स्कूल बंद हैं, आप क्या कर रहे हैं ?
रचनाकार- डॉ एम सुधीश
कोरोना की वजह से हम सबको बहुत सावधानी बरतनी है. यह बीमारी बहुत ही अधिक खतरनाक है. इसलिए स्कूल बंद कर दिए गए हैं. ऐसे में आप अपना समय कैसे बिता रहे हैं? आप चाहें तो ए सब कर अपना समय का बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं-
- अपने अभ्यास पुस्तिकाओं को पूरा कर उसे अच्छे से समझें
- पाठ्यपुस्तकों को पूरा करें, उन्हें अच्छे से पढ़ें
- कहानी की पुस्तकें लाकर पढ़ें, समाचार पत्रों साथ मिलने वाला बच्चों का अंक लाकर पढ़ें
- रेडियो और टीवी में भी बहुत से शैक्षिक कार्यक्रम आते हैं, उन्हें देखें
- पुस्तक में क्यू-आर कोड देखने के लिए घर के मोबाइल में दीक्षा एप्प डाउनलोड कर विभिन्न विषयों को समझ सकते हैं
- मोबाइल में गूगल बोलो एप्प डाउनलोड कर बहुत सी कहानियाँ आप पढ़ सकते हो
- बच्चों की पत्रिकाएँ जैसे चंपक, लोटपोट, अमर चित्र कथा सभी अभी निःशुल्क डाउनलोड की जा सकती है. इसका लाभ उठाएं
पर ध्यान रखें बहुत सारे लोग एक साथ नहीं बैठें और एक दूसरे से दूरी बनाकर रखें.
आइये हमारे प्रेरणास्रोत के बारे में जाने
रचनाकार- प्रीति सिंह
हेलो बच्चो,
आप सब कैसे हैं ? आशा है सब अच्छे होंगे. आज हम बात करेंगे एक ऐसे राजनैतिक व्यक्तित्व की, जिन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और स्वयं चरखे से बने वस्त्र पहने. सत्य, अहिंसा और प्रेम की राह पर चलकर हमें आजादी दिलाई.
अब आप समझ ही गए होंगे कि हम जिस व्यक्तित्व की बात कर रहे हैं वे मोहनदास करमचंद गाँधी हैं. जिन्हें हम प्यार से बापू कहकर बुलाते हैं. इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 ई० को गुजरात के पोरबंदर जिले में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी वहीँ पूर्ण हुई. 13 वर्ष की उम्र में उनका विवाह कस्तूरबा गाँधी से हो गया और 18 वर्ष की उम्र में वे वकालत की पढ़ाई करने इंग्लैंड चले गए.
वहाँ से लौटने के बाद गाँधी जी बिजनेसमेन दादा अब्दुल्ला के बुलावे पर उनके केस के सिलसिले में 1893 ई. को दक्षिण अफ्रीका गए. गाँधी जी को डरबन से प्रिटोरिया जाना था. वे ट्रेन पर फर्स्ट क्लास की टिकट लेकर सफर कर रहे थे. उन दिनों भारतीय और अफ्रीकी लोगों को फर्स्ट क्लास डिब्बे में सफर करने की इजाज़त नहीं थी. गाँधी जी के पास फर्स्ट क्लास का टिकट होते हुए भी एक अंग्रेज ने उन्हें धक्का देकर बाहर निकाल दिया और उनका सामान भी बाहर फेंक दिया. गाँधी जी ने सर्दी के मौसम की एक रात स्टेशन पर ही बिताई. इस घटना ने उन्हें अंदर तक झकझोर कर रख दिया.
उन्होंने 22 अगस्त 1894 ई. में नेटाल राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की और वे दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ़ खड़े हुए. वे दक्षिण अफ्रीका में लगभग 20 वर्षों तक रहे.
गाँधी जी भारत में 1915 ई. में गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती आश्रम में रहे. १९२१ में गोपालकृष्ण गोखले जी के कहने पर उन्होंने राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता भी ली. 8 फरवरी 1921 ई. को गोरखपुर में गाँधी जी ने अपने एक संक्षिप्त उद्बोधन में ताश के बावन पत्तों के जरिए आजादी की लड़ाई का जीत का मंत्र दिया था. उन्होंने कहा था कि यदि भारत को गुलामी से बचाना है तो बादशाह को हटाना होगा और उसके लिए इक्का जरूरी है. यदि भारत का हर नागरिक एकजुट हो तो अंग्रेजी हुकूमत को स्वतः इस देश को छोड़कर जाना पड़ेगा.
गाँधी जी ने 1917 में चंपारण सत्याग्रह ,1918 में खेड़ा सत्याग्रह ,1930 में नमक सत्याग्रह और ऐसे ही न जाने कितने आंदोलन किए और ब्रिटिश शासन को झुकने पर मजबूर कर दिया. फलस्वरूप हमारे देश को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली.
हमें इतनी कठिनाई से मिली आजादी के मूल्य को समझकर एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी चाहिए.
फागुन तिहार........
रचनाकार- धारिणी सोरी
होली का त्योहार पूरे देश में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह त्योहार रंग,उमंग और खुशियों का त्योहार होता है. लोग मन के बैर- भाव को भूलकर प्रेम से गुलाल लगाकर गले मिलते हैं, और एक दूसरे को बधाईया देते हैं। सभी अपने बड़ो से आशीर्वाद लेते हैं.
हर त्योहार मनाने के अपने-अपने रीति-रिवाज ,परंपरा या वैज्ञानिक आधार होते हैं. आज हम अपने छत्तीसगढ़ में होली मनाने की इस रीत के बारे में जानेंगे. बुजुर्गों से पूछने पर पता चला कि हम होली का त्योहार क्यो मनाते हैं? और इसके पीछे क्या कारण है? जबकि हम बचपन से स्कूलों में यह पढ़ते आ रहे है कि होलिका नाम की एक असुर राजकुमारी ने प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर अग्नि में जलाकर मारने का प्रयत्न किया और स्वयं जलकर भस्म हो गयी.
बुजुर्ग दादा जी ने बताया कि हम हिंदी महीने के अनुसार अपने तीज त्योहारों का आयोजन करते है. चैत्र में नया साल मनाते हैं, और फागुन के साथ ही साल की समाप्ति हो जाती है. साल का अंतिम माह 'फागुन' के आखरी दिन में फागुन का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन हम इस साल को 'अंतिम विदाई' देते हैं, साथ ही अपने आने वाले नए वर्ष में सुखद जीवन की कामना करते हुए रंग -गुलाल लगाकर फागुन को बिदा करते हैं. फागुन के कुछ दिन पहले से ही लोग फ़ाग गीत गाते हैं, जो कि फागुन के बाद तेरह दिन तक चलता रहता है.
रंग -गुलाल लगाकर इस त्योहार को इसलिए मनाते हैं क्योंकि जब भी किसी को अंतिम विदाई देते हैं तो गुलाल लगाकर उसके प्रति अपना स्नेह, प्रेमभाव प्रकट करते हैं, चाहे वह मृत व्यक्ति हो, कार्यमुक्त या सेवानिवृत्त व्यक्ति हो उनके साथ व्यतीत किए मीठी यादों को संजोकर रखते हैं, बुरे समय को भूलते हैं. ठीक उसी प्रकार फागुन महीने के अंतिम दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर अपना स्नेह प्रकट करते हैं. आने वाला समय अच्छा हो यह आशीर्वाद देते हैं,और इसलिए छत्तीसगढ़ में लोग इसे 'फागुन तिहार' के नाम से जानते हैं.
हमारे छत्तीसगढ़ में यह त्योहार एक तरीके से 'काठी' अर्थात छुआ(मृतक कार्य) की तरह मनाया जाता है जिसमे फागुन के एक दिन पूर्व होलिका दहन(दाह) किया जाता है, जो कि हमारे अंदर निहित बुराइयों के दहन का प्रतीक होता है. अगले दिन रंग -गुलाल लगाया जाता है, और तेरह दिन बाद(तेरहवीं) 'धुर तिहार' होता है, उस दिन पूरे घर की फिर से लिपाई करके साफ करते है और पुनः रंग खेलते हैं. फ़ाग गीत गाते हैं. इस तरह हमारे छत्तीसगढ़ में फागुन का त्योहार हर्षोल्लास और प्रेम भाव से मनाया जाता है.
जीवन कौशल शिक्षा - बालिकाओं ने सीखी समानुभूति
रचनाकार- श्रीमती तरुण कुलदीप
ये कहानी है कक्षा 7वीं में अध्ययनरत बालिका सनोती कुमेटी की. सनोती ग्राम भरंडा. जिला. नारायणपुर की निवासी है. सनोती के परिवार में माता, पिता एवं 2 छोटे भाई, बहन हैं. घर की आर्थिक स्थिति कमजोर है. पिता कृषि कार्य करके परिवार का भरण पोषण करते हैं. बचपन में एक दुर्घटना के दौरान सनोती के पैर आग में जल गए जिसकी वजह से वह केवल एक पैर से लंगड़ाते हुए चलती है. सनोती ने गाँव के प्रायमरी स्कूल से 5वीं तक की पढाई पूरी की. शारीरिक रूप से अक्षम होने के कारण वह नियमित रूप से स्कूल नहीं जा पाती थी जिसकी वजह से वह पढाई में कमजोर है.
सनोती ने इस वर्ष कक्षा सातवी में हमारे विद्यालय- कस्तूरबा गाँधी बालिका आवासीय विद्यालय सुलेंगा, जिला नारायणपुर में प्रवेश लिया. शारीरिक अक्षमता और पढाई में कमजोर होने की वजह से सनोती स्वयं को अन्य बालिकाओं से अलग महसूस करती थी. वह उन्हें देखकर दुखी होते है कि वह उनकी तरह क्यों खेल नहीं पाती और अपने दैनिक कार्य नहीं कर पाती. अन्य बालिकाओं में से केवल कुछ ही बालिकाएं उससे बात करती व उसकी मदद करती थी. बालिकाओं में सनोती के लिए समानुभूति का एहसास दिलाने व हमदर्दी का महत्व समझाने के लिए जीवन कौशल सत्र में समानुभूति यानि हमदर्दी और दोस्ती का सत्र लिया.
सत्र के दौरान मैंने अन्य बालिकाओं को एक पैर पर खड़े होने और चलने के लिए कहा. लेकिन बालिकाएं ऐसा करने में असमर्थ थीं. इससे बालिकाओं को एहसास हुआ की सनोति को अपने रोजमर्रा के काम करने में कितनी कठिनाई महसूस होती होगी. साथ ही सनोति को अन्य बालिकाओं को यह गतिविधि करते हुए देखना मजेदार रहा. उसे लगा कि वे सब कोशिश तो कर रही हैं लेकिन कोई भी सफलता पूर्वक नहीं कर पा रही हैं. इससे उसमे आत्मविश्वास आया कि वह स्वयं के कार्य करने में अक्षम नहीं बल्कि पूरी तरह से सक्षम है.
इस सत्र के बाद से सभी बालिकाओं ने समानुभूति और हमदर्दी को बेहतर तरीके से समझा और अब वे सभी अब ना केवल सनोति की मदद करते हैं बल्कि दैनिक जीवन में भी समानुभूति और हमदर्दी का अभ्यास भी कर रही हैं. जिससे हमारे स्कूल का माहौल पहले की अपेक्षा काफी दोस्ताना हो गया है. यह देखकर हमें बहुत प्रसन्नता होती है. इसका श्रेय पूर्ण रूप से विजयी परियोजना के अंतर्गत दिए जा रहे जीवन कौशल शिक्षा को जाता है.