कहानी पूरी करो
पिछले अंक में हमने आपको नीचे दी गई अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी-
कंजूस सेठ
एक गांव में सत्यनारायण नाम का एक कंजूस सेठ रहता था. वह सभी से अपना काम मुफ्त में करवाने के लिए चालाकियाँ किया करता था. भोले - भाले गांव वाले उससे बहुत परेशान रहा करते थे.
एक दिन उस गांव में सुखसागर व रामसागर नाम के दो भाई काम की तलाश में आये. संयोगवश उन्होंने उसी सत्यनारायण सेठ से ही काम मांगा. सेठ मन ही मन खुश हुआ पर बाहरी दिखावा करते हुए बोला - चलो जाओ मेरे पास तुम्हारे करने लायक कोई काम नहीं है जो काम है. जो काम है वह तुम कर नहीं पाओगे. दोनों भाइयों को काम की अत्यंत आवश्यकता थी. दोनों ने कहा हम कर लेंगे. सेठ ने कहा यदि मेरे मन मुताबिक कार्य नहीं कर पाये तो एक माह तक तुम्हें बिना पैसे लिए काम करना होगा. दोनों भाई मान गए. सेठ ने जैसे ही तीनों काम बताए दोनों के होश उड़ गए.
पहला काम - दो जग, एक बड़ा व एक छोटा. बड़े जग को छोटे जग के अंदर डालना है. दूसरा काम - कमरे में गीला अनाज है. बिना दरवाजा खोले व अनाज को हाथ लगाए बगैर उसे धूप में सुखाना है. तीसरा काम - मेरे सर के वजन जितनी तरबूज बाजार से खरीद कर लानी है ना कम ना ज्यादा.
इस कहानी को पूरा करके हमें कुमारी कविता कोरी, श्रीमती नलिनी राय, दिलकेश मधुकर, सीमा चतुर्वेदी तथा तबरेज़ आलम ने भेजा है. क्योंकि सभी ने कहानी को एक ही प्रकार से पूरा किया है इसलिये हम उन सभी के व्दारा पूरी की गई कहानी एक साथ प्रकाशित कर रहे हैं –
आगे की कहानी
यह तो असंभव है!”, दोनों भाई एक साथ बोल पड़ते हैं.
“ठीक है तो फिर यहाँ से चले जाओ…इन तीन कामों को ना कर पाने के कारण मैं तुम दोनों को काम पर नहीं रख सकता…”, सेठ ने कहा.
मक्कार सेठ की इस धोखाधड़ी से उदास हो कर दोनों दोस्त नगर से जाने लगते हैं. उन्हें ऐसे जाता देख एक चतुर पण्डित उन्हे अपने पास बुलाता है और पूरी बात समझाने के बाद उन्हें वापस सेठ पास भेजता है. सेठ के पास पहुँच दोनों भाई बोलते हैं, “सेठ जी, ठीक है एक बार कोशिश करके देख लेते हैं.”
सेठ सत्यनारायण कहता है, 'लेकिन शर्त याद है ना, अगर तीनों काम नहीं कर पाये तो एक माह मुफ्त में काम करना होगा.'
दोनों भाई एक साथ- 'हमें शर्त मंज़ूर है.'
तीनो मिलकर दुकान के अन्दर गये. सुखसागर ने बड़े जग को तोड़-तोड़ कर छोटे जग के अन्दर डाल दिया. सेठ मन मारकर रह गया.
इसके बाद दोनों भाई सुखसागर और रामसागर ने मिलकर दुकान की दीवार और छत हथौड़े से तोड़ डाली, जिससे वहां हवा और धूप दोनों आने लगी, और अनाज सूख गया. सेठ और उसके आदमी देखते रह गए. किसी की भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं हुई.
अब आखिरी काम बचा था. दोनों भाई तलवार ले कर सेठ के सामने खड़े हो जाते है और कहते हैं, “सेठजी आप के सिर के सही वज़न के बराबर तरबूज लाने के लिए इसे धड़ से अलग करना होगा. कृपया बिना हिले स्थिर खड़े रहें.”
सेठ की समझ में आ गया कि गरीबों का हक मारना उचित नहीं है. उसने बिना हीला हवाला किए उन दोनों को काम पर रख लिया.
शिक्षा- 'बेईमानी का फल हमेशा बुरा ही होता है.'
अगले अंक के लिए अधूरी कहानी
दरजी-दरजिन
एक था दरजी, एक थी दरजिन. उनके घर कोई मेहमान आता, तो उन्हें लगता कि कोई आफत आ गई. एक बार उनके घर दो मेहमान आए. दरजी के मन में फिक्र हो गई. उसने सोचा कि ऐसी कोई तरकीब चाहिए कि ये मेहमान यहाँ से चले जाएं.
दरजी ने घर के अन्दर जाकर दरजिन से कहा, 'सुनो, जब मैं तुमको गालियां दूं, तो जवाब में तुम भी मुझे गालियां देना. और जब मैं अपना गज लेकर तुम्हें मारने दौडूं तो तुम आटे वाली मटकी लेकर घर के बाहर निकल जाना. मैं तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ूंगा. मेहमान समझ जायेंगे कि इस घर में झगड़ा है, और वे वापस चले जाएंगे.'
अब तुम जल्दीं से कागज़ कलम उठाओ और यह कहानी पूरी करके हमे भेज दो. सभी अच्छी कहानियां हम अगले अंक में प्रकाशित करेंगे. कहानी भेजने का ई-मेल पता है – dr.alokshukla@gmail.com.