रेन .
कप - प्लेट किचन सेट .
हैं सभी के फिक्स रेट .
कोई नहीं आए औने-पौने .
मड़ई-मेले में आए खिलौने ..
बाइक , बस , ट्रक , कार .
बम - बंदूक और तलवार .
ऊँट - बंदर ढोल बजाते .
हिरण ,लोमड़ नाचते - गाते .
भालू ठुमकता जाए बौने .
मड़ई-मेले में आए खिलौने ..
पंख पसारे उड़ती चिड़िया .
कितनी सुंदर दिखती बढ़िया .
गुलाब , गेंदा , चंपा,चमेली .
तितलियाँ बैठीं बन सहेली .
भौंरे गीत सुनाए सलौने .
मड़ई-मेले में आए खिलौने ..
पेड़
रचनाकार - टेकराम ध्रुव दिनेश
प्यारे बच्चो इन पेड़ों को
मित्र सदा तुम मानो.
बड़े काम के पेड़ ये सारे
इनके महत्व को जानो..
इन पेड़ों से ही धरती में
आती है हरियाली.
हरे - भरे पेड़ों से धरती
लगती है बहुत निराली..
ऑक्सीजन के रूप में
हम जो सांस लेते हैं.
ये सारे पेड़ ही तो हैं
जो ऑक्सीजन देते हैं..
याद रखो जितनी धरती को
इन पेड़ों से सजाएंगे.
उतनी ही शुद्ध हवा हम
अपने सांसों में पाएंगे..
सेल्फी
लेखक -महेन्द्र देवांगन माटी
जिधर देखो उधर, सेल्फी ले रहे हैं .
ओरिजनल का जमाना गया,
बनावटी मुस्कान दे रहे हैं .
भीड़ में भी आदमी आज अकेला है
तभी तो बनावटी मुस्कान देता है .
और जहाँ भीड़ दिखे वहाँ
खुद मुस्करा कर सेल्फी लेता है .
भीड़ में दिख गयी कोई अच्छी सी लड़की
तो आदमी पास चला जाता है .
चुपके से सेल्फी लेकर
अपने दोस्तों को दिखाता है .
दिख गया कहीं जुलूस तो
लोग आगे आ जाते हैं .
और एक सेल्फी लेकर
पता नही कहां गायब हो जाते हैं .
खाते पीते उठते बैठते
लोग सेल्फी ले रहे हैं .
मैं समाज के अंदर हूँ
ये बतलाने फेसबुक और
वाटसप पर भेज रहे हैं .
सच तो ये है
आदमी कितना अकेला हो गया है .
एक फोटो खींचने वाला भी
नहीं मिल रहा
इसीलिए तो सेल्फी ले रहा है .
पढ़ना मतलब बढ़ना
रचनाकार - द्रोण साहू
जिसने पढ़ना सीख लिया,
उसने बढ़ना सीख लिया.
दुनिया के जंजालों से,
उसने लड़ना सीख लिया.
मुश्किलों के शिखर पर,
उसने चढ़ना सीख लिया.
आने वाले तूफानों के आगे,
उसने अड़ना सीख लिया.
खुद के हाथों खुद को ही,
उसने गढ़ना सीख लिया.
संघर्ष की कहानी
रचनाकार - संतोष कुमार कौशिक
आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ , संघर्ष की कहानी.
आँखों देखी बात बताऊँ, मैं अपनी जुबानी ..
एक माँ के दो पुत्र हुए, राम- श्याम नाम थे उनके
राम 7 वर्ष 2 वर्ष का श्याम, हंसते खेलते परिवार थे जिनके..
माँ के पेट में दर्द हुआ, घरवाले कुछ समझ ना पाए.
इलाज करने के पहले, भगवान उसे बुलाए..
बाप निठल्ला घूमता था, बच्चों का भार उठा ना पाए.
कुछ वर्ष बीता नहीं ,दूसरी दुल्हनिया वो ले आए..
माँ बच्चों को संभाल न पाई, सौतेली माँ का तेवर दिखाए.
कान पकड़कर पति को, शहर की ओर वे भगाए..
बच्चों का कोई पालनहार नहीं, एक विधवा दादी माँ है प्यारे.
उसके भी चार पुत्र थे, लेकिन कोई बने नहीं सहारे..
दादी माँ असहाय होते हुए भी, हिम्मत उसने जुटाई.
कहीं से दो वक्त की रोटी लाकर बच्चों की भूख मिटाई..
दादी माँ को संघर्ष करते हुए 10 वर्ष बीत गए.
इस बीच में उसके हालचाल पूछने कोई नहीं आए..
राम होनहार लड़का था, दादी के कर्ज चुकाने की बारी आई.
भार उठाया दादी माँ का और श्याम छोटा भाई..
गाँव के पास ही कारखाने में ,राम काम करने जाता था.
जो भी परिश्रमिक मिलता उसमें घर का खर्चा चलाता था ..
भाई को पढ़ाना भूला नहीं, स्वयं भी पढ़ाई करता था.
रात में वह काम करता,दिन में वह स्कूल जाता था..
राम संघर्ष करते- करते ,18 वर्ष का हो गए.
दादी माँ दोनों बच्चों को छोड़,स्वर्ग सिधार गए..
दोनों भाई का पढ़ाई पूरा हुआ, काम करने लग गए.
घर का खर्चा कर कुछ बचत किया,खुशी से जीवन उन लोगों ने बिताए.
शिक्षा - सुनो बच्चों जीवन में कठिनाई आए तो, हिम्मत ना हारो.
दादी माँ और राम की तरह जीवन में संघर्ष करो..
सीखें
रचनाकार - भोलाराम सिन्हा
भारत के वीरों से देश के लिए संघर्ष करना सीखें.
अपनी पावन धरती के लिए बलिदान करना सीखें.
देश को आज़ाद कराने के लिए अनेक वीर शहीद हुए.
ऐसे वीर शहीदों का सम्मान करना सीखें .
अपने लिए जिए, तो क्या जिए यारो.
दीन - दुखियों का सहारा बनना सीखें.
हम भारत के और भारत हमारा .
बाती की तरह जलकर प्रकाश करना सीखें.
हर दिन के हीरो
लेखक - विकास कुमार हरिहारनों
बनो जी तुम बनो
हर दिन के हीरो
खुद के ही काम के
बन जाओ हीरो
चाहे हो शिक्षक
चाहे विद्यार्थी
हो चाहे डॉक्टर
या फिर इंजीनियर
खुद के ही तुम बनो
एक्सीलेंस सुपीरियर
काम को ही अपने
करो पहले से बेहतर
हो उसमें उन्नत
देकर अपना सब कुछ
तुम बनो सब के
सब हों तुम्हारे,
लेकर सब को चलोगे
तो ही तो हीरो
बाधक न खुद के
ना ही किसी के
बढ़ो सब के संग
जिंदगी जियो ढंग से
मन से रहो हमेशा प्रसन्न
ऊर्जा समाहित कर
भरें उसमें रंग
तभी तो तुम बनोगे
हर दिन के हीरो
कुंडलियाँ - परम प्यारी है हिंदी
लेखक - डीजेन्द्र क़ुर्रे ' कोहिनूर'
हिंदी भाषा से मिली,
जग में है पहचान..
स्वर- व्यंजन के मेल से,
मिलता अनूप विधान..
मिलता अनूप विधान,
सृजन को करता पावन..
भाव भरो जो सार,
लगेगा वह मनभावन ..
कह डिजेन्द्र करजोरि,
देश की है जो बिंदी..
जिस पर हमें गुमान,
परम प्यारी है हिंदी..
कौन
रचनाकार - नेमीचंद साहू
झाँक रहे हैं इधर-उधर सब,
अपने अंदर झाँके कौन ?
ढूंढ रहे दुनिया में कमियाँ,
अपने मन में झाँके कौन?
दुनिया सुधरे सब चिल्लाते,
खुद को आज सुधारे कौन?
पर उपदेश कुशल बहुतेरे,
खुद पर आज विचारे कौन?
हम सुधरे तो जग सुधरेगा,
सीधी बात स्वीकारे कौन?
जैसी करनी वैसी भरनी
दिल में इसे उतारे कौन ?
गागर में सागर भरा है
मोती आज निकाले कौन?
तिरंगा हम फहराएँगे
रचनाकार -प्रिया देवांगन 'प्रियू,'
तीन रंगों से बना तिरंगा , आज उसे फहराएँगे
देखो भारत की चोटी पर , शान से हम लहराएँग
े
नहीं झुकने देंगे तिरंगा , इसका मान बढ़ाएँगे
वीर सपूतों के आगे हम , अपना शीश झुकाएँगे
चन्द्रशेखर और भगत सिंह का , नारा हम लगाएँगे
भारत माता की जय बोलकर , अपना शीश नवाएँगे
भारत माँ की रक्षा के खातिर , हम शहीद हो जाएँगे
आँच नहीं आने देंगे हम , सीमा पर डट जाएँगे
नाज है उन बहादुरों पर
रचनाकार - डिजेन्द्र कुर्रे
(1)
तिलक लगा ले माथे पर,
शस्त्र उठा ले हाथों पर.
वन्दे मातरम की गूंज से,
निकल पड़े मैदानों पर.
(2)
योगेंद्र अनुज अमोल विजयंत
जांबाज सिपाही थे कारगिल पर.
कर चढ़ाई टाइगर हिल में,
दिखाया साहस अपने दम पर.
(3)
तोपें जब चली रण पर,
गोले बरस रहे थे उन पर.
कदम बढ़ रहे थे वीरों के,
भारी पड़ रहे थे दुश्मनों पर.
(4)
रक्षा करते हम मानव की,
नाज है उन बहादुरों पर.
कारगिल के इन सपूतो को,
नमन करूँ इनकी कुर्बानी पर.
(5)
आँच न आएं देश में,
तैनात रहते वो सरहद पर.
देश के वीर जवानों ने,
तिरंगे की शान बचाने पर.
इन्टरनेट
लेखक -चानी ऐरी (शिक्षक)
विश्व में उपलब्ध है आज तक
हर विषय की जो भी जानकारी
घर बैठे मिनटों में मिल जाती है
'इंटरनेट की हो गई बलिहारी'.
हर काम को, आसान बना कर
विश्व को एक सूत्र में बांध दिया
रोजमर्रा जीवन का अंग बना कर
मानव जीवन को साध लिया.
इंटरनेट पर पल भर में ही भैया
विश्व भर की खबरें आ जाती
दुनिया भी विषयों की जानकारी
पलक झपकते ही पा जाती है.
कंप्यूटर युग का हुआ कमाल
इंटरनेट घर-घर में छा रहा
तेज रफ्तार बदलते युग में विश्व सारा
हथेली में आ रहा 'इंटरनेट है कमाल'
भारत की मैं बेटी हूँ
रचनाकार -वसुन्धरा कुर्रे
भारत की मैं बेटी हूँ,
भारत को संस्कार देती हूँ.
हर काल में मैं अपना एक नया परिचय देती हूँ,
युग-युग से मैं सावित्री, सीता और गायत्री हूँ.
भारत की मैं बेटी हूँ,
भारत को संस्कार देती हूँ.
सज्जन के लिए मैं सहेली हूँ,
दुर्जन के लिए मैं पहेली हूँ.
दुश्मनों के लिए मैं काली हूँ,
मैं सुबह की लाली हूँ ,
मैं भारत की बेटी हूँ,
भारत को संस्कार देती हूँ.
मैं बेटी अबला नहीं,
मैं बेटी सबला हूँ.
मैं कोमलांगी कमला, सरला और विमला हूँ,
मैं ही चावला, मैं ही किरण बेदी हूँ.
मैं ही इंदिरा, मैं ही प्रतिभा और मैं ही बेटी टेरेसा हूँ,
भारत की मैं बेटी हूँ.
भारत को संस्कार देती हूँ.
कुछ कविताएं
लेखक एवं चित्र – आशा उज्जैनी
बचपन
ख्वाहिशें चल पड़ी करने जहां की सैर,
अरमानों की साइकिल आसमां की लेने खैर,
आगे - आगे भरोसा, पीछे-पीछे दोस्ती.
चल पड़े दोनों करने सकल मस्ती.
भोला सा बचपन दिन मणि से सपने
वीथीयों पर दौड़ती मुस्कानों की हस्ती
दुपहिया
जीवन है गतिमान
हम हैं इसके प्रतिमान
चल - चल भैया, चली दुपहिया,
हम तुम इसके बने खिवैया.
पगडंडी है लंबी चौड़ी,
उस पर साइकिल जाती दौड़ी.
आगे पीछे, बारी-बारी
तेरी मेरी यारी न्यारी.
ना चिंता ना फिकर है कोई,
बचपन का मुरीद हर कोई,
चाहे जितनी कर लो मस्ती,
बना रहे भरोसा और दोस्ती.
साइकिल
कितनी सुहानी भोर,
चले हरियाली की ओर.
दीदी की साइकिल
चुपके से ले आया हूं.
मुझ पर रख भरोसा,
धीमे-धीमे ही चलाऊंगा .
तनिक करले मस्ती,
पीछे जमाए रखना दृष्टि.
छुक छुक गाड़ी
कच्ची पक्की सड़कों पर, दौड़े अपनी गाड़ी.
धूप घनी हो, बारिश भारी, रहे यह अपनी यारी.
कोई रोड़ा रास्ते पर हो, बजा तूं घंटी यारा.
मोड़ अगर आ जाए तो, दूं मैं हाथ से इशारा.
विश्वास, प्रेम, स्नेह से, आ भर लें जीवन गागर.
प्राणों से भी पीछे ना हटूं, जो मुश्किल पड़े अगर.
दोस्त तेरी मधुर मुस्कान, है सबसे अनमोल.
तेरी मेरी दोस्ती का नहीं है कोई मोल.
स्वच्छता का गाना
रचनाकार -सायन शर्मा कक्षा-7वीं शा.पू.मा.शाला, पंधी
मन की सफाई जरूरी है,
तन की सफाई जरूरी है .
घर की सफाई से पहले,
गलियों की सफाई जरूरी है.
साफ सफाई वाले ही
जीवन का राज बताते,
धरती की सफाई से पहले
अंबर की सफाई जरूरी है.
साफ-सफाई रखना,
साफ सफाई वाले ने ही
मीठा फल चखना.
स्कूल की सफाई से पहले,
पुस्तकों की सफाई जरूरी है.
मन की सफाई जरूरी है.
तन की सफाई जरूरी है .
गुण की पहचान
लेखक -दिलकेश मधुकर
वन में दो पक्षी, दिख रहे थे एक समान.
कौन हंस है कौन बगुला, कौन करे पहचान.
बगुला बड़ा था घमंडी, कहता मेरे गुण महान.
तेज उड़ सकता हूं तुझसे, कह रहा था सीना तान.
झगड़ा सुनकर कौवा आया, श्रेष्ठता के लिए करो उड़ान.
नम्र भाव से होकर हंस तैयार, उड़ चला दूर आसमान.
थक गया जब बगुला, बदली अपनी टेढ़ी चाल.
नाटक किया कमजोरी का, पहना था वह शेर की खाल.
दोनों पहुंचे मोर के पास, लेकर न्याय की आस.
गजब तरीका सुझाया उसने, पता चलेगा उनकी खास.
मंगवाया पानी मिला दूध मोर ने, रख दी सामने दो कटोरी.
बगुला पी गया पूरा दूध-पानी, हंस दूध पीकर पानी को छोड़ा.
शर्मिंदा हुआ बगुला, माफी मांग किया नमस्कार.
हो गयी पहचान सत्य की, सदा होती है जय जय कार.
चाय पिलाई जाए
रचनाकार -भूमिका राय
इलाइची की महक ओढ़े
अदरक का श्रृंगार कर सजी
केतली की दहलीज से निकलकर
प्याली की डोली में बैठी
इस भागते हुए वक्त पर
कैसे लगाम लगाई जाए
ऐ वक्त आ बैठ, तुझे
एक कप चाय पिलाई जाए
चूहा बोला
रचनाकार - द्रोण साहू
चूहा बोला,
ओ सुआ !
मुझको तुमने
,
क्यों छुआ?
सुआ बोला,
ओ चूहा !
छू लिया तो,
क्या हुआ ?
आ खाएँगे,
मिलकर दोनों,
मालपुआ
चित्र कविता
प्रेषक - विभा सोनी शिक्षिका