दो पेड़
लेखक – विवेकानंद दिल्लीवार
एक नदी के किनारे दो पेड़ थे.....
उस रास्ते एक छोटी सी चिड़िया गुजरी और.....
पहले पेड़ से पूछा.. बारिश होने वाली है, क्या मैं और मेरे बच्चे तुम्हारी टहनी में घोसला बनाकर रह सकते हैं ?
लेकिन पेड़ ने मना कर दिया....
चिड़िया फिर दूसरे पेड़ के पास गई और वही सवाल पूछा. दूसरा पेड़ मान गया.
चिड़िया अपने बच्चों के साथ खुशी-खुशी दूसरे पेड़ में घोसला बना कर रहने लगी.
एक दिन इतनी अधिक बारिश हुई कि पहला पेड़ जड़ से उखड़ कर पानी मे बह गया.
जब चिड़िया ने उस पेड़ को बहते हुए देखा तो कहा...
जब तुमसे मैं और मेरे बच्चे शरण के लिये आए तब तुमने मना कर दिया था, अब देखो तुम्हारे उसी रूखे बर्ताव की तुम्हे सजा मिल रही है.
पेड़ ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया - मैं जानता था कि मेरी जड़ें कमजोर है और इस बारिश में टिक नहीं पाऊंगा. मैं तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों की जान खतरे में नहीं डालना चाहता था. मना करने के लिए मुझे क्षमा कर दो. ये कहते-कहते पेड़ बह गया..
किसी के इंकार को हमेशा उनकी कठोरता न समझें
क्या पता उसके उसी इंकार से आप का भला हो.
तीन मित्र
लेखक – दीपक कंवर
घने जंगल के बीच मे तालाब के आसपास मोर, कछुआ और खरगोश तीन मित्र रहा करते थे. सभी आनंदमय दिन गुजार रहे थे, परन्तु वे हमेशा शिकारी के आये दिन धड़पकड़ से परेशान थे. शिकारी जब भी आता किसी न किसी जंगली जीव को फंसाकर ले जाता था. एक दिन तालाब के किनारे बैठे तीनो पेड के नीचे आराम करते हुए चर्चा कर रहे थे कि उस शिकारी से कैसे छुटकारा पाया जाये. तभी कछुए को एक उपाय सूझा और उसने दोनो मित्रो को बताया. सभी उसकी बातों से सहमत हो गए.
गर्मी के दिनों मे तालाब का पानी बहुत कम हो गया था. एक दिन घूमते-घूमते शिकारी जंगल मे आया. गर्मी से परेशान भूखा प्यासा थककर पेड़ की छाया मे जाल क किनारे रखकर आराम करने लगा. अचानक मोर शिकारी के पीछे से चुपके-चुपके आकर जाल को चोंच मे दबाकर सामने की तरफ भागने लगा. इसे देखकर शिकारी पीछे-पीछे दौड़ने लगा. मोर तालाब के किनारे जाकर जाल को छोड़कर भाग गया. शिकारी जाल पाकर लंबी सांस लेते हुए वहीं बैठ गया. तभी उसे तालाब के किनारे पानी मे खरगोश फंसा हुआ दिखाई दिया. इसे देखकर उसने सोचा कि आज खरगोश को ही पकड़ा जाये. वह तालाब की ओर गया. ऐसा लग रहा था कि खरगोश शिकारी की पकड़ मे आ ही जायेगा. घुटने भर पानी में जाकर उसने पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन खरगोश पहुंच के बाहर था. उसने सोचा थोड़ा और आगे जाउं. उसके कुछ दूर जाने पर खरगोश और दूर चला गया. तालाब मे खरगोश कछुए की पीठ पर बैठा था. जैसे-जैसे शिकारी उसे पकड़ने आगे बढ़ता, कछुआ इशारा पाकर आगे बढ़ जाता और खरगोश उसकी पकड़ से दूर हो जाता. अब शिकारी गुस्से मे आकर खरगोश को पकड़ने के लिए पानी में छपाक से कूद गया. खरगोष तो पकड़ मे नहीं आया बल्कि शिकारी डूबने लगा. वह ज़ोर से चिल्लाने लगा बचाओ-बचाओ, पर उसे बचाने कोई नहीं आया और कुछ देर मे वह डूब गया था. दलदल के बीच शिकारी को लाकर योजना के अनुसार तीनों ने शिकारी को फांस लिया और जंगल की समस्या को दूर किया.