कहानियाँ
मक्खी का लालच
लेखक - राजेंद्र कुमार विश्वकर्मा
एक बार एक व्यापारी अपने ग्राहक को शहद बेच रहा था. अचानक व्यापारी के हाथ से फिसलकर शहद का बर्तन ज़मीन पर गिर गया. बहुत सा शहद ज़मीन पर बिखर गया. व्यापारी ने काफी शहद तो उठा लिया परंतु कुछ शहद फिर भी जमीन पर गिरा रह गया.
कुछ ही देर में बहुत सी मक्खियां उस जमीन पर गिरे हुए शहद पर आकर बैठ गईं. मीठा-मीठा शहद उन्हे बहुत अच्छा लगा. वह जल्दी-जल्दी उसे चाटने लगीं. जब मक्खियों का पेट भर गया तो उन्होंने उड़ना चाहा, पर वह उड़ न सकीं. उनके पंख शहद में चिपक गए थे. उड़ने के लिये वह जितना छटपटाती थीं उनके पंख उतने ही चिपकते जाते थे. बहुत सी मक्खियां शहद में चिपककर मर गईं.
मक्खियों की दुर्गति और मूर्खता देकर व्यापारी बोला – लालच बुरी बला है. लालची मक्खियों के समान ही मूर्ख लोग स्वाद के लालच में बुरी चीजें खाकर अपना स्वास्थ्य नष्ट कर लेते हैं. इस बारे में एक प्रसिध्द दोहा है –
माखी गुड़ में गडि रह्ये,
पंख रह्यो लिपटाय,
हाथ मले और सिर धुने,
लालच बुरी बलाय.
प्रश्नों के उत्तर दें
- व्यापारी क्या बेच रहा था
- मक्खियों के पंख किसमे चिपक गये
- मक्खियां क्यों मरीं
- यह दोहा किस प्रसिध्दे कवि ने लिखा है