बच्चे हैं तो सब हैं, बच्चे नही तो कुछ भी नहीं

लेखक - निशांत शर्मा

जिस घर में बच्चों की खिलखिलाने की आवाज नहीं आती वो घर हीरे, सोने का भी क्यो न बना हो निर्थक व व्यर्थ है. बच्चों से ही घर हैं, बच्चों से ही दादा, बच्चो से ही दादी माँ, बच्चों से ही भुआ चाची और बच्चों से ही चाचू.

बच्चों के कारण ही दादू भी ऊंट-घोड़ा बन जाते तो दादी मां कभी बिल्ली तो कभी बकरी. बच्चो के कारण ही घर के बड़ो के दिल के अंदर से भी एक प्यारी सी नटखटपन शैतान मस्ती निकलती है और वो भी बच्चे बन जाते हैं. सच कहूँ तो बच्चे ही है जो घर की रौनक बढ़ाते हैं वरना घर में सबके होते हुए भी सूनापन काटता है. बच्चे जब खिलखिला कर हसते हैं तो तो लगता है कि स्वयं घर में खुदा हँस रहा है. पैसे तो बहुत कमा लोगे जीवन में मगर समय निकालकर बच्चों के साथ बच्चे बनना करोड़ो अरबो रुपये डॉलरों से भी बढ़कर है. बच्चों की एक हँसी आपके 7 जन्मों की कमाई हुई अरबो खरबो की दौलत से भी कई ज्यादा है जिसका कोई मोल नहीं. बच्चे हैं तो सब है, नहीं तो कुछ भी नहीं.

Visitor No. : 6760115
Site Developed and Hosted by Alok Shukla