मोहन की मेहनत

लेखिका - सुमन पटेल कक्षा नवीं, कनकी व्दारा रामनारायण प्रधान

रामपुर नाम के एक गांव में मोहन नाम का लड़का अपने माता-पिता के साथ रहता था. वह पढ़ाई में बहुत कमजोर था और बुरी आदत के लड़कों के साथ रखकर बिगड़ गया था. उसके माता-पिता उसे बहुत समझाते थे, पर मोहन कहां सुधारने वाला था. जब उसने परीक्षा के समय नकल की तब सुरेश ने मोहन को देख लिया और शिक्षक को बतला दिया. शिक्षक ने मोहन को प्यार से समझाया कि बेटा नकल करके तुम्हें क्या प्राप्त होगा? बस परीक्षा में पास हो जाओगे. तुम्हारी वास्तविक उन्नति नहीं होगी. शिक्षक की बड़े प्यार से कही बात से प्रभावित होकर मोहन ने कहा सर जी मुझे पढ़ना अच्छा नहीं लगता. मैं पढ़ाई में कमजोर हूं. शिक्षक ने कहा बेटा तू एक दिन में बस मुझे एक-दो प्रश्नों के उत्तर याद करके बताना. रोज़ थोड़ा-थोड़ा याद करने से तुम होशियार हो जाओगे. यह बात सुनकर मोहन ने हर रोज़ पढ़ना शुरू कर दिया. देखते ही देखते मोहन का आत्मविश्वास बढ़ गया और वह बहुत होशियार बन गया. फिर वह कक्षा में प्रथम आने लगा. इसके बाद बहुत उसने बहुत आगे तक पढ़ाई की और नौकरी भी हासिल की. व‍ह आज सफल जीवन यापन कर रहा है. वह हर शिक्षक दिवस को अपने प्यारे शिक्षक को फोन करके आशीर्वाद लेना नहीं भूलता है.

डोर पतंग की

लेखक - संतोष कुमार साहू - प्रकृति

एक दिन की बात है, दो छात्र पतंग बाज़ी कर रहे थे. एक छात्र गरीब परिवार से था और दुसरा अमीर घराने का था. दोनों आनंद, उमंग और उत्साह से पतंग उड़ा रहे थे. गरीब छात्र की पतंग की डोर मजबूत थी परन्‍तु पतंग कमजोर थी. अमीर छात्र की पतंग की डोर कमज़ोर थी लेक‍िन पतंग बहुत सुंदर और मजबूत थी. दोनों की पतंग आकाश की बुलंदियों को छूने लगी. उड़ते-उ़डते अमीर घराने की पतंग को घमंड आ गया और वह खिलखिलाकर हंसने लगी और गरीब घराने की पतंग का मज़ाक उड़ाने लगी. अचानक उसकी डोर कट गई और वह जमीन पर धड़ाम से गिर गयी. गरीब घर की पतंग बिना घमंड के अभी भी उड़ रही थी और आकाश के साथ आंख-मिचौली खेल रही थी. इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है, कि हम कितना ही क्यों न आसमान की ऊंचाईयों पर चढ जायें हमें घमंड नहीं करना चाहिये.

समझाओ न शर्मा ऑन्टी को माँ, कि बिटिया को भी चहचहाने दें

लेखक - निशांत शर्मा

माँ आपने 9 माह तक मुझे अपनी कोख में बहुत संभाल कर रखा. देखो अब मैं आ गई इस दुनिया में रोते-रोते. आपको, पिताजी को और बाकी रिश्तेदारों को लगता था कि लड़का होगा पर मैं तो नन्ही चिड़िया बन कर आ ही गयी आपके घर पर चहचहाने को. दुखी मत होना मम्मी. आपको और पिताजी को कभी भी शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी. पढ़ाई में अच्छे नंबर लाऊंगी. बड़े हो जाने के बाद आपके काम में आपका हाथ भी बटाउंगी. पापा की देखभाल भी खूब करूंगी. समय पर आपको दवाई दूँगी. हँस दो न मम्मी अब. भले ही मैं लड़का न सही पर आपको कभी लड़के की कमी महसूस नहीं होने दूँगी.

पता है मम्मी बाजू वाली शर्मा ऑन्टी ने तो लड़की का पता चलते ही कोख में ही उसे मार दिया था. शायद उनको लक्ष्मी नहीं कुबेर की चाह थी. पर मम्मी लड़की भी तो भाग्य लाती है न. वो भी तो जीने का हक रखती है.

समझाओ न शर्मा ऑन्टी को कि बिटिया भी तो लाडली होती है. वो भी तो माँ का ही अंश है. आप भी तो सबसे पहले एक बेटी हो. बिटिया को चहचहाने दो माँ. आँगन को कलकल करने दो. जो उड़ गई ये नन्ही चिड़िया तो घर को सूना कर देगी. फिर बहुत याद आएगी इसकी. तब अकेले में फूट-फूटकर रोना मत माँ..

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