बसंत

रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे

बसंत की आई है बहार.
जवां जवां हुआ है पयार.
सतरंगी छटा छा गई.
हर दिल को भा गई.
मिल रही है आपस में.
सब सद्भावना के संग.
भर आया सबके दिल में.
आज बसंत भरा उमंग.
आओ छिड़के एक दूजे पर.
सादर सच्चा अमिट प्रेम रंग.
सबके मन में उत्साह लाई.
धरा, हरी भरी हो गई.
प्रकृति का रंग निखर उठा.
आई रे ,बरखा आई.
पत्तों पर ठहरी, .
छोटी-छोटी बरखा की बूंदे.
मोती सी नजर आई.
रितु की रानी बरखा.
आई रे बरखा आई.
आई ये बरखा आई.
आई रे ,बरखा आई.
आई रे ,बरखा आई.
महका है मन, और शीतल है तन.
हरियाली चुनर पहनकर.
आई रे ,बरखा आई.
बरखा के बूंदों से ,धरती हो गई शीतल.
सब जीव जंतु के मन भी , हो गई शीतल.
काली -काली घुमड़े, बरखा रानी.
जिसे देख कर मोर का ,मन नाचे.
गड़ -गड़ बरखा की ,मधुर संगीत.

सूरज दादा

रचनाकार- वृंदा पंचभाई

सूरज छुपा बादल में जाकर
समझाया तारों ने आकर.

बाहर निकलो सूरज दादा
साथ रहेंगे है यह वादा

शिशिर ने भी कहर बरपाया
सूरज डरा बाहर न आया.

कंबल, रजाई दौड़े आए
स्वेटर, जर्सी भी मुस्काए

ठंड देखकर मन घबराता,
धूप गुनगुनी सबको भाता.

सूरज दादा अब तो आओ
आकर ठंड को दूर भगाओ.

बाल कैबिनेट

रचनाकार- सुशीला साहू 'शीला'

हम बच्चों का बाल कैबिनेट,
अब न चढ़ेगा किसी के भेंट.
बच्चे न होगा कोई घोटाला,
स्नेह का होगा बोलबाला.

हमन में न होगा द्वेष किसी के,
काम करेंगे ख़ुशी ख़ुशी से.
बच्चे न करेंगें भ्रष्टाचार,
पवित्र होंगे उनके विचार.

हम बच्चों की बनी सरकार,
हमें मिला मंत्रियों का प्रभार.
आरोप न किसी पर लगायेगें,
पूरी जिम्मेदारी निभायेंगे.

स्वच्छ भोजन, स्वच्छ शौचालय,
स्वच्छ वातावरण हमारा विद्यालय.
बनेगी सुंदर पाठशाला हमारी,
बाल कैबिनेट की है जिम्मेदारी.

मिलकर मंजिल तक जायेंगे,
शिक्षा से हम देश सजायेंगे.
बाल कैबिनेट की यही पुकार,
है शिक्षा सबका अधिकार..

होली आई

रचनाकार- सरमिला बाई (कक्षा 5)

पानी

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा ' गब्दीवाला '

बच्चो इक कहानी सुनो,
अच्छी मस्त सुहानी सुनो,

एक तरल द्रव्य पानी है,
सबकी यह जिन्दगानी है.

रंग गंध भले स्वाद नहीं,
बिन पानी कोई आबाद नहीं

कुआँ - बोरिंग , नदी - सरोवर ,
झील - झरना , स्रोत - समंदर

व्यर्थ नहीं बहाना इसे,
हर हाल में बचाना इसे.

चलो पुस्तक पढ़ें

रचनाकार- योगेश ध्रुव 'भीम'

सोनू, मोनू, सीता, गीता
नाचे झूमे मिलकर हँस कर,
आओ सब मिलकर गाना गाये,
गीत, कविता, कहानी, पढ़कर,
चलो चले पुस्तक पढ़े मिलकर..

किस्सा बताती गुड्डे- गुड़ियों की,
परियो की वह बात बताती,
कहते दादा-दादी,नाना-नानी,
बात पुरानी ये पुस्तक कहती,
चलो चले पुस्तक पढ़े मिलकर.

नदी, झरने, वन, पहाड़, पर्वत,
ताल, तलैय्या, पोखर मिलकर,
मछली रानी गीत हमें सुनाती,
सोनू, मोनू खिलकर हँसकर,
चलो चले पुस्तक पढ़े मिलकर.

तितली रानी ये कोयल गाती,
भौरा गुनगुन कहानी सुनाती,
फूलों पर तो हरदम मंडराती,
मधुमक्खी की शहद सुहाती,
चलो चले पुस्तक पढ़े मिलकर.

ज्ञान -विज्ञान की आँखों देखी,
आँख मिचौली कर चाँद तारे,
अंतरिक्ष की सुंदर बाते कहती,
अंको की गणना गणित करती,
चलो चले पुस्तक पढ़े मिलकर.

सैर कराती देश - परदेश की,
गाँव शहर की ओ बाते कहती,
मामा -मामी हमे ये सब बताते,
सुंदर -सुंदर गीत ये गाते,
चलो चले पुस्तक पढ़े मिलकर.

सोनू, मोनू,आओ सीता, गीता, रीता,
दोस्त हमारा सब ये पुस्तक प्यारा,
पुस्तक कहती हर बात रीत पुरानी,
ज्ञान सदा देती हर नए बच्चों को,
चलो चले पुस्तक पढ़े सब मिलकर..

बिटकुला के चर्चे

रचनाकार- मनोज कुमार पाटनवार

1. आज मेरे गाँव के चर्चे गलियारे से निकलकर शहरों तक होने लगे हैं :-
विद्वान और हुनरमंद लोग यहाँ रहने लगे हैं!
क्योंकि लोग हर क्षेत्र में यहाँ आगे बढ़ने लगे हैं !!

2. आज मेरे गाँव के चर्चे गलियारे से निकलकर शहरों तक होने लगे हैं :-
गाँव की हर छोटी-बड़ी खबर, अखबारों में छपने लगे हैं!
क्योंकि लोग यहाँ के लेखक और कवि बनने लगे हैं !!

3. आज मेरे गाँव के चर्चे गलियारे से निकलकर शहरों तक होने लगे हैं :-
यहाँ के लोग विकास की चरम सीमा छूने लगे हैं !
क्योंकि शिक्षक, पुलिस या हो सेना सबसे ज्यादा यहीं से लोग नौकरी करने लगे हैं !!

4. आज मेरे गाँव के चर्चे गलियारे से निकलकर शहरों तक होने लगे हैं :-
शहरों से आकर बच्चे मेरे गाँव में पढ़ने लगे हैं !
क्योंकि शिक्षक यहां निशुल्क कोचिंग देने लगे हैं !!

5. आज मेरे गाँव के चर्चे गलियारे से निकलकर शहरों तक होने लगे हैं :-
यहाँ के विद्यार्थियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगे हैं !
क्योंकि बोर्ड परीक्षा में टॉपर यहीं से पैदा होने लगे हैं !!

6. आज मेरे गाँव के चर्चे गलियारे से निकलकर शहरों तक होने लगे हैं :-
शादी के बाद भी यहाँ की बहुएँ, नियमित पढ़ाई करने लगे हैं !
क्योंकि यहाँ के लोग ,बहुओं को भी बेटी मानने लगे हैं !!

7. आज मेरे गाँव के चर्चे गलियारे से निकलकर शहरों तक होने लगे हैं :-
युवाओं में खेल के प्रति उत्साह बढ़ने लगे हैं !
क्योंकि क्रिकेट में आसपास के गाँव से, सबसे ज्यादा शील्ड और मेडल यहाँ के युवा लाने लगे हैं *!!

8. आज मेरे गाँव के चर्चे गलियारे से निकलकर शहरों तक होने लगे हैं :-
यहाँ सबसे ज्यादा धार्मिक आयोजन होने लगे हैं !
क्योंकि यहाँ के लोगों का, ईशवर के प्रति आस्था बढ़ने लगे हैं !!

9. आज मेरे गाँव के चर्चे गलियारे से निकलकर शहरों तक होने लगे हैं :-
यहाँ की युवा पीढ़ी नशा से दूर रहने लगे हैं !
क्योंकि यहाँ शिक्षा, संस्कार और सत्संग बसने लगे हैं!!

10. आज मेरे गाँव के चर्चे गलियारे से निकलकर शहरों तक होने लगे हैं :-
यहाँ छोटे -बड़े कार्यक्रमों का, सफल आयोजन होने लगे हैं !
क्योंकि मेरे गाँव के सभी वर्गों के लोग संगठित होकर रहने लगे हैं !!

औरत की पहचान

रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे

औरत की पहचान,
अब घर तक सीमित नहीं.
लांघ गई अब पर.
औरत अब घर तक सीमित नहीं
अब औरत की पहचान बस
यही तक सिमट नहीं है
वह देहरी के उस पार भी,
और सरहद के उस पार भी,
बना गई पहचान.

अब केवल घर ही नहीं संभालती
संभालती है एक संस्था.
संभालती है स्कूल और कॉलेज.
और संवारती है अंतरिक्ष,
घर ही नहीं संवारती, संवारती है
अपना और आने वाली, पीढ़ी का कल भी.
ख्याल सिर्फ अपनों का ही नहीं करती,
करती है, रक्षा और देश की सुरक्षा.
औरत की पहचान
अब घर तक सीमित नहीं
लांध गई अब पर
औरत की पहचान अब
हर कण कण में छा गई.

फुलवारी

रचनाकार- पूर्णेश डड़सेना

हर वर्ष मेरी फुलवारी में,
कुछ नये फूल आते हैं.
आधे लीपे -पुते चेहरों में,
वह मुझको बहुत भातें हैं.
कैसे उनको ताज़ा रखूं,
हर जतन किया करती हूँ.
नई मिट्टी, नई खाद से,
नित उन पौधों को सिंचा करती हूँ.
कुछ रंगीन ,कुछ बेरंग चेहरों में,
मैं वह ख्वाब खोजा करती हूँ.
नित नये -नये उपायों से उन बच्चों में,
मैं आत्मविश्वास जगाया करती हूँ.
शायद बसंत तक सब खिल जाए,
इस उम्मीद से उन पौधों को सहलाती हूँ.
खिले- खिले फूलों से अब,
नित नये पुष्प हार बनाती हूँ.
आधे लिपे- पुते चेहरों के आगे
अब सब कुछ भूल जाती हूँ.
शिक्षा रूपी इंद्रधनुष से
मैं अपनी बगिया को सजाती हूँ.
खिले-खिले चेहरों के आगे,
अब सब कुछ भूल जाती हूँ.
शिक्षक हूँ खामोशी में भी गुनगुनाती हूँ.

कापी -पेन

रचनाकार- योगेश्वरी साहू

आपने कभी सोचा,
एक शिक्षक क्या चाहता है.
क्या हम पढ़ाना नहीं चाहते,
क्या हम सीखाना नहीं चाहते.
क्या हम उन नन्हो को काबिल,
इंसान बनाना नहीं चाहते.
मैं उन्हें काबिल बनाना चाहती हूँ,
मैं उन्हें डाँक्टर, इंजीनियर,
वैज्ञानिक बनाना चाहती हूँ.
उनमे छुपी बातो को जगाना चाहते हूँ,
उनमे जिज्ञासा जगाना चाहती हूँ

हर शिक्षक चाहता है,
उसका छात्र होनहार बने.
सब अपने डाल को,
मजबूत बनाना चाहते हैं,
उसमें ज्ञान का भंडार भरना चाहते हैं.

आने को तो हर बच्चा स्कूल आता है.
पर क्या कोई देखता है,
वो अपने साथ क्या लाता हैं.
कही कापी है, पेन नहीं,
कही पेंसिल है, स्लेट नहीं,
और कही कुछ भी नहीं.

पूरी कक्षा में 2-4 ही सब कुछ लाते हैं.
इन अभावो के बावजूद,
शिक्षक ही दोषी कहलाते हैं.
आप में हैं सामर्थ्य ,
तो बस इतना कीजिये.
अपने आसपास किसी जरूरतमंद को कॉपी पेन दीजिए.
किसी की प्रतिभा को उभारिये,
किसी की किस्मत संवारिये.
कुछ अभावो में पढ़ नहीं पाते,
जीवन में आगे बढ़ नहीं पाते.

सामर्थ्य है तो इतना कीजिये.
किसी सरकारी स्कूल में जाकर,
कापी पेन दान कीजिये.
ना मैं सोना, ना चाँदी माँगती हूँ,
एक शिक्षिका हूँ केवल,
कापी और पेन माँगती हूँ.

हुनर

रचनाकार-भूमिका राय

अपने हुनर को
जिसने भी निखार लिया है

उसको इस दुनिया ने
भरपूर मान सम्मान दिया है

किसी का है खेल उत्तम
उत्तम है किसी की कलाकारी

हर किसी में छुपी एक कला
खोजने और निखारने की करें तैयारी

प्यारा बचपन

रचनाकार-रेनू कुमारी (कक्षा 5)

छोटे-छोटे बच्चे हैं हम,
इतनी है हम सबकी चाह.
खेलें, खाएं,मौज मनाएं
और नहीं कोई परवाह..
रोने और मचल जाने से,
हो जाते मनचाहे काम.
प्यारे -प्यारे मम्मी-पापा,
लाकर देते चीज़ तमाम..
जाती -पाती का ज्ञान किसे है?
छुआछूत की बात नहीं.
सब की सबसे मधुर मित्रता,
सबसे सुंदर साथ यही..
देख शरारत मैया मेरी,
मन ही मन मुस्काती है.
हर्षित होकर उठा गोद में,
हँसकर गले लगाती है..
मैंने माँगा चाँद एक दिन,
माँ लाई पानी की थाल.
परछाई दिखला कर बोली-
ले लो यह चंदा है लाल..
होता सदा हटीला बचपन,
बात- बात में बदले रंग.
चिंता रहित, मस्त यह जीवन,
बचपन में अतुलित आनंद..

पानी है अमृत

रचनाकार- डागेश्वर प्रसाद साहू

पानी है अमृत , पानी से है जीवन.
पानी, पानी नही जीवन का है सार.
पानी से पेड़ -पौधे, पानी से है जीव संसार.
पानी से बदरा, बदरा से है बरसात.
पानी से नदिया,पानी से है सागर की लहर
पानी का करो संरक्षण , और सही उपभोग
पानी नही तो कुछ नही,ये लोगो को है ज्ञान
पर लोगो को नही फिक्र, नही करते संरक्षण का उपाय
पानी, पानी नही जीवन का है सार

ऊंची उड़ान

रचनाकार- डॉ शिप्रा बेग

शिक्षा का है अधिकार,
हर बालिका का मान.
अशिक्षित रखना इन्हें,
है समाज का अपमान.
अवसर देना है उसको,
भरेगी तब ऊंची उड़ान.
हौसला है उसमे भरना,
जो जगायेगा स्वाभिमान.
रौशन है बेटी से आज,
घर,समाज,देश का अभिमान..

मां की ममता

रचनाकार- तुलसराम चंद्राकर

माँ बड़ी प्यारी होती है,
जग मे सबसे न्यारी होती है
अपार है माँ की ममता,
इसका कोई आकार नही होती है.

माँ की ममता करुणा न्यारी,
जैसे दया की चादर .
शक्ति देती नित हम सबको,
बन अमृत का गागर.

ममता का सागर है माँ ,
अम्बर सा माँ का अवतार.
त्याग मूर्ति है प्रकृति सी,
धरती सा माँ का प्यार.

ईश का अवतार तू ही,
तू ही जीवन का आधार.
उपकार तेरा मुझ पर है,
करू मै तेरी जय जयकार.

माँ का आंचल खुशियों की फुलवारी ,
माँ की ममता है अपार
माँ के चरणों मे आनंद की किलकारी,
इनसे ही सबका सपना साकार

मेरी हो पहचान

रचनाकार- संतोष कुमार पटेल

खूब पढ़-लिखकर,
करूँ मैं ऐसा काम.
लोग मुझे जाने,
ऐसी हो मेरी पहचान..
बड़ों का आदर करूँ,
गुरुओं का करूँ सम्मान.
लोग मुझे जाने,
ऐसी हो मेरी पहचान..
दुर्व्यसनों से दूर रहूँ,
सादा हो मेरा खानपान.
लोग मुझे जाने,
ऐसी हो मेरी पहचान..
सत्य-न्याय के राह पर चलूँ,
कभी न करूँ बुरा काम.
लोग मुझे जाने ,
ऐसी हो मेरी पहचान..
अच्छा नागरिक बनकर,
बढ़ाऊँ अपनी देश की शान.
लोग मुझे जाने,
ऐसी हो मेरी पहचान.

तीन मछलियों की कहानी

रचनाकार-संतोष कुमार कौशिक

आओ बच्चो, तुम्हें आज एक कहानी सुनाता हूं.
तीन मछलियों की है कहानी, उसे मैं बताता हूं..
गांव के पास तालाब में तीन मछलियां रहती थीं.
चारे की तलाश में चारों ओर तालाब में घूमती थीं..

कुछ बच्चे तालाब में जाल डालने की बात कर रहे थे.
जिसे तीनों मछलियां कान लगाकर सुन रही थीं..
छोटी मछली कहती है, कल तालाब में जाल डलने वाला है.
बचने की योजना बना लो नहीं तो सभी मारे जाने वाले हैं..

मैं तो सोची हूं, रात में ही दूसरे तालाब में चली जाऊंगी
वहां जाकर चैन से अपना जीवन बिताऊंगी..
दूसरी मछली कहती है, मैं भी कुछ उपाय सोचूंगी.
जैसे ही जाल पास आएगा, मैं कीचड़ में घुस जाऊंगी

तीसरी बड़ी मछली हंसकर कहती है,
डरपोक हो तुम, मैं ऐसे नहीं डरूंगी.
अपनी बुद्धि का प्रयोग करूंगी,
जाल कैसा भी हो जाल में नहीं फसूंगी

सुबह हुई मछुवारा अपना जाल लेकर आया
पूरे तालाब में मछली मारने जाल फैलाया.
छोटी मछली रात में ही दूसरे तालाब में चली गई थी
दूसरी मछली जाल देखकर कीचड़ में घुस चुकी थी.

तीसरी मछली जाल से निकलने चारों तरफ भागती रही.
बचने की कोई राह न थी,वो जाल में फंस चुकी थी..
जाल में फंसी मछली, अपनी मूर्खता पर हंस रही थी.
बिना योजना के काम किया,इसलिए पछता रही हूं..

मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है

रचनाकार- लुकेश्वर सिंह

स्कूल के सारे नियम और कानून बनाती है,
और उन नियमों का प्यार से पालन कराती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

सभी बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित कराती है,
नैतिकता का पाठ पढ़ाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

स्कूल के हित में योजनाएं बनाती है,
नेतृत्व क्षमता की भावना जगाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

परिस्थितियों के अनुसार फैसले कराती है,
सभी को भाईचारे का पाठ पढ़ाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

स्कूल की समस्याएं बाल कैबिनेट में उठाती है,
और मंत्रिपरिषद से निराकरण कराती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

सभी की गलतियां माफ कराती है,
सभी को सही न्याय दिलाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

नई -नई जिम्मेदारियां और नये- नये अवसर दिलाती है,
कैसे जिये विद्यार्थी जीवन, सबको जीना सिखाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

इको क्लब हमारी, हमारा पर्यावरण बचाती है,
ना करो इसे प्रदूषित यह बात सबको बताती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाती है,
प्लास्टिक को करें रिसाइकल सभी को सिखाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

कचरे को कूड़ेदान में ही डालें ,सभी को बताती है,
गीला- सूखा कचरा अलग -अलग कराती है
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती ह.

। शिक्षकों के कामों में हाथ बटाती है,
इस तरह अपना उत्तर दायित्व निभाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

पुस्तकालय की किताबें वितरित कराती है,
रीडिंग कैंपेन का आयोजन कराती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

स्कूल में पोषणयुक्त सोया दूध का वितरण कराती है,
सभी को ताकतवर बनाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

स्कूल में खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन कराती है,
सभी बच्चों में टीम भावना जगाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

सभी को गणवेश दिलाती है,
मध्यान्ह भोजन का उचित संचालन कराती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

विद्यालय में सुंदर पौधे लगवाती है,
सिंचाई और सुरक्षा की व्यवस्था कराती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

पढ़ाई- लिखाई के लिए अवसर बढ़ाती है,
पीने का स्वच्छ पानी पिलाकर ,ऊर्जावान बनाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

सुबह की प्रार्थना सभा का संचालन कराती है,
स्कूल व शौचालय की सफाई कराती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

राष्ट्रीय पर्वों पर कार्यक्रम सिखाती है,
देशभक्ति की भावना जगाती है,
मेरे स्कूल की सरकार स्कूल चलाती है.

विंग पायलट अभिनंदन की जय

रचनाकार-डीजेन्द्र क़ुर्रे 'कोहिनूर'

विस्फोटक गाड़ी घुस आए,
पुलवामा को बंम से उड़ाए.
भारतीयों को दहशत में लाए,
मेरे ओ लाल ने वीर गति पाए.

बदले की शोला को भड़काए,
सर्जिकल स्ट्राइक कर पाक से आए.
आतंकी ठिकानों को खाख में मिलाए,
अदम शौर्य की साहस दिखलाए.

सीजफायर उलंघ्घन कर गलती दुहराए,
हमारे सैनिकों ने खूब मजा चखाए.
देश सीमा में लड़ाकू विमान घुसाए,
योद्धा अभिनंदन ने उसे मार गिराए.

पैराशूट से उतर कर जान बचाया,
पाक सीमा में जय हिन्द नारा लगाया.
पाक सैनिक देखकर घबराया,
ऐसा वीर मेरा अभिनंदन भाया.

कोरोना कोरोना कोरोना

रचनाकार- पेश्वर राम यादव

कोरोना कोरोना कोरोना,
भारत में यह न होना.
गर्म पानी ही पीना,
अब न किसी को रोना.

सर्दी ,जुकाम ,निमोनिया,
थकान ,बुखार है यह लक्षण.
अंडा, मछली, मांस,
आइसक्रीम का न हो भक्षण.

इंसान ,जानवर न हो मिलन,
खांस छींक से न हाथ मिलन.
जानकारी, सावधानी से करो जतन,
कोरोना का भारत से करो पतन.

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