कलिन्दर
लेखक - प्रिया देवांगन 'प्रियू'
बारी में फरे हाबे सुघ्घर , लाल लाल कलिन्दर ।
बबा ह रखवारी करत ,खात हावय जी बंदर।।
लाल लाल दिखत हे , अब्बड़ मीठ हाबे।
बाजार मे जाबे त , बीसा के तेहा लाबे।।
एक चानी खाबे त , अब्बड़ खान भाथे।
नइ खावँव कहिबे त , मन हा ललचाथे।।
चानी चानी खाबे त , सुघ्घर मन ह लागथे।
सोनू मोनू जादा खाथे , बारी डाहर भागथे।।
गरमी के भाजी
लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'
गुरतुर हे इहां के भाजी ह , बड़ सुघ्घर हे लागय।
अम्मट लागथे अमारी हा, सोनू खा के भागय।।
किसम किसम के भाजी पाला , हमर देश मा आथे।
सोनू मोनू दूनो भाई , खोज खोज के लाथे।।
लाल लाल हे सुघ्घर भाजी , अब्बड़ खून बढाथे ।
चैतू समारु खाथे रोजे , सेहत अपन बनाथे ।।
बड़ उलहाये हवय खेत मा , चना लाखड़ी भाजी ।
गुरतुर लागय दूनो हा जी , रांधे सुघ्घर भौजी।।
आये हवय बोहार भाजी , गली गली चिल्लाये।
अमली डार दाई ह रांधे , घर गोहार लगाये।।
लंबा लंबा चेंच भाजी ल , बरी डार के रांधय।
सोनू मोनू दूनो झन हा, जूरी ला हे बांधय।।
चंदा
लेखक - बलदाऊ राम साहू
मोर अँगना मा आबे चंदा
दूध भात तैं लाबे चंदा
मुन्नी गोठियाही हाँस-हाँस
तँहू हर गोठियाबे चंदा ।
गजब मिठाही दूध भात हर
तब्भे पहाही ये रात हर
कभू तैं झन रिसाबे चंदा
जल्दी-जल्दी तैं आबे चंदा।
बड़े बिहनिया सुरुज आही
तब्भे तैं घर जाबे चंदा।
नदिया, तरिया में नहा के
जल्दी स्कूल जाबे चंदा।
माता ला परघाबो
लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी
आवत हावय दुर्गा दाई, चलव आज परघाबो ।
नाचत गावत झूमत संगी, आसन मा बइठाबो ।।
लकलक लकलक रूप दिखत हे, बघवा चढ़ के आये ।
लाली चुनरी ओढे मइया, मुचुर मुचुर मुस्काये ।।
ढोल नँगाड़ा ताशा माँदर, सबझन आज बजाबो ।
आवत हावय दुर्गा दाई , चलव आज परघाबो ।।
नव दिन बर आये हे माता, सेवा गजब बजाबो ।
खुश होही माता हमरो बर, आशीष ओकर पाबो ।।
नव दिन मा नव रुप देखाही, श्रध्दा सुमन चढाबो ।
आवत हावय दुर्गा दाई, चलव आज परघाबो ।।
सुघ्घर चँऊक पुराके संगी, तोरन व्दार सजाबो।
ध्वजा नरियर पान सुपारी, वोला भेंट चढ़ाबो ।।
मैगी
लेखक - प्रिया देवांगन 'प्रियू'
जब ले आहे मैगी संगी, कुछु नइ सुहावत हे।
भात बासी ला छोड़ के, मैगी ला सब खावत हे।।
दू मिनट की मैगी कहिके, उही ला बनावत हे।
माई पिल्ला सबो झन, मिल बाँट के खावत हे।।
सब लइका ला प्यारा हावय, एकरे गुन ल गावत हे ।
स्कूल हो चाहे पिकनिक हो, मैगी धर के जावत हे।।
लइका हो चाहे सियान, सबला मैगी सुहावत हे ।
कोनो कोती जावत हे, पहिली मैगी बनावत हे।।
कोनो आलू प्याज डार के, त कोनो सुक्खा बनावत हे।
कोनो सूप बनावत त, कोनो सादा खावत हे।।
फरा मुठिया के नइ हे जमाना, मैगी के जमाना हे।
दू मिनट की मैगी बनाके, माइ पिल्ला ल खाना हे।।
हरियर हरियर बगिया मोर
लेखिका - कु. सुहानी कैवत्य (कक्षा – 3)
हरियर हरियर बगिया मोर
फूल भरे हे मोर बगिया म
रंग बिरंगी फुलवारी ह
दिखत हे अब्बड़ सुघ्घर ग
हरियर हरियर दुबी ह
तितली भँवरा घुमय एमा
चारों मुड़ा उड़ावत हे धुर्रा
चिरई चहकय कोयल ह कुहकय
रकम रकम के फूल ह महकय
हरियर हरियर बगिया मोर