बालगीत

कुहू-कुहू

लेखिका – सेवती चक्रधारी

कुहू-कुहू कोयल है गाती, सबको मीठे राग सुनाती.
कौआ कहता कांव-कांव,
तुम भी आना मेरे गांव.
कहे कबूतर गुटुर-गुटुर गूं,
चलो खेलते, छुपा-छुपा छू.
टांय-टांय तोता कहता है,
लाल-हरी मिर्ची खाता है.
चीं-चीं-चीं चिड़ि‍या है चहकी,
सुबह हो गई सबको कहती.

स्वतंत्रता दिवस

लेखिका – सुचिता साहू

छोड़ हिंसा को, अहिंसा को अपनाकर हमे दिखाना है,
बापू के आदर्शों पे चल के हमें बताना है,
नई सदी के लोग हैं हम, कुछ करके हमें दिखाना है,
मिलकर हम सबको प्यारा हिन्दुस्तान बनाना है.

शिक्षित यदि पूरा समाज हो जाये, तो यह देश आगे बढ़ जाये,
देश का हर बच्चा फिर बन पायेगा गांधी और सुभाष,
शिक्षा की इस ज्योति को घर-घर में हमें जलाना है,
मिलकर हम सबको प्यारा हिन्दुस्तान बनाना है.

डूबती हुई सभ्यता संस्कृति जो, उसको हमें बचाना है,
मिलकर हम सबको प्यारा हिन्दुस्तान बनाना है,
सो चुके इस समाज को फिर से हमें जगाना है,
मिलकर हम सबको प्यारा हिन्दुस्तान बनाना है.

निकल रहा है सूरज

लेखक - अजय कुमार, कक्षा-8, पूर्व माध्यमिक विद्यालय, गनेशपुर ग्रंट, इटियाथोक, गोंडा उप्र, प्रेषक विकास पचौरी

उठो बच्चों आंखे खोलो निकल रहा है सूरज।
जल्दी से तैयार हो लो, निकल रहा है सूरज।।

दादी हमको रोज जगाती।
हमको अच्छी बात सिखाती।
प्यारे बच्चे अब मत सो, निकल रहा है सूरज।।
उठो बच्चों, आंखे खोलो निकल रहा है सूरज।।

सितारे देखो भाग रहे हैं।
फूल भी देखो खिल ‌रहे हैं।
चिड़ियां भी उड़ चलीं है, निकल रहा है सूरज।।
उठो बच्चों, आंखे खोलो निकल रहा है सूरज।।

रामू उठ गया, श्यामू उठ गया, राधा चली नहाने।
मम्मी उठकर देखो भैया, बैठी हैं नाश्ता बनाने।।
मंदिर में बजीं घंटियां, निकल रहा है सूरज।।
उठो बच्चों आंखे खोलो निकल रहा है सूरज।।

बरगद दादा छांव देते, पीपल जी लहराते पत्ते।
भौंरे सुना रहे मधुर गान, निकल रहा है सूरज।।
उठो बच्चों, आंखे खोलो निकल रहा है सूरज।।

बिटिया सुनो अब करो पढ़ाई

लेखिका - जागृति मिश्रा ‘रानी’

बिटिया सुनो अब करो पढ़ाई,
तभी करेंगे सभी बड़ाई।

प्यार खूब सब करेंगे तुमसे,
नहीं करेगा कोई ढिठाई।

नाना नानी घर आएंगे,
देंगे तुमको खूब मिठाई ।

प्यारी तू दादी की गुड़िया,
आंख तुम्हें न कभी दिखाई।

मां ले लेगी सारी बलाएं,
ममता ने यह रीत चलाई।

समय - चक्र

लेखक – रघुवंश मिश्रा

सेकण्ड से मिनट,
मिनट से घंटे बनते हैं,
चैबीस घंटे के दिन-रात,
सात दिन में सप्ताह बदलते हैं.

सोम, मंगल, बुध, गुरु,
शुक्र, शनि, रवि हैं दिनों के नाम,
जिसमें रहकर करते हैं,
सारे लोग अपने काम.

तीस, इकतीस दिन के महीने,
बारह महीनो से बनता साल,
सेकण्ड, मिनट और घंटो से,
बना है यह समय जाल.

तीन सौ पैसठ के बदले,
तीन सौ छैःसठ जब हो जाता है,
बढ़े हुए दिन से,
चौथा अधिवर्ष कहलाता हैं.

लोग कह गए,
बात यह अतिसुन्दर,
पूरा कर लो आपने काम,
समय चक्र के अंदर.

स्वतंत्रता मुझे भी चाहिए

लेखक – द्रोण साहू

मैं अपने मन से कुछ भी न करूँ,
तुम हमेशा चाहते हो मुझे समझाना।
जैसे पिंजरे में बंद किसी तोते को,
दे दो खाने को थोड़ा सा दाना।

क्लास में यह मत करो, वह मत करो,
तो क्या कछुए की तरह है रहना।
डरावनी डाँट और नीरस बातें,
गधे की तरह सब कुछ है सहना।

क्लास से बाहर तुम्हारे आदेश बिना,
कोई नहीं आएगा, नहीं जाएगा।
दाखिले के वक्त काश पता होता,
मुझ पर कोई इतनी बंदिशें लगाएगा।
कुछ तुम सीखो, कुछ हम सीखें,
शायद यही तो है पढ़ना-पढ़ाना।
पर तुम तो हम पर थोप - थोपकर,
कहते हो ऐसे ही है आगे जाना।

सीखने दो मुझे अपने तरीके से,
सीखकर है तुम्हें ही दिखाना।
पर तुम तो पीछे पड़े हो हाथ धोकर,
जैसे ठेका है तुम्हारा मुझे सिखाना।

आई बरसात

लेखक – प्रकाश किरण कटेन्द्र

हवा चली जब सर्र-सर्र,
काले-काले बादल छाए,
बूंदों की सवारी लाए।

बूंद पड़ी जब टप-टप,
बच्चे खेले छप-छप,
पानी भरा है गांव गली,
बच्चों की अब नाव चली।

धरती दिखती हरी भरी,
लगती सबको सोनपरी,
निकले छाता रेनकोट,
कीचड़ में सब लोटपोट।

जुगनुओं की सजी बारात
खुशी मनाओ आई बरसात

मशरूम की छतरी

लेखक - गोपाल कौशल

देख नन्हीं चिडिया
को बरसात में भीगते
फुदक फुदककर
मेंढक गया लेने
मशरुम की छतरी ।
देखकर मेंढक का
यह आईडिया
चिडियां हो गई खुश
मेंढक को कहा उसने
धन्यवाद भैया ।।

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