अनुसरण की शिक्षा हो
लेखक - विकास कुमार हरिहारनो
अनुसरण ही शिक्षा हो
सारी दुनिया ऐसे ही बढ़ी
कुछ आप बढ़े, कुछ हम भी बढ़े
जैसा देखा वैसा सीखा,
कुछ बने बनाए ही सीखे
कुछ सीख के सीख लिया हमने
बहुतों को देख के बदला है
अनुसरण की शिक्षा हो
अनुसरण ही शिक्षा हो
आई परिवर्तन की अब बेला
चलो नींव की इमारत गढ़ते हैं
भावी पीढ़ी चाहे जैसा
वैसा खुद को बदलते हैं
अनुसरण की शिक्षा हो
अनुसरण ही शिक्षा हो
करो योग -रहो निरोग
लेखक - गोपाल कौशल
भारत की शान है योग
गीता,वेद पुराण है योग ।
सबका कल्याण है योग
भारत की जान है योग ।।
संस्कृति की आन है योग
प्रकृति का वरदान है योग ।
शरीर की स्फूर्ति है योग
वीरों की शक्ति है योग ।।
निरोगता का राज है योग
मन की एकाग्रता है योग ।
संतो की साधना है योग
सफलता की कुंजी है योग ।।
कोयल
लेखक - रघुवंश मिश्रा
मधुर स्वर घुल गया बसंत ऋतु के आने पर
निक्कू, निक्की झूम उठे
कोयल के गीत गाने पर
कोयल का गीत
लगता है बड़ा प्यारा
आम्र कुंज में छिपकर
गाये दिन सारा
खुलती है नींद जब
बसंत के भोर में
लगे प्रकृति सराबोर है
कोयल की कूक की शोर में
मन को मोह लेती है
कोयल की प्यारी आवाज
सबसे न्यारा होता है
प्यारी कोयल का अंदाज
गुलाब
लेखक - नेमीचंद साहू
कॉटो के बीच रहकर,
हरदम रहते है लाजवाब !
जीवन को खुशहाल बनाते
नाम है जिनका गुलाब !
प्रेम की है यह निशानी,
पल -पल करते है कमाल !
दुनिया में रंग भरते ये,
कभी पीले कभी लाल !
फूलों का है यह राजा,
बगिया की है ये शान !
करते सभी को आकर्षित,
गरीब हो या धनवान !
राजा-महाराजाओं का,
शौक में है बेमिसाल !
कभी हाथ कभी कोट में
लगाते जवाहर लाल !!
चंद्रमा
लेखक - रघुवंश मिश्रा
ग्रहों के जो चक्कर लगाये
उपग्रह वह कहलाता
पृथ्वी के उपग्रह में
चंद्रमा का नाम आता
कृष्ण पक्ष में चंद्रमा
धीरे-धीरे घटता जाता
शुक्ली पक्ष में यह
बढ़ने के क्रम में आता
अपनी धुरी पर घूमने से
यह स्थिति होती है निर्मित
चौदह दिन का समय
दोनों पक्षों में घूमने का है निश्चित
कृष्ण पक्ष में अमावस्या
शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा आती
इस तरह प्रत्येक माह,
बारी-बारी से दोहराती
चंद्रमा को प्रकाश
सूरज से है मिलता
सामने आने के अनुपात में
छिपता, और है दिखता
जाड़े का मौसम आया
लेखिका - सेवती चक्रधारी
जाड़े का मौसम आया,
सूरज सबको भाया ।
सर-सर करती हवा ने,
तन- मन कंपकंपाया ।
नन्ही - नन्ही ओस की बूंदे,
मौसम ने बरसाया ।
छाछ -लस्सी दूर हो गई,
चाय पे जी ललचाया ।
घर मे रखे ऊनी स्वेदटर,
अब सबको पहनाया ।
रंग - बिरंगे फूल खिल गये,
भौंरा गुनगुनाया ।
खेत - खलिहान मे फसल देखकर,
हर किसान मुसकाया ।
जोकर
लेखक - संतोष कुमार साहू (प्रकृति)
१
सबके मन को भाता जोकर
सबको खूब हंसाता जोकर
कभी पूंछ से कभी बाल से
कभी हाथ से कभी पैर से
ऐसा खेल दिखाता जोकर
२
कभी सामने कभी बगल में
छुप-छुप कर है गाता जोकर
सर्कस और नाटक में सबको
कलाबाज़ियां खाता है जोकर
ऐसा खेल दिखाता जोकर
३
दुख में सुख में सबके देखो
आंसू खूब बहाता जोकर
जपानी और हिन्दूस्तानी
बहरूपिया बन जाता जोकर
ऐसा खेल दिखाता जोकर
४
खुद का गम पी जाता जोकर
औरों को बहलाता जोकर
जोकर का जीवन जोकर है
जोकर बन रह जाता जोकर
ऐसा खेल दिखाता जोकर
तिरंगा
लेखिका - कनकलता गहलोत
तीन रंगों से सजा तिरंगा
सबके मन को भाये
आओ सब जयकार करें
प्याबरा तिरंगा फहरायें
केसरिया से सीखें त्यागग
देश के लिए मर भी जायें
सफेद रंग शांति का प्रतीक
चमन में शांति फैलायें
हरा रंग प्रकृति की शोभा
मेरा देश सदा मुस्कुशराये
आओ सब जयकार करें
प्यारा तिरंगा फहरायें
देने का सुख़
लेखिका - माया गुप्ता
चिड़िया बोली चिड्डे से,
आज नया कुछ खाएंगे,
कीड़े खाकर बोर हो गई
खिचड़ी आज पकाएंगे
दाल के दाने मुझे मिले हैं,
ढूंढ़ कहीं से चावल लाओ
गाजर, गोभी, मटर अगर हो सके
कहीं से लेकर आओ
चिड्डा तब फिर रुक ना पाया
ढूंढ़ कहीं से चावल लाया
चूल्हाह में फिर आग जलाई
बढ़िया खिचड़ी मस्त पकाई
तभी उधर एक चूहा आया
भूखा था पर कुछ शरमाया
चिड़िया बोली तुम भी आओ,
संग हमारे खाना खाओ
फिर चिड़िया ने युक्ति लगाई
तोड़ तीन पत्ते ले आई
गरमा – गरम महकती खिचड़ी
तीनों ने मिल – जुल कर खाई
खाना सदा बांट कर खाना
आदत है यह कितनी अच्छी
देने में ही सुख़ मिलता है
बात कहूँ मैं सच्ची सच्ची
पेड़ लगाओ (चौपाई)
लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी
मिल जुलकर सब पेड़ लगाओ । ताजा ताजा फल को खाओ ।।
देती है यह सबको छाया । अदभुत इसकी है सब माया ।।
फूल पान औ फल को देती । बदले हमसे कुछ ना लेती ।
पत्ती जड़ से औषधि बनती । बीमारी को झट से हरती ।।
मिलकर पौधे रोज लगाओ । शुद्ध हवा तुम निशदिन पाओ ।।
सुबह शाम सब पानी डालो । बैठ छाँव में अब सुस्ता लो ।।
बैठे डाली पंछी गाये । मीठे मीठे फल को खाये ।
थककर राही नीचे आते । बैठ छाँव में अति सुख पाते ।।
जंगल झाड़ी कभी न काटो । भाई भाई इसे न बाटो ।।
मिलकर सारे पेड़ लगाओ । धरती को तुम स्वर्ग बनाओ ।।
भारत भूमि
लेखक - चन्द्रहास सेन
नील गगन के नीचे है, अपनी धरतीमाता
इससे बढ़कर नहीं कोई, जग में रिश्ता नाता
भारत भू कहते हैं इसको, इसकी छाया में हम पलते
इसके पावन जल को पीकर, नित्य रहें हँसते और बढ़ते
पूरब मे है नागा साकी पश्चिम में है विंध्य सतपुड़ा
दक्षिण केरल पायल इसकी, उत्तर हिमालय से जुड़ा
यहां बही है गंगा यमुना, सतलज और सिंधु की धारा
जिसके चरणों में खेला है भारत का हर राजदुलारा
आओ भाई बहनों, हमको माँ की रक्षा करनी है
इसकी रक्षा की खातिर ही अब जीवन की हर करनी है
मत काटो मत बांटो
लेखिका - रीता माने
आपसे मे मिल-जुलकर रहना सीखो
वन भी अपना तन भी अपना
देश भी अपना, पर्यावरण भी अपना
काटोगे बांटोगे तो जाओगे कहां
घर भी अपना देश भी अपना
मत काटो...
तन में बहता खून भी एक रंग का
बन की हरियाली भी एक रंग की
सूरज की धूप भी एक रंग की
बरसात का पानी भी एक रंग का
फिर आपसे के विचार भिन्न क्योंा
काटोगे बांटोगे तो जाओगे कहां
घर भी अपना देश भी अपना
मत काटो...
मदारी
लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'
बंदर आया बंदर आया।
एक मदारी उसको लाया।।
बंदर को वह बहुत नचाया।
बच्चों से ताली बजवाया।।
नया नया है खेल दिखाया।
बच्चों को वह खूब हँसाया।।
रस्सी पर चलकर दिखाया।
अपने संग बंदरिया लाया।।
नया नया करतब सिखलाया।
बच्चों को है खूब भाया।।
माँ
लेखिका - पूर्णिमा कैवर्त
तू ममता की खान थी माँ
संस्कार की गान थी माँ
मुझे हँसकर पाली थी
पल-पल मुझे संभाली थी
मेरी नित्य भलाई की थी
जपती रहती माला थी
जान और जहान है माँ
तू मेरी पहचान है माँ
कष्ट भले ही सहती थी
किन्तु नहीं कुछ कहती थी
जब तक नहीं पहुंचती थी घर
बाट जोहती रहती थी
रखती कितना ध्यान थी माँ
मेरे लिए महान थी माँ
पढ़ती बढ़ती जाऊँगी
सीख सभी अपनाउंगी
तेरी पूजा करती हूँ मैं
तू मेरी भगवान है माँ
माँ
लेखक - सुन्दर लाल डडसेना 'मधुर'
ममता की मूरत, प्रेम का सागर है माँ
सब कुछ धारण करे, ऐसा गागर है माँ
घर-घर में रोशन करे, नव सबेरा है माँ
प्रेम से बसने वाली, घर का बसेरा है माँ
प्रेम त्याग दया का संगम,त्रिवेणी है माँ
पवित्रता का मंदिर, बुलंदियों की द्रोणी है माँ
अटल में हिमालय, फूलों सी कोमल है माँ
गीतकार का गीत, शायर की ग़ज़ल है माँ
ममता की रेवड़ी बांटती, आशीषों की बरसात है माँ
कुदरत का नया करिश्मा, उत्तम जात है माँ
उपवन का मदमस्त महकता, सुंदर गुलाब है माँ
राज सीने में छिपाने वाली, सीप सैलाब है माँ
कवि की आत्मा की गहराई, नापने वाली कविता है माँ
प्रेम के झरोखे में झरने वाली, सरिता है माँ
रिश्तों को अनोखी बंधन में, बाँधने वाली लता है माँ
प्रभु की अनोखी कृति, व्दितीय गीता है माँ
मुस्कुराना अच्छा लगता है
लेखक - अरविन्द वैष्णव
बच्चों तुम्हारा मुस्कुराना अच्छा लगता है
मुझे पढ़ाना और सिखाना अच्छा लगता है
ज्ञान की बाते बताकर प्रेरक गीत सुनाऊँ
नित नवाचार से साज सजाना अच्छा लगता है
कक्षा छोड़ मारूं गप रास नही आता है
तुम सबके साथ रहना अच्छा लगता है
बारिश में टपकती छत से मन व्यथित होता है
प्रयास सुंदर कर सकूं तो अच्छा लगता है
डांट कर फिर हँसाना भाव यही होता है
तुम सबको आगे लाना अच्छा लगता है
कच्ची मिट्टी से बने तुम भारत के भविष्य हो
'अरविंद' विज्ञान की बाते बताना अच्छा लगता है
मन मचलाता है हर नया साल
लेखक - जी आर टण्डन छत्तीसगड़ीया
माँ के दूध का ऋण
परिवार का मेरा एक दिन
स्मृति बनकर रहता है
अच्छा हो या बुरा हाल
मन मचलाता है हर नया साल
स्वागत को आतुर निकले शशि
सितारों से चांदनी की हंसी
आसमां को सबने मिलकर चमकाया
एक जनवरी उन्नीस सबके मन को भाया
नये साल का नया सपना
प्रेम और भाईचारे का छोटा सा घर हो अपना
मेरे परिवार के साथ एक मुनिया रहेगी
नारी सम्मान के लिये खूब पढेगी
तट पर न बैठ सागर लहराया
पकड़ ले पतवार जहाज डगमगाया
बैठे की नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
वक्त की आवाज का है यह उबाल
मन मचलाता है हर नया साल
मेरा बचपन
लेखिका – तृप्ति शर्मा
मेरा बचपन प्यारा बचपन
पल पल याद तू आता है
सुंदर सपनों सा जीवन वो
पल पल जी ललचाता है
कहां गई मासूम ठिठोली
संग मेरे सखियों कि टोली
बात बात में खूब रूठना
मान भी जाओं अब तुम भोली
प्यारी मधुर तोतली बोली
स्वप्न से सुंदर थी वो टोली
अमरैया में आम तोड़ती
मस्त मेरी सखियों कर टोली
मेरा बचपन प्यारा बचपन
पल पल मुझे लुभाता है
शिक्षक ज्ञान का सागर है
लेखक - श्रवण कुमार साहू 'प्रखर'
शि
शिक्षक ज्ञान का सागर है
जिसकी महिमा उजागर है
शिष्यों को शीलवान बनाता
वो अनन्त गुणों का सागर है
क्ष
क्षमता, ममता, दया धर्म का
जो जग को पाठ पढाता है
शांति और क्रांति दोनों का
जो स्वयंसिध्दं जन्मदाता है
क
कर्मशील, साधक, सुजान वो
जो परहित जीवन जीता है
रामायण सी अमृत वाणी
हर कर्म जिसका गीता है
शिक्षक
क्षण-क्षण करके, समय जोड़ता
कण कण करके, जीवन गढ़ता
पथ पर कितने भी कण्टक हों
अविरल, अविराम है चलता
कहीं क्रांति का ज्वाल वही है
कहीं बना वह सृजन प्रवर्तक
जो वह मार्ग हमे दिखलाए
चलें उसी पर गमन करें
ब्रम्हा, विष्णु, महेश्वर शिक्षक
चलो आज हम नमन करें
हम बच्चे हिन्दुस्तान के
लेखक - प्रमोद दीक्षित 'मलय'
चले बचाने धरती को हम, बच्चे हिन्दुस्तान के ।
बच्चे हम संसार के ।।
कल-कल बहती नदियां हों, जल में पलता जीवन हो ।
और तटों पर कलरव करता, विहग वृन्द मनभावन हो ।
धरती पर पौधे रोपें हम, अपनी मधु मुस्कान के ।
हम बच्चे हिन्दुस्तान के ।
धरती की हरियाली को, हिम से पूरित प्याली को ।
तनिक न घटने देंगे हम, ओजोन परत की जाली को ।
सुमन बिखेरें सकल धरा पर, हम अपने श्रमदान से ।
हम बच्चे हिन्दुस्तान के ।
धरती अपनी माता है, पोषण-प्रेम भरा नाता है ।
देती जल, फल, सब्जी, अन्न, धरती भाग्य विधाता है ।
चलो सजायें धरती माँ को, हम अपने बलिदान से ।
हम बच्चे हिन्दुस्तान के ।
हाय ! तौबा ये पढ़ाई
लेखिका - सेवती चक्रधारी
हाय! तौबा ये पढ़ाई ,
होती इसमे कितनी कठिनाई।
जब गणित को पढ़ने बैठा,
सूत्र मे जा करके मै अटका।
पहाड़ा बनाने का खोजा फंडा,
फिर भी टेस्ट मे मिलता अंडा।
हिन्दी की जब आई बारी,
दुःख होता है मुझको भारी।
मात्राओ का बहा समंदर,
परीक्षा मे कट गए नम्बर।
विज्ञान की तो बात निराली,
संरचना कितनी अजीब वाली।
कीटाणु जीवाणु और विषाणु,
कितने नाम है मै क्या जानु।
सामाजिक में समाया इतिहास,
जिसमें हर युध्द होता खास।
नदी तालाब और झरने,
दिमाग से मिट गए सारे नक्शे।
संस्कृत के ये ति, ता ,अन्ति,
शुध्द उच्चारण हमसे न बनती ।
जो लम्बे से शब्द होते,
भारी भरकम बोझ से लगते।
इंग्लिश की तो बात ही छोड़ो,
कही अक्षर पकड़ो कही पे छोड़ो।
जब ग्रामर की गहराई जानी,
याद आ गई मुझको नानी।
इन सबसे कोई पीछा छुड़ाये,
पढ़ने-लिखने से हमे बचाये।
नववर्ष 2019
लेखक - द्रोण साहू
नववर्ष के नव पल मे,
प्रतिपल मन मे नव हर्ष हो।
उव्दवेलित हो नव चिंतन,
नव प्रस्फुटन नव उत्कर्ष हो।
निर्भय हो चिंतन कर विकसित,
नित नव मंत्र नव विमर्ष हो।
त्याग जीण-शीर्ण पुरातनता,
नव सृजन हेतु नव निष्कर्ष हो।
ऐसा ही हर पल आपका,
मगंलमय यह नववर्ष हो।
कहना तू मान ले
लेखक - अरविन्द वैष्णव
हम बदलेंगे युग बदलेगा
कहना तू मान ले
ओ प्यारे भारत के बच्चे
परिवर्तन पहचान ले
उत्पादन गर ज्यादा हो
भाव सदा गिर जाते हैं
एक्स में हो परिवर्तन तो
वाय भी बदल जाते हैं
सूरज आता गर्मी लाता
चंदा लाता शीतलता
आओ बच्चों तुम्हें सीखा दूँ
मौसम और जलवायु की गाथा
ताप बढ़े तो बर्फ पिघलती
ठंड बढ़े तो पानी जमता
हलचल से तुम मत घबराना
राह छोड़कर मत तुम जाना
जीवन मूल्यों को ‘‘अरविंद'
हरदम तुम जीवन में रखना