अमर बलिदान
लेखिका - पुष्पा नायक
मेरे वतन के अभिमान हो तुम
भारत भूमि की शान हो तुम
देश द्रोहियो ने पीठ मे खंजर घौंपा है
हम सामने से वार कर दिखाएंगे
तेरी शहादत को हम कभी न भूल पाएंगे।
माँ ने बेटा तो किसी ने माँग का सिंदूर मिटाया है
कही बेटी विलाप में रोई है
तो किसी बेटे ने खोया सर का साया है
वापस लौट मेरे नाम की मेंहदी लगाऊँगा
कह चला गया वो राह तकती नज़रों ने आस का अश्रू छलकाया है
जन्नत में तेरा मान होगा
इस वतन में चिरंतर तेरा नाम होगा
हम उस देशद्रोही को यही दोजख़ दिखाएंगे
तेरे खून के एक-एक कतरे का हिसाब चुकाएंगे
तेरी शहादत को हम कभी न भूल पायेगें
आतंकवाद का आंतक मिटा जाएंगे
पड़ोसी जो दुश्मकन बन बैठा है
उसके घर में घुस कर उसे सबक सिखाएंगे
तेरे बलिदान का बदला पूरे ब्याज के साथ चुकाएंगे
ऐ भारत के सपूत तेरी शहादत को हम कभी न भूल पाएंगे
तेरी श्रध्दांतजली में देश का तिरंगा दुश्मेन मुल्क में जाके लहराएंगे
जय हिन्द जय जवान
आम रसदार है
लेखक - संतोष कुमार साहू ( प्रकृति)
१
आम रसदार है, फलों का सरदार है।
चूस -चूस आम, हमको खाना है।।
रोज स्कूल आना है, रोज स्कूल जाना है।।
२
अनार में रस-रस दाना है।
केले को छील-छील खाना है ।।
अमरूद जो प्यार का खजाना है ।।
रोज स्कूल आना है, रोज स्कूल जाना है।।
३
अंगूर में गुच्छों का खजाना है।
भाई-बहन बांटकर खाना है।।
जामुन, संतरा, मौसमी फल जाना है।
रोज स्कूल आना है, रोज स्कूल जाना है ।।
४
राम, सीता, पपीता लुटाना है ।
अनानास विटामिन का खजाना है।
नाशपाती चबा कर खाना है।।
रोज स्कूल आना है, रोज स्कूल जाना है।।
इन्द्रधनुष
लेखक - कमलेश कुमार वर्मा
इंद्रधनुष सा रंग-बिरंगा
प्यारा सा मेरा देश है
भाँति-भाँति की बोली-भाषा
भाँति-भाँति के वेश हैं
जाति, पंथ,संस्कृतियों का
संगम यहां विशेष है
प्रेम और भाईचारे का
गुंजित गान प्रदेश है
इन्द्रधनुष सा रंग-बिरंगा
प्यारा सा मेरा देश है
विंध्य,अरावली, हिमगिरि
अटल और अनिमेष है
गंगा, यमुना, गोदावरी
कृष्णा-कावेरी अशेष है
हिन्द महासागर का जल
करता चरण अभिषेक है
वन,उपवन, सुमन, कलरव
मधुरिम सौंदर्य निःशेष है
इन्द्रधनुष सा रंग-बिरंगा
प्यारा सा मेरा देश है
कला,संगीत, ज्ञान-विज्ञान
सब यहाँ अतिशेष हैं
गुरु-ग्रंथों की अमृतवाणी
मानवता का उपदेश है
धरा प्रेम का भाव यहाँ
दिलों में बसा स्वदेश है
सदियों -सदियों से दे रहा
यह शांति का संदेश है
इंद्रधनुष सा रंग-बिरंगा
प्यारा सा मेरा देश है
हाथी
लेखक - बलदाऊ राम साहू
हाथी आया, हाथी आया,
सूंड हिलाते हाथी आया।
देखो कितना है यह भारी,
आओ बच्चों करें सवारी।
बंदर
लेखक - बलदाऊ राम साहू
एक बड़ा था नटखट बंदर
छिप-छिप कर आता था अंदर,
एक दिन वह पकड़ में आया
बूढ़े ने तब यह समझाया।
अगर छिपकर तुम आओगे
मार पिटाई खूब खाओगे
लालच में मत चोरी करना
कभी ना सीना - जोरी करना।
चिड़िया आई
लेखक - बलदाऊ राम साहू
सुनो, सुनो जी चिड़िया आई,
छोटी-छोटी फरियादें लाई।
हमको दे दो मुट्ठी भर दाना,
तभी सुनाएँगे हम गाना।
पानी दे दो एक कटोरी,
नहीं करेंगे सीना जोरी।
दाना खाकर, पानी पीकर,
खुश रहेंगे, निर्भय जीकर।
पेड़ों पर हम रह लेते हैं,
सर्दी, गरमी सह लेते हैं।
आसमान में उड़ जाते हैं,
तारों से खुशियाँ ले आते हैं।
चूहे जी
लेखक - बलदाऊ राम साहू
चूहे जी उधम मचाते क्यों,
कुतर-कुतर के खाते क्यों ।
चीं-चीं, चूँ-चूँ गाते क्यों हो,
बिल्ली से घबराते क्यों हो।
तुमने किया बड़ा कबाड़ा,
सारा अन्न चौपट कर डाला।
बिलों में रहते हो छुपकर,
हिम्मत है तो आओ निकलकर।
तुमको सबक सिखाएँगे,
कान पकड़कर नचाएँगे।
जय नदी जय हिंद
लेखिका - स्नेहलता 'स्नेह'
नदियों की है महिमा भारी
लगती धारा निर्मल प्यारी
कंचन जल कलकल है बहता
जीवन चलना हमसे कहता
गंगा यमुना पावन नदियाँ
सींचे धरती सदियाँ सदियाँ
शाम सबेरे पूजन होता
जलती मैया की है ज्योता
चढ़ता चाँदी, पैसा, सोना
और मिठाई भर भर दोना
जय गंगा नर्मदा कावेरी
युगों युगों से महिमा तेरी
नदियाँ ( सार छंद)
लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी
कलकल करती नदियाँ बहतीं, झरझर करते झरने ।
मिल जाती हैं सागर तट में, लिये लक्ष्य को अपने ।।
सबकी प्यास बुझाती नदियाँ, मीठे पानी देती ।
सेवा करती प्रेम भाव से, कभी नहीं कुछ लेती ।।
खेतों में वह पानी देती, फसलें खूब उगाते ।
उगती है भरपूर फसल तब, हर्षित सब हो जाते ।।
स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को, जीवन हमको देती ।
विश्व टिका है इसके दम पर, करते हैं सब खेती ।।
गंगा यमुना सरस्वती की, निर्मल है यह धारा ।
भारत माँ की चरणें धोती, यह पहचान हमारा ।।
विश्व गगन में अपना झंडा, हरदम हैं लहराते ।
माटी की सौंधी खुशबू को, सारे जग फैलाते ।।
शत शत वंदन इस माटी को, इस पर ही बलि जाऊँ ।
पावन इसके रज कण को मैं, माथे तिलक लगाऊँ ।।
नन्ही जान
लेखक – बी.आर. साहू
सीधी-सादी, भोली- भाली
कोमल-कोमल पंखों वाली।
फुदक-फुदक कर आ जाती है,
सबका मन बहलाने वाली।
वह कैसे चुप रह पाएगी,
चूँ-चूँ गीत सुनाने वाली।
मिहनत कर भोजन पाती है,
सुन्दर नीड़ बनाने वाली ।
गगन चूम कर आ जाती है,
नन्ही जान कहाने वाली।
कभी ख्वाब में खोई रहती,
सबको सबक सिखाने वाली।
माँ
लेखिका एवं चित्र - प्रज्ञा सिंह
तेरा मेरा अटूट है बंधन,
तुझमें मैं हूँ मुझमें तू है
तूने मुझको जन्म दिया है,
स्नेह नीर से सिंचित करके
मुझपे ये उपकार किया है
तेरे निश्छल प्यार पे मैं माँ
हरदम अपना शीश झुकाऊँ
माँ मेरी है इक अभिलाषा
जन्मों तक तुझसे बंध जाऊँ
जन्मों तक तुझसे बंध जाऊँ!
व्यथा वृक्ष की
लेखिका एवं चित्र - निहारिका झा
न काटो मुझको माँ हूँ मैं तेरी।
मुझसे ही तेरी हस्ती बनी है।
मेरे बिना तेरा जीवन ये कैसा?
वर्षा न होगी न भोजन मिलेगा।
मुझसे ही तुमको मिले प्राण वायु।
मेरे ही साये में हो दीर्घायु।
कटु घात मुझपे जब तुम करोगे ।
अपने ही संग सबका जीवन हरोगे।
इतनी सी माँ की विनती है तुमसे।
न काटो अपनी साँसों की डोरी।
न काटो अपनी साँसों की डोरी...।।