बालगीत
हार क्यूँ माने
लेखक - अरविंद वैष्णव
परेशान दिल को करार न आया
इक सवाल का जवाब न आया
बच्चे भूलकर खेलने लगे कहीं
मानो चांद छुप गया बादलों में कहीं
हम कहते रहे पढ़ना है जरूरी
वो कहते रहे ठंड बहुत है सर जी
विचार बदलकर करवाया योगा
बच्चे चिल्लाये कि अब जाड़ा भागा
‘सूरज’, ‘गगन’, ‘बरखा’ नाम बड़े हैं प्यारे
राष्ट्र निर्माता हैं बताइये हार क्यूँ माने
नवीन प्रयोगों से नवाचार करते रहिये
'अरविंद' सीखते और सिखाते रहिये
आसमान गिर रहा है
लेखक – रघुवंश मिश्रा
घने जंगलों में,
एक खरगोश रहता था
दिन भर ईधर-उधर,
घूमा-फिरा करता था
दोपहर में सोये सोये,
उसने सुनी आवाज
आसमान गिर रहा है,
लगा लिया अंदाज़
तुरंत उठकर वहां से
भागा वह सरपट
दूसरे जानवर भी भागे
खरगोश के पीछे झपटपट
आखिर में जंगल का राजा
शेर सामने आया
पूछा गिर रहा है आसमान
यह किसने बतलाया
सभी जानवरो बारी-बारी
एक दूसरे के नाम बतलाये
शेर बोला सभी से
चलो उस जगह पर जायें
सभी पहुंचे उस जगह,
आवाज सुनाई दी थी जहां
एक बड़ा नारियल फल,
गिरकर पड़ा था वहां
खरगोश की मूर्खता,
सभी को समझ में आयी
एक-दूसरे से कहा,
अकारण ही दौड़ लगाई
देख सभी का गुस्सा,
खरगोश थरथर कांपने लगा
बिना कुछ बोले
झटपट झाड़ियों में भागने लगा
26 जनवरी आई है
लेखिका - श्वेता तिवारी
अमर रहे गणतंत्र हमारा
यही संदेशा लाई है
फहराता रहा तिरंगा झंडा
भवनो पर मैदानो में
देशभक्ति का भाव है जागा
बच्चों बड़ो सयानो में
आज सभी ने मिलकर
भारत माँ की जयकार गुँजाई है
26 जनवरी आई है
झंडा वंदन करके सबने
जनगणमन मिल गाया है
भारत माँ की रक्षा का
सबने संकल्प दोहराया है
हर आयोजन में बच्चों को
बँटती आज मिठाई है
26 जनवरी आई है
नौजवान वीर परेड हैं करते
कदम मिलाकर चलते
वीर-साहसी बच्चे
हाथी की सवारी है
झाँकियो की छटा
खुशी हर मन में छाई है
26 जनवरी आई है
अनुभव
लेखिका - श्रध्दा श्रीवास्तव
अनुभव हमारी सीख है
अनुभव हमारा ज्ञान है
अनुभव से ही जीवन में
बनती पहचान है
अनुभव हमारा मीत है
अनुभव हमारा मान है
मुश्किलों में अनुभव ही
आता हमारे काम है
कर्म करो
लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी
कर्म किये जा प्रेम से, चिन्ता में क्यो रोय ।
जैसा तेरा कर्म हो, वैसा ही फल होय ।।
सबका आदर मान कर, गीता का है ज्ञान ।
बैर भाव को छोड़कर, लगा ईश में ध्यान ।।
झूठ कपट को त्याग कर, सब पर कर उपकार ।
दया धरम औ दान कर, होगा बेड़ा पार ।।
धन दौलत के फेर में, मत पड़ तू इंसान ।
करो भरोसा कर्म पर, मत बन तू नादान ।।
कंचन काया जानकर, करो जतन तुम लाख ।
माटी का ये देह है, हो जायेगा राख ।।
गुड़िया रानी
(सार छंद)
लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी
छमछम करती गुड़िया रानी, खेले छपछप पानी ।
उछल कूद वह करती रहती, डाँटे उसको नानी ।।
बस्ता लेकर जाती शाला, ए बी सी डी पढ़ती ।
कभी बनाती चित्र अनोखे, कभी मूर्ती गढ़ती ।।
साफ सफाई रखती अच्छी, कचरा पास न फेंके ।
कूड़ा कर्कट आग लगाकर, हाथ पैर को सेंके ।।
सबकी प्यारी गुड़िया रानी, दिनभर शोर मचाती ।
खेलकूद में अव्वल रहती, सबको नाच नचाती ।।
गुरू कैसे हों
लेखक - विकास कुमार हरिहारनो
बच्चों संग, बच्चों को जैसे,
समझ आए समझाएं ।
नवप्रयोग और नवाचार की,
राह उन्हे दिखलाऐ ।
खुद भी चलें, उन्हे चलाऐं,
सद् मार्ग बतलाऐं ।
जीवन का हल कैसे निकले,
ऐसा गणित सुझाएं ।
नेक बने, विवेक भी आए,
सदाचार ही सदा पढ़ाऐं ।
स्वप्न हकीकत में जो बदलें,
ऐसी युक्ति बुझाऐं ।
चिंटू मिंटू खेलते
लेखक - नवीन कुमार तिवारी
चिंटू मिंटू खेलते, नन्हा दोस्त साथ ।
चूं चूं की नाद सुनते, खिला दाना हाथ ।।
नन्हे नन्हे चलें कदम, थकते लगती प्यास ।
पानी पीते घूमते, सोचे माता पास ।।
आती यादें झूमती, रहते तभी उदास ।
कैसे भूलें सोचते, दाना चुगते ख़ास ।।
ठंडा-ठंडा कूल-कूल
लेखक - गोपाल कौशल
मौसम हुआ ठंडा-ठंडा कूल-कूल
मम्मी मैं कैसे जाऊँ स्कूल ।
पहना मैंने टोपा, स्वेटर
फिर भी है ठंड जैसे हो शूल ।।
हम नन्हें-नन्हें खिलते फूल
कंपकपाती ठंड में रहे ठिठुर ।
मन को भाते जलते अलाव
होमवर्क करना जाते हैं भूल ।।
प्यारी धरती
लेखिका - जागृति मिश्रा 'रानी'
सुन हे, मानव मैं धरती हूं,
तेरी झोली भरती हूं ।
एक बात तू बता अभी,
मनन गहन भी किया है कभी ।
जब मिल जुलकर सब रहते,
हैं परिवार उसी को कहते ।
मैं मां हूं तेरी सुन बेटा, पर्यावरण है तेरा भाई,
बैर निकाले उससे तू क्यों, करता है किसलिए लड़ाई ।
मैं तो मां हूं तुझे बताकर, अपना धर्म निभाऊंगी ही,
वक्त अभी है, अरे संभल जा, वर्ना अश्रु बहाउंगी ही ।
मौसम जाड़े का
प्रमोद दीक्षित ‘मलय’
गोभी गाजर लाल टमाटर, मौसम जाड़े का।
मूली धनिया बैंगन भुर्ता, मौसम जाड़े का।।
मटर मूंगफली सिंघाड़ा, औ शाक चने का भी।
दूध जलेबी गरम समोसा, मौसम जाड़े का।।
अलसी सरसों मीठा गन्ना, तिल्ली उड़द मसूर,
ज्वार बाजरा, कैथा कॉफी, मौसम जाड़े का।।
निकले कम्बल, शूट रजाई, मफलर टोपा भी।
मीठी खीर शकरकन्दी की, मौसम जाड़े का।।
सूरज खोया बीच बादलों, और कुहासा छाया।
किट्-किट् पढ़ते दांत पहाड़ा, मौसम जाड़े का।।
रंगों का मेल
लेखक - दीपक कंवर
लाल पीला कहाँ है दिखता।
सुबह शाम सूरज है उगता ॥
काला किसे सुहाता है।
जब बादल बन आता है॥
नीला रंग कहाँ मिलेगा।
आसमान खुला दिखेगा॥
हरा.हरा किसने है पाई।
धरती मे हरियाली छाई॥
सादा रंग है सबसे प्यारा।
चंदा मामा सबसे न्यारा॥
इंद्रधनुष का खेल देखा।
सब रंगों का मेल देखा॥
वीर नारायण सिंह को नमन
लेखक - द्रोणकुमार सार्वा
धधक रही है आज भी धरती,
बनके सोनाखान
यह कि पाऊँ आज मैं बेटा,
बने जो वीर नारायण महान
रहे हितैषी मानवता का,
जन-मन का कल्याण करे
सच्चा सेवक मानवता का
और सच्चा इंसान बने
रेलगाडी
लेखक - संतोष कुमार साहू (प्रकृति)
रेलगाड़ी छुक छुक रेलगाड़ी।
पानी पुरी गुप गुप पानी पुरी।।
गाड़ी के आगे इंजन है बोझ ढुलाना काम है।
चाहे हिंदू चाहे मुस्लिम सबके लिए समान है।
चाहे गरीब हो चाहे अमीर हो, चढ़ते हैं इसमें खुश खुश ।
रेलगाड़ी छुक छुक रेलगाड़ी।पानी पुरी ,गुप गुप पानी पुरी
पानी पुरी के ही बिना जैसे ओ बेनाम है।
चाहे गोरा चाहे काला सभी में उसका नाम है।
चलते फिरते सब खा जाते, पानी के साथ चुप चुप।
रेलगाडी छुक छुक रेलगाडी।
पानी पुरी गुप गुप पानी पुरी।
डिब्बा कभी लडते नही आपस में भाईचारा है।
पुरी कभी लडते नहीं बंधन में अंधियारा है।
हम क्यों रगडे हम क्यों झगडे,मिलकर रहें सब छुप छुप।
रेलगाडी छुक छुक रेलगाडी।
पानी पुरी गुप गुप पानी पुरी।
शिक्षा मेरा अधिकार
लेखक – प्रकाश सेठ
शिक्षा मेरा अधिकार है,
शिक्षा से ही उद्धार है।
अपना अधिकार पाने को,
ज्ञान का दीप जलाने को
मैं रोज स्कूल आऊँगा
मैं रोज स्कूल आऊँगा
अज्ञानता अंधकार है,
इसमें जीना दुश्वार है।
ये अंधकार मिटाने को,
सबको राह दिखाने को।
मैं रोज स्कूल आऊँगा
मैं रोज स्कूल आऊँगा
मुश्किल कोई भी आए,
रास्ता कोई भी रोके।
हर मुश्किल से टकराने को,
स्वाभिमान जगाने को।
मैं रोज स्कूल आऊँगा
मैं रोज स्कूल आऊँगा
सर्दी बडी बेदर्दी
लेखक - गोपाल कौशल
पहनकर शीतलहर की वर्दी
कंपकपाने-तपाने आई सर्दी ।
क्या बच्चें -बूढ़ें ,क्या जवान
थर -थर कांप रहें ऐसी सर्दी ।।
दूध संग पीएं खारक हल्दी
शरीर रहें बच्चों सदा हेल्दी ।
गरमागरम जलेबी,गराडू भी
खूब भाते आती हैं जब सर्दी ।।
मम्मी कहें सो जा बेटा जल्दी
रजाई,कंबल हैं हमारे हमदर्दी ।
सूरज दादा भी लेट हो जाते
जब कोहराम मचाती हैं सर्दी ।।