अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

सोना की होशियारी

एक हिरण शावक था, सोना। सोने जैसा रंग, बड़ी- बड़ी आंखें, बहुत फुर्तीला पर भोला-सा जब कुलांचें मारता हुआ दौड़ता तो कोई उसकी बराबरी न कर पाता.

सोना अपने झुंड के साथ जंगल से लगे घास के बहुत बड़े मैदान में रहता था. उसके दिन बड़ी मस्ती में बीत रहे थे.

जंगल में रहता था एक सियार भुरु, बहुत धूर्त और चालाक. एक दिन इसकी नज़र सोना पर पड़ी. उसके नन्हे और कोमल शरीर को देखते ही उसके मुंह से लार टपकने लगी. सोचा, चलो आज उसका पीछा किया जाए. पर थोड़ी ही देर में उसे समझ में आ गया कि सोना को पकड़ना उसके बस की बात नहीं.

मुंह लटकाए वह अपनी मांद में लौट आया. पर सोना की छवि उसकी आंखों से हट नहीं रही थी. वह रात भर तिकड़में भिड़ाता रहा. सुबह होते ही वह कबरा तेंदुए के पास पहुंचा और सोना के बारे में उसे बताया. कबरा के मुंह में भी पानी आ गया. उसने भुरु से कहा, भुरु, मैं उसे दौड़कर तो पकड़ नहीं पाऊंगा. हां, अगर तुम उसे किसी तरह बहला - फुसलाकर जंगल में ले आओ तो बात बन जाएगी. मैं किसी पेड़ पर छुपा बैठा रहूंगा. जैसे ही वह पास आएगा मैं कूदकर उसे दबोच लूंगा.

फिर एक दिन भुरु सोना से मिला और प्यार का नाटक करते हुए उससे कहा, कैसे हो प्यारे भांजे !

सोना इस नए मामा को देखकर पहले तो चौंका पर धीरे-धीरे उसकी बातों में आ गया. फिर वही हुआ जिसका डर था. वह भुरु के साथ जंगल की ओर चल पड़ा.

आपके द्वारा हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई उन्हें हम यहाँ प्रदर्शित कर रहे हैं.

चंद्रभान सिंह कंवर जी व्दारा पूरी की गई कहानी

सोना हिरण भूरु सियार के साथ चल तो पड़ा ।लेकिन उसे भूरु पर शक था, कि आज यह धूर्त भूरु मुझसे इतने प्यार से बात कर रहा है, जरूर दाल में कुछ काला है. मगर सोना को भी अपनी चलाकी पर पूर्ण विश्वास था. वह अपने आत्मविश्वास के बल पर भुरू केसाथ चल पड़ा. चलते चलते एक सुनसान जगह पड़ी,जहाँ पहुँचते ही भूरु का ईमान डगमगाने लगा. वह यह सोचने लगा कि यदि मैं इसे कबरा तेंदुआ के पास लेकर जाऊँगा, तो वह अकेले ही इसे चट कर जाएगा और मुझे कुछ भी खाने नहीं मिलेगा. तो क्यों ना मैं इसे यहीं चट कर जाऊँ. यह सोचकर वह वहीं सोना पर हमला बोल देता है,मगर सोना को पहले से ही इसका आभास था. वह पहले ही हमले के लिए तैयार था. फिर क्या था, दोनों में काफी देर तक जंग चली. सोना हिरन ने अपने सींग और अपने पैरों से वार कर भूरू को परास्त किया और अपनी जान बचाई

इधर भूरू भी सोना से मुँह की खा कर जंगल की ओर भागने लगा उसे काफी चोटें आई थी,उसके मुंह एवं पैर से खून निकल रहा था. उधर कबरा भूख के मारे काफी देर से भूरु और सोना की टीले पर बैठकर राह देख रहा था. बार-बार रास्ते की ओर देखता और भूख से तिलमिला उठता.

कुछ देर बाद उसे दूर कहीं पर एक पेड़ की छाँव के नीचे भूरू बैठा दिखाई दिया. जो वहाँ बैठकर अपने घावों को चाट रहा था. कबरा तेंदुए को लगा कि भूरु ने उससे गद्दारी की,औरअकेले ही सोना को खा रहा है. यह सोचकर वह गुस्से से आग बबूला हो गया,और भूरु की ओर दौड़ा. उसने पीछे से भूरु के गर्दन को धर दबोचा जिससे भूरु की बची- खुची जान भी चली गई और वह मारा गया.

कु. अरुणा लकड़ा (कक्षाआठवीं शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय, नवा पारा-कर्रा) व्दारा पूरी की गई कहानी

जंगल में पहुँचते ही सोना बोला- 'हम कहाँजा रहे हैं?' सियार ने हँसते हुए कहा - 'थोड़ी दूर और चलो, फिर बताता हूँ'. अब सोना को डर लगने लगा. वह डर से कांपने लगा. सियार उसे उसी पेड़ के पास ले गया जिस पेड़ पर कबरा तेंदुआ बैठा था. तेंदुआ सोना को देखते ही झपटा, परंतु सोना भी कम नहीं था, वह जल्दी से उस जगह से हट गया इस कारण तेंदुआ नीचे गिर गया. तेंदुए का सिर पत्थर पर जा पड़ा और वहीं पर बेहोश हो गया. अब सियार ने सोना पर हमला बोल दिया,लेकिन सोना तेजी से भागने लगा. वह एक कुँए के पास जाकर रुक गया और सियार को देखा। सियार बहुत पीछे था. उसने जल्दी-जल्दी कुँए को पत्तों से ढक दिया. जैसे ही सियार उसके पास पहुँचा, उसने छलांग लगाई और कुँए के उस पार चला गया. परंतु सियार छलांग नहीं लगा सका और कुँए में जा गिरा. तब से सोना ने किसी भी अनजान जानवरों पर भरोसा नहीं किया और अपनी बुद्धिमानी से उन दोनों जानवरों से अपनी जान बचा ली.

कन्हैया साहू(कान्हा)जी व्दारा पूरी की गई कहानी

भुरू अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से हिरण के रंग रूप की तारीफ किये जा रहा था, जिससे शावक को उस पर कोई शक नही हो रहा था. दोनों बातें करते- करते अब बीच जंगल में पहुँच गए थे. इधर कबरा तेंदुवा पेड़ पर बैठ कर इंतजार कर रहा था,थोड़ी देर बाद ही भुरू और हिरण शावक उस पेड़ के पास पहुँच गए जहाँ तेंदुवा पहले से ताक में बैठा था. जैसे ही शावक पेड़ के नीचे पहुँचा कबरा ने पेड़ से छलांग लगा दी ,सोना ने उसे छलांग लगाते हुए देख लिया था इसलिए तेंदुवा की पकड़ में आने से ही पहले ही कुलांचे मारकर भाग गया. इधर तेंदुवा का पंजा सीधे सियार के गले में धस गया और सियार के प्राण पखेरू उड़ गए.

अपनी फुर्ती के कारण आज वह अपनी जान बचाने में कामयाब हो गया. अब उसे भी यह बात समझ आ गई कि किसी को जाने बिना उस पर भरोसा करना अपने प्राण को संकट में डालना है. उस दिन के बाद सोना हिरण ने अनजान जानवरों से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझ कर दूरी बना ली.

संतोष कुमार कौशिक जी व्दारा पूरी की गई कहानी

सोना, भुरु के साथ जंगल की ओर चल पड़ा. जंगल में कबरा तेंदुआ बेसब्री से सोना का इंतजार कर रहा था. जैसे ही सोना पास पहुंचा, उसने अपनी योजना के अनुसार पेड़ से कूदकर सोना को दबोच लिया. बेचारे सोना को समझ में नहीं आ रहा था कि इसके चंगुल से कैसे भागा जाए. ये लोग एक नहीं दो- दो हैं. तभी उसे अपनी मां की सीख याद आयी 'मुसीबत आने पर अपनी बुद्धि का उपयोग करो और धीरज रखो'.

सोना मन ही मन यह सोच रहा था और उधर भूरु और कबरा में सोना को पहले खाने को लेकर हुज्जत शुरू हो गई थी. सोना ने अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए भूरु से कहा, ' मामाजी, तुम दोनों में लड़ाई ना हो इसके लिए मेरे पास एक उपाय है'. दोनों थोड़ी देर के लिए शांत हो गए और सोना की बात सुनने लगे. सोना ने कहा,आप दोनों कुश्ती का एक खेल खेलो। कौन जीता, इसका निर्णायक मैं रहूंगा. इस खेल में जो जीतेगा वो मुझे पहले खाएगा. आप दोनों को मंजूर है तो खेल प्रारंभ करें.

भुरु और कबरा सोना की होशियारी समझ नहीं पाए और कुश्ती का खेल खेलने के लिए राज़ी हो गए. सोना को पहले खाने के चक्कर में दोनों अपना- अपना बल लगाकर कुश्ती लड़ने लगे. कभी भुरू नीचे कभी कबरा. दोनों में लड़ाई तेज होती गई. खेल लंबे समय तक चलता रहा. दोनों के शरीर से खून बहने लगा. दोनों घायल हो गए. अब वे इस स्थिति में नहीं थे कि अपने पैरों के बल खड़े हो सकें, और सोना को अपना भोजन बना सकें.

तभी सोना ने उन दोनों से कहा, ' तुम दोनों मूर्ख हो जो एक दूसरे से लड़ाई कर रहे हो. जो भी प्राणी किसी को हानि पहुंचाता है, किसी के बारे में गलत सोचता है, उसे उसके कर्म का फल अवश्य मिलता है.' उसी समय सोना की मां अपने बच्चे को खोजते हुए वहां पहुंच गई. सोना और उसकी मां अपने घर वापस लौट गए. भुरु और कबरा को घायल देखकर जंगल के दूसरे जानवरों ने उन्हें अपना भोजन बना लिया

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

गरियाबंद के जंगल में एक बहुत बड़े अधिकारी रहते थे. स्वभाव से वे बहुत अच्छे थे. सबकी सहायता करते थे. एक बार उनसे एक सन्यासी मिलने घर पर आए. घर में उनकी अच्छी सेवा की गयी. बच्चों ने भी उन्हें बहुत स्नेह दिया. सन्यासी ने उस अधिकारी से जंगल में रहकर विभिन्न बीमारियों के लिए जड़ी-बूटी खोजने हेतु अनुमति मांगी. उन्होंने जनहित को ध्यान में रखकर उस सन्यासी को जंगल में रहकर अपने काम को जारी रखने में पूरा सहयोग किया. उस अधिकारी का स्वभाव इतना बढ़िया था कि जंगल के जानवर भी बिना डरे उनके आसपास घूमते रहते थे और उनका भोजन भी खा लेते थे. एक बार लेटे लेटे उस अधिकारी ने एक जानवर का झूठा किया हुआ फल बिना देखे खा लिया. उसके बाद वह बहुत बीमार हो गए. उनकी पत्नी और बच्चे बहुत परेशान हो गए. जंगल में आसपास कोई डाक्टर भी नहीं था.

अब इसके बाद क्या हुआ होगा, इसकी आप कल्पना कीजिए और कहानी पूरी कर हमें ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे

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