छत्‍तीसगढ़ी कहानी

करम के फर

लेखक – टुकेश कुमार मंडावी

एक गांव म सुखराम अउ ओखर घरवाली सुखिया रहाय. सुखराम अड़बड़ गरीब रहाय. एक दिन सुखिया ह सुखराम ल जंगल ले लकड़ी लाने बर भेजिस. सुखराम जंगल ले सुखा लकड़ी कॉंट के घर आत रहिस अचानक रद्दा के एक ठन पथरा ले हपट के गिर गे. बोकर गोड़ ले खून निकले ल लगिस. पीरा भरावत खे हा सोंचिस कि ये रद्दा म कतको झिन मन रेंगथे ओमन मोर जइसे हपट के झिन गिरे इही ल सोंच के ओहा पथरा ल निकाले के परियास करथे. पथरा ल हटाइस त ओला अड़बड़ अकन सोन के सिक्काक मिलिस. सोन के सिक्का ल अपन गमछा म बांध के घर लेग के अपन घरवाली ल देखाइस. ओकर घरवाली कहिस ये तोर सुघ्धबर काम के फल हरे. सोन ल बेच के सुख से रहे ल लगिस.

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